RE: Nangi Sex Kahani दीदी मुझे प्यार करो न
भाभी को करीब आधे घंटे का उस टब में नहवाने और उनके बदन को मसलने के बाद, मालती बाहर लाकर उनके शरीर को तोलिये से पोछने ही वाली थी की तभी मैंने घर की घंटी बजाई। (दरअसल मेरा मन लग नहीं रहा था ऑफिस में सो मैं हाफ डे छुट्टी ले कर घर आ गया था)। मालती ने गेट खोला और जब में भाभी के पास आया तो मुझे पिशाब की बदबू आयी उनके बदन से। मैंने नोटिस किया की मालती के भी बदन से ऐसी ही बदबू आ रही थी।
मैंने बाथरूम में बाथ-टब को देखा तो मुझे सब समझ में आ गया। मुझे बड़ी ख़ुशी थी की मालती नए-नए तरीके से भाभी और मेरे बीच उत्तेजना बढ़ा रही थी।
मालती ने कहा: भैया अच्छा हुआ आप आ गए, चलिए आप भी नाहा लीजिये, अपनी माँ जी के साथ। फिर उसने मेरे कपड़े उतार कर मुझे पूरा नंगा कर दिया। भाभी मुझे नंगा होता देख रही थी पर वो बिलकुल भाव-विहीन से खड़ी थीं। मेरे तने हुए लंड को पकड़ कर भाभी को दिखाते हुए मालती ने कहा माँ से चिपकने के नाम से ही ये झटके मारने लगता है, थोड़ी देर तक लंड को हिलाने के बाद मालती हम दोनों को बाथ-टब में ले आयी। (पहली बार किसी औरत ने मेरे लंड को छुआ था, और ये मालती भाभी के सामने कर रही थी)। बाथ-टब में मालती ने मुझे बिठाने के बात भाभी को मेरे गोद में बिठा दिया और हम दोनों को पिशाब करने को कहा। वो बाथ-टब के बाहर से ही मेरे पीछे आकर मेरे और भाभी के गालों को सहलाते हुए पिशाब करने वाली आवाज़ निकालने लगी। मैं और भाभी दोनों पिशाब करने लगे, हालाँकि भाभी ने बहुत ज्यादा नहीं किया। बाथ-टब का रंग अब पूरा पीला हो गया था। उस गन्दी बदबू में भाभी और मैं एक दुसरे के बदन से चिपके हुए थे।
मुझे असीम कामनोमन्द की अनुभूति हो रही थी। काम उम्र की कितनी भी सुन्दर बीवी होती मेरी तो मुझे ये ख़ुशी नहीं दे पाती। मैं राहुल और भाभी के पिता को मन-ही-मन सुक्रिया कर रहा थी उन्होंने मुझे भाभी के शरीर की जागीरी दे दी थी। बाथटब में पड़े हुए में भाभी के बदन को निचोड़ रहा था और वो मादक आवाज़ें निकाल रही थीं। मालती कुछ देर में अपने घर चली गयी और मैं और भाभी के साथ बाथटब में ही था।
पिशाब के पानी से सने भाभी के भड़काऊ बदन को मसलते हुए मुझे अब 20 मिनट हो चुके थे। भाभी काफी देर से पानी में थीं शायद उन्हें असहजता महसूस हो रही थी बदबू में।
भाभी: सुनील अब रहने दो प्लीज।
मैं: माँ, मुझे सुनील बेटा बुलाया करो।
भाभी: बेटा, प्लीज रहने दो अब। मुझे बहार निकलने दो।
मैं: ठीक है माँ (और ऐसा कहके मैं उन्हें बाहर ले आया और उनके बदन को तौलिये से पोछने लगा)
भाभी: बेटा, मेरे कपड़े ला दो।
मैं: सॉरी माँ, आप कपड़े नहीं पहनेंगी। आपको घर में ही रहना है। आपको कपड़े क्यों चाहिए। मैं आपका पति हूँ, मालती आपकी दासी| दोनों को आपके नंगे बदन की जरुरत रहती है, बार-बार कपड़े उतारने से अच्छा है आपकी नंगी ही रहें।
भाभी चुप रहीं और बिस्तर पे लेट गयीं। मैं भी बिस्तर पे लेट उनके शरीर से चिपक गया और उनके होठों को धीरे-धीरे चूसने लगा।
मैं: (भाभी के होठों को चूसते हुए) मालती को घर पे ही रख लें क्या, कितना ध्यान रखती है आपका।
भाभी: नहीं, मुझे वो पसंद नहीं है।
मैं: क्यों माँ,
भाभी: रोने लगी और बोली की वो तुम्हारे नहीं रहने पर उसे बेइज्जत करती है। फिर उन्होंने आज उसके मारने वाली बात बताई। (मुझे ये सुन के बहुत बुरा लगा, मैंने तो बस मालती को भाभी को मनाने के लिए कहा था, इसकी आड़ में वो तो भाभी के साथ वाकई ज्यादती कर रही थी)
मैं: (भाभी के आंसू पोछते हुए) ये तो उसने बहुत गलत किया, मैं आज शाम में ही उसे हटा देता हूँ। मेरी गाय को मारा उसने!
