RE: Chudai kahani एक मस्त लम्बी कहानी
मैंने एक जोर के धक्के के साथ आधा लन्ड भीतर पेल दिया। उसके चेहरे पर दर्द की रेखा उभरी, पर उसने होंठ भींच लिए। अगला धक्का और जोर का मारा और पुरा ८" जड़ तक सानिया की चूत में घुसेड़ दिया। वो चीख पड़ी-"हाय माँ, मर गई रे....।" उसका आँख बन्द था, और उस जोरदार धक्के के बाद मैं थोड़ा एक क्षण के लिए रुका कि रागिनी की आवाज सुनाई दी-"ओह माँ"। मैंने आँख खोली, देखा सानिया के दोनों आँखों से एक-एक बूँद आँसू निकल कर गाल पर बह रहे थे, रागिनी साँस रोके अपने हाथों से मुँह ढ़के बिस्तर देख रही थी। और तब मुझे अहसास हुआ कि सानिया कुँवारी कली थी, और मैंने उसका सील तोड़ा था अभी-अभी। बिस्तर पर उसकी कुँवारी चूत की गवाही के निशान बन गए थे, बल्कि अभी और बन रहे थे। मैं समझ गया कि कितनी तकलीफ़ हुई है सानिया को, सो अब मैंने उसको पुचकारा-"हो गया बेटा हो गया सब, अब कुछ दर्द ना होगा कभी"। रागिनी भी उसके बाल सहला रही थी-"सच दीदी, अब सब ठीक है, इतना तो सब लड़की को सहना होता है..."। सानिया भी अब थोड़ा सम्भली और होंठ भींचे भींचे सर को हिलाया कि सब ठीक है। और तब मैंने अपना लन्ड बाहर-भीतर करना शुरु किया। ४-६ बार बाद लन्ड ने अपना रास्ता बना लिया और फ़िर हौले-हौले मैं भी अब सही स्पीड से सानिया की चुदाई करने लगा। वो भी अब साथ दे रही थी। ८-१० मिनट बाद मैंने अपना सारा माल चुत के उपर पेट की तरफ़ निकाल दिया। वो निढ़ाल सी बेड पर पड़ी थी। रागिनी ने बेडशीट से ही उसकी चूत पोंछ दी, और फ़िर उसको सब दिखाया। सानिया बोली-"अब तो पका हुआ ना कि मैंने रेहान के साथ कुछ नहीं किया था, पर ये सब अम्मी-अब्बू कैसे जान पाएँगें?" उसके आँखों में आँसू आ गए। मैंने उसे अपनी बाँहों में समेट लिया-"छोड़ो ये सब बात, आज तो सिर्फ़ अपनी जवानी का जश्न मनाओ।" मुझे अब पेशाब लग रही थी, सो मैं बिस्तर से उठ गया। अब दोनों लड़कियाँ भी उठ कर कपड़े पहनने लगीं। आधे घन्टे बाद चाय-बिस्कुट के साथ सानिया अपने पहले चुदाई के अनुभव बता रही थी। रागिनी ने उसे समझाया कि "अभी एक-दो बार और दर्द महसुस होगा पर ऐसा नहीं मीठा दर्द लगेगा, उसके बाद जब बूर का मुँह पुरा खुल जायेगा तब बिल्कुल भी दर्द नहीं होगा, चाहे जैसा भी लन्ड भीतर डलवा लो। मुझे अब बिल्कुल भी दर्द नहीं होता"। करीब ९ बजे रागिनी चली गई। सानिया ने उससे वादा लिया कि वो फ़िर एक बार आयेगी, तब शुक्रवार को आने की बात कही, क्योंकि शनि और रविवार को रजिन्दर उसकी मेरे साथ बूकिंग के बाद एक घन्टे में अगले ५ सप्ताह की बूकिंग कर चुका था। मुझे भी रागिनी बहुत अच्छी लगी थी। जाते-जाते वो मुझे कह गई-"अंकल आपको जब मन हो फ़ोन कर दीजिएगा, सुरी सर वाले दिन छोड़ कर, चली आऊँगी, अब आपके साथ पैसे ले कर नहीं करुँगी, आपने सच मुझे बहुत इज्ज्त और प्यार दिया, थैंक्यु"। उसके जाने के बाद मैं और सानिया ने अगले एक घन्टे में घर साफ़ किया और फ़िर कपड़े वाशिंग मशीन में डालने के बाद सानिया मेरे पास आई और बोली-"चाचु, एक बार और कीजिएगा, अब दर्द बिल्कुल ठीक हो गया है"। सुबह साढ़े छः के करीब सानिया पहली बार चुदी और अभी साढ़े दस बजे वो दुसरी बार चुदाने को तैयार थी। मेरे लिए तो सानिया का जिस्म दुनिया का सबसे बड़ा नशा था सालों से, कैसे मना करता। तुरंत ही अपना कपड़ा खोल दिया और बोला-"आओ" सानिया आई और घुटनो पर बैठ गई। मैं समझ गया कि अब वो होगा जो मैंने हमेशा सपने में होने की उम्मीद करता था। हाँ, सानिया ने मेरे ढ़ीले लन्ड को पकड़ अपने मुँह में डाल लिया था और उस पर अपना जीभ चला रही थी। अचानक वो बोली-"चाचु, अब आपका बुढ़ा होने लगा हैं; देखिए आपका कई बाल सफ़ेद हो गया है।" वो मेरे झाँट के बारे में बात कर रही थी। उसे इस प्रकार बात करते देख अच्छा लगा कि अब ज्यादा मजा आयेगा पहली बार तो कुछ खास बात चीत हुई ना थी। मैंने उसे थोड़ा एनकरेज किया-"अभी बुढ़ा न कहो इसको। बारह घन्टे में दो जवान लौन्डिया चोदा है मेरा पट्ठा। एक की तो सील तोड़ी है। मर्द तो साठ साल में पट्ठा होता है - साठा तब पाठा - सुना नहीं क्या? अभी पाँच मिनट रुको, पता चलेगा जब तेरी बूर की बीन बजाएगा ये काला नाग।" उसने अपनी आँख गोल-गोल नचाई-"हूँ, ऐसा क्या?"। सच उसकी यह अदा लाजवाब है। वो चुस-चुस कर मेरे लन्ड को कड़ा कर रही थी और काफ़ी अच्छा चुस रही थी।
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