Nangi Sex Kahani सिफली अमल ( काला जादू )
01-19-2019, 07:21 PM,
#6
RE: Nangi Sex Kahani सिफली अमल ( काला जादू )
बाजी के चेहरे पे संतुष्टि देख कर मैं भागते हुए उनके करीब आया "बाजी ये सब क्या है? आप यहाँ इस वक़्त इस हालत में ये सब?"......मेरे सवाल को अनदेखा करके बाजी उठी और उसने अपनी उंगलियो से खून को चाट कर मेरी ओर देख कर मुस्कुराया "एक तलब उठती है मुझमें भाई जो मुझे खुद पे खुद शिकार करने पे मज़बूर कर देती है मैं तुम्हें नुकसान नही पहुचा सकती लेकिन जानवरों के खून से कही हद्तक मुझे अच्छा महसूस होता है मेरी खुराक पूरी हो जाती है"........बाजी की उन डरावमी बातों को सुनके मेरे चेहरे पे शॉक भाव तो थे ही पर एक डर दिल से उतर चुका था कि बाजी इंसान का तो कभी शिकार नही करेगी..बाजी ने अपने मन को दबा लिया था...मेरी बाजी एक जीती जागती पिसाच बन गयी थी

बाजी मेरे करीब आई और मुझे अपने साथ ले गयी....हम वापिस घर पहुचे मैं बहुत सोच में डूबा था ये सब उस अमल का किया धरा था....बाजी ज़िंदी हुई पर एक खुद पिसाच बनके उठ गयी वो कब बाथरूम में जाके शवर लेके नंगी ही टवल को लपेट के बाहर आई मुझे पता नही चला उसने एक ही झटके में अपना टवल उतार फैका उसके आँखो में वासना थी...."खून की वासना के साथ साथ जिन्सी की भी सख़्त वासना".....मेरा गला सुखता जा रहा था मैं उसकी खूबसूरती की तरफ खुद ब खुद उस सिचुएशन में भी उसके करीब जा रहा था 

और उसके बाद उसने मुझे बिस्तर पे धकेल दिया और मेरे उपर सवार हो गयी मैने अपनी आँखे मूंद ली

बाजी मेरे सामने मदरजात नंगी थी और वो होंठो पे ज़बान फिराते हुए अपने नुकीले दांतो पे भी वो ज़ुबान फेर रही थी....उसने एकटक मेरी ओर अपनी एकदम लाल आँखो से देखा और मेरे पाजामे को धीरे धीरे नीचे खिसका दिया...अमालि की हर एक बात दिमाग़ में गूँज़ी थी...पिसाच सिर्फ़ खून के भूके नही होते जिस्म के भी भूके होते है उनके अंदर हर वक्त बेहया और गंदगी की तलब उठती है हमबिस्तरी की चाहत होती है 

जबतक सोच में डूबा तब तक एक अज़ीब सा अहसास हुआ अपने लंड पे हुआ बाजी धीरे धीरे मेरे लंड को पूरा मुँह में लेके चुस्स रही थी और अपने नुकीले नाख़ून भरे हाथो से मेरे लंड को सख्ती से पकड़े भीच रही थी उसकी चमड़ी को उपर नीचे कर रही थी...उसके दाँत मेरे चमड़ी पे गढ़ रहे थे रगड़ खा रहे थे...लेकिन मुझे ये दर्द सहना था मुझे अपनी बाजी की हवस में ही मुहब्बत ढूँढनी थी उसमें खो जाना था

बाजी ने मेरे लंड को बहुत प्यार से चूसना शुरू किया और फिर बहुत ज़ोरो से वो मुझे अपनी लाल आँखो से देखते हुए ललचा रही थी मेरे सुपाडे पे ज़बान फेर रही थी लंड को हाथो में लिए उसे सहला रही थी....मैं लेटा लेटा आहें भर रहा था...कुछ देर बाद बाजी मेरे उपर से उठी और मेरे उपर चढ़ते हुए मेरे गाल गले सीने पे निपल्स पे सब जगह चूमती रही उसकी ज़ुल्फो को मैं अपने मुँह पे महसूस कर रहा था.....

