Nangi Sex Kahani सिफली अमल ( काला जादू )
01-19-2019, 07:24 PM,
#19
RE: Nangi Sex Kahani सिफली अमल ( काला जादू )
बाजी अपने होशो हवास से खो गयी....लज़्ज़त की सिसकारिया कमरे में गुंज़्ने लगी..."हाहाहा"......उस शैतान का ठहाका मेरी रग रग में जैसे आग उबाल रहा था....अपनी बाजी को किसी और के साथ हमबिस्तर होता देख मेरे ज़ज़्बात उठने लगे...उसने बाजी की चूत पे अपना पूरा मुँह रख दिया और बहुत ज़ोर ज़ोर से उनकी चूत को चूसने लगा....बाजीी काफ़ी ज़ोर से दहाड़ उठी....शायद उन्हें राजा की ज़ुबान का चस्का लगा था या फिर उनके अंदर की जिन्सी भूक उनपे बढ़ती जा रही थी....फिर राजा ने उठके अपने लंड को चूत के मुँह पे रखा.....बाजी ने आँखे बंद कर ली और राजा भी आहें भरता हुआ बाजी की चूत के अंदर अपना लंड डाल चुका था....वो खड़े खड़े बाजी की एक टाँग को अपने कंधे पे रखके उनकी चूत में सतसट धक्के पेलता रहा.....उनकी बुर को गीला करता रहा चोदता रहा...."आहह आअहह आहह"......राजा कितने मज़े से आहें भर रहा था इस बात का मुझे पक्का मालूमात था...मेरी बाजी की बुर उसे भा गयी थी....उसके कुछ देर बाद उसने बाजी की चूत से अपना लंड बाहर खींचा और फिर उन्हें पेट के बल लिटा के काफ़ी बेरहमी से लंड गान्ड के अंदर डाला....बाजी चिल्लाती रही चीखती रही पर उनकी आवाज़ को सुनके उस हाल का दर्द समेटना मेरे लिए बहुत मुस्किल था...शायद बाजी को इसकी आदत थी इस शैतान के साथ क्या वो ऐसे ही रोज़ मिलती होंगी? मेरी बाजी एक दोजख से निकलके दूसरे दोजख में क़ैद थी



"आअहझह आआहह सस्स आआआआहह".......राजा बेधड़क आहें भरता हुआ गरज रहा था उसके शैतानी ठहाके और उसकी लज़्ज़तदार सिसकारियाँ मुझे उसकी जान लेने को आमादा कर रही थी....कुछ देर बाद जब उसका बर्दाश्त पूरा हुआ तो अपने असल रूप मे आके उसने बाजी की गर्दन से उन्हें पकड़ा और अपने लंड की सारी गंदगी उनके चेहरे और होंठो पे छोड़ता चला गया.....बाजी बस चुपचाप अंडकोष को सहलाते हुए अपने शौहर की ओर देख रही थी....फिर उस राजा ने उनकी गर्दन से बालो को हटाया और उसपे अपने दाँत गढ़ा दिए बाजी की एक हल्की चीख निकली और फिर पीठ से होते हुए फर्श पर काला खून गिरने लगा



"जब तक मालकिन का खून वो अपनी ज़ुबान से ना लगाए उन्हें चैन नही मिलता"......मुझे सख़्त गुस्सा आ गया था और मैं समझ चुका था कि अय्याश राजा जो किसी इब्लीस के बेटे से कम नही इसमें बाजी सिर्फ़ प्यार खोज रही थी लेकिन मुझे लूसी की ये बात हजम नही हुई...क्यूंकी मैं जहाँ तक मानता था....एक पिशाच दूसरे पिशाच को सिर्फ़ अपने फ़ायदे के लिए कांटता है....ताकि वो अपने गंदे खून को दूसरे के खून में शामिल कर सके



मैं और देख नही पाया दोनो एक दूसरे से प्यार भरी बातें करने लगे....लूसी और मैं वहाँ से जल्दी से निकल आए....लूसी मुझसे पूछने लगी कि तुम्हें मज़ा आया कि नही...पर मैं घृणा भरी निगाहो से लूसी की ओर बिना देखे अपने कमरे की ओर जाने लगा कहा कि मुझे कुछ आराम की ज़रूरत है उसने मुझे फोर्स करना चाहा मेरे जिस्म को सहलाना चाहा....पर बाजी की इस हालत को देखने के बाद मेरे अंदर की जिस्मानी भूक थम गयी थी



