RE: Chudai kahani एक मस्त लम्बी कहानी
मेरा बदन हल्की सिहरन से भर रहा था और चूत भी गीली हो रही थी। वो मेरे लन्ड चुसने की कला की दाद देता और मैं और जोर से चुसती। तभी आसिफ़ आ गया और पास आकर मेरी ब्रा का हुक खोल दिया, जिसके बाद उसके अब्बा का हाथ अब मेरे निप्पल से खेलने लगा और मैं सिसक उठी। वकार यह देख आसिफ़ से बोला-"बहुत ताज़ा माल दिया है सुरी इसबार, पुरा पैसा वसूल"। वकार अब छुटने वाला था, तब वो बोला-"तुमको मेरा सारा मणि खा जाना है।" मेरे लिए ये कोई नई बात ना थी, पर यह शब्द नया था, शायद पाकिस्तान में वीर्य को मणि बोलते हैं। मुझे तो हिन्दी के शब्द हीं आते थे। मैं मुँह खोल कर सामने जमीन पर बैठ गयी और वकार ने हाथ से अपना लन्ड हिला-हिला कर पिचकारी मारी। छः बार मे सारा वीर्य मेरे मुँह में डाल दिया जिसे मैं खा गयी। अब वो मेरा मुँह चुम लिया और बोला अब जाओ और आसिफ़ से चुदो अच्छे से। मैं उठी तो असिफ़ ने मेरी पैन्टी खीच दी, कहा-"इतना सा बदन अब्बू से क्यों छुपा रही हो, सब दिखा दो एक बार फ़िर चलना"। मैं उठी और अपना पैन्टी खोल दी। आज सुबह ही जब मुझे चाचु ने बताया तो अपने झाँट को साईड से साफ़ की थी, जिससे १" चौड़ी पट्टी में पिछले ५-६ दिन में उगे छोटे-छोटे काले-काले झाँट मेरी गोरी बुर की खुबसुरती को और बढ़ा रहे थे। मेरी ऐसी मस्त चूत देख दोनों के मुँह से एक साथ आह निकली और फ़िर निकला "सुभानल्लाह"। आसिफ़ बोला, "अब चल पहले चोदूँ तुमको वर्ना अफ़सोस होने लगेगा देरी क्यों की।" मैं बोली, "पहले बुर को धो लूँ, बहुत गीली हो गयी है और रास्ते में आते समय गर्मी से थोड़ा पसीने की भी बदबू आ रही है"। मुझे तो वकार के पसीने की बू याद आ रही थी। पर आसिफ़ की बेकरारी में कोई फ़र्क नहीं पड़ा, बोला-"अबे चल, जवानी लौन्डी के बुर के पसीने की बू से यार लोग का लौंड़ा ठनक जाता है। अभी तक घर में चुदी है ना, इसीलिए बदबू/खुश्बू की बात करती है। कुतिया की चूत से बदबू कभी नहीं आती। अपने अब्बा के देखते झुका और चूत की फ़ाँक से शुरु करके हलके झाँटों वाली पट्टी तक अपने जीभ से चाट लिया। मेरा बदन गुदगुदी से भर गया। उसने एक चपत मेरे चुतड़ पर लगाया और बेडरुम की तरफ़ बढ़ गया।
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