RE: Nangi Sex Kahani सिफली अमल ( काला जादू )
ये मुहब्बत ही तो थी जो एक दरिंदे को एक इंसान से जोड़ रही थी ना ही मुझे ख़ौफ्फ था ना ही उसे मुझे मारने की कोई तलब फिर भी वो मेरे गले लग गयी और उसके आँखो से बहते खून के आँसू मेरे गर्दन पे टपक रहे थे...मैने उसे अपने से अलग किया फिर ना पूछो कि क्या हुआ? वही जो मुहब्बत के आगे होता है...एक दूसरे की आगोश में डूब के एक दूसरे से लिपटके अपने मनचाही मुहब्बत को अंजाम देना उस रात मैने शीबा बाजी के साथ खूब सेक्स किया और उनके अंदर की जिन्सी तलब को शांत करने लगा....उस रात कितनी बार मैं उन पर सवार था और वो मुझे नही मालूम बस इतना मालूम है आखरी बार चिड़िया की आवाज़ आ रही थी सुबह हो चुकी थी और हम कब्से इन अंधेरो में एक दूसरे के बिस्तर को गरम कर रहे थे
उस पूरे दिन बाजी मुझसे नंगी लिपटी बस एक चादर ओढ़े जिसके अंदर मैं भी मौज़ूद था बाजी से लिपटा सिर्फ़ बाजी के बालों पे हाथ फेरते हुए सोच रहा था मुझे अपने किए पे शर्मिंदगी थी कि कहीं ना कहीं बाजी की इस हालत का मैं ही ज़िम्मेदार हूँ...पर फिर भी हालात काबू किए जा सकते थे....बाजी रोज़ रात शिकार के लिए जंगल चली जाती थी और इंसानो से कोसो दूर रहने लगी....धीरे धीरे बाजी को अपनी प्यास पे काबू होने लगा था....लेकिन ना तो वो मज़ार जा सकती थी और सिर्फ़ दिल ही दिल में खुदा से अपनी इस शैतानी ज़िंदगी के लिए माँफी मांगती थी उसने मुझे कभी कोसा नही उलटे मेरी ग़लतियो को नादानी बताके अपने उपर सारी ग़लतियो का बोझ लिया....मैं बाजी से मँफी माँगना चाहता था पर बाजी मुझसे माँफी नही चाहती थी...मैने जो किया उसका खामियाज़ा ज़रूर भुगत रहा था...हमेशा कोई ना कोई नुकसान ज़रूर होता था पर मैं उस नुकसान को अपनी ही किए का ज़िम्मेदार ठहराता बस अल्लाह से दिल ही दिल में माँफी माँगता था....कि मरने के बाद चाहे वो मुझे कोई भी सज़ा दे...और धीरे धीरे हमे इस ज़िंदगी में जीने की आदत सी पड़ गयी
बाजी भी धीरे धीरे नये कारोबार में मेरा साथ देने लगी....हमारा नया कारोबार काफ़ी अच्छे से चलने लगा....बाजी को कभी किसी से मिलने की ज़रूरत ना हुई सबकुछ मैं ही हॅंडल करता था....लेकिन कोई ये नही जानता था कि उनकी मालकिन एक इंसान नही थी...ये राज़ किसी को पता ना चल पाया था कुछ लोगो ने शक़ भी किया कि ये भाई बेहन का जोड़ा अकेले क्यू रहता है?.....लेकिन किसी की हिम्मत नही थी जानने को...उधर पोलीस ने काफ़ी तफ़तीश की और लाश की शिनाख्त में किसी जंगली जानवर का हमला बताया.....उन्हें कोई ख़ास शक़ तो नही हुआ था मेरी बाजी पे पर मुझे अपनी बाजी को उनकी निगाहों से दूर रखना था....बाजी ने मुझे समझाया कि फिकर करने की ज़रूरत नही उन्हें आभास हो जाता है अगर कोई ख़तरा पास हो और अब ऐसा कोई ख़तरा हमारे उपर नही था
बाजी भी अब इंसानो की तरह ज़िंदगी व्यतीत करने की कोशिश करने लगी हमारा कारोबार इतना बड़ा था कि अपने लोगों के दिलो में हमारी इज़्ज़त दुगनी हो गयी हमने एक खूबसूरत जगह पे बड़ा सा बंगला बना लिया....इस बार शायद खुदा का हम पर रहम आ गया था शायद उन्होने हमे मांफ कर दिया...मुझे बहुत खुशी थी अंदर ही अंदर पर कहीं ना कहीं मज़बूर था बाजी की कमज़ोरियो को लेके...धीरे धीरे साल बीतते गये और बाजी पूरी तरीके से जानवरों के ब्लड पे सर्वाइव करने लगी वो बहुत तेज़ इंटेलिजेंट हो गयी थी...कारोबार को भी वही आधे से ज़्यादा संभालने लगी थी...किसी की आँख में आने का कोई सवाल नही था...