उसके बाद उसने ताबड़तोड़ पागलो की तरहा मेरे होंठो को चूमना शुरू कर दिया हम पागलो की तरह एक दूसरे से ज़बान भिड़ाते हुए बहुत ज़ोर ज़ोर से स्मूच करने लगे एक दूसरे के होंठो से होंठ गहराई तक मिल रहे थे...वो मेरी पीठ पे नाख़ून गढ़ाने लगी मेरे बदन से खुद के बदन को रगड़ने लगी बीच बीच में उसकी एक टाँग मेरे लंड के हिस्से पे रगड़ती...बाजी का जोश बढ़ चुका था मैने उसके सख़्त निपल्स को मुँह में लेके चूसना शुरू किया उसकी खूबसूरती निखर सी गयी थी उसकी चुचियाँ भी काफ़ी भारी हो गयी और गान्ड भी काफ़ी मोटी हो गयी...बाजी मुझे अपनी चुचियों को चुस्वाती रही मेरे मुँह पे अपनी चुचियों को रगड़ती रही 

मैने उन्हें अपने से अलग किया और फिर उनकी ज़ुबान से ज़बान लगाई और फिर उनके चूत पे हल्का सा चुम्मा जड़ा...बाजी कसमसा उठी...रात काफ़ी गहरी हो चुकी थी कहीं कोई जंगली जानवर हॉ हॉ करके रो रहा था...मानो जैसे एक साथ कितनी बलाओ को देख लिया हो उसने और यहाँ मैं एक जीती जागती पिसाच के साथ हमबिस्तर हो रहा था

उसका पूरा शरीर एकदम सफेद हो चुका था उसकी आवाज़ भी भारी सी हो गयी थी....बाजी मेरे सर को अपनी चूत के मुँह पे रखने लगी....मैने उन्हें पलट दिया और उनकी गान्ड की फांको से लेके चूत के मुंहाने तक मुँह डाल दिया...."आहह ओह आहह ससस्स आहह".....बाजी कसमसाती हुई हाथ नीचे करके अपनी क्लाइटॉरिस को रगड़ रही थी...और मैं उनकी गान्ड की फांको में मुँह डाले कुत्ते की तरहा उनकी गान्ड के छेद और सूजी चूत को चाट रहा था..फिर उसमें ज़ुबान घुसाके छेद को भी टटोल देता..मैं बाजी की गान्ड में मुँह रगड़ने लगा बाजी की चूत से लसलसाते हुए रस आने लगा जिसे मैं चाट रहा था

फिर उसकी गान्ड में एक उंगली धीरे से सर्काई...बाजी चिहुक उठी....फिर उस उंगली को गोल घुमाने लगा गान्ड का छेद चौड़ा होने लगा बाजी अपनी गान्ड हवा में उठा लेती....मैने उनकी गान्ड पे थूका और उसमें दो उंगली सरका दी...अब बाजी की गान्ड ढीली पड़ चुकी थी...मैने नीचे से उनकी चूत की दरारों को भी अंगुल करना शुरू कर दिया था बाजी बहुत ज़ोर ज़ोर से सिसकिया लेने लगी....मैने उन्हें फिर पलटा और उनकी गान्ड में उंगली करता हुआ उनकी चूत को चूस्ता रहा उसके दाने को चबाता रहा....बाजी मेरे मुँह को अपनी चूत पे दबाती रही

