RE: bahan ki chudai मेरी बहनें मेरी जिंदगी
बारिस अपने पूरे वेग से गिरती रही, और कार के एंजिन से चुटुर पुटुर की आवाज़ आ रही थी. काफ़ी आगे, एक कार धीरे से मूडी और उस कार की तरफ आने लगी.
बारिश सब कुछ भिगाती रही.
अरुण अंधेरे और शोर की गलियों से गुज़र रहा था. धुँआधार बारिश मे बिजली बार बार अंधेरो को मिटा रही थी. बीप- बीप. फिर से आँखें चौधिया देने वाली चमक...सुप्रिया की आवाज़....कोई रो रहा है.
अंधेरा दूर हटने लगा. अरुण दोबारा अपनी गर्लफ्रेंड के साथ था. पहले तो उसे उसका नाम भी ध्यान नही आ रहा था लेकिन फिर एक दम से उसके होठों पर उसका नाम आ गया. एश. वो उसे देखकर मुस्कुराइ और उसके गाल को चूम लिया. उसकी महेक अरुण को उसकी मस्ती मे डुबोने लगी. उसे ध्यान आया कि उस ने ये पर्फ्यूम उसे गिफ्ट किया था. वो बिल्कुल भूल ही गया था कि एश कितनी खूबसूरत थी. उसके लंबे डार्क ब्राउन कलर के बाल, जो थोड़े से घुंघराले थे, उसकी काली आँखें जो हमेशा चमकती रहती थी, थोड़ी सी हया. गले मे एक लॉकेट. वो उसे एक अजीब से मायूसी से देखती रही फिर एक दम से रोने लगी. अरुण के दिल मे उसके आसू देखकर दर्द उठने लगा.
दोबारा अंधेरा छा गया. इस बार जब अंधेरा दूर हुआ तो वो अभी भी छोटा था और वो मनहूस रात थी. पोलीस दरवाजे पर खड़ी थी और सुप्रिया बेजान सी दरवाजे पर खड़ी होके सिर हिलाए जा रही थी.
काफ़ी देर तक सुप्रिया अपने भाई बहनों से कुछ नही बोली जो उसके इर्द गिर्द आकर खड़े हो गये थे. काफ़ी देर बाद वो उठी और बाथरूम को चली गयी. वो काफ़ी देर तक अपने आप को शीशे मे देख कर मूह धोती रही. अरुण को उस समय ये चीज़ समझ नही आई थी लेकिन अब समझ आ रहा था कि वो खुद को बता रही थी कि अब उसे क्या करना है. वो अपनी जिंदगी, अपने सपनो को अलविदा कह रही थी, क्यूकी अब इस घर मे उन सबके माँ बाप का हक़ उसे ही अदा करना था. जैसे जैसे अरुण देखता रहा, सुप्रिया का चेहरा एक माँ के रूप मे बदलता चला गया.
उस रात उसके मोम डॅड की एनिवर्सरि थी, जिन्हे उन सबने ज़िद करके बाहर भेजा था. सुप्रिया उन सबके साथ आके सोफे पर बैठ गयी और बात करने लगी. उसने उन सबको याद दिलाया कि उनके मम्मी पापा उन सबसे कितना प्यार करते थे, और फिर उन सबकी आँखों मे देखते हुए उसने सच बयान कर दिया, कि उनके मम्मी पापा का आक्सिडेंट हुआ है. उसने बताया कि उन्हे काफ़ी चोट आई और हॉस्पिटल पहुचने से पहले ही उनका देहांत हो गया और अब वो लोग कभी वापस नही आने वाले. सभी को झटका तो लगा लेकिन सब इस बात को समझ गये.
सुप्रिया ने उन सबको कहा कि अब से वो उन सबका ख़याल रखेगी और वो अपनी तरफ से पूरी कोशिश करेगी कि उनकी ज़रूरतो को पूरा कर स्के. वो सब सुप्रिया की बाहों मे ही सो गये जब तक की उनके आँखें आसू बहाते हुए थक नही गयी.
अरुण एक ऐसी स्थिति मे फसा हुआ था जहाँ उसे अपने होने का अहसास भी था और आधी चीज़े याद भी नही थी. उसे वो चीज़े याद आने लगी कैसे सुप्रिया रोहित के पापा के साथ लीगल मॅटर्स सॉल्व करने के लिए गयी. कैसे वो फफक फफक कर रोई थी, उसकी ग्रॅजुयेशन के बाद जब अंकल ने बताया था कि उसके मम्मी पापा ये देखकर कितना खुश होते. वो उनके अंतिम संस्कार के बारे मे सोचने लगा. उसे इस वक़्त पता ही नही था कि उसके पापा को इतने लोग जानते थे.
