Sex Hindi Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
01-12-2019, 02:20 PM,
RE: Sex Hindi Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
सोचते सोचते सवी नींद की आगोश में चली गयी ……आनेवाली नयी सुबह क्या उसकी जिंदगी में लाती है उसका इंतेज़ार करते हुए.
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यहाँ देल्ही में मिनी अपने कमरे के दरवाजे पे खड़ी इंतेज़ार कर रही थी…कब सुनील कमरे से बाहर निकलेगा और कब वो उसका दीदार कर पाएगी …क्यूंकी सोनल तो एक सुरक्ष कवच की तरहा सुनील के चारों तरफ छा चुकी थी …….

रात को खाना सोनल कमरे में ही ले के गयी और दोनो बीवियों ने खाने के बाद उसे फिर किताबों में डुबो दिया. सोनल खुद भी पढ़ने बैठ गयी उसके पास और सुमन कुछ देर रूबी और कविता के पास चली गयी और उनसे उनकी तायारी के उपर बात करने लगी ….उनकी कुछ समस्याएँ थी जिनका निवारण सुमन ने किया और फिर दो कप कॉफी बना कर वो कमरे में चली गयी …दोनो को एक एक कप दिया और बिस्तर पे लेट गयी ….जब से सुनील से बात हुई थी…उसके मन में सवी के लिए उथलपुथल मची हुई थी.


रात देर तक सुनील और सोनल दोनो पढ़ते रहे …..यही हाल रूबी और कविता का था….ये चारों करीब रात के 3 बजे सोए और इस बीच सुमन ने चारों को 2 बार और कॉफी बना के दी.

सुमन ने अलार्म लगाया ताकि सुबह वक़्त पे उठ सुबह की चाइ और नाश्ते का सही टाइम पे इंतेज़ाम कर सके.

अगले दिन तीनो सही वक़्त पे कॉलेज के लिए चले गये …..आज रमण ने भी सहारा ले के चलना शुरू कर दिया था और आज ही उसे पता चला की उसकी मा घर छोड़ के जा चुकी है…तड़प के रह गया ….क्यूंकी सवी उसे मिली भी नही थी और मिनी को भी कुछ समझ नही आया था कि उसकी सास यका यक घर छोड़ के क्यूँ चली गयी ….उसके पास एक ही रास्ता था जवाब पाने का …रूबी …क्यूंकी सोनल उसे किसी भी तरहा से सुनील के करीब नही जाने दे रही थी …रूबी को शांत देख उसे यही लगा कि रूबी जानती है ..उसकी माँ क्यूँ गयी और कहाँ गयी ……लेकिन यहाँ भी सुमन का साया दोनो लड़कियों पे बना हुआ था उनकी हर छोटी से छोटी ज़रूरत का ख़याल सुमन रख रही थी यहाँ तक के उनकी पढ़ाई में भी उनकी मदद कर रही थी…रूबी और कविता को सुमन उस लेवेल पे ले जाना चाहती थी जिसपे सुनील था …यानी टॉप करना …ताकि दोनो के आतमविश्वास को नया बल मिले और पुराने दुखों के बदल जो उनके अंदर कहीं ना कहीं बसे हुए थे वो चाटने लगे ..जीवन का नया अर्थ उनके सामने उजागर हो जाए …

एग्ज़ॅम्स ख़तम होने तक सुमन ने अपनी सहेली से उसके बेटे और कविता के रिश्ते के बारे में जो उसने सोचा था …उस सोच को टाल दिया था …क्यूंकी वो नही चाहती थी कि कविता का दिमाग़ कहीं और भटके इन दिनो में.

वक़्त गुजरने लगा ……एग्ज़ॅम के दिन सर पे आ गये …मिनी की हर कोशिश विफल होती रही …रमण दिल ही दिल में सड़ने लगा उसकी हालत एक हारे हुए जुआरी जैसी हो गयी ….माँ छोड़ के चली गयी …बहन उसकी शकल देखना पसंद नही करती थी …..बीवी से रिश्ता मजबूरी का था और बाकी के लिए वो बस एक ज़िम्मेदारी था जब तक ठीक नही हो जाता.

