RE: Nangi Sex Kahani सिफली अमल ( काला जादू )
लंड से कॉंडम फैंका जिसने आधे से ज़्यादा लंड को पूरा रस से भीगा दिया था....फिर मैने ज़ेब से रुमाल निकाला लंड को सॉफ किया फिर बाजी की चूत के अंदर तक उंगली से सॉफ करके पोन्छा और उनकी चौड़ी गान्ड के होल को भी सॉफ किया...बाजी काफ़ी खुश थी और थक चुकी थी "अब हो गया चलें".......बाजी ने मुस्कुरा कर मेरे गाल को चूमा मैने बाजी के गीले होंठो को चूमते हुए बोला चलो.
हम दोनो झाड़ियो से बाहर आए और अपने कपड़ों को ठीक करते हुए पास रखके सब्ज़ियो को इकट्ठा किया उसे बोरी में डालके अपने कंधे पे उठा लिया और बाजी के साथ घर लौट आया मम्मी का यूषुयल डाइलॉग इतनी देर कैसे हो गयी?..बाजी ने बात संभाल ली मम्मी ने भी कोई ख़ास सवाल नही किया फिर मैं कमरे में आके नहाने चला गया....फिर बाजी सारा काम काज करके नहाने चली गयी
दिन ही ऐसे ही कटने लगे हम भाई बेहन के बीच जो अटूट रिश्ता था वो कभी टूटने वाला तो नही था...और इसी वजह से मैं बाजी से दूर नही रह पाता था...पापा ने ज़ोर देना शुरू किया कि आगे की पढ़ाई करने के लिए तो शहर जाना ही होगा...आइडिया मुझे भी भाया क्या पता? बाजी को मैं यहाँ ले आउ और शहर के खुले वातावरण और आज़ादी में मज़े ले सकूँ यहाँ ना कोई रोकेगा ना कोई टोकेगा पर बात आसान नही थी....बाजी से 5 साल के लिए दूर हो गया और यहाँ आके ग्रॅजुयेशन ख़तम करके मैने खुद को काफ़ी काबिल बना लिया ढंग की जॉब हासिल कर ली और यही शहर में मन लगने लगा गाओं जाने का दिल तो था पर काम की वजह से हफ्ते में ही जा पाता था और इन हफ़्तो में बाजी से कोई भी रिश्ता नही जोड़ पा रहा था मैं अकेले में मुझे खाली हाथ लौटना पड़ता...एक दिन हादसे में मेरे मम्मी और पापा चल बसे...सदमे ने हम लोगो को घैर लिया था बाजी अकेली पड़ चुकी थी...गाँव छोड़ने के सिवाय और कोई चारा नही था वहाँ सिर्फ़ ग़रीबी ही थी....बाजी को मैने संभाला और उन्हें मान कर अपने साथ शहर ले आया
गाँव को हमने छोड़ दिया जो कुछ भी था उसे बेच बाचके बॅंक में फिक्स कर दिया...पैसो की कोई कमी नही थी ना ही बाजी के कोई ज़्यादा खर्चे थे वो आम बनके रहती थी...बाजी ने निक़ाह के लिए कोई रिश्ता नही सोचा था और ना मैं किसी से चर्चा कर पा रहा था....पूरे दिन ऑफीस उसके बाद घर पे सिर्फ़ हम दोनो भाई बेहन थे अब हम दोनो के अंदर एक दूसरे के लिए बहुत मोहब्बत जाग गयी थी बाजी मुझे सोते वक़्त अपनी चुचियों पे सर रखकर सुलाती कभी मेरे बालों से खेलती बाजी और हम चादर लपेटे एक दूसरे के साथ हमबिस्तर होकर सोते थे....लेकिन किस्मत ना जाने क्या खेल खेल रही थी
एक दिन ऑफीस मैं था फोन आया कि शहर के बीचो बीच भारी ट्रॅफिक में बाज़ार से सटे रोड पे एक लड़की का आक्सिडेंट हुआ है और वो कोई और नही थी मेरी बाजी शीबा थी...मेरे पाओ से जैसे ज़मीन खिसक गयी आनन फानन हॉस्पिटल पहुचा....डॉक्टर कोशिशें कर रहा था और मैने उनसे मिन्नत माँगी काफ़ी पैसे खर्च हुए लेकिन बाजी को बचाया ना जा सका ऑपरेशन फेल हुआ और डॉक्टर ने मुझसे सिर्फ़ नज़रें झुकाए मांफ माँगी
मेरा सबकुछ छिन गया था....मेरी प्यारी बाजी मुझसे हमेशा हमेशा के लिए दूर हो गयी थी पहले पापा और मम्मी और अब मेरी बाजी उस वक़्त मैने अपने आप को कैसे संभाला था आस पड़ोस के लोगो ने मुझे कैसे संभाला था कुछ याद नही? मेरी बाजी की लाश को जल्द ही गाढ दिया गया अब घर में सिर्फ़ खामोशियाँ थी और दर्द था जो आँसू बनके मेरे आँखो से निकलता...ज़िंदगी इतनी अधूरी सी लगने लगी थी कोई ना दोस्त था ना कोई परिवार मैं बहुत अकेला था...रोज़ नमाज़ में खुदा से दुआ करता कि मेरी बाजी को वापिस भेज दो चाहे इसमें मेरी जान भी क्यू ना ले लो मुझे उसके पास रहना है वरना मैं मर जाउन्गा लेकिन भला खुदा कहाँ से मरे इंसान को वापिस भेज पाता.....
