RE: Chudai kahani एक मस्त लम्बी कहानी
.झे रागिनी याद आ रही थी। जमील अब भी थोड़े उलझन में था-"वो मेरे उमर से बहुत छोटी नहीं होगी, बेटी की उमर की लड़की?" मैंने कहा-"चल छोड़ ये सब, और कल की मस्ती के लिए तैयार हो जा।" तब तक सानिया हमें खाने के लिए बुलाने लगी। खाने के बाद जमील दाँत ब्रश करने चला गया तो मैंने सब बात सानिया को बतलाया और कहा कि वो भी कल दिन में मेरे से चुदाने को रेडी हो जाए। पुरी बात जान सानिया खुश हो गयी और मुझे चुम लिया। मैंने इसके बाद अपने घर आ कर रागिनी को फ़ोन किया और सब बात बताया कि उसको कल दिन में सानिया के पापा से चुदाना है, और उसको पुरा मजा देना है, बिल्कुल एक रन्डी की तरह। रागिनी तो मेरे लिए कुछ भी करने को तैयार थी, बोली-"आप अब कब मुझे बुलाएँगे अंकल? मुझे एक बार सानिया दीदी के साथ मौका दीजिए ना।" मैंने कहा-"अरे बेटा, जरा जमील को सेट कर लेने दो, फ़िर सानिया के साथ का रास्ता हमेशा के लिए खुल जायेगा।" वो बात समझ कर पूछी-"तो कल शायद जब दीदी के पापा मेरे साथ होंगे आप दीदी के साथ, हैं ना।" मैं सिर्फ़ इतना ही कहा-"बहुत समझदार हो गयी हो।" और फ़िर वो हँसते हुए फ़ोन बन्द कर दी। अगले दिन जमील करीब एक बजे दोपहर में कौलेज से सीधे मेरे घर आ गया, और उसके १० मिनट बाद रागिनी भी आ गयी। रागिनी ने आज शायद ब्युटी-पार्लर से मकअप कराया था, बहुत सुन्दर लग रही थी। उसने एक लौन्ग स्कर्ट और ढ़ीला टौप पहना था। मैंने उसका परिचय जमील से कराया तो उसने हैलो अंकल कह कर उसके गाल पर किस कर लिया। फ़िर मैंने उनके लिए दो बोतल बीयर रख दिया और जमील को कहा कि अब वो मस्ती करे। और जब सब काम हो जाए, तब मुझे कौल करे। मेरे आने के बाद हीं वो जाए। रागिनी को कोई पेमेण्ट ना करे। ये सब कह मैं अब जमील की बेटी सानिया के बारे में सोचता हुआ घर से निकल गया। बेवकुफ़ जमील को अंदाजा नहीं था कि मैं अब उसकी बेटी की बूर ठोकने जा रहा हूँ। रास्ते से मैने सानिया को कौल किया कि दो मिनट में पहुँच रहा हूँ। जल्दी ही मैं जमील के घर के दरवाजे की घन्टी बजा रहा था। दरवाजा खुला और क्या खुला मेरा तो मुँह खुला का खुला रह गया। सामने सानिया बेशर्मी का पुतला बन खड़ी थी बीच दरवाजे पे। बिल्कुल नंगी, एक सुत धागा तक बदन पर नहीं था। भरी दोपहर में दरवाजे के बीचो-बीच, अपने दोनो हाथों को दरवाजे के दोनों साईड के चौखट पर टिका कर मुझे देख मुस्कुरायी। एक दम खिली हुई धूप में उसका गोरा बदन चमक रहा था। संयोग से उस दोपहर में सामने की सड़क सुन-सान थी।
|