RE: Incest Porn Kahani वाह मेरी क़िस्मत (एक इन्�...
मेरी बात सुनते ही ज़ाकिया ने मेरे लौड़े को अपनी फुद्दी से निकाला और चारपाई पर मेरे बराबर लेट गई |
चारपाई पर ज़ाकिया के लेटते ही मैंने उठकर उसकी टांगों को अपने हाथों में थाम कर खोला और उसकी चूत को देखने लगा |
“उउफफफफफफफफ्फ़ ज़ाकिया की फुददी मेरी चुदाई की वजह से काफ़ी गीली हो चुकी थी और उसमें से चूत का पानी टपक टपक कर उसकी राणों को भिगो रहा था |
ज़ाकिया की टांगों को अपने सामने चौड़ा करते हुए मैं अपना लौड़ा अपने हाथ में पकड़ा और अपना टोप्पा ज़ाकिया की फुददी पर रख कर उसकी चूत के दाने को लौड़े की टोपी से मसलने लगा |
“हाईईईईईईईईईई क्यों तडपा रहे हो मुझे, अब्ब्ब्ब्बब्ब्ब्ब्बब्बबब डाल भी दो अंदरररर” मेरे लौड़े की रगड़ को अपनी चूत के भीगे लबों पर महसूस करते ही ज़ाकिया मचल उठी |
“उफफफफफफफफफफफफफफ्फ़ तुम्हारी चूत वाक्या ही मेरे लौड़े के लिए तडप रही है, तो यह लो मेरी रानी” ज़ाकिया की सिसकी भरी इल्तिज़ा सुनते ही मैं आगे बढ़ा और एक झटके में अपना पूरा लौड़ा एक बार फिर ज़ाकिया की प्यासी चूत में उतार दिया |
“हाईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई मारर्र्रररर दिया तुम ने ज़ालिमम्म्ममममममम” |
मेरे ज़ोरदार घस्से की वजह से जैसे ही मेरा लौड़ा फिसलता हुआ ज़ाकिया की फुद्दी की तह तक पहुंचा तो मज़े के मारे ज़ाकिया एक बार फिर सिसक उठी |
अब मैंने ज़ाकिया की दोनो टांगों को चौड़ा कर अपने कंधों पर रखा और उसके ऊपर चढ़ का ज़ोर ज़ोर से उसकी फुद्दी की चुदाई में मसरूफ़ हो गया |
मैं अब तेज़ी के साथ अपना लौड़ा ज़ाकिया की फुददी में डाल रहा था और वो नीचे से अपनी गांड को ऊपर उठा उठा कर मेरे लौड़े को अपनी प्यासी चूत में जज़ब करती जा रही थी |
कमरे में हमारी चुदाई की वजह से पैदा होने वाली “पूच पुच और थप थप की आवाजों के साथ चारपाई की “चें चें” भी माहौल को बहुत की रंगीन बना रही थी |
अब हम दोनो हर बात से बेफ़िक्र हो कर सिर्फ़ अपनी अपनी जिन्सी हवस को मिटाने के जोश में अपने लौड़े और फुद्दी का मिलाप करवाने में मगन थे |
थोड़ी ही देर बाद ज़ाकिया ने अपने हाथ मेरे बालों में फेरते हुए मुझे ज़ोर से पकड़ा और अपने सीने से लगा लिया |
इतने में एक “अहहहहहः हुनननननणणन” की टूटती हुई आवाज़ उसके मूँह से निकली और वो ज़ोर से काँपी और फिर साथ ही उसका जिस्म एकदम ढीला पड़ गया और वो एक बार फिर फारिग हो गई |
ज़ाकिया को यूँ फारिग होते देखकर मेरे लौड़े को भी जोश आया और मैंने भी एक झटके में “आअहह” करते हुए अपने सारा पानी ज़ाकिया की गरम प्यासी फुद्दी में खारिज़ कर दिया |
मेरे लौड़े से बहुत पानी निकला जिससे ज़ाकिया की सारी चूत भर गई और मैं एकदम निढाल होकर ज़ाकिया के ऊपर ही लेट गया |
