RE: Chudai kahani एक मस्त लम्बी कहानी
. इस तरह मैं सानिया और उसके अब्बू के बीच की दूरी खत्म करना चाह रहा था जो सानिया भी चाह रही थी। उसने दो-एक बार इसका जिक्र भी किया था। अब वो बोला, "ऐसा होगा हीं नहीं, सानिया तुम्हे लाईन देगी हीं नहीं। तु ख्वाब मत देख साले।" मैं देख रहा था कि सब मेरे मन के हिसाब से हो रहा है तो मैंने जमील को समझाया-"असल में यार माँ के सामने तो बेटी कई बार चोदा हूँ, पर आज तक बाप के सामने बेटी नहीं चोदी कभी। इसलिए एक बार यह अनुभव करना लेना चाहता हूँ।" जमील अपनी आँख बन्द कर अपना गिलास खाली किया और हँसते हुए कहा-"सानिया मानेगी हीं नही।" मैंने बाजी लगाने के लिए हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा-"अबे सानिया की बात छोड़, मैं उसको पुरा ट्रेन्ड कर के कुतिया बना कर तुम्हारे सामने चोद कर दिखा दुँगा। तुम्हें शर्म आए तो आए पर सानिया बिल्कुल बिंदास हो कर तुम्हारे सामने चुदेगी,शर्त लगा ले तू।" जमील ने भी मेरे से हाथ मिलाया और शर्त लग गयी। जमील को पता भी नहीं था की वो तो पहले से हारी हुई शर्त लगा रहा है। सानिया सलाद ले कर लौट रही थी। मैंने अपनी कामुक नजर उस पर टिका दी। सानिया एक नाईटी-टाईप गाउन पहने थी, जो उसके घुटने तक था जैसे हीं वो सलाद रख लौटने लगी मैंने कहा-"अरे बेटा कहाँ जा रही हो, जरा एक-एक पैग बना दो।" वो वहीं घुटनों पर बैठ गिलास बनाने लगी, और मैं उसको घुर रहा था। जमील सब देख रहा था चुप-चाप। सानिया अब अपने दोनों हाथोम से हम दोनों की तरफ़ गिलास बढ़ा दी, तो मैंने गिलास लेते हुए जमील से कहा-"बस यार आज का यह आखिरी गिलास है, इसके बाद आज नहीं। इस जाम में पहली बार शराब और शबाब दोनों का नशा है, और शबाब भी कैसा-सानिया जैसी हुस्न की मलिका का, चीयर्स"। सानिया को मेरे शर्त के बारे में पता नहीं था सो वो सकपका गयी, फ़िर लौट गयी। लौटती सानिया की चुतड़ पर मैंने एक हल्की सी थपकी दी, तो वो भाग गयी और मैं हँस पड़ा। साली ने अपने अब्बू के सामने गजब की एक्टिंग की थी। पर मुझे पता चल गया की उसने भीतर पैन्टी नहीं पहनी। मैंने सानिया के जाने के बाद जमील से यह बात कहा तो वो मानने को नहीं तैयार था कि उसकी जवान बेटी बिना पैन्टी के घुम सकती है। उस शर्त के बाद तो जमील के सामने सानिया का जिक्र करने का मुझे लायसेन्स ही मिल गया था। मैं बोला-"देख लो जमील दोस्त, तुम इसको अन्छुई, कुँवारी लड़की बोल रहे हो और ये साली सिर्फ़ एक पतले से गाऊन में हम दो मर्दों के बीच बैठ कर दारू बना रही थी। मुझे अब पुरा यकीन हो गया कि ये लड़की लन्ड के मजे ले चुकी है। क्या मस्त मजा देगी साली की बूर यार सोच के देख।" मैं जमील को उकसा रहा था, पूछा-"जमील दोस्त, बता ना तू आखरी बार कब देखा इसकी चूत, कभी देखा है या नहीं?" जमील भी अब रंग में रंगने लगा था, बोला-"यार आखिरी बार बहुत साल पहले देखा था, १२ साल की रही होगी। जीन्स की चेन से अपनी वहाँ की चमड़ी काट ली थी, तब देखा था।" मैंने अपना गिलास खाली किया-"वाह मेरे शेर, कैसी थी तब, जवान हो गयी थी कि नहीं?" जमील अब वर्षों बाद उस बात को याद कर रहा था और नशे में बोल रहा था-"बस समझो जवानी की पहली-दुसरी सीढ़ी पर हीं थी तब वो।" मैंने आगे पूछा-"और कैसी दिखती थी तब उसकी बूर?" जमील अब खुलने लगा-"बहुत गोरी। ऐसी गोरी चमड़ी आज तक नहीं देखी। काले-भूरे रोएँ होने शुरु हुए थे तब। एक बार जब वो अपने एक पैर को मोड़ी थी तो उसकी बूर की फ़ाँक थोड़ी खुली थी और तब हल्केगुलाबीपन की झलक भी दिखी थी। उसी दिन तो बस एक बार जीवन में मैंने उसकी जाँघ पर हाथ रख कर दबाया था ताकि एक बार कुँवारी बूर की झिल्ली देख सकूँ। यार सुहागरात के बाद कभी कुँवारी बूर मिली नहीं देखने को और तब यह अक्ल नहीं थी कि उस नायाब चीज का जी भर कर दीदार कर लूँ। सो बेगम की झिल्ली को देखे बिना हीं कब सील तोड़ी कुछ समझ नहीं आया।" मेरा लन्ड अब यह सब सुन ठनक गया, "और झिल्ली देखे?" उसने हल्के से कहा-"बस एक झलक। फ़िर तो लगा की यह सब मैं गलत कर और सोच रहा हूँ, और तब से अभी तक कभी ऐसी सोच दिमाग पर हावी नहीं होने दी। पर अब यार लड़कियों को भोग कर मुझे समझ आ रहा है कि मैंने क्या खोया है आज तक।" मैं अब अपने घर लौटने के लिए उठता हुआ बोला-"छोड़ ये सब और अब मस्ती कर। जब जागो तब सवेरा", और जमील से गले मिल वापस हो गया। सानिया को न पटाना था ना कुछ बहलाना फ़ुसलाना। मेरा ध्यान अब एक कुँवारी लड़की को खोजने में था। अगले दिन शाम में पर अकेले बैठ खाना खाने के बाद मैंने सुरी को फ़ोन किया और बताया कि एक कुँवारी लड़की दिन के समय में चाहिए। उसने पता करने के बाद मुझे फ़ोन करेगा ऐसा कहा।
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