RE: Nangi Sex Kahani सिफली अमल ( काला जादू )
फिर वो भेड़िए एक एक करके अलविदा कहके भाग गये...आसिफ़ बस मुस्कुराया "मान गये तुम्हें तुम ऐसे ही मालकिन के भाई नही कहलाए हो....एक सोने का दिल रखने वाला इंसान जो चाहे तो हमारे इन कट्टर दुश्मनो को मार सकता इंसाफ़ करके ऐसा समुझौता कर पाया है"........मैं बस मुस्कुराया और फिर देखा कि धीरे धीरे सूरज उगने लगा है....हम दोनो जल्द ही मेरा बेहोश घोड़ा जो जाग चुका था उसपे सवार होके घाटी की ओर बढ़ने लगे.....कितनी खूबसूरत घाटी थी चारो ओर चिड़ियो की आवाज़ें उफ्फ ऐसी जन्नत और कहाँ?....लूसी मुझे बताने लगी कि उन भेड़िए के संगठन ने नाक में दम कर रखा था उनकी दुश्मनी सालो साल से चली आ रही थी पर आज पहली बार उन्हें किसी ने हरा कर समझौता किया है....अब वो खुश है और यक़ीनन मालकिन शीबा भी फकर करेंगी कि उनका सबसे कट्टर दुश्मन उनके इलाक़े से दूर जा चुके है....मैं बस मुस्कुराया और सूरज की ओर देखने लगा
जल्द ही हम एक पहाड़ के सामने थे एक उँचा पहाड़....सामने नहेर की आवाज़ आ रही थी....पानी बह रहा था उसमें चारो ओर हरा भरा जंगल और खूबसूरत वादियाँ...."उस पहाड़ को पार करते ही हमारा क़िला आ जाएगा चलो चले".........इतना कहके घोड़ा फिर पूरी रफ़्तार से उस ओर बढ़ने लगा....पहाड़ के रस्तो से उबड़ खाबड़ चलते हुए मैं अपनी मंज़िल से महेज़ कुछ ही दूरी पे था.....चार्ल्स की बात दिमाग़ में घूम सी गयी थी "उस पहाड़ को देख रहे हो...उस पहाड़ के बाद मौत शुरू होती है जहा सिर्फ़ मौत बसती है पिसाच जैसे ख़ूँख़ार जानवर सब वही रहते है....और हम इंसान इस छोटी सी बस्ती में हमारे में किसी की भी हिम्मत नही की उस ओर चले जाए सब ख़ौफ़ खाते है ये भूल तुम कभी मत करना".........चार्ल्स की उस बात को सुनके सच में मुझे अज़ीब महसूस हो रहा था....अच्छा हुआ ये सच्चाई कभी नही खुल पाएगी
जल्द ही मेरी सोच तब टूटी...जब लूसी ने मेरे बदन को झिंजोड़ा और सामने उंगली का इशारा किया...सामने पहाड़ जैसे ख़तम हुए उसी रास्ते से काफ़ी दूरी पे एक बड़ा सा क़िला देखने को मिला....मानो कितना पुराना था और कितना खूबसूरत.."यही है मालकिन और हमारा घर".........लूसी ने मुस्कुरा के जवाब दिया...मैं उसके साथ धीरे धीरे रास्ते पे चलता हुआ उस ओर आया घोड़ा पहले तो सहम उठा....पर मैने उसे समझाया कि उसे डरने की ज़रूरत नही उसे कुछ नही होगा...जल्द ही हम क़िले के बेहद करीब थे....ऐसा लग रहा था क़िला करीब 150 साल पुराना तो था ही...क्यूंकी उसकी एक एक ईंट काफ़ी पुरानी और जर्जर हो चुकी थी....कभी ये क़िला वहाँ के राजा स्किवोच का था लेकिन उनकी मृत्यु के बाद इस क़िले को हमेशा हमेशा के लिए बंद कर दिया गया और आज यहाँ सिर्फ़ पिशाचो का वास था मुझे यकीन नही हो रहा था कि मेरी बाजी शीबा इन पिशाचो की रानी बन गयी थी
जल्द ही सामने एक बरा सा द्वार था जो चरर चर्राते हुए खुल गया हम अंदर दाखिल हुए अंदर एक खुला मैदान सा था और चारो ओर के इमारतो से घिरा......वहाँ के एकदम सन्नाटे भरे इलाक़े को देख मुझे हैरानी हुई....मैं और लूसी उतरे लूसी ने जो अपने बदन को कपड़े से ढक रखा था उसे उतार डाला...."आओ मेरे साथ"........मैने घोड़े को अपने साथ ले जाने लगा "इसे यही छोड़ दो ताकि ये खुली वादियो में रहे".......मैने घोड़े को वही बाँध दिया...और लूसी के साथ चलने लगा.....लूसी ने एक मशाल पास रखी उठाई और फिर उसे फुका मशाल अपने आप जल उठी
हम धीरे धीरे सीडियो से उपर चढ़ने लगे और फिर दूसरी ओर काफ़ी गुफा जैसी उची दीवारे और बंद चारो तरफ से थी....जल्द ही हम एक डाइनिंग हॉल जैसी जगह में दाखिल हुए....सामने एक विशाल गद्दी पे बैठी सरताज और वेश भूषा में एक लड़की ने मेरी तरफ आँख घुमाई "लूसी उनके पास जाके सर झुकाके घुटनो के बल बैठके मालकिन हुकम बोल उठी".........जैसे ही मेरी निगाह उस रानी पे पड़ी मेरे चेहरे पे खुशी की ल़हेर दौड़ उठी वो रानी मुस्कुराई एकदम से अपनी गद्दी से उठी और मेरी ओर जैसे दौड़ पड़ी
"ओह्ह्ह आसिफ्फ तुम आख़िर आ ही गये".......शीबा बाजी मेरे गले लग्के मुझे खूब प्यार करने लगी
"हां बाजी मैं आ गया आपके बिना कैसे रह पाता?"........मैं शीबा बाजी के चेहरे को हाथो में भरके उनके गाल और गले को चूमने लगा....लूसी की आँखो में भी खून के आँसू थे....शीबा बाजी ने मेरी खातिर दारी शुरू कर दी....
कुछ देर बाद वहाँ एक और शक्स आया....और उसके पीछे भी बहुत से पिसाच जो मुझे आँखे फाडे देख रहे थे...वो सब मुझसे वाक़िफ़ थे इस बात का मुझे यकीन था....बाजी ने धीरे धीरे उन सबसे मुझे मिलवाया वो सब राज घराने के गुलाम थे....उन सबको मेरी कहानी पता थी..कुछ पिसाच बहुत उम्रदराज थे मानो बेहद पुराने हो कभी इस राजा स्किवोच के मुलाज़िम होया करते थे और आज भी है...उन पिसचो को मेरे गरम खून की गंध मिल ज़रूर रही थी उन्हें पता लग चुका था कि मैं एक शापित भेड़िया हूँ...पर उन्होने मुझे कुछ नही कहा मैं थोड़ा सम्भल ज़रूर गया था उनसे वो लोग मेरे लिए अजनबी थे.....शीबा बाजी ने बताया कि इनमें से कुछ पिसाच उनके ही बनाए हुए है जो कभी इंसान थे उनकी तरह और वो सब जानवरों का शिकार करते है उनका ताज़ा खून पीते है और उनमें से लूसी भी थी शीबा बाजी की सबसे अज़ीज़
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