उसने सोनिया के बारे सोचना शुरू किया, कैसे वो पूरी तरीके से बदल गयी. आक्सिडेंट से पहले तो बड़ी स्वीट थी लेकिन उसके बाद जैसे उसकी जिंदगी का एक ही मकसद था सुप्रिया को दुख पहुचाना. वो हमेशा सुप्रिया की बातों को नज़रअंदाज़ करके अपनी मनमानी करती रहती.
स्नेहा का बर्ताव जैसा था वैसा ही रहा. वो पहले से ही पढ़ाकू थी, और आक्सिडेंट के बाद तो जैसे उसकी दुनिया बस किताबो मे ही सिमट कर रह गयी थी. अगर वो किसी से बात करती तो सिर्फ़ अरुण से. वैसे भी वो थी भी पापा की लाडली. शायद इसीलिए वो अरुण से बात करती थी क्यूकी अरुण लगता भी उनके पापा की तरह था.
आरोही ने खुद को स्पोर्ट्स मे डाल दिया. ऐसी कोई चीज़ उसने नही छोड़ी जिसमे उसने हाथ नही आजमाया- वॉलीबॉल, फुटबॉल, बॅस्केटबॉल, स्विम्मिंग एट्सेटरा. यहाँ तक कि वो फुटबॉल टीम भी जाय्न करने वाली थी लेकिन सुप्रिया ने मना कर दिया.
अरुण भी सबसे दूर होने लगा. शायद यही वजह थी कि आक्सिडेंट के कुछ ही महीनो बाद उसके मन मे ये आवाज़ आने लगी. एक दिन जब वो पॉर्न देख रहा था उसके बाद से ही ये आवाज़ आई थी उसके दिमाग़ मे जो उसे वो सीन याद दिला रही थी. पहले तो उसे काफ़ी कम सुनाई पड़ती थी, जैसे कि महीने मे एक दो बार. लेकिन उमर के साथ साथ आवाज़ की मात्रा भी बढ़ती गयी. एक बार जब वो एश को किस कर रहा था तो आवाज़ ने उससे उसकी शर्ट फाड़ने को कहा तो अरुण ने उसे झट से मना कर दिया. उसके कुछ महीनो तक दोबारा उसे आवाज़ ने तंग नही किया था.
अंधेरे की चादर दोबारा पड़ गयी. इस बार जब वो चादर हटी तो एक चौधिया देने वाली सफेद रोशनी अरुण की आँखों मे पड़ी जब उसने आँखें खोलने की कोशिश करी. उसने अपना हाथ उठाने की कोशिश करी तो कुछ भारी सा उसके हाथ को रोके हुए था.
"ब्लॅंकेट्स," उसने सोचा. "मैं बेड पर हूँ, लेकिन..?" क्या जो कुछ अभी उसे दिख रहा था वो सपना था?
उसने कंबल के नीचे से अपना हाथ निकाला और अपने सिर पर रख के रोशनी को रोकने की कोशिश करते हुए आँखें खोलने लगा. उसकी उंगलियों के बीच से सफेद रोशनी अंदर आ रही थी. धीरे धीरे उसकी नज़र सॉफ हुई तो उसे आभास हुआ कि उसके आस पास काफ़ी लोग थे.
"दी..दी.." किसीने कहा. ये आवाज़ काफ़ी जानी पहचानी लग रही थी, लेकिन उसे याद नही आ रहा था कि किसकी है.
उसने अपने कंधे पर एक हाथ महसूस किया, कोमल प्यार से भरपूर.
"अरुण?" सुप्रिया ने धीरे से पूछा.
अरुण ने बोलने के लिए मूह खोला तो एक दर्द की लहर चीरती हुई निकल गयी और मूह काफ़ी सूखा हुआ था. उसने किसी चीज़ मे पानी गिरने की आवाज़ सुनी. प्लास्टिक की रिम उसके होठों से छुई और ठंडा पानी उसके गले के अंदर जाने लगा.
"और दूँ?" उसने पूछा.
उसने धीरे से सिर हिलाया तो उसकी गर्दन और पीठ मे दर्द होने लगा.
