Sex Hindi Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
01-12-2019, 02:49 PM,
RE: Sex Hindi Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
आज मिनी सुनेल की उस माँ को गाली दे रही थी जिसने सुनेल को सच का रास्ता दिखाया, ना वो ये सब करती, ना आज ये होता ना इतने साल पहले सुनेल उससे दूर होता, सब अपनी अपनी जिंदगी जीते, लेकिन होनी कहाँ मिनी के हाथ में थी. मिनी सुनील और सुनेल की तुलना करने लगी , हर पल हर क्षण सुनील का पलड़ा भारी होता चला गया. दो जुड़वा भाई और इतना फरक, हां फरक था बिल्कुल था - परवरिश का फरक था.

मिनी अपनी किस्मत को कोसने लगी, उसे सुनील क्यूँ नही मिला, उसने क्या गुनाह किया था, क्या उसकी जिंदगी अब यूँ ही गुज़रेगी, क्या उसे सच्चे प्यार का कोई हक़ नही, बिस्तर पर मुक्के मारती मिनी बिलखती रही, उसे संभालने वाला कोई नही था, जो थे वो खुद बिलख रहे थे.

विजय, आरती राजेश, कविता, चारों उस वक़्त हॉल में थे जब ये तीन घर आए, और उनके चेहरे देख किसी की हिम्मत ना हुई कुछ पूछने की, चारों अपने अपने तरीके से सोच रहे थे कल्पना कर रहे थे क्या हुआ जो ये तीन इस तरहा....पर कोई जवाब किसी के पास ना था.

तीनो अलग कमरे में थी, जो इनको मिले थे, बच्चों को कविता ने कुछ देर पहले ही सुला दिया था, कविता से रहा ना गया वो सोनल के पास चली गयी और आरती को विजय ने सूमी के पास भेज दिया, मिनी के गम को हरने राजेश उसके पास चला गया.

सोनल एक घायल शेरनी की तरहा कमरे में इधर से उधर घूम रही थी, कभी खड़ी हो ज़ोर ज़ोर से रोने लगती थी, और कभी एक दम आँधी तूफान की तरहा कयामत सी बन जाती थी.

सूमी बिस्तर पे गिरी बस रोती जा रही थी सुनेल ऐसा निकलेगा उसने ख्वाब में भी नही सोचा था, उसकी ममता घायल हो गयी थी, एक औरत घायल हो गयी थी, एक बीवी तड़प रही थी अपने साथी के लिए, सिर्फ़ वही उसे आज संभाल सकता था, सिर्फ़ वही उसे आज जीने की राह दिखा सकता था, सिर्फ़ वही उसका सुनील.

आज फिर एक औरत अपने ही रूपों से लड़ रही थी. 

एक भायनल खेल का आगाज़ हो चुका था, दर्द का खेल. 
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हाथ में पड़ा स्कॉच का ग्लास सुनील से कुछ कहने लगा, उसमें बची स्कॉच का रंग बदल गया था, ये संकेत था सुनील के लिए, आने वाले तुफ्फान से जूझने के लिए.

सुनील उठ के खड़ा हो गया, बाहर बाल्कनी में जा कर शुन्य में घूर्ने लगा. बादलों में उसे दो चेहरे नज़र आए , एक समर का जिसके मुखेटे पे कुटिल हँसी थी एक सागर का जो गमगीन था पश्चाताप में.

सुनील ने आँखें बंद कर ली और उसके सामने अगी की आकृति आ गयी. आसमान एक दम काला हो गया, सुनील के चारों तरफ गेह्न अंधेरा छा गया, जिसे बाल्कनी में जलती लाइट्स भी भेद नही पा रही थी.

