Incest Porn Kahani वाह मेरी क़िस्मत (एक इन्सेस्ट स्टोरी)
01-24-2019, 11:51 PM,
#4
RE: Incest Porn Kahani वाह मेरी क़िस्मत (एक इन्�...
Part 3

संध्या अब मेरे लिए हर रोज़ खाना लाती और जब तक मैं खाना खत्म ना कर देता वो मेरे साथ वाली चारपाई पर बैठ कर चोरी चोरी मुझे देखती रहती |

खाने कि दौरान जब भी मुझे महसूस होता कि संध्या की नज़रें मेरे जिस्म पर गड़ी हुई हैं तो मैं रोटी से नज़र हटा कर उसकी तरफ देखता तो वो एकदम अपनी नज़रें चुरा कर कमरे से बाहर देखने लगती |

“यह मेरी बहन संध्या को क्या हो गया है, यह अब मेरे साथ पहले की तरह गपशप क्यों नही करती आजकल, और उसकी आँखें मुझे क्या पैगाम देना चाह रही हैं” | संध्या की आँखों में जो बात छुपी थी वो मुझे जानी पहचानी लग रही थी | मगर इसके बावजूद मैं संध्या की आँखों में पोषीदा पैगाम को पढ़ने में असमर्थ था |

चाहे संध्या ने मुझसे बातचीत करनी कम कर दी थी मगर उसके बावजूद मैंने उसमें एक और तब्दीली महसूस की कि अब वो ना सिर्फ़ खाना पकाने में मेरी पसंद और नापसंद का ख्याल रखने लगी थी बल्कि वो मेरे कहे बगैर ही घर में मेरे कपड़ों को धोने और उनको इस्त्री करके मेरे कमरे की अलमारी में रखने लगी थी |

साथ ही साथ मेरे खाना खाने के बाद भी वो डेरे पर भी पहले के मुक़ाबले ज्यादा देर रुक कर इस इंतज़ार में बैठी रहती कि मैं कब उसे किसी बात का हुक्म दूँ तो वो फौरन उठ कर मेरा वो काम कर दे |

मुझे अपनी बहन के रवैय में आती हुई इस तब्दीली पर हैरत तो हुई मगर मैंने उससे इस बारे में कोई बात नही की |

ज़ाकिया को गाँव से गए हुए अब एक महीना होने को था मगर ज़ाकिया के जाने के बाद से मैंने अपनी बहन संध्या से उसकी सहेली के बारे में कोई बात करना मुनासीब नही समझा था |

फिर एक दिन जब मैं खाना खाने में मसरूफ़ था कि इस दौरान संध्या कमरे से बाहर निकल गई |

खाने से फ़ारिग हो कर मैंने गंदे बर्तन उठाए और उन्हें खुद ही धोने के लिए ट्यूबवेल के साथ बनी हुई पानी की होद्दी पर लौट आया | 

ट्यूबवेल से निकलने वाला पानी इसी होद्दी में जमा होता रहता और फिर होद्दी में जमा होने के बाद वो पानी यहाँ से निकलकर हमारे सारे खेतों में जाता था |

पानी की यह होद्दी इतनी बड़ी और गहरी थी कि इसमें तीन चार इंसान इकट्ठे खड़े हो कर बहुत आराम से एक साथ नहा भी सकते थे |

होद्दी में खड़े पानी में बर्तन धोते हुए मेरी नजरों ने संध्या को ढूँढने की कोशिश की तो इधर उधर देखने के बाद मुझे अपनी बहन डेरे के बड़े कमरे की छत पर खड़ी नज़र आ ही गई |

संध्या बड़े कमरे की छत पर खड़ी अपने खेतों का नज़ारा करने में मसरूफ़ थी |

“मैं तुम्हें नीचे तलाश कर रहा हूँ और तुम ऊपर छत पर हो, मैंने बर्तन धो दिए हैं इन लेकर घर चली जाओ, अम्मी इंतज़ार कर रही होंगीं तुम्हारा” मैंने संध्या को छत पर खड़े देख कर उसे आवाज़ दी |

“अच्छा भाई मैं अभी आई” मेरी बात सुनते ही संध्या ने जवाब दिया और छत पर लगी सीढ़ी के रास्ते नीचे उतरनी लगी |

बड़ी छत से उतर कर संध्या पहले ट्यूबवेल की छत पर आई और फिर ट्यूबवेल की छत से भी दुबारा सीढ़ी के जरिए उतरकर उसने नीचे ज़मीन पर आना था |

बर्तन धोने के बाद नाजाने मुझे क्या सूझी कि मैं ट्यूबवेल के साथ लगी सीढ़ी के नीचे आ खड़ा हुआ | और अपनी बहन का छत से नीचे उतरने का इंतज़ार करने लगा |

ट्यूबवेल के साथ लगी सीढ़ी पर आकर संध्या ने अपना मुँह छत की तरफ किया और खुद सीढ़ी पर लगे डंडे पर पैर रखकर उल्टी हालत में सीढ़ी से नीचे उतरनी लगी |

