RE: bahan ki chudai बहन का दर्द
ना जाने कितनी देर तक भाई बेहन का प्रेमी जोड़ा.... भीगे बदन एक दूसरे मे समाए लेटा रहा......समुंदर के भरते ही सैलाब महासागर तक पहुँचा और रति की वीरान कोख के महासागर मे एक बार फिर से सन्गमित रस एकत्रित होने लगा.क्योंकी बिरजू के वीर्य की हर एक बूँद ने रति की बच्चेदानी को सिंचित कर दिया था, सैलाब इस कदर उफानित था कि उसके कारण दोनो अपने जिस्म के बाहर भी महसूस कर रहे थे. रति को उसके अंदर अनेक नदियाँ बहती हुई महसूस हुई और जैसे ही झूले पर आया "निस्चल प्रेम" का तूफान थमा, रति और बिरजू के जिस्म स्थिल होकेर सुषुप्त अवस्था मे गिर पड़े
तभी रति ने देखा... सुबह होने वाली है और दोनो छत पर हैं... उसे लगा किसी ने देख लिया तो जग हंसाई हो जाएगी..... उसने जल्दी से बिरजू को उठाया,,, भैया सुबह हो गयी... चलो नीचे.... और दोनो नीचे आ गये....
बिरजू कमरे मे आ कर सो गया.... माँ भी जाग गयी..... उसने दरवाज़ा खोला माँ के लिए.... अपनी बेटी का चेहरा देख कर माँ समझ गयी कि रति की नथ उतर चुकी है...... उसने बड़े प्यार से..... उसका माथा चूम लिया..... रति शरमा के सिमट के रह गयी....पर उसका आज अंग-अंग मुस्कुरा रहा था....
दोनो माँ बेटी दैनिक क्रिया से निवृत हो गयी और पूजा करने लगी.... तभी बिरजू भी उठ गया.... वो भी फ्रेश हो कर आ गया... माँ ने दोनो के तिलक लगाया... और मुहँ मीठा करा दिया.... और एक धागा.... दोनो के हाथ मे बाँध दिया... बेटा ये तेरा वचन है.... सारी उमर अपनी बेहन का ख्याल रखना....
बिरजू ने माँ के पैर छुए..... और माँ बाहर खेतों की तरफ चली गयी.... वो शायद ज़्यादा से ज़्यादा वक़्त दोनो को अकेले देना चाहती थी.......
माँ के जाते ही बिरजू ने फिर.... रति को अपनी बाहों मे भर लिया....
क्या भैया... पूरी रात मे मन नहीं भरा क्या......
क्या तू ऐसी है जिस से एक रात मे मन भर जाए तेरे लिए तो सात जनम भी कम पड़ जाएँगे....
रति अपनी तारीफ़ सुन कर शरमा गयी...चलो छोड़ो.. सुबह- सुबह बहुत काम पड़े हैं करने को.....
लेकिन बिरजू कहाँ मानने वाला था....... उसने बाहर का दरवाज़ा बंद किया.... और रति को गोद मे उठा कर....अंदर वाले कमरे मे.... ले गया..... और देखते ही देखते..... उसने.... रति की लहंगा चोली उतार दी..............और झट से अपना मूसल जैसा लंड उसकी चूत मे पिरो दिया..... लौंडिया सिहर गयी.... और फिर बिरजू.... ने धक्के मारना शुरू कर दिया.......आधे घंटे की धुआँ-धार चुदाई से उसने रति का अंग-अंग हिला दिया..... दोनो फिर एक दूसरे से चिपटे लेटे रहे....
रति ने फिर उठने की कोशिश की लेकिन बिरजू ने फिर उसे पकड़ लिया......
अब क्या है भैया... कर तो लिया....
पर बिरजू तो रति से एक पल के लिए अलग नहीं होना चाहता था...
उसने फिर रति का हाथ पकड़ के उसे अपने पास लिटा लिया..
.क्याअ है माँ अभी आ जाएगी... क्या सोचेगी.....
माँ दोपहर से पहले नहीं आएगी...
अगर कोई आस पड़ोस का आ गया... तो क्या सोचेगा..कि दोनो भाई बेहन दरवाज़ा बंद कर के क्या कर रहें हैं....
कोई नहीं आएगा...
और फिर वो रति की जांघें फेलाने लगा....
अब क्या है... वो रुआंसी सी बोली...अभी -अभी तो किया है....
.पर बिरजू ने कभी किसी की सुनी है... उसका लंड तो जैसे साँप(स्नेक) अपना बिल ढूँढ लेता है उसी तरह.... फिर रति की योनि मे.... घुस गया..... दोनो फिर चिपट के लेटे रहे....
बिरजू बिना कुछ हिले डुले.... अपना लंड उसकी योनि मे डाले पड़ा रहा.... .. वो आनंद के गोते लगाती रही.... बिरजू का लंड था भी इतना मीठा- मीठा...... ना जाने वो कितनी देर तक ऐसे ही पड़े रहे.... तभी दरवाज़े पर दुस्तक हुई.... आउइ... वो बोली कोई आया है....
बिरजू ने जल्दी से अपना लंड निकाला... और लूँगी पहन कर... दरवाज़ा खोल दिया.. सामने माँ खड़ी थी... माँ सारा माजरा समझ गयी... अंदर देखा तो रति अपने कपड़े ठीक कर रही थी......माँ ने पूंच्छा... क्या चूल्हा नहीं जलाया....
हां माँ अभी जलाती हूँ... रति भाग कर रसोई मे घुस गयी.... माँ हंसते हुए...रति से बोली .... बिल्कुल अपने बाप पर गया.... है.... वो भी मुझे एक पल के लिए अकेला नहीं छोड़ते थे....
रति शरम से गढ़ी जा रही थी...
अब तो बिरजू का एक ही टॅशन हो गया... वो तो रात दिन रति की चूत मे अपना लंड डाले.... पड़ा रहता था....... और ये सिलसिला जब माँ भी घर मे होती तब भी चलता रहता.... और वो रति को अंदर वाले कमरे मे ले जाता...... और घंटो उसकी चूत में लंड डाल कर दोनो लेटे रहते....
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आज की तारीख याद कर लेना दोस्तों.......... 14थ फेब्रुवरी १९७०(वॅलिंटाइन डे)......................
ठीक नौ (9) मंत बाद.यानी(14 नवंबर1989) चिलदर्न्स डे पर......... रात के कोई
2 बजे रति को दर्द उठना (लेबर पेन) शुरू हुए....... और ठीक......3 बजे................... उसने..... एक लड़की को जनम दिया.......................
जिसका नाम अलका ..... है.......
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