कुछ ही देर में बाजी ने अपना पानी छोड़ दिया ये पानी गाढ़ा था..इसका स्वाद उत्तेजना भरा नमकीन...मैने अपने लंड को सीधे ही चूत के मुंहाने में फसाया और कस के एक धक्का मारा...बाजी का मुँह खुला का खुला रह गया..और वो मेरे धक्को को सहती रही...मैं उनकी चूत में सटासॅट धक्के मारता रहा....वो लगभग गान्ड भींच लेती लंड के अंदर घुसते ही मैने उनकी चुचियों को फिर दबाना शुरू कर दिया इस बीच उनके होंठ मेरे होंठो के पास थे उन्होने फॅट से मेरे चेहरे को अपने हाथो में लेके मेरे होंठो से अपने होंठ लगा दिए 

हम पागलो की तरह एक दूसरे को चूमते रहे...फिर उसके बाद धक्को की स्पीड भी तेज़ हो गयी....चूत फ़च फ़च की आवाज़ निकालने लगी पर बाजी शांत कहाँ होने वाली थी....उसने मुझे लिटा या और खुद ही मेरे लंड को अपनी चूत पे अड्जस्ट करते हुए कूदने लगी "आहह आहह सस्स आहह"......वो ज़ोर ज़ोर से कूदते हुए सिसक रही थी...मेरे सीने को दबा रही थी....आज इतने दिनो बाद हम फिर एक हुए थे हमारा प्यार फिर अपने मुकाम पे आ गया था....बाजी चुदती रही सिसकती रही आहें भरती रही और मैं बस उसके आगोश में डूबा रहा

जल्द ही मैने खुद उनकी गान्ड भीच दी और उनकी गान्ड को अपने लंड के उपर दबाने लगा नीचे से अपने लंड को बहुत ज़ोर से उनकी गान्ड के अंदर बाहर करने लगा....बाजी चिल्ला रही थी और इतनी ही देर मे उन्होने मुझे कस के पकड़ा और अपना पानी फिर छोड़ दिया जैसे वो पश्त हुई मैने फिर उन्हें चोदना जारी रखा वो दहाड़ती रही उसकी आँखे लाल हो गयी दाँत बाहर निकल आए...वो कांपति रही झडती रही...मेरे उपर सवार रही जबतक मैं ना झड जाउ

फिर वही हुआ बाँध टूट गया और मेरे लंड ने ढेर सारा रस अपनी बाजी की गान्ड में छोड़ दिया बाजी की गान्ड और मेरा लंड दोनो रस से भीगते चले गये फिर भी मैं धक्के मारता रहा...और जल्द ही लंड फिसलके बाहर निकल आया...बाजी ने जल्दी से उठके मुझे बिठाया और मेरे पास झुकके मेरे रस छोड़ते लंड को मुँह में लेके चूसने लगी...मानो जैसे वो एक बूँद भी नही छोड़ना चाहती....उसका एक हाथ ज़बरदस्त तरीके से अपनी चूत पे उंगलिया कर रही थी

कुछ देर बाद उसने मेरे लंड के सारे रस को चूस लिया और फिर अपने होंठ पोंछे और फिर मेरे होंठो से होंठ लगाके मुझे लिटा दिया और खुद मेरे उपर टाँग रखके लेट गयी....कुछ देर बाद वो पश्त पर गयी उसकी आँखे लाल से काली हो गयी उसका रूप सामान्य हो गया..और उसके नुकीले दाँत ठीक वैसे ही अपने रूप में आ गये...वो मेरे छाती के बालों से खेलते हुए अपना सर मेरे छाती पे रखके सो गयी और मैं उसे अपनी बाहों में भरे बस अंजाम की फिकर करने लगा

दिन यूही बीत गये लेकिन बाजी के गर्भ में कोई बच्चा नही ठहरा या यूँ कह लो उन्हें कभी कोई बच्चा नही ठहरेगा वो एक मरी हुई इंसान थी एक पिसाच भला पिसाच को बच्चा कैसे ठहर सकता है?....उस दिन मम्मी पापा की बहुत याद आ रही थी बाजी भी उन्हें याद कर रही थी...पर मैं जानता था अगर वो हमे देख रहे होंगे तो चैन से नही होंगे उनके अंदर सख़्त गुस्सा और नफ़रत होगी कि मैने अपनी बाजी के साथ ये क्या किया? 