इधर संध्या ने छत से उल्टा होकर सीढ़ी से उतरना शुरू किया और उधर मैंने नीचे से अपने सिर ऊपर उठाकर संध्या की तरफ देखा तो सीढ़ी के ऊपर का नज़ारा देखते ही मेरी आँखें खुली की खुली रह गईं |

असल में सीढ़ी से नीचे उतरते हुए संध्या को गिरने का डर लगा हुआ था इसलिए नीचे उतरते वक़्त उस ने आगे को झुकते हुए सीढ़ी के बांस को मजबूती से पकड़ लिया था इसलिए झुककर नीचे उतरने के इस तरीके में अब संध्या की भारी गांड पीछे से हवा में उठ गई थी |

मेरा लौड़ा तो एक महीना चूत से दुरी की वजह से किसी औरत की फुद्दी का पहले ही प्यासा हो रहा था | जबकि संध्या बेशक़ मेरी बहन थी मगर बहन होने से पहले वो एक जवान लड़की भी थी |

इसलिए आज हवा में उठी हुई अपनी ही बहन की मोटी भारी गांड को देखते ही मेरे लौड़े में एक जोश सा आ गया और मेरे ना चाहने के बावजूद मेरे लौड़े ने मेरी शलवार में अपनी ही बहन की मोटी गांड के लिए हिलना शुरू कर दिया | 

अब संध्या उल्टी हालत में सीढ़ी से नीचे उतर कर यूँ यूँ मेरे नज़दीक आ रही थी |

त्यों त्यों मेरी शलवार में मौजूद मेरे लौड़े में अपनी बहन की उठी हुई मस्तानी गांड को देखते हुए सख्ती आती जा रही थी |

फिर संध्या सीढ़ी से उतर कर जैसे ही ज़मीन पर आई तो मैं एकदम वहाँ से हटकर दुबारा कमरे की तरफ चल पड़ा |

क्योंकि मैं नही चाहता था कि मेरी बहन की नज़र मेरी शलवार में खड़े हुए मेरे लौड़े पर पड़े | 

“अच्छा भाई मैं घर जा रही हूँ” छत से नीचे आते ही संध्या ने ट्यूबवेल की होद्दी के पास पड़े बर्तन उठाए और घर की तरफ चल पड़ी |

“ठीक है” मैंने संध्या को हल्की आवाज़ में जवाब दिया और धडकते दिल के साथ कमरे के दरवाज़े पर खड़ा होकर अपनी बहन को घर जाता देखता रहा |

मेरे दिल-ओ-दिमाग में इस वक़्त एक अजीब सा तूफान मचा हुआ था |

आज मुझे अंजाने में अपनी ही बहन की भारी गुंदाज गांड का दीदार हुआ था और मेरे ना चाहने के बावजूद मेरे लौड़े को अपनी ही बहन की गांड की गर्मी चढ़ चुकी थी |

संध्या के डेरे से चले जाने के बावजूद मेरे लौड़े में आई हुई यह गर्मी अभी तक कम नही हुई थी |

जिसकी वजह से मेरा लौड़ा तन कर मेरी शलवार में अभी तक शान से अकड़ कर खड़ा था |

मैं कमरे के दरवाज़े पर खड़े होकर संध्या को दूर तक जाता देखता रहा |

फिर जैसे ही संध्या का वजूद मेरी नजरों से ओझल हुआ तो मैंने एकदम से कमरे में दाखिल होकर अपनी शलवार उतार दी |

मेरे लौड़ा में इस वक़्त बहुत गर्मी चढ़ चुकी थी और इस गर्मी को अपने हाथ से ठंडा करने के सिवा मेरे पास और कोई चारा नही था | 

इसलिए अपने लौड़े को हाथ में थामते हुए मैंने अपनी आँखें बंद कीं और अपने ज़ेहन में ज़ाकिया के जिस्म को लाकर अपने लौड़े की मुट्ठ लगाना शुरू कर दी |

“हाईईईईईईईईईईईईई ज़ाकि...या..आआअह्हह्हह” मैं आँखें बंद करके अपनी बहन की सहेली ज़ाकिया की चूत की मुट्ठ लगा रहा था |

कि मुट्ठ लगाते लगाते अचानक मेरे ज़ेहन में सीढ़ी उतरती हुई अपनी बहन संध्या की मोटी और भारी गांड का तसुवर एक बार फिर से आ गया |

“ना कर बहनचोद वो बहन है मेरी” मुट्ठ लगते वक़्त यूँ ही मेरे ज़ेहन में संध्या के बारे ख्याल आया तो मैंने एकदम अपनी आँखें खोल कर अपने ज़ेहन में आते इस ख्याल को झटकते हुए अपने दिल और लौड़े को समझाने की कोशिश की |

मगर फिर अपनी आँखों को दुबारा से बंद करते हुए मैंने जैसे ही ज़ाकिया के बारे में सोचना चाहा तो मेरी बहन संध्या की बाहर को निकली गांड एक बार फिर मेरे होश-ओ-हवास में छाती चली गई |