जब कमरे में लौटा तो मेरी आँखे बदल चुकी थी..गुस्सा मुझपे हावी हुआ जिन वजहों से मैं भेड़िए के रूप में तब्दील होने लगा था....फिर अपने गुस्से को पीते हुए रात के सन्नाटे में लॅंप की रोशनी में ही डाइयरी लिखने लगा बाहर की हो हो करती तेज़ हवाए खिड़की से आ रही थी.....इस सन्नाटे भरे वीरान क़िले में जहाँ मौत रहती थी वहाँ ऐसी हवाओं का आना डर पैदा कर देता था...मैने डाइयरी में लिखी आप बीती को गुस्से में आके फाढ़ के ओर फ़ैक् दिया...."या अल्लाह किस बात की सज़ा मिल रही है मुझे? मैं तो बस आज अपनी बाजी को खुश भी देख कर ऐसा क्यू लग रहा है कि मैं उन्हें कहीं ना कहीं खो चुका हूँ किसी ग़लत हाथो में उन्हें जाने दे रहा हूँ"........अपने आप से मैं बात कर रहा था...और उसी पल हवाओं में एक तेज़ गंध मुझे महसूस हुई....ये गंध किसी बहुत ही गंदी सी जैसे मानो सौ इंसानो की लाश की एक साथ बदबू हो....मैने देखा कि द्वार के नीचे से गेट अपने आप चर्र्चाते हुए खुला और इस शोर भरी खामोश सर्द रात में पंजो के बल चलते हुए दूर वीरानो में जाने लगा....जब गौर किया तो ये एक आदमी था...कोई और नही वही भयंकर चेहरा वही रूप ड्रॅक्यूला स्किवोच..उसकी हरक़ते मुझे किसी जंगली जानवर की तरह लग रही थी पर इतनी रात गये वो जा किस ओर रहा था



मैने चौंककना होके चारो ओर देखा...और फिर पाँचवी मंज़िल जितनी अपनी बाल्कनी से छलाँग लगा दी....जल्द ही मैं कच्ची मिट्टी पे उतरा....सूंघने की गंध काफ़ी तेज़ थी मेरी....बस इस बात का ख़ौफ़ था कहीं राजा को मेरे पीछा करने के बारे मे पता ना लग जाए...वो धीरे धीरे धुन्ध में चल रहा था....चारो ओर एकदम खामोशी कहीं दूर से जंगली जानवरों की रोने की आवाज़ें आ रही थी...मैं झाड़ियों के बीच बीच छुपते छुपाते जिस ओर वो जा रहा था उससे 30 कदम दूर मैं पीछे चल रहा था....जल्द ही वो एक गेट को खोलके अंदर गया....जब मैने उस ओर देखा तो चारो तरफ सिर्फ़ और सिर्फ़ क़ब्रे ही क़ब्रे थी....मैं धीरे धीरे पेड़ो के उपर चढ़के चुपके से देखने लगा चारो ओर पुराना सा क़ब्रिस्तान....तभी वो अचानक एक बड़ी पुरानी सी क़ब्र के करीब जाके बैठ गया....और उसके बाद उसकी वो ठहाका लगाती हँसी हा हा हा हा हा हा...हा हा हः हा हा....चारो ओर के वातावरण और इस हो हो करती हवाओं के शोर्र में एक बहुत ही गंदी डरावनी हँसी थी वो....और फिर वो अपने हाथो से क़बर को खोदने लगा....मैने सॉफ देखा उसकी आँखे सुर्ख सफेद थी और उसके दाँतों पे ज़ुबान लपलपा रही थी



कुछ देर बाद एक अज़ीब सी घुटन भरी आवाज़ उस क़बर से आती महसूस हुई....राजा घुटनो के बल बैठके अपने हाथ फैलाए उस ज़मीन को फाड़ के निकलती उस अज़ीब सी औरत की तरफ मुस्कुरा राह था....जिसके बाल सुर्ख गुलाबी और चेहरा इतना सफेद....





"मेरी बाजी के होते हुए भी ये शैतान किस औरत के पास आया था? ये कोई इंसान तो नही थी एक और नापाक पिशाच जो अपनी क़बर से रात के पयमाने में उठी थी"......उसने उठके पास चलके राजा के हाथो को अपने हाथो में ले लिया उसका वो भयंकर रूप देख कर साँसें मानो अटक सी गयी...उसने उस औरत के ठंडे हाथो में अपने रक्तहीन होंठो से चूमा...."मैं समझ चुका था कि ये शैतान आख़िर अपना रूप दिखाएगा ही मैं बस ठिठक के चुपचाप था वरना अगर उनके सामने आया तो यक़ीनन मौत को गले लगाना होगा"........उन नापाक पिशाचो ने एक दूसरे की ओर अज़ीब निगाहो से देखा फिर मुझे राजा की दोहरी आवाज़ सुनाई दी जो चारो ओर गूँज़ रही थी


"जल्द ही तुम जीवित हो उठोगी मेरी रानी क्रिसटीना इस खामोश वीरान में तुम कब्से यूँ सोई हुई हो...बस अब शिकार खुद चलके हमारे पास आया है....जल्द ही मेरी पाँचवी दुल्हन को भी मैं बलि चढ़ाउंगा और उसके काले खून से तुम्हें फिर वैसे ही नहलाउंगा जो अब तक हर उस आधे चाँद के वक़्त करता आया हूँ बस एक और शिकार....और तुम नही जानती उसका भाई भी मेरे कब्ज़े में है अब उसके रूप को मैं पहचान गया हूँ और उस जैसे ख़तरनाक जानवर की हमे ज़रूरत है ताकि एक बार फिर हमारा वजूद पनपे...फिर हम अपनी प्यास को भुजाए फिर हम एक हो सके"........
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