बाजी का बर्ताव बहुत बदल सा गया था जिससे मुझे डर सताने लगा...एकदिन बाज़ार चौक में किसी से बहस हो गयी थी बाजी को मैं रात के वक़्त ही बाहर ले आता था लेकिन उसे भीड़ भाड़ से घुटन होने लगती थी...लोगो से नज़र चुराती और मुझे फिकर होती थी...अचानक एक आदमी को ग़लती से मेरा धक्का लग गया उसने मेरा कॉलर पकड़ लिया "देख कर नही चल सकता".......मैने उसे धक्का दिया और उससे बहस हो गयी...बाजी जो मेरे संग खड़ी थी उसके अंदर ना जाने क्या होने लगा? वो उस आदमी की ओर बहुत गुस्से भरी निगाहों से देखने लगी ऐसे हालत में ना तो मैं वहाँ और कुछ देर रुक सकता था और ना ही मैं कुछ और कर सकता था...मैने बाजी को अपने साथ लिया और बिना पीछे मुड़े उसे शांत करते हुए भीड़ भाड़ से कोसो दूर ले जाने लगा

बाजी : उसकी हिम्मत कैसे हुई? उसे छोड़ूँगी नही मैं 
मैं : जाने दो गुस्सा थूक दो बाजी आओ चलें 

बाजी बस सख़्त निगाहो से कुछ सोच रही थी और मुझे उसके इस हिंसक बर्ताव से बेहद डर लग रहा था...आमाली की दी हुई वो किताब उस सब सामान को मैने जला कर गाढ दिया था..ताकि अब मैं ऐसे गुनाह का कोई दोबारा काम ना कर पाऊ...उस रात मौसम ठीक नही था तूफान का अंदेशा था...बाजी के साथ मैं बिस्तर पे लेटा हुआ था....कब नींद लगी पता नही

अचानक बाजी की आँख खुली और उसने मेरी ओर देख कर अपना हाथ हटाया....फिर धीरे से उठके बाहर निकल आई बहुत चालाकी से उसने खिड़की से छलाँग लगाई ताकि उसके भाई को पता ना चल सके...और फिर किसी जानवर की तरह इतनी रफ़्तार में रास्ते पे दौड़ने लगी कि पलक झपकते ही गायब दिखी...जब मुझे महसूस हुआ कि बाजी घर पे नही है तो मैं फिर उठ गया क्या वो फिर शिकार के लिए गयी?

मेरी सोच मेरे डर मुझपे हावी हुए जा रही थी...फ़ौरन टॉर्च लिया और जंगल का एक दौरा किया....बारिश घनी हो गयी...."बाअज्जिई बज्जिि शीबा बाजीी".....मैं सुनसान जंगल में चिल्लाते हुए आगे बढ़ रहा था...अचानक वापिस आया तो देखा कि रास्ते पर पाओ के निशान है...वो पाओ के निशान एक ओर ख़तम होते ही 10 कदम दूर शुरू हो रहे है....बारिश से निशान गायब हो रहे थे...मैने अपनी गाड़ी स्टार्ट की और बहुत बारीक़ी से उस पाओ के निशान को देखते देखते रास्ते पे चलने लगा....जल्द ही मैं टाउन में था...यहाँ निशान गायब थे...मैं बाजी को हर ओर खोज रहा था डर सता रहा था कहाँ गयी मेरी बाजी कहीं कुछ हो तो नही गया? दिल में अज़ीबो ग़रीब ख़यालात आने लगे घबराहट से उल्टिया लग रही थी दिल कांपें जा रहा था

