Bahu Ki Chudai बड़े घर की बहू
01-18-2019, 02:27 PM,
RE: Bahu Ki Chudai बड़े घर की बहू
हल्का सा कामया उस बेड पर चढ़ गई थी और एक घुटनों को मोड़कर धीरे से पीठ के बल लेट गई थी अपने हाथों को अपने आस-पास फैलाकर घूमते हुए बॅड पर कामया लेटे हुए अपने शरीर का दर्शन करा रही थी उन गुरुओं को घुटना मुड़ा होने की वजह से जाँघो के अंदर तक का कुछ हिस्सा दिख रहा था पर बाकी अंधेरा था कामया जान बूझ कर अपनी एक के बाद एक जाँघो को मोड़ कर उन्हें उत्तेजित करने की कोशिश कर रही थी या उत्साहित करने की कोशिश कर रही थी रूपसा और मंदिरा खड़ी हुई गुरुजी को ओर चल दी थी बेड पर पड़ी हुई कामया अब भी वैसी ही थी तब तक रूपसा और मंदिरा गुरुजी लोगों तक पहुँच गई थी और हाथों और आखों से इशारे से बेड की ओर चलने का इशारा कर रही थी जब तक वो गुरु लोग बेड के पास पहुँचे तो कामया एकदम स्थिर थी ना कोई हलचल और ना कोई घराहट बस इंतजार था अपने शरीर के खुश होने का अपने शरीर के हर अंग को मसलने देने का अपनी हर सेक्स की इच्छा पूरी कर लेने का मुस्कुराती हुई कामया ने अपने सीने पर पड़ी हुई चुननी को एक ओर उछाल दिया और मुस्कुराती हुई उस घूमते हुए बेड पर से अपनी बाँहे ऊपर कर दी कि आओ और इस शरीर से खेलो और खुश हो जाओ या खुश कर दो 


एक गजब का नजारा था घुटनों तक उसकी घाघरा उठ गया था बल्कि कहिए जाँघो तक पहुँच गया था पेट साफ और चमक दार सीने पर कसा हुआ ब्लाउस और उसके अंदर से बाहर की ओर दिख रहे मस्त गोल गोल चूचियां एक गजब का उत्साह पैदा करने के लिए काफी थे एक-एक कर सभी गुरुओं ने अपने हाथों को आगे बढ़ाकर कामया के हाथों को पकड़ने की कोशिश की पर घूमते हुए बेड पर वो लेटी हुई उनके सामने से निकल गई थी बस एक स्पर्श सा ही हो पाया था मुस्कुराती हुई कामया लेटी हुई एक-एक कर सामने से गुजरते हुए उन गुरु लोगों की आखों में उत्तेनजा और भूख को साफ देख सकती थी 
अपने हाथो से छूती हुई कामया एक बार उनके सामने घूम गई थी, पर कोई भी उसे रोक नहीं पाया घूमते हुए बेड पर लेटी कामया की बाँहे अब थोड़ा सा और ऊपर की ओर उठी थी जैसे कह रही हो आओ रुके क्यों हो 


सबसे पहले गुरुजी आगे बढ़े थे और झट से बेड पर चढ़ने लगे थे पर घूमते हुए बेड पर स्थिर नहीं रह सके और रुक गये थे सामने से घूमते हुए कामया की अध खुली जाँघो को देखकर ही शांत हो गये थे फिर से उसके चहरे को अपने पास आने की राह देखते हुए अपने हाथों को बढ़ाकर उन्होंने भी अपनी उत्तेजना को दिखा ही दिया था अपनी सखी की गोरी गोरी जाँघो को स्पर्श करने की चाह को वो रोक नहीं पाए थे कोमल और बेदाग गोरी गोरी जाँघो का एक हल्का सा स्पर्श भर पाए थे पास खड़े हुए बाकी के गुरुओं का भी यही हाल था एक-एक करके कामया को किस करने की कोशिश करते और अपने हाथों से उसके घूमते हुए शरीर को छूने की ललक उसके चहरे पर साफ देखी जा सकती थी कामया की एक मोहक और मादक हँसी उस कमरे में गूँज उठी थी जब कोई थोड़ा सा साहस करके कोई नई बात या कोई आगे की ओर बढ़ता था सबसे पहले बेड पर चढ़ने वालों में थे एस 


खुले बाल और दाढ़ी को लिए वो झट से बेड पर चढ़ गये थे और कामया के पेट के पास बैठ गये थे और नीचे झुक कर उसकी गहरी नाभि पर अपने होंठ रख दिए थे मचल उठी थी कामया और हँसी के साथ साथ एक लंबी सी अंगड़ाई ली थी और घूम गई थी बाकी के लोग भी एस की देखा देखी झट से बेड पर चढ़ गये थे अब तो जैसे, खेल का चालू होना तय था पर कामया कोई ऐसी वैसी खिलाड़ी नहीं थी आज एक कान्फिडेन्स और एक उत्साह था उसके अंदर एक गजब का आत्मविश्वास था उसके अंदर अपने चारो ओर दाढ़ी और खुले बालों के इंसानी जानवरों को देखकर एक बार तो लगा था कि भूतों के घर में फस गई है कामया पर उसके मचलने का और अंगड़ाई लेने के तरीके से और जिस तरीके से अलट पलटकर अपने शरीर के दर्शन दे रही थी कामया उससे तो लगता था कि गुरु लोगों से ज्यादा कामया को उनकी जरूरत है 

