Bahu Ki Chudai बड़े घर की बहू
01-18-2019, 01:58 PM,
#6
RE: Bahu Ki Chudai बड़े घर की बहू
कामया अचानक ही सचेत हो गई। खुद तो टेबल पर पापाजी और मम्मीजी को खाना परोस रही थी। पर दिमाग और पूरा शरीर कही और था। उसके शरीर में चीटियाँ सी दौड़ रही थी। पता नहीं क्यों। पूरे शरीर सनसनी सी दौड़ गई थी कामया के। उसके मन में जाने क्यों। एक अजीब सी हलचल सी मच रही थी। टाँगें। अपनी जगह पर नहीं टिक रही थी। ना चाहते हुए भी वो बार-बारइधर-उधर हो रही थी। एक जगह खड़े होना उसके लिए दुश्वार हो गया था। अपनी चुन्नी को ठीक करते समय भी उसका ध्यान इस बात पर था कि चाचा पीछे से उसे देख रहे है। या नहीं। पता नहीं क्यों। उसे इस तरह का। चाचा का छुप कर देखना। अच्छा लग रहा था। उसके मन को पुलकित कर रहा था। उसके शरीर में एक अजीब सी। लहर दौड़ रही थी। 

कामया का ध्यान अब पूरी तरह से। अपने पीछे खड़े चाचा पर था। नजर। सामने पर ध्यान पीछे था। उसने अपनी चुन्नी को पीछे से हटाकर दोनों हाथों से पकड़ कर अपने सामने की ओर हाथों पर लपेट लिया और खड़ी होकर। पापा और मम्मीजी को खाते हुए देखती रही। पीछे से चुन्नी हटने की वजह से। उसकी पीठ और कमर। और नीचे नितंब बिल्कुल साफ-साफ शेप को उभार देते हुए दिख रहे थे। कामया जानती थी कि वो क्या कर रही है। (एक कहावत है। कि औरत को अपनी सुंदरता को दिखाना आता है। कैसे और कहाँ यह उसपर डिपेंड करता है।)। वो जानती थी कि चाचा अब उसके शरीर को पीछे से अच्छे से देख सकते है। वो जान बूझ कर थोड़ा सा झुक कर मम्मीजी और पापाजी को खाने को देती थी। और थोड़ा सा मटकती हुई वापस खड़ी हो जाया करती थी। उसके पैर अब भी एक जगह नहीं टिक रहे थे। 

इतने में पापाजी का खाना हो गया तो 
पापाजी- अरे बहू। तुम भी खा लो। कब तक खड़ी रहोगी। चलो बैठ जाओ। 

कामया- जी। पापाजी। बस मम्मीजी का हो जाए। फिर। खा लूँगी। 

मम्मीजी- अरे अकेले। अकेले। खाओगी क्या। चलो। बैठ जाओ। अरे भीमा। 

कामया- अरे मम्मीजी आप खा लीजिए। मैं थोड़ी देर से खा लूँगी। 

भीमा- जी। माजी। 

कामया- अरे कुछ नहीं। जाओ। में बुला लूँगी। 

मम्मीजी- अरे अकेली अकेली। क्या। 

और बीच में ही बात अधूरी छोड़ कर मम्मीजी भी खाने के टेबल से उठ गई। और थोड़ा सा लंगड़ाती हुई।वाश बेसिन में हाथ दो कर। मूडी। तब तक। पापाजी भी। तैयार होकर। अपने रूम से निकल आए। और बाहर की ओर जाने लगे। मम्मीजी और कामया भी उनके पीछे-पीछे। दरवाजे की ओर चल दी। बाहर। पोर्च में लाखा काका। गाड़ी का दरवाजा खोले। सिर नीचे किए। खड़े थे। वही अपनी धोती और एक सफेद कुर्ता। पहने मजबूत कद काठी वाले काका। पापाजी के। बहुत ही बल्कि। पूरी परिवार के बड़े ही विस्वास पात्र नौकर थे। कभी भी उनके मुख से किसी ने ना नहीं सुना था। बहुत काम बोलते थे। और काम ज्यादा करते थे। सभी नौकरो में भीमा चाचा और लाखा काका और कद परिवार में बहुत ज्यादा उँचा था। खेर। पापाजी जी के गाड़ी में बैठने के बाद लाखा भी जल्दी से। दौड़ कर सामने की ओर ड्राइवर सीट पर बैठ गया और गाड़ी। गेट के बाहर की ओर दौड़ गई। मम्मीजी के साथ कामया भी अंदर की ओर पलटी। मम्मीजी तो बस थोड़ी देर आराम करेंगी। और कामया। खाना खाकर। सो जाएगी। रोज का। रूटीन कुछ ऐसा ही था। कामया पापाजी और मम्मीजी के साथ खाना खा लेती थी पर आज उसने जान बूझ कर अपने को रोक लिया था। वो देखना चाहती थी। कि जो वो सोच रही थी। क्या वो वाकई सच है या फिर सिर्फ़ उसकी कल्पना मात्र था। वो अंदर आते ही दौड़ कर अपने कमरे की चली गई। पीछे से मम्मीजी की आवाज आई। 

मम्मीजी- अरे बहू खाना तो खा ले। 

कामया- जी। मम्मीजी। बस आई। 

मम्मीजी- (अपने रूम की ओर जाते समय भीमा को आवाज देती है।)। भीमा। बहू ने खाना नहीं खाया है। थोड़ा ध्यान रखना। 

भीमा- जी माँ जी। 

भीमा जब तक डाइनिंग रूम में आता तब तक कामया अपने कमरे में जा चुकी थी। भीमा खड़ा-खड़ा सोचने लगा कि क्या बात है आज छोटी बहू ने साहब लोगों के साथ क्यों नहीं खाया। और टेबल से झूठे प्लेट और ग्लास उठाने लगा। पर भीतर जो कुछ चल रहा था। वो सिर्फ़ भीमा ही जानता था। उसकी नजर बार-बार सीढ़ियो की ओर चली जाती थी। कि शायद बहू उतर रही है। पर। जब तक वो रूम में रहा तब तक। बहू। नहीं उतरी

भीमा सोच रहा था कि जल्दी से बहू खाना खा ले। तो वो आगे का काम निबटाए। पर। पता नहीं बहू को क्या हो गया था। लेकिन। वो तो सिर्फ़ एक नौकर था। उसे तो मालिको का ध्यान ही रखना है। चाहे जो भी हो। यह तो उसका काम है। सोचकर। वो प्लेट और ग्लास धोने लगा। भीमा अपने काम में मगन था। कि किचेन में अचानक ही बहुत ही तेज सी खुशबू। फेल गई। थी। उसने पलटकर देखा। बहू खड़ी थी। किचेन के दरवाजे पर। 

भीमा बहू को देखता रहा गया। जो चूड़ीदार वो पहेने हुए थी वो चेंज कर आई थी। एक महीन सी। लाइट ईलोव कलर की साड़ी पहने हुए थी और साथ में वैसा ही स्लीव्ले ब्लाउस। एक पतली सी लाइन सी दिख रही थी। साड़ी जिसने उसकी चूचियां के उपर से उसके ब्लाउज को ढाका हुआ था। बाल खुले हुए थे। और होंठों पर गहरे रंग का लिपस्टिक्स था। और आखों में और होंठों में एक मादक मुस्कान लिए। बहू। किचेन के दरवाजे पर। एक रति की तरह खड़ी थी।
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