अचानक कुत्तो की रोने की आवाज़ सुनाई दी एक साथ इतने सारे कुत्ते हॉ हॉ करके रो रहे थे...मैने गाड़ी उसी ओर की और हेडलाइट्स को ऑफ किया...मैं धीरे से गाड़ी से नीचे उतरा अचानक मेरे पैर पे कुछ लगा जुतो की ओर जब देखा तो टॉर्च की रोशनी में दंग रह गया ताज़ा खून और ये खून गली के अंदर जा रहा था...."आअहह"......एक बहुत अज़ीब सी घुट्टी आवाज़ आई....बिजलिया कढ़क रही थी चारो तरफ बंद मार्केट था...कोई घर नही...मैने काँपते हुए गली के पास जाके झाँका....और जो सामने देखा उससे मेरी पैरो तले ज़मीन खिसक गयी मानो काटो तो खून नही

बिजली की गड़गड़ाहट में बीच बीच की रोशनी में मैने साफ देखा बाजी एक आदमी की गर्दन को एक हाथ से जकड़े उसकी गर्दन पे मुँह लगाए हुई थी ऐसा लग रहा था जैसे उसके माँस को काट काट के उसके अंदर का सारा खून पी रही हो....अचानक बाजी ने उस बेजान शरीर को छोड़ा और उसके बाद इतनी ज़ोर का ठहाका लगाके हँसने लगी कि पूरा माहौल डरावना सा हो गया उसकी ठहाका लगाती आवाज़ उसकी सुकून भरी जीत को दर्शा रही थी मैं काँपते हुए गाड़ी में जैसे आके बैठ गया....दिल को पकड़े मुझे कुछ सूझ नही रहा था

ये मेरी बाजी नही हो सकती नहियिइ...कुछ देर बाद मैने देखा कि बाजी वैसे ही नंगे पाओ इतनी तेज़ी से दौड़ी कि पलक झपकते ही वो गायब काफ़ी देर तक मैं रुका रहा...मेरी गाड़ी से निकलने की हिम्मत नही थी...फिर भी एक एक पाओ बाहर रखते हुए भीगते हुए उस गली की तरफ पहुँचा वहाँ अब एक घना सन्नाटा छाया हुआ था...मैं पास आया उस लाश के पास...बिजलिया कड़क रही थी बार बार उसकी रोशनी में एक बेजान लाश सड़क पे पड़ी दिख रही थी उसने एक काला जॅकेट और जीन्स पहना हुआ था और उसके चारो तरफ खून ही खून मैने जब उस शक्स की ओर देखा...तो मैने मुँह पे हाथ रख दिया ये वही था वही आदमी जिससे बाज़ार में आज बहस हुई थी ..ओह क्या बाजी ने मेरे लिए उसे ये मेरे लिए किसी ख़तरे की बात थी वहाँ रुकना एक सेकेंड भी मुझे ख़तरे में डालने वाला था...मैने उसकी ठहरी आँखो में देखा जो सख़्त ख़ौफ्फ में शायद मारा हुआ था..और फिर उसके बेदर्द ज़ख़्म पे उफ्फ कितना गहरा...पिशाचिनी की तरह ही बाजी बन चुकी थी...मेरी एक दुआ दूसरो के लिए एक सज़ा बन जाएगी सोचा नही था

मैं उल्टे पाओ दौड़ा जल्दी से गाड़ी मे बैठ गया और फिर फ़ौरन तेज़ी से गाड़ी को घर की ओर मोड़ दिया....पूरे रास्ते डर और दहशत से मेरी आँखे काँप रही थी नींद उड़ चुकी थी सुबह के 3 बज चुके थे जब घर लौटा तो देखा सबकुछ वैसा ही था...पाओ के निशान गायब थे शायद बारिश से मिट गये हो..दरवाजा सटा हुआ था इसका मतलब बाजी आ गयी है और मुझे मौज़ूद ना देख कर शायद उसे समझ आ जाएगा...मैं डरते डरते कमरे में दाखिल हुआ चारो ओर अंधेरा था....कमरे की तरफ जब आया तो देखा बाजी गहरी नींद में बिस्तर पे आँखे मुन्दे सोई हुई है...मैं दिल को पकड़े वॉशरूम चला गया काफ़ी उल्टिया की एक डर सता रहा कहीं पोलीस ने कहीं लोगो को कुछ पूछा तो???