तभी सुनील के जिस्म के चारों तरफ एक सफेद धुआँ फैल गया जो उस अंधेरे को मिटाने लगा, वो सफेद धुआँ रोशनी में बदलता चला गया और सुनील के जिस्म से एक तेज निकलने लगा, सब कुछ अचानक गायब हो गया, कोई नही कह सकता था कि कुछ देर पहले यहाँ कुछ हुआ था. सुनील में कुछ तब्दीलियाँ आ चुकी थी, लेकिन क्या? ये अभी सुनील खुद नही जानता था.

आरती सूमी के कमरे में दाखिल हो गयी और सूमी को संभाल ने की कोशिश करने लगी.

'सुमन, क्या हुआ कुछ तो बताओ, तुम तीनो यूँ इस तरहा, सम्भालो खुद को.....' आरती का वाक़्य अभी ख़तम ही नही हुआ था कि कमरे में सफेद रोशनी छा गयी. आरती एक दम घबरा के बाहर भागी विजय को बुलाने और उसके निकलते ही दरवाजा एक दम बंद हो गया.

उस रोशनी से आवाज़ आने लगी, ' भूल गयी जो वादा मुझ से किया था'

सूमी के आँसू एक दम बंद, उसका बिलखना एक दम बंद. ये आवाज़ सुनील की थी.

सू सू सुनील ! घबरा सी गयी सूमी.

'मैं हूँ ना ! तुम लोग कल ही माल दीव आ जाओ, मिनी को साथ ले आना. बस अब एक आँसू नही.'

वो सफेद रोशनी गायब. और सूमी सोच में पड़ गयी. सुनील की आवाज़ यहाँ तक कैसे. फिर सर झटक वो कमरे से बाहर निकली तो सामने विजय और आरती खड़े थे . सूमी एक दम बदल गयी थी, उसके कॉन्फिडेन्स लॉट आया था, एक औरत जंग लड़ने को फिर तयार थी. सूमी सोनल के कमरे की तरफ बढ़ गयी, जहाँ कविता उसे संभालने की कोशिश कर रही थी. सूमी के अंदर कदम रखते ही सोनल एक दम शांत हो गयी.

सूमी : 'पॅकिंग करो.' बस इतना ही बोल वो मिनी के कमरे की तरफ बढ़ गयी उसे भी पॅकिंग करने का बोल अपने कमरे में आ गयी और अपना समान पॅक करने लगी.

विजय आरती ने जब पूछा तो बस इतना कहा. हम कल मालदीव जा रहे हैं. आप प्लीज़ कल की टिकेट्स करवा दो.

विजय उसी वक़्त वहाँ से अपने कमरे में चला गया, और कहीं फोन घुमाने लगा. कुछ देर में उसके पास इनकी बिज़्नेस क्लास की टिकेट्स थी.

सूमी कुछ ज़्यादा समान साथ नही लाई थी, बस कुछ कपड़े ही थे. जो कल होना था वो उसने अभी करने का फ़ैसला ले लिया था और अब वो नही चाहती थी कि सुनील अब कभी हिन्दुस्तान की धरती पे कदम रखे.

विजय जब टिकेट्स ले कर सूमी के पास आया तो सूमी ने उसे एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी सोन्प दी. हिन्दुस्तान में कभी ये फॅमिली रहती थी उसका पूरा वजूद मिटाने की.

ताकि कल अगर कोई खोज बीन करे तो उसे बस चन्द नामों के अलावा कुछ ना पता चले. विजय ने सूमी को अपना वचन दिया और लग गया वो इस काम में, सबसे पहले सूमी और सुनील की जितनी ज़्यादाद थी उसे बेचना था.

विजय ने अपने कुछ खांस भरोसे के कॉंटॅक्ट्स को इस काम में लगा दिया. ये रात बहुत कुछ करनेवाली थी.