थोड़ी देर मैं और ज़ाकिया इस तरह लेट कर अपनी अपनी बिखरी साँसों को बहाल करते रहे |
“उफफफफफफफफफफफफफफफ्फ़ अफ़ताब यकीन मानो मेरे शोहर ने मुझे आज तक इतने मज़ेदार तरीके से नही कभी चोदा, जितने मज़ेदार अंदाज़ में तुमने मेरी फुद्दी मारी है, तुम्हारे अंदाज़ा से लगता है कि तुम आज से पहले भी काफ़ी दफ़ा किसी की चूत मार चुके हो, कहाँ से सिखा है यह सब” अपनी बिखरी साँसों की संभलते ही ज़ाकिया मेरे जिस्म के नीचे से बोली और उसने एक ही साँस में इतने सारे सवाल एक साथ कर दिए |
“तुम्हारे सारे सवालों का जवाब मैं बाद में दूंगा, अब जल्दी से अपने कपड़े पहन लो, क्योंकि संध्या अभी वापिस आती ही होगी” अपने लौड़े की गर्मी दूर करते ही मुझे अपनी बहन संध्या का ख्याल दिमाग में एकदम आया और मैं तेज़ी के साथ चारपाई से उठकर अपने कपड़े पहनते हुए ज़ाकिया से बोला |
“तुम उसकी फ़िक्र मत करो, उसकी वापसी में अभी आधा घंटा बाकी है” मेरी बात सुनकर ज़ाकिया ने बड़ी आराम से मेरी बात का जवाब दिया और उसी तरह नंगी हालत में चारपाई पर लेटी रही |
ज़ाकिया की बात और उसका बेफिक्री अंदाज़ देखते हुए मुझे बहुत ही हैरानी हुई तो मैं सवालिया नजरों से उसकी तरफ देखते हुए पूछा “क्याआआआ तुमने संध्या को यह सब कुछ बताया है ज़ाकिया” |
“नही मैंने उससे ऐसी कोई बात नही की, मगर मैं जानती हूँ कि वो एक समझदार लड़की है” मेरी बात का जवाब देते हुए ज़ाकिया के चेहरे पर एक मुस्कराहट फैलती चली गई |
ज़ाकिया की बात सुनकर मैंने एक बार फिर हैरानी के साथ उसे देखा | मगर अबकी बार मैं खामोश रहा क्योंकि उसकी बात का मेरे पास कोई जवाब नही था |
“असल में ग़लती मेरी ही है, मुझे यह अंदाज़ा नही था कि संध्या को इस बात की भीनक पड़ जाएगी, कि मैं उसकी सहेली के साथ क्या हरकत करने जा रहा हूँ, मुझे चाहिए था कि मैं ज़ाकिया को किसी और वक़्त डेरे पर बुलाता” अपने लौड़े का पानी निकल जाने के बाद जब मेरे दिमाग से मनी उतरी तो मेरे ज़ेहन में अब यह बात आई, मगर अब पछताने के सिवा क्या हो सकता था |
“अफ़ताब तुम्हारी बहन अब बच्ची नही कि इन बातों को ना समझ सके, मगर यह बात मत भूलो कि संध्या तुम्हारी बहन होने के साथ साथ मेरी एक बहुत अच्छी सहेली भी है, इसलिए तुम फ़िक्र मत करो” मेरे चेहरे पर फैली परेशानी को देखते हुए ज़ाकिया चारपाई से उठी और अपने कपड़े पहनते हुए इत्मीनान भरे लहजे में मुझे समझाने लगी |
वो कहते हैं ना कि “अब पछताए क्या होत, जब चिड़िया चुग गई खेत”
इसलिए मैंने भी इस बारे में परेशान होना मुनासिब ना समझा और ख़ामोशी के साथ वापिस चारपाई पर आ बैठा |
ज़ाकिया ने इस दौरान अपने कपड़े पहने और फिर कमरे का दरवाज़ा खोल कर खुद भी सामने वाली चारपाई पर आ बैठी और मेरे साथ इधर उधर की बातें करने लगी |