"हिलो मत," फिर से उसकी आवाज़ आई.
अरुण ने दोबारा बोलने की कोशिश की. उसकी आवाज़ उखड़ उखड़ के आ रही थी. "मैं कहा हूँ?"
सुप्रिया आगे झुक गयी. "स्वीतू, तुम आइसीयू मे हो. तुम्हारा आक्सिडेंट हुआ था. और सबसे ज़्यादा चोट तुम्हारे ही लगी है." उसने उसके कोमल हाथ का स्पर्श अपने माथे पर महसूस किया. "3 रिब्स टूटी हैं और सिर पर चोट लगी है. हम लोग तो डर ही गये थे."
"आक्सिडेंट?"
कुछ देर तक कोई आवाज़ नही आई, और फिर सुप्रिया की आवाज़ उसके कानो मे पड़ी. "हां. तुम आरोही, सोनिया और रोहित के साथ क्लब से घर आ रहे थे, तब."
अरुण ने एक कराह ली. "मैं नशे मे था क्या?" उसने पूछा.
"नही." सुप्रिया ने जवाब दिया.
"उस सुअर के बच्चे ने हमारी कार के टाइयर पर गोली मारी, यार." रोहित ने कहा, उसकी आवाज़ मे गुस्सा और चिंता सॉफ झलक रही थी.
अरुण कुछ देर तक चुप रहा. "कौन?"
उसका सवाल सुन के सभी कुछ देर के लिए चुप हो गये.
"स्वीतू....अभी जस्ट पिछली बात याद है क्या?" सुप्रिया की आवाज़ कांप रही थी.
अरुण कुछ देर तक सोचता रहा. "पता नही, सब धुंधला धुंधला है. मुझे याद है कि मैं और आरू अपने कॉलेज मे अड्मिशन के बाद पहले दिन साथ मे गये थे. मैं उस के साथ एक ही क्लास मे बैठा था. इसके बाद सब कुछ....धुँधला है. मुझे...पता नही..."
काफ़ी देर खामोशी छाइ रही जिसे सुप्रिया की रुआसी आवाज़ ने तोड़ा. "अरुण, वो एक साल पहले की बात है."
"ऐसा कैसे हो सकता है," उसने जवाब दिया.
सुप्रिया की जैसे आवाज़ ही गुम हो गयी थी. उसको देख कर लग रहा था कि अगर उसने एक शब्द और कहा तो आवाज़ की जगह वो रोने लगेगी.
अरुण दोबारा नींद के आगोश मे चला गया. उसे दोबारा एश दिखी सपने मे. उसकी महक और ज़्यादा यादें साथ लेके आई. वो दोनो एक साथ बीच पर टेहल रहे थे हाथो मे हाथ डाले. वही पर एश ने बताया कि वो फॉरिन जा रही है आगे की पढ़ाई करने.
अरुण उसे पसंद करता था लेकिन उसे ये कन्फर्म नही था कि क्या वो उसे प्यार करता है. उसके जाने का गम तो हुआ लेकिन इट वाज़ ओके. उन दोनो ने काफ़ी अच्छा टाइम स्पेंड किया था साथ मे और दोनो ने जब रिलेशन्षिप ख़त्म की तो दोनो ने दोस्त रहने का वादा किया था.
उसकी आँख मे एक सफेद रोशनी आके पड़ी और कुछ ठंडा ठंडा उसके सीने पर लगा. दो लोग आपस मे बात कर रहे थे. फिर उसने कुछ देर बाद दरवाजा बंद होने की आवाज़ सुनी.
कुछ देर बाद दोबारा वही दो आवाज़ें आई तो उसने धीरे से आँखें खोली. इस बार रोशनी ने उसकी आँखो को उतनी तक़लीफ़ नही पहुचाई. सबसे पहले उसकी नज़र सुप्रिया पर पड़ी. वो उसके बेड के पास ही चेयर पर थी और उसका सिर अरुण की जाँघ के पास था. वो सो रही थी. उसने नज़रे घुमा कर देखा तो खिड़की के पास निशा चेयर पर सिर रख के सो रही थी. उसके पास आरोही और रोहित बात कर रहे थे, दोनो ठीक ही थे, बस रोहित के सिर पर पट्टी बँधी हुई थी. दूसरी तरफ स्नेहा थी जिसकी गोद मे सोनिया सिर रख हुई थी, स्नेहा बड़े प्यार से सोनिया को पकड़े हुए सो रही थी.