धीरे धीरे मुझे इसकी आदत होने लगी लेकिन अचानक एक बढ़ते तूफान ने घर में दस्तक दी....एक अज़ीब सा दर्द बदन में होना शुरू हो गया ये दर्द आजतक तो नही हुआ था पर ये कैसा दर्द था....कभी कभी गुस्सा इतना उबल जाता कि कोई चीज़ को तोड़ देता इस बात को बहुतो ने नोटीस कर लिया था बाजी ने मेरी इस अज़ीबो ग़रीब हरक़त के लिए मुझसे जानना चाहा कि आख़िर मुझे हुआ क्या है? मैने उन्हें बताया कि ना जाने क्यूँ पर मुझे बहुत ज़्यादा अज़ीब सा महसूस होने लगा है आजकल . बाजी ने मेरी हालत को देखते हुए मुझे डॉक्टर के पास जाने की सलाह दी वो मेरे इस अज़ीब बर्ताव को महसूस करते हुए ही ख़ौफ़ खा जाती थी
डॉक्टर को मेरी बातों में कुछ अज़ीब महसूस हुआ उन्हें शायद मैं मानसिक रोगी लगने लगा था....और वो कुछ मेडिसिन्स देते जिनका मुझपे ना के बराबर असर होता हर पल बाजी के साथ कच्चे माँस का शौक और फिर हाथो के बल चलने की एक आदत इन सब को बाजी ने नोटीस किया...एकदिन ब्रश करते वक़्त दाँतों में अज़ीब सी ऐंठन हुई और जैसे ही मैने अपनी उंगली दाँत पे लगाई खच्छ से मेरी उंगली कट गयी और खून निकल गया...मुझे कुछ समझ नही आ रहा था ये मुझे क्या हो रहा है? क्या ये सब अमल करने का नतीजा था? या फिर क्या मैं भी बाजी के साथ साथ खुद एक पिसाच बन रहा था....लेकिन मुझे तो ना दिन में धूप की रोशनी से बदन जलता महसूस होता और ना ही मुझे कुछ ऐसा फील हो रहा था जो बाजी को होता....एक रात बदन पे अज़ीब सी खुजली सी होने लगी बाजी को ठंडा करके मैं अभी करवट बदले सोया ही था कि मुझे महसूस हुआ कि मेरे पूरे बदन में कुछ काट रहा है जब मैने लाइट ऑन करके आयने के सामने खुद को देखा तो दंग रह गया
धीरे धीरे करके मेरे पूरे बदन पे बाल निकल्ने लगे थे चारो ऑर बगलो में छाती से लेके पेट पे पीठ पे इतने घने....मुझे कुछ समझ नही आ रहा था ईवन मेरी दाढ़ी से लेके सिर के दोनो सिरो से जुड़ रहा था....मैने सोचा शायद ये मेरा वहाँ है एक बार नहाने के लिए शवर ऑन किया और खुद पे पानी बरसाने लगा....अचानक मेरे पूरे बदन पे जो गर्मी महसूस हो रही थी अब वापिस ठंडक महसूस होने लगी मेरे हथेली और इर्द गिर्द के बाल अपने आप झड्ने लगे...ये बहुत अज़ीब दृश्य था....मैं एकटक पानी में बहते फर्श पे गिरते उन बालों को देखने लगा और जब मेरी निगाह सामने की आयने पे हुई तो मेरी आँखो का रंग ऐसा था मानो जैसे किसी जंगली जानवर का हो और वो धीरे धीरे इंसानी आँखो में तब्दील हो गया मैने अपने मुँह पे हाथ रख लिया ये सब क्या था? आख़िर कार मन बना चुका था कि मुझे एक बार फिर उस आमाली से मिलने जाना होगा वही मुझे इसका तोड़ बता सकते है....क्या ये सब एक पिसाच के साथ हमबिस्तर होने से था या फिर अब मुझे खुदा के कहेर का सामना करना था...इन सब सवालो के साथ मैं दूसरे दिन आमाली के यहा पहुचा