समा सुहाना होता चला गया, सुनील के चेहरे पे एक आलोकिक लौ आ गयी थी, चित एक दम शांत हो गया था, वो वापस हॉल में आया अपने स्कॉच के ग्लास को देखा वो बिल्कुल सही सलामत था. सुनील ने बची स्कॉच फेंक दी और एक दूसरा पेग दूसरे ग्लास में तयार कर फिर बालकोनी में जा कर चुस्कियाँ लेने लगा, दूर समुद्र की सतह पे डॉल्फ्फिन्स कभी उपर आती कभी पानी में चली जाती, संगीत की लय की तरहा उनका एक न्रित्य सा चल रहा था, सुनील उसी में खो गया. 


'ये समा ! समा है ये प्यार का ! किसी के इंतजार का !' रूबी को तयार करती हुई एक लड़की गुनगुनाई.

'धत्त!' रूबी शर्मा गयी

'हाई मेडम काश में लड़का होती तो कसम से आज....' रूबी के जिस्म की मालिश करते हुए उसने रूबी के उरोज़ को दबा डाला.

'ऊऔच' रूबी एक दम चीख सी पड़ी ' अह्ह्ह्ह क्या करती है' 

'जब वो इनको मसलेगा ना....'

'चुप बेशर्म'

'सच दीदी, बड़ी किस्मत वाले हैं आपके मिया , एक दम मिर्ची हो आप तीखी...सीईईईईईईईईई'

'चुप कर और जल्दी काम ख़तम कर अपना'

'हां हां बड़ी बेचैन हो रही हो अपनी सुहाग रात के लिए, बस थोड़ा टाइम और, कुछ हमे भी तो मज़ा आ जाए, फिर ये मौका कहाँ मिलेगा'

वहाँ उथल पुथल मची हुई थी यहाँ सुनील एक दम ऐसे शांत हो गया था जैसे कुछ हुआ ही ना हो, क्यूंकी वो सूमी के ज़ख्मी दिल को राहत दे कर आ गया था, और जानता था कि सोनल भी शांत हो जाएगी जैसे ही सूमी उससे मिलेगी.

कुदरत के अपने क़ानून होते हैं और किसी को उनमें दखल देने नही दिया जाता. अगी ने सुनील को कुछ शक्तियाँ दे कर उस क़ानून को तोड़ दिया था. लेकिन अगी था ही ऐसा, उसे किसी बात की परवाह नही थी, माया जाल से वो परे था, कुछ भी सज़ा मिले वो वही करता था जो उसे ठीक लगता था. 

इन सबके बीच एक आत्मा घायल घूम रही थी, वो थी प्रोफ़ेसर की. जिसे अचानक हुई मृत्यु की वजह से मोक्ष प्राप्त नही हुआ था, जिस्म को त्यागने के बाद उसने सुनील और सुनेल की मदद करी थी, जब सुनील भी सुनेल का जिस्म छोड़ उसकी मदद के लिए चला गया था तब प्रोफ़ेसर ही सुनेल के जिस्म में समा गया था और उसके दिल की धड़कन को बंद होने नही दिया था.

सवी को बचाते हुए सुनेल अपने मकसद से भटक गया था यही वो समय था जब वो कमजोर हुआ और समर ने मुक्त होने से पहले उसकी आत्मा को कलुषित कर दिया था, समर जाते जाते भी अपने ख्वाब सुनेल के अंदर डाल गया था, क्यूंकी सुनेल भी समर का अंश था वो इस प्रभाव में आ गया था, उसका मक़सद रह गया था बस सूमी को पाना, चाहे कुछ भी हो. और यही बात उसके मुँह से हॉस्पिटल में निकल गयी थी. जो सुनील को मिला वो उसे भी चाहिए, जो हक़ सुनील का है वही हक़ उसका भी है. यहीं सूमी को गहरा आघात लगा था.

क्या सुनेल अपने मक़सद में कामयाब होगा, ये तो वक़्त ही बताएगा हम चलते हैं वापस अभी सुनील और रूबी के पास, क्या उनकी सुहाग रात पूरी होगी या फिर ????

रूबी के साथ छेड़ खानी करते हुए दोनो लड़कियों ने उसे तयार कर दिया और विदा ले ली.
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