संध्या के बारे में ज़ाकिया का अंदाज़ा सही था क्योंकि वाक्या ही संध्या की वापसी हमारी चुदाई के खत्म होने के ठीक आधे घंटे बाद ही हुई |
संध्या को कमरे में आता देखकर ना चाहने के बावजूद मैंने उसके चेहरे को पढने की कोशिश की मगर अपनी बहन संध्या के चेहरे पर छाई संजीदगी को देख कर मुझे किसी भी किस्म का अंदाज़ा लगाने में बहुत दिक्कत हुई |
ज़ाकिया की संध्या के बारे में कही जाने वाली बात के बाद ज़ाकिया के सामने अपनी बहन का सामना करना मेरे लिए एक मुश्किल काम था |
इसलिए संध्या के कमरे में आते ही मैं दूसरे ही लम्हे खुद उठ कर कमरे से बाहर निकल गया |
मेरे कमरे से बाहर जाने के बाद संध्या ने सारे बर्तन समेटे और फिर वो दोनो भी कमरे से निकल कर चुप चाप वापिस गाँव की तरफ चल पड़ीं |
फिर ज़ाकिया उसके बाद मेरी बहन संध्या के साथ रोज़ाना ही हमारी डेरे पर आने लगी |
यह सच बात है कि ज़ाकिया से चुदाई के पहले दिन के बाद मैं अपनी बहन संध्या की तरफ़ से फ़िक्रमंद था कि वो मेरे बारे में क्या सोचेगी |
मगर संध्या ने पहले दिन के वाक्या के बाद अपनी किसी बात से मुझे अपनी नाराज़गी का इज़हार नही करवाया तो उसकी इस बात से मेरा हौसला और बढ़ गया |
और फिर उस दिन के बाद संध्या और मेरे दरमियाँ ज़ाकिया को लेकर एक खामोश अंडरस्टैंडिंग पैदा हो गई |
उस दिन के बाद मैं यूँ ही खाने से फ़ारिग होता तो संध्या बर्तन धोने के बहाने कमरे से निकल कर अपनी सहेली ज़ाकिया को मेरे साथ कमरे में अकेला छोड़ जाती |
तो मैं और ज़ाकिया इस सुनहरी मौके से फ़ायदा उठाते हुए आपस मैं चुदाई करते और फिर संध्या की “वापसी” के बाद ज़ाकिया ख़ामोशी के साथ मेरी बहन के साथ घर वापिस चली जाती |
यह सिलसिला तक़रीबन दो हफ्ते तक चलता रहा और मुझे यह वक़्त अपनी ज़िंदगी का एक हसीन वक़्त लग रहा था |
मगर वो कहते हैं ना कि “खुशी के दिन चंद ही होते हैं”
इसलिए दो हफ्ते बाद एक दिन संध्या मेरे लिए खाना ले कर आई तो उस दिन वो अकेली ही थी |
“क्या बात है आज तुम्हारी सहेली नही साथ आई तुम्हारे” ज़ाकिया को संध्या के साथ ना देख कर मैंने अपनी बहन से पूछा |
“रात को उस का शोहर आया था और वो उसे अपने साथ वापिस मुल्तान ले गया है” मेरी बात को सुनकर संध्या ने जवाब दिया तो चूत से महरुमियत की यह खबर दिल के साथ साथ मेरे लौड़े पर बिजली बन कर गिरी |
उस दिन के बाद तो मेरे लिए एक बार फिरसे ख़िज़ाँ का ही मौसम आ गया था और अब ज़ाकिया के जाने के बाद मैं एक बार फिर अपने पुराने नंगे सेक्सी रसालों का सहारा लेने पर मजबूर हो गया |
मगर इस दौरान मैं एक बात को महसूस करने में फैल हो गया था या इस बात को महसूस करने में शायद काफ़ी देर कर दी थी और वो बात थी मेरी बहन संध्या का मेरे साथ पेश आने वाला रवैया |
जो ज़ाकिया के जाने के बाद एकदम से तब्दील हो चूका था मगर मुझे इस बात को नोट करने में थोड़ी देर लग गई |
|