मैं अपने मुँह पे पानी मारके बाहर आया और अचानक देखा कि बाजी बिस्तर पे मज़ूद नही है वो कब्से मेरे पीछे खड़ी थी इस बात का मुझे अहसास नही उसके मुँह पे अब भी खून लगा हुआ था उसके नुकीले दाँत उसकी मुस्कुराहट से बाहर निकल आए थे मेरी आँखे भारी हो गयी और उसने उसी वक़्त मेरे एक लफ़्ज कहे बिना ही मेरे कंधे पे हाथ रखके मुझे ज़ोर से दीवार पे धकेल दिया और मुझसे एकदम लिपटके खड़ी हो गयी उसकी आँखे एकदम लाल थी उसके होंठो मे अब भी उसके शिकार का ताज़ा खून लगा हुआ था....उसने मेरी ओर बड़ी भयंकर निगाहो से देखा मेरा दिल काँप रहा था शायद बाजी मुझे उसी तरह मारने वाली थी

मैं एकदम से ठिठक गया...अब जैसे जिस्म एकदम बेजान हो चुका था...बाजी की ठंडी साँसें मुझे अपने चेहरे पे महसूस हो रही थी....उसके हाथ जो मेरे छाती और कंधे पे टिके हुए थे उससे मेरा पूरा बदन उसके ठंडे जिस्म की ठंडक से अकड़ रहा था...फिर अचानक वो ठंडे हाथ अपने आप मेरे चेहरे की तरफ आने लगे और फिर मेरे पूरे बदन को सहलाते हुए ठंड से कंपकपाते हुए मेरे चेहरे पे....मैने अपनी आँखे खोल ली थी उसकी ऊन भयंकर लाल निगाहो में भी मेरे लिए एक प्यार का अहसास एक दया दिख रही थी

"तुमने जान लिया ना भाई कि मैं कौन हूँ? क्या बन चुकी हूँ मैं? नही रोक पाती खुद को अपने अपनो पर किसी और के गुस्से को मैने सिर्फ़ बदला लिया"..........यक़ीनन उसने मेरे मन की बात पढ़ ली थी आम इंसानो से बिल्कुल हटके बर्ताव थे उसके 

"त..तुंन्ने म..मुझी की..उ मेरे लिए".....कहने को शब्द नही बन पा रहा था फिर भी दिल को मज़बूत करते हुए अपने डर पे खुद को काबू किया..."तुमने जो कुछ भी किया ये तुमने ठीक नही किया पर त..तूमम्मने आख़िर उसे मारा क्यूँ?"......

उसकी आँखे इधर उधर घूम रही थी मानो जैसा एक सवाल उसका भी हो

शीबा : म...मुझहहे समझ नही आया भाई बसस्स दि..ल्ल क..इया क..आइ उसे जान से मार दूं उसका खून मुझे अपनी ओर खींच रहा था और मैं खुद की तलब को नही रोक पाई

मैं : तुम्हें इस तलब को रोकना होगा प्लज़्ज़्ज़ तुम किसी और की जान नही लोगि प्रॉमिस मी प्रोमिस मी और अगर तुमने ऐसा किया तो मुझे मार देना

शीबा : भाईईईई (उसकी आँखे एकदम से गंभीर होके मेरी ओर देखने लगी जिन आँखो में सख़्त परेशानी और तक़लीफ़ दिख सकती थी जिन आँखो में खून एक जगह जमा होके लाल सा हो चुका था) आइन्दा ऐसा कभी मत कहनन्ना उस दिन मैं खुद को ख़तम कर लूँगी खुद को
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RE: Nangi Sex Kahani सिफली अमल ( काला जादू ) - by sexstories - 01-19-2019, 07:21 PM

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