RE: Incest Porn Kahani वाह मेरी क़िस्मत (एक इन्�...
Part 4
दूसरे दिन मैं खाने से फ़ारिग हुआ तो संध्या ने घर वापिस जाने कि लिए गंदे बर्तन समेटना शुरू कर दिए |
“संध्या घर वापिस जाने से पहले तुम आज मेरी बात सुन कर जाना” संध्या को बर्तन इकट्ठे करते देखा तो अपनी बहन से कहा |
संध्या ने बर्तन समेटते हुए बहुत गौर से मेरी तरफ देखा और जवाब दिए बगैर बर्तन धोने बाहर चली गई |
थोड़ी देर बाद अपने गीले हाथों को टॉवल से सफ करते हुए संध्या दुबारा वापिस कमरे में दाखिल हुई और दरवाज़े पर खड़ी होकर मेरी तरफ देखते हुआ कहा “जी भाई” |
“इधर आओ और मेरे पास बैठ कर मेरी बात सुनो संध्या” मैंने संध्या को अपने पास चारपाई पर आकर बैठने का इशारा करते हुए बोला |
मेरी बात सुनते हुए संध्या कमरे में दाखिल हुई और खामोशी से मेरे पास चारपाई पर आकर बैठ गई |
“उम्म, संध्या क्या तुम्हे कुछ खबर है कि ज़ाकिया कब तक दुबारा गाँव वापिस आएगी” मुझे समझ नही आई कि अपनी बहन से बात कैसे शुरू करूँ इसलिए मैंने हिचकिचाते हुए पूछा |
“क्यों खैरियत है”, मेरे सवाल के जवाब में संध्या ने मासूम अंदाज़ में उल्टा मुझ से सवाल किया |
“नही बस ऐसे ही पूछ रहा हूँ” संध्या के जवाबी सवाल पर एकदम बुखलाते हुए मैं बोला |
“मैं यकीन से तो नही कह सकती, मगर ज़ाकिया अब अगली सर्दियों में ही गाँव आएगी शायद” संध्या ने मेरी बात का जवाब तो मुँह से बोल कर ही दिया मगर उसकी तरफ देखते हुए मुझे ऐसा लगा जैसे मुँह के साथ साथ उसकी आँखें भी मुझे कुछ बताना चाह रही थीं |
“ओह नो, सर्दियाँ आने में तो अभी 6 महीने बाकी हैं” संध्या की बात सुनते ही मैं बेसब्री से बोला |
“भाई आज आप बार बार ज़ाकिया का ही पूछे जा रहे हैं, कोई ख़ास काम है उससे क्या” मेरी बेचैनी को महसूस करते हुए संध्या ने मेरी तरफ देखा और झुंझलाते हुए फिर सवाल किया तो इस बार मुझे अपनी बहन के लहजे में थोड़ी जेलसी सी महसूस हुई |
“असल में बात यह है कि मैं ज़ाकिया को बहुत ज्यादा मिस कर रहा हूँ” अबकी बार मैंने झिझकते हुए अपनी बहन संध्या से यह बात कह ही दी |
संध्या ने मेरी बात सुन तो ली मगर इस बार उसने मुझे कोई जवाब नही दिया |
“संध्या तुम्हे पता है कि मैं तुम्हारी सहेली को मिस क्यों कर रहा हूँ” संध्या की खामोशी देखते हुए धड़कते दिल के साथ मैं दुबारा बोला | मगर मेरी बात के जवाब में संध्या इस बार भी खामोश ही रही |
“मैं जानता हूँ कि कुछ अरसा पहले मेरे और ज़ाकिया के दरमियाँ जो कुछ हुआ, उसके बारे में ना सिर्फ़ तुम्हें सब पता है, बल्कि मुझे यकीन भी है, कि तुम छूप कर मेरी और ज़ाकिया की सारी मुलाक़ातों को देखती भी रही हो संध्या” संध्या की ख़ामोशी को देखते हुए मैंने डरते डरते अपनी बहन से इस बार आख़िर अपने दिल की बात कर ही दी |
संध्या से यह बात कहते ही मैंने अपनी बहन के चेहरे की तरफ देखा तो संध्या के चेहरे का बदलता हुआ रंग देख कर मैं फौरन समझ गया कि ना सिर्फ़ अपनी बहन संध्या के बारे में मेरा अंदाज़ा बिल्कुल सही था बल्कि अब संध्या के साथ बातें करने के दौरान ज़ाकिया के हवाले से मैंने अपनी बहन पर सही वार किया था |
संध्या ने अबकी बार भी मुझे कोई जवाब नही दिया | जिसकी वजह से मेरा हौसला बढ़ा और मैं एक बार फिर बोला “तो तुम वाक्या ही मेरी और ज़ाकिया की जासूसी करती रही हो ना संध्या” |