मैंने ठान लिया की मालती को मैं सबक सिखाऊंगा और फिर मैंने उसे नौकरी से हटाने का निश्चय कर लिया था। पर मुझे दर था की वो कहीं भाभी को ये न बता दे की मैंने उसे मेरी और भाभी की शादी की बात पहले बता दी थी और उसकी मदद मांगी थी भाभी को सेक्स के लिए तैयार करने में। अब जब भाभी को मैंने पा लिया था मेरे लिए ये कोई बड़ी बात नहीं थी, पर अगर मालती ने आस-पास वालों को (मकान मालिक) भाभी और मेरे सम्बन्ध के बारे में बता दिया तो फिर बड़ी मुश्किल हो सकती थी।
भाभी को 2 घंटे रगड़-कर चोदने के बाद मैं और भाभी कुछ देर के लिए लेट गए। उठने के बाद मैंने भाभी के पहनने के कपड़े बाहर कर दिए। पूरे दो दिनों बाद भाभी कपड़े डाल रही थी अपने मांसल बदन पर। पर वो कपड़ों में भी नंगी ही दिखती थीं मुझे क्यूंकि वो कपड़े उनके बदन से पूरे चिपके होते थे। चाहे वो शादी पहने या nighty। अभी भाभी ने तंग nighty पहन रखी थी। मुझसे रहा नहीं गया और मैं उनके दूध मसलने लगा nighty के ऊपर से ही।
मैं: माँ, तुम तो कपड़ों में भी नंगी दिखती हो (मैं उनको ड्रेसिंग मिरर के सामने लेकर उनके स्तनों को मसलते हुए बोला)। मैं कितना खुशकिस्मत हूँ की तुम्हारा ये बदन मुझे मिला है मसलने को। अच्छा माँ ये बताओ तुम्हे सूरज बेटा ज्यादा अच्छा मसलता था ये सुनील बेटा।
भाभी: सूरज ने कभी दुसरे को मुझे हाथ नहीं लगाने दिया।
(मैं समझ सकता था की भाभी बड़ी आहत थीं मालती के हाथों खुद की बेइजती से
मैं: आज मैं उसे निकाल दूंगा शाम में ही। मेरी माँ के बदन को छूने की भी हिम्मत कैसे हुई उसकी। (मैं लगातार उनके उरोजों को जोर-जोर से रगड़ रहा था और भाभी मादकता में अभिभोर धीरे धीरे आवाज़ें निकाल रही थीं।
(भाभी को इतने दिनों तक चोदने से मुझे पता चल गया था की जब भी भाभी की उत्तेजना बढ़ती थी वो इंसान से गाय बन जाती थीं। इससे तात्पर्य ये है की इंसानी समझ ख़तम हो जाती थी हवस के सुरूर से और जैसे कोई गाय सीधी अपने मालिक के आज्ञा का पालन करती ही वो अपने बदन के मालिक का पालन करने लगती थीं। बिलकुल बेसुध होकर अपने बदन को मसलवाती थीं भाभी, वो सही मैं तब औरत नहीं एक दुधारू गाय प्रतीत होतीं थीं। ये भी एक वजह थी की मालती उनके ऊपर अपना जोर दिखा पाती थी।)
शाम 7 मालती आ गयी और भाभी तब किचन में ही थीं। मैं बेड पे लेता कोई किताब पढ़ रहा था। मालती ने भाभी को कपड़ों में देखते ही झल्लाते हुए बोला:- क्यों रे रंडी, कुछ घंटे जो मैं नहीं थी, तेरे तो पर खुल गए। (और मालती भाभी के गालों पे जोर-जोर से थप्पड़ मारने लगी। जैसे ही भाभी के रोने की आवाज़ आयी, मैं दौड़ता हुआ किचन में आया। मालती को मैंने तुरंत 4 -5 थप्पड़ रशीद कर दिए और उसे बोला तू चली जा यहाँ से तेरी जरुरत नहीं है। मैं उसे हाथ खींच के बाहर की तरफ करने लगा। वो बोली बाबूजी खुद कहते थे इस गाय को बिस्तर पे ला दो, जब आ गयी तो फिर मेरी जरुरत नहीं है। मैंने मालती को डांटा और बोला चल निकल जा यहाँ से।