हर अंग कुछ कह रहा था हर अंग उन बंधन से बाहर आने की कोशिश करता था पेट पर आ चुका एस अपनी जीब को लगता था की उसकी नाभि की गहराई तक उतार देना चाहता था और बाकी के लोग भी उसके ऊपर झुके हुए थे एक-एक कर अपने हिस्से में आए उसके शरीर के उस हिस्से को अपनी जीब और होंठो से गीलाकरने में लगे थे मचलती हुई कामया इधर से उधर हो रही थी किसी ने भी उसे रोका नहीं था बस हिस्से में आए शरीर के उस अंग को प्यार कर रहे थे चाट रहे थे उसमें से शहद चूसने की कोशिश कर रहे थे मचलने से अपने होंठों को अलग होते ही वो थोड़ा सा आगे बढ़ते और फिर से अपने होंठों को उसके शरीर के उस हिस्से पर रख देते अपने हाथों को उसके शरीर पर घूमने से भी नहीं रोके थे वो लोग हर हिस्से को छू लेने की कोशिश कर रहे थे उन लोगों में घूमते हुए बेड से बाहर खड़ी हुई रूपसा और मंदिरा भी कुछ कम नहीं थी एक-एक करके सामने से गुजर रहे गुरुलोगों के कपड़े को खींचती थी वो और उतारने की कोशिस मे लगी थी काफी हद तक वो सफल भी थी कामया उन्हें दिख नहीं रही थी पर उत्तेजित आवाजें उनके कानों में गूँज रही थी उत्तेजित आवाजें ना सिर्फ़ कामया की बल्कि उन गुरु लोगों की भी थी


चूमने की आवाज चाटने की आवाज और फिर तेज-तेज सांसें लेने की आवाज उस कमरे में गूंजने लगी थी घूमते हुए बेड का हर हिस्सा अब भरा हुआ लगता था बीच में मचलते हुए कामया का शरीर था और तड़पते हुए गुरु जन 


कामया की चोली के अंदर एक साथ दो-दो हाथ घुसे हुए थे जाँघो को पूरा कवर लिया गया था चार या छः हाथ थे पता नहीं पर दो या कभी एक चहरा झुका हुआ दिखता था मचलती हुई कामया कब पलट गई पता ही नहीं चला अपने हाथों को खींचकर अलग करते हुए अपने सामने आए इस नये तरफ की हिस्से पर फिर से टूट पड़े थे गुरुजन 

कामया- हिहहिहीही उूुुुुुुुुुुउउम्म्म्मममममममममममममम आआआआआआह्ह ईईईईईईईईईईईईईईईई धीरीईईईई 
उूुुुुुुुुुुुउउफफफफफफफफ्फ़
बाकी सिर्फ़ सांसों की आवाज थी उस कमरे में एक साथ बहुत सी साँसे भागने से या हाँफने सेजो भारी हुई साँसे गरम और उत्तेजित सांसों की आवाज बीच बीच में कामया और कही कही रूपसा और मंदिरा की मिली जुली हँसी की आवाज उूउउफफ्फ़ आप सोच सकते है कि क्या नजारा होगा 


कामया ईईीीइसस्स्स्स्स्सस्स उतार दो ना चोली को हिहिहीः आआआआआह्ह 
और फिर एक के बाद एक उंगलियां उसकी चोली के पीछे बँधी हुई डोरी को खोलने में जुट गई थी एक-एक करते हुए हर डोरी को उसके लूप से बाहर निकाल रहे थे पर कामया के शरीर में स्थिरता नहीं थी बल्कि मचलने से हर बार उनके हाथों में आई डोरी छूट जाया करती थी हँसती हुई कामया इधर-उधर होती हुई कभी किसी के घुटनों पर अपना चहरा रख देती तो कभी किसी के होंठों को अपने होंठों पर रखने देती अपनी जाँघो पर घूमते हुए हाथों का ध्यान रखा था उसने अपने शरीर को मोड़कर हर अंग को छूने देना चाहती थी वो कामया का शरीर उस बेड पर मचल रहा था एक के बाद एक हाथ उसके शरीर पर फिसल कर हट जाया करते थे और एक खिलखिलाती हुई हँसी उस कमरे में गूँज जाया करती थी कामया की चोली तो पीछे से खुल चुकी थी पर अब तक कंधे पर ही टिकी हुई थी पीठ के खाली होते ही कई होंठ एक साथ उसके गोटी और कोमल और चिकनी पीठ का रस पीने को झुके थे और कामया एक बार फिर खिलखिलाती हुई हँसती हुई मचल उठी थी 
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