मेरी इस बात को सुनते ही संध्या ने एकदम घबरा कर मेरी तरह देखा और फिर इसी घबराहट और बेईख्तियारी के आलम में उसने कमरे छत की तरफ देखना शुरू कर दिया |
अपनी बहन की आँखों का पीछा करते हुए मेरी अपनी आँखें भी कमरे में बने हुए उस रोशनदान पर जा अटकीं | जिसकी खिड़की ट्यूबवेल की छत पर खुलती थी |
इस रोशनदान की बनावट ऐसी थी कि ट्यूबवेल की छत पर बैठकर रोशनदान के जरिए बड़े कमरे के अंदर तो देखा जा सकता था |
मगर कमरे के अंदर से खिड़की को देखकर यह अंदाज़ा नही लगाया जा सकता था कि कोई शक्स बाहर बैठकर कमरे में झाँक रहा है |
“अच्छा तो मेरी बहन ट्यूबवेल की छत पर चढ़ कर ज़ाकिया के साथ मेरी चुदाई के खैल को देखती रही है” अपनी बहन की नजरों का पीछा करते हुए मेरी नज़र जैसे ही कमरे के रोशनदान पर पड़ी तो मुझे फौरन सारी बात समझ आ गई |
यह ख्याल ज़ेहन में आते ही मैंने रोशनदान से नज़रें हटाकर एक बार दुबारा संध्या के चेहरे की तरफ देखा तो मैंने संध्या को अपनी तरफ देखता हुआ पाया |
इस बार जब हम दोनो बहन भाई की नज़रें आपस में मिलीं तो अपनी चोरी पकड़े जाने की वजह से मेरी बहन संध्या का चेहरा शरम से लाल हो चूका था |
“मैं घर जा रही हूँ” फिर यूँ ही मेरी और संध्या की नजरों का मिलाप हुआ तो वो मुझसे नज़रें चुराते और साथ ही चारपाई से एकदम उठती हुए बोली |
“अभी नही जाओ ना” संध्या को चारपाई से उठते देखकर मैंने एकदम से उसकी हाथ की कलाई को अपने हाथ में पकड़ते हुए कहा तो मेरी शलवार में मेरा लौड़ा गरम हो कर हिलने लगा |
“मेरा हाथ छोड़ो भाई मुझे जाना है” मुझे यूँ अचानक अपना हाथ पकड़ते हुए देख कर संध्या ने और घबराते हुए मेरी तरफ देखा और साथ ही उसने अपने हाथ को मेरे हाथ की ग्रिफ्त से छुड़ाने की कोशिश की मगर मैंने उसकी कलाई को नही छोड़ा |
आज मैंने हिम्मत करके अपनी ही जवान बहन की कलाई पकड़ तो ली थी मगर मेरी इस हरक़त पर मेरे दिमाग ने मुझे उसी वक़्त गुर्राते हुए कहा “ शरम कर बेगैरत, जाने दे इसे आख़िर बहन है यह तेरी” |
अभी मैं अपने दिमाग की बात सुन ही रहा था कि इतने में मेरे दिल और लौड़े ने मेरे अंदर के शैतान को एकदम झाड़ते हुए मुझे कहा “आज अगर तुम ने हिम्मत करके अपनी बहन की कलाई पकड़ ही ली है, तो इसे छोड़ना मत, क्योंकि आज अपनी बहन की इज्ज़त पर हाथ डालने का तुम्हारे लिए एक बहुत ही सुनहरी मौका है, और अगर तुमने आज भी इस मौके से फ़ायदा नही उठाया, तो याद रखो ज़िंदगी भर पछताओगे अफ़ताब” |
मेरे अंदर के शैतान ने यूँ ही मुझे अपनी ही बहन की इज्ज़त से खेलने के लिए उकसाया तो किसी जवान और गरम चूत की तलब में खड़ा होकर मेरी शलवार में पागलों की तरह मेरे लौड़े ने खुशी से धमाल मचानी शुरू कर दी |
इसके साथ ही मेरे लौड़े से गर्मी की एक लहर उठी जो मेरे सर में घुसकर मेरे दिमाग को क्लोज़ कर गई जिसकी वजह से मेरे दिमाग ने काम करना बंद कर दिया |
अब अपनी जिन्सी हवस के हाथों मजबूर होकर में चारपाई से उठा और फिर अपनी बाहें फ़ैलाते हुए एकदम अपनी बहन के जवान गुंदाज जिस्म को अपनी बाहों के घेरे में कस लिया |
“उफफफफफफफफफफफफ्फ़ मेरी बहन के जिस्म में तो जैसे आग ही भरी हुई है” अपनी बहन के जिस्म को अपनी बाहों में लेते ही मुझे ऐसा लगा जैसे मैंने रेगिस्तान की तपती रेत को हाथ में ले लिया हो |
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