अरुण थोड़ा हिला तो सुप्रिया जाग गयी जिससे आरोही और रोहित उसकी तरफ देखने लगे. सुप्रिया ने अपनी नज़रे उसकी तरफ करी तो अरुण की नीली आँखो को अपनी तरफ ही देखते हुए पाया. "हाई," उसने कहा जैसे कि रोज की तरह नॉर्मल दिन हो.
सुप्रिया हल्के से हंस दी और प्यार से उसे गले लगा लिया. "कुछ चाहिए क्या?" उसने पूछा.
अरुण ने पेट मे गुदगुदाहट सुनी. "कितना टाइम हुआ है? मेरे पेट मे चूहे कूद रहे हैं."
"एक साप्ताह होने वाला है, स्वीतू. तुम्हारी बॉडी को ठीक होने के लिए ज़्यादा ही एनर्जी की ज़रूरत थी तभी तुम्हे भूख लग रही है. मैं कुछ इंतज़ाम कर के आती हूँ."
आरोही उसके पास आई और झुक कर उसके सिर को चूम लिया. "तुमने तो हम सबको डरा ही दिया था," उसकी आँखे हल्की सी लाल थी और फिरसे उनमे आसू उभर आए थे. "मुझे..हमे लगा कि हम ने तुमको खो ही दिया है."
अरुण ने उसका हाथ प्यार से दबाया ये जताने के लिए वो ठीक है कि उसके हाथ मे भी दर्द उठने लगा.
"आइ'म सॉरी, आरू," उसने बोला, उसे पता था कि ग़लती उसकी बिल्कुल नही थी और ये भी जानता था कि कोई उसे दोषी ठहरा भी नही रहा पर इस वक़्त यही ठीक लगा.
रोहित चलकर आगे आया तो बाकी सब भी जाग गये.
"और मेरे शेर, कुछ चाहिए? लड़की, दारू एनितिंग?"
अरुण हंस दिया और उसके हाथ को थपथपाने लगा जिसने अरुण के हाथ को पकड़ रखा था. "थॅंक्स यार. आइ'म ग्लॅड तुम तीनो ठीक हो. अगर तुम लोगो को कुछ हो जाता तो..." उसने बात को वही ख़त्म कर दिया वो इससे आगे सोचना भी नही चाहता था.
"हम सब ठीक है," स्नेहा ने कहा, लेकिन उन सबकी हालत बिल्कुल उल्टी लग रही थी. सभी बिल्कुल थके हुए लग रहे थे. "तुम बस आराम करो और कुछ चाहिए तो हमे बताना."
वो आगे आई और उसे धीरे से गले लगाकर सिर को चूम लिया. झुकते समय उसके दूध अरुण के सीने से लगने लगे तो अरुण की नज़र उसके क्लीवेज पर पहुच गयी.
"तेरी बहेन है कुत्ते," उसने खुद से कहा.
सबसे ज़्यादा खराब हालत सोनिया की लग रही थी. उसकी आँखें देख कर लग रहा था कि वो काफ़ी रोई है.
अरुण उसकी हालत देखकर कन्फ्यूज़ हो गया. सोनिया तो कभी उसकी केयर नही करती थी. आज तक उसने कोई भी मौका नही छोड़ा था अरुण को परेशान करने का और आज वो सबसे ज़्यादा बुरी हालत मे लग रही थी. जब स्नेहा हटी तो सोनिया आगे आई उसे गले लगाने के लिए.
"तुम्हे पिछले साल का कुछ याद है?" सुप्रिया ने पूछा जब सोनिया उसे गले लगा चुकी थी.
अरुण ने एक गहरी सास ली और सिर हिला दिया. "आख़िरी चीज़ जो मुझे याद है वो ये कि मैं और आरू एक साथ क्लास मे जा रहे थे. तुम लोग कोई प्रॅंक तो नही प्लान कर रहे हो ना?"
सभी लोग अपना सिर हिलाने लगे, उन सबकी आँखो मे एक मायूसी छाइ हुई थी.
"यहाँ कब तक रहना पड़ेगा?" अरुण ने पूछा.
जैसे उसके सवाल का ही इंतजार हो रहा था कि तुरंत ही दरवाजा खुला और डॉक्टर एक नर्स के साथ अंदर दाखिल हुआ.
डॉक्टर ने दोनो आँखों मे टॉर्च से देखकर पूछा. "तो कैसा लग रहा है अब?"
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