मालती चली गयी और मैंने भाभी को बोला की वो कितनी झूटी हैं तुम्हे पता ही है, मैं क्यों बोलूंगा उसको की मेरी बीवी से मुझे प्यार करा दो। मैंने भाभी के आंसू पोछे और उन्हें बाहों में भरकर बैडरूम में ले आया। दुलारते हुए उनके गालों को चाटता हुआ बोला मेरी माँ सोनू को एक भाई दे दो प्लीज। तुम्हारे कोख में मेरा बच्चा पलेगा ये मेरे लिए बहुत ख़ुशी की बात होगी माँ। फिर मैंने भाभी के nighty को खोलने लगा तो वो बोली क्यों खाना नहीं है क्या। मालती को तो मैंने भगा दिया था अब खाना भाभी ही बनातीं पर मैं चाहता नहीं था की भाभी के बदन से एक-पल को भी दूर रहूँ सो मैंने बाहर से आर्डर कर दिया और फिर भाभी के बदन को नंगा करके उनके ऊपर चढ़ गया। उनके होठों को चूमते हुए बोला -
मैं:- तुम खुश तो हो ना माँ, जो मैंने मालती को निकाल दिया। तुम्हे काम करने की जरुरत नहीं होगी, वैसे भी मैं तुमसे एक मिनट भी अलग नहीं रख सकता। मैं कोई दूसरी नौकरानी कर दूंगा एक दो दिनों में। तब तक हम बाहर से ही खाना आर्डर कर दिया करेंगे।
भाभी: ज्यादा पैसे खर्च हो जाएंगे। मैं तुम्हारे ऑफिस रहते ही बना दिया करुँगी।
मैं: पर जब भी मैं घर पे रहूँगा, माँ तुम्हारा बदन मेरे लिए खाली रहेगा।
भाभी: ठीक है बेटे!
भाभी धीरे धीरे माँ-बेटे वाली बातचीत में सहज होती जा रहीं थीं। मैं चाहता था की ये बात बड़ी सामान्य हो जाए हमारे बीच क्यूंकि तब महज भाभी के साथ बातचीत में भी मादक अहसास होगा। )
कुछ ही देर में खाना आ गया और हमने खाना खाया फिर मैंने भाभी को बिस्तर पे पेट के बल लिटा दिया और मेरे लंड को उनकी गांड के फांक में फसा करके उनके नितम्बों को हिलाने लगा।
मैं: माँ, हमारे ऑफिस में एक औरत के चूतड़ काफी बड़े हैं, सभी ऑफिस में उसके पिछवाड़े की बातें किया करते हैं। पर अगर उनलोगों ने तुम्हारे चूतड़ देख लिए तो वो पागल ही हो जाएंगे। ये किसी कपड़ों के ऊपर से भी किसी पहाड़ जैसे उठे दीखते हैं। वैसे माँ तुम्हे क्या अच्छे लगते हैं किसी औरत के थन या चूतड़?
भाभी: थन (भाभी ने स्तन नहीं थन ही बोला, जो बात मुझे बड़ी उतेज्जित कर गयी)
मैं: मुझे भी ख़ास कर तुम्हारे जैसी गायों की। पर तेरी इतनी गांड भी इतनी बड़ी है की माँ बिना चाहे हाथ इस्पे आ जाते हैं।
मैंने अब थोड़ी रफ़्तार बढ़ा दी थी। भाभी भी अपने नितम्बों को हिलाकर मेरा साथ दे रही थीं। जब भी भाभी अपनी तरफ से सहयोग देती मुझे बड़ी ख़ुशी होती। मैं अभी भी यही सोचता था की मैंने अपने बड़े भैया की विधवा बीवी से चालाकी से अपना बिस्तर गरम करवा रहा था। मैं अभी भी उन्हें अपनी बीवी नहीं मानता था क्यूंकि मेरे लिए ये एक असंभव सा ही था कोई देवर अपने से 15 साल बड़ी विधवा भाभी को हम-बिस्तर कर ले। हालाँकि भाभी भी ऐसा नहीं सोचती थीं।
|