चूँकि लौड़े की गर्मी के हाथों मैं अब पागल हो चूका था इसलिए अब की बार अपनी बहन की भारी गांड के तसुवर को अपने ज़ेहन से निकालना मेरे लिए नामुमकिन हो गया और फिर नतीजे की परवाह किए बगैर मैंने अपने लौड़े पर तेज़ी के साथ हाथ मारा और कुछ ही देर बाद जोश से चिल्ला उठा |

“हाईईईईईईईईईईई संध्याआआआआआआआआआ” |

इसके साथ ही मेरे लौड़े को एक ज़ोरदार झटका लगा और मेरे लौड़े से पानी का एक फव्वारा उबल पड़ा जिसके साथ ही मेरे लौड़े से मनी निकल निकल कर कमरे के फर्श पर गिरने लगी |

आज पहली बार अपनी बहन के नाम की मुट्ठ लगाने के बाद मेरे दिमाग ने मुझे तो लाहनत (बुरा भला कहा) की और अपने लौड़े को पास पड़े एक गंदे टॉवल से सफ करने के बाद मैंने चारपाई पर पड़ी अपनी शलवार वापिस तो पहन ली मगर मेरी शलवार में मेरा लौड़ा कुछ सकूंन मिलने के बावजूद हल्के हल्के झटके ख़ाता हुआ अब भी मुझे बदस्तूर यह ही कहे जा रहा था कि “यानी यह लौड़ा मांगे मोर” |

फिर उस रात घर वापिस आकर जब मैं सोने के लिए अपने बिस्तर पर लेटा तो दिन को पेश आने वाला वाक्या मेरे दिमाग में अभी तक घूम रहा था |

जिसकी वजह से बिस्तर पर काफ़ी देर इधर उधर करवटें बदलने के बावजूद मुझे नींद नही आ रही थी |

मैं बिस्तर पर अपनी आँखें बंद किए लेटा हुआ सोने की कोशिश कर रहा था मगर नींद आने की बजाए मेरी बहन संध्या का चेहरा मेरी आँखों के सामने बार बार घूम रहा था |

मेरी बार बार की कोशिश के बावजूद मेरी बहन का खुबसूरत और जवान जिस्म मेरे होशो हवास पर छाता चला गया तो फिर उस रात अपने बिस्तर पर लेटकर मैं एक बार फिर से अपनी बहन संध्या के बारे सोचने लगा |

“ हाईईईईईईईई अपना सारा वक़्त खेतीबाड़ी में खराब करने के दौरान मुझे तो यह अहसास ही नही हुआ कि मेरी बहन संध्या अब बच्ची नही रही बल्कि वो तो 24 साल की एक मदमस्त जवान लड़की बन चुकी है, उसकी साँवली रंगत के बावजूद उसके जिस्म में एक अजीब सी कशिश है, ऊपर से संध्या का बढ़ा हुआ जिस्म, रसीले होंठ, पतली कमर, उसके सीने पर उसकी भरी हुई सडौल छातियाँ और सब से बढ़ कर उसकी बाहर को निकली हुई गांड की वजह से मेरी बहन संध्या एक क़यामत चीज़ बन चुकी है” |

मैं आज एक बार अपनी ही बहन की जवानी के मुल्त्क ना सिर्फ़ यूँ सोच रहा था बल्कि अपनी बहन की जवानी को सोचते हुए साथ ही साथ अपने लौड़े को भी हाथ में पकड़ कर आहिस्ता आहिस्ता मसलने भी लगा था |

अभी मैं संध्या के बारे में यह सब कुछ सोचते हुए गर्म हो रहा था कि इतने में ज़ाकिया की कही हुई एक बात दुबारा से मेरे कानों में गूंज उठी कि “अफ़ताब तुम्हारी बहन अब बच्ची नही कि इन बातों को ना समझ सके” |

यह बात सोचते हुए एक लम्हे कि लिए मेरी आँखें बंद हुईं तो मेरी बंद आँखों के सामने अचानक ही संध्या की आँखें आ गईं “उफफफफफफफफफ्फ़ जिस तरह की जिन्सी हवस मैंने पहली मुलाकात में ज़ाकिया की आँखों में देखी थी, उसी तरह की प्यास तो मेरी अपनी बहन संध्या की आँखों से झलक रही है, जिसे पढने में अभी तक नाकाम ही रहा हूँ” |

इस बात का ख्याल आते ही मैंने एकदम अपनी आँखें खोलीं तो एक और बात मेरे ज़ेहन में दौड़ गई कि “एक लड़की होने की हैसियत से मेरी बहन संध्या में भी जवानी के जज़्बात तो होंगे, तो अगर मैं कोशिश करके संध्या से ज़ाकिया की तरह तालुक़ात कायम करने में कामयाब हो जाऊं तो मुझे अपने ही घर में एक जवान और गरम चूत नसीब हो सकती है” |

यह बात सोचते ही मैंने अपने दिल में इस बात पर जल्द अमल करने का इरादा किया और फिर अपनी आँखें बंद करके सो गया |
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