आमाली चुपचाप मेरी बातों को गौर से सुनते हुए उठ खड़ा हुआ खंडहर के अंदर जल रही एक मोमबत्ती और चारो ओर की एक अज़ीब सी गंदी महक गूँज़ रही थी....उस वक़्त मैं पूरा पसीने पसीने हो रहा था....आमाली की आँखे यूँ गहराई में थी मानो जैसे उनसे ये सब कहीं उम्मीद ही ना किया हो...."जिस बात का डर था आख़िर वो सामने आ ही गया"..........आमाली की बातों ने मेरे दिल को ज़ोरो से हिला दिया
"यही कि तुम्हारे उपर धीरे लिलिता के अमल का प्रकोप आने लगा है....उसने तुम्हें तुम्हारी बेहन को ज़िंदगी के नाम पे एक पिशाचिनी तो बना दिया लेकिन उसका खामियाज़ा तुम्हें अब चुकाना है"...........आमाली की बातों ने मुझे सहमा दिया तो क्या इसका मतलब? अब मेरी मौत तय हो चुकी है ये सब जो कुछ हो रहा है
"सवाल का जवाब तो मैं तुम्हें नही दूँगा क्यूंकी जवाब तुम खुद खोज सकते हो सिर्फ़ यही कहूँगा कि आनेवाले उस प्रकोप को तुम्हें हर हाल मे सहना है...ये एक ऐसी रूह है जो तुमपे हावी हो रही है...तुम्हें एक जानवर बना रही है...जब जब तुम्हारे अंदर गुस्सा और बदले की आग पन्पेगि दहेक के उठेगी तुम वही बन जाओगे".......आमाली की उंगली मेरी ओर खड़ी हो गयी मैं चुपचाप बस अपने गाल और गले को पोंछ रहा था
"नहिी नहियिइ य..ई स..एब्ब नैइ ह..ना चाहिई".......मैं उठ खड़ा हुआ...."चले जाओ यहाँ से अब तुम्हारा इंसानो से कोई नाता नही रहा है तुमने जो रास्ता खुद इकतियार किया उसे अब तुम्हें खुद संभालना है जाओ चले जाऊओ".......आमाली की बातों ने मुझे गुस्सा दिला दिया और वो थोड़ा सहम उठा मेरी आँखे एकदम सुर्ख भूरी हो चुकी थी मानो जैसी किसी जानवर की आँख हो....मैं घुर्र्राने लगा...और खुद पे क़ाबू करते हुए बहुत तेज़ी से वहाँ से निकल गया.....आमाली बस हाथ फैलाए अल्लाह से माँफी माँग रहा था वो जानता था दोजख में तो उसे भी कल जाना है
मैं कितनी तेज़ी से दौड़ते हुए गाड़ी में बैठा और कितनी स्पीड में जंगल के रास्ते अंधेरे में गाड़ी को चला रहा था मुझे नही पता.....बस आवाज़ें गूँज़ रही थी कोई मेरे कानो में कुछ कह रहा था आँखे मुन्दता तो बाजी का चेहरा सामने होता वो मुझे बुला रही थी मुझे ढूँढ रही थी उसकी लाल आँखे और नुकीले दाँत मुझे दिख रहे थे....अचानक मैने सामने देखा एक भेड़िया खड़ा था मैने जल्दी से गाड़ी को दूसरी ओर मोड़ दिया और सटाक से गाड़ी ढलान से थोड़ी से नीचे जा गिरी...मैं एकदम से गश ख़ाके गाड़ी से बाहर निकल आया...अगर ज़्यादा गाड़ी ढलान क्रॉस कर जाती तो मैं मौत के आगोश में होता नीचे खाई थी
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