धीरे धीरे ज़िंदगी को चलाने के लिए खुद को बिज़ी करने के लिए काम तो करना ही था...लेकिन हर बार मेरा सवाल सिर्फ़ मेरी बेहन को वापिस पाने का होता...कोई मुझे पागल कहता कोई मुझे तुम डिप्रेस हो कहके टाल देता डाँट देता कोई कहता डॉक्टर के पास जाओ...लेकिन मुझे एक गुस्सा था एक जुनून चढ़ गया था कि मैं अपनी बाजी को इस दुनिया में वापिस लाउन्गा....एक दिन इंटरनेट पे एक आर्टिकल देखा....जानने में आया कोई सिफली आमाली था जिसके पास हर मुस्किल का हल है...मैं जो रास्ता इकतियार कर रहा था शायद ये मुझे अपनी क़ौम से बाहर ले जा रहा था मैने ना अपनी क़ौम की परवाह की ना ही परवाह की क्या ग़लत था क्या सही?
उस आमाली से मिलने का प्लान बना लिया....ऐसे कयि आमाली होते है जो पैसे के लिए लोगो को लूट लेते है....पर मुझे अंजाम की फिकर नही थी....आमाली को अपना मसला बताया जो आग के सामने ध्यान कर रहा था उसने मेरा परिचय नही लिया उसे सबकुछ पहले से पता था...मैं बस उससे कितनी मिन्नते कर रहा था ये मैं ही जानता था और वो....वो उठा और काफ़ी गंभीर सोच से इधर उधर टहलने लगा
"ना क़ौम इसकी इज़ाज़त देता है ना ही हमारा खुदा....हम ऐसे रास्ते को कभी इकतियार कर लेते है जिसमें सिवाय गुनाह और सज़ा के कुछ नही मिलता"....उसकी जलती आँखो में मेरे लिए उसका जवाब था....लेकिन मेरी आँखो में सिर्फ़ सवाल मुझे मेरी बाजी वापिस चाहिए थी चाहे कैसे भी?....मेरे जुनून मेरे पागलपन को देख कर उसे ना जाने क्यू लगा कि शायद मैं कामयाब हो सकता हूँ पर इसकी कोई गारंटी नही थी क्यूंकी ये अमल ना तो किसी ने पहले किया था और ना ही कोई करने की ज़ुर्रत कर सकता था....इस अमल में मरे इंसान को वापिस लाया जा सकता था मैं चुपचाप सुनता रहा उनकी बात...लेकिन वो इंसान इंसान नही इंसान के जिस्म में एक जीता जागता शैतान बन जाएगा एक पिसाच.....जिसे इंग्लीश में बोलते है वेमपाइर
बिजलिया जैसे मेरे माथे में गूँज़ रही थी....क्या ये मुमकिन था? मैं इतना पढ़ा लिखा कभी इन सब बातों पे यकीन तो क्या कभी मानता तक नही था...उसने मुझे मुस्कुरा कर अपने पास रखी वो किताब दी...उसमें ये सारा अमल करने का तरीका लिखा था शर्तें थी....लेकिन उसने सख़्त हिदायत दी कि ना इसकी खुदा उसे इज़ाज़त देगा ना मुझे जो भी कर रहा हू अपने बल बूते पे ही करना होगा वरना अंजाम मौत से भी बत्तर
मेरे अंदर इतना जुनून था कि मैं कुछ भी करने को तय्यार था वो अमल था...एक मरे हुए इंसान में उसकी रूह को वापिस डालना जो इंसान नही बल्कि एक पिसाच बन जाएगी जो लोगो को दिखेगी लेकिन वो मरी हुई होके भी एक नया जनम पाएगी पिसाच का जो सालो साल जीती रहेगी...और कभी नही मरेगी....पिसाचिनी लिलिता नाम की एक पिसाचनी से मुझे गुहार लगानी थी और इस अमल में उसकी हर शरतो को मानने के बाद ही मुझे मेरी बाजी वापिस मिल सकती थी लेकिन अमल को पाने से पहले मुझे कुछ और भी चीज़ें लानी थी जो अमल में काम आए
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