एग्ज़ॅम भी सबके ठीक हो गये …..रमण की टाँग का प्लास्टर काट दुबारा इस तरीके से लगाया गया कि बिल्कुल एक परत जो उसकी टाँग के हर कटाव के साथ मूड रही हो …यानी वो पॅंट पहन सकता था और आसानी से सहारे के साथ चल सकता था……मिनी वो मिनी नही रही …हर वक़्त उसके चेहरे पे उदासी के बादल छाए रहते थे और रमण को ये उदासी देख किसी सॅडिस्ट की तरहा एक दिली खुशी मिलती थी …शायद एक तूफान इंतेज़ार कर रहा था सही वक़्त का …कब वो फटे और अपने साथ सब को बहा के ले जाए ……और ये तुफ्फान मिनी के अंदर जनम ले रहा था.

हर शक्स रोज सवी के बारे में सोचता पर कोई भी उसके बारे में बात नही करता क्यूंकी हर बंदा अपने हिसाब से सवी के बारे में सोचता था …हरेक की सोच उसके बारे में अलग थी .

सवी ने अपने आपको कोचीन में सेट्ल कर लिया था …दिन में हॉस्पिटल में मरीजों की देखभाल करती और शाम को समुद्र के किनारे डूबते हुए सूरज को देख अपने जीवन की तुलना उससे करने लगती ….इस बीच उसने बस एक ही बार मेसेज भेजा था सुनील को …'जिंदा हूँ' ….और कुछ नही …..ये इशारा था उसका कि वो आज भी इंतेज़ार कर रही है ….और छोड़ दिया अपनी किस्मेत पे के समझनेवाला समझता है या नही ….

एग्ज़ॅम के दिनों में जयंत रोज रूबी/कविता और सुनील से एग्ज़ॅम के बाद मिलता था ….बस यूँ हाई हेलो हाई और कुछ हलकीफुलकी बातें एग्ज़ॅम के बारे में सुनील से होती थी …लेकिन असली मक़सद जयंत का खुद को पहचानने का था कि वो असल में किसे चाहता है …रूबी को जिसे वो पहले से चाहता था या फिर कविता को जिसके आने के बाद उसके दिमाग़ में खलबली मचनी शुरू हुई थी ….और इस दोरान वो समझ गया था कि वो बस रूबी को ही चाहता है …एक वो ही है जिसे अगर वो एक दिन ना देखे तो उसका दिल अपनी रफ़्तार से धड़कने को मना कर देता था …उसका दिमाग़ उसे कचॉटने लगता था …आगे बढ़ के दिल की बात कह क्यूँ नही देता …..पर उसके संस्कार उसे रोकते थे…वो अपने आप को कोई सड़क छाप रोमीयो की उपाधि नही दिलाना चाहता था …क्यूंकी वो अच्छी तरहा समझ चुका था ….सुनील क्या है उसके ख़यालात क्या हैं …तो जाहिर है बहनें भी तो वैसे ही होंगी ….एग्ज़ॅम के आखरी दिन …धड़कते दिल से चोरी से उसने रूबी की तस्वीर अपने मोबाइल पे खींच ली ……वो अपना रास्ता चुन चुका था …कैसे उसे अपने दिल की बात रूबी तक पहुँचानी है और वो रास्ता था …उसकी अपनी माँ.

एग्ज़ॅम्स के बाद सुमन ने कविता के बारे में आगे बढ़ने का फ़ैसला ले लिया था …उसने अपनी सहेली से माफी माँगते हुए दुबारा मिलने का टाइम फिक्स कर लिया था लेकिन अब वो कोई ऐसी ग़लती नही करना चाहती थी ….जैसे वो शर्त लगाते वक़्त हुई थी …उसने सुनील और सोनल दोनो से ही इस बात के बारे में बात करने का फ़ैसला ले लिया था और वो चाहती थी कि सुनील साथ चले ….आख़िर असली फ़ैसला तो उसका ही होना था कविता की रज़ामंदी के साथ.

एग्ज़ॅम्स के बाद सब खाना खा रहे थे और कविता में इतनी हिम्मत नही थी कि सुनील को कुछ बोल सके …..आगे ही वो बहुत एहसानो तले लद चुकी थी …दिल कर रहा था कहीं खुली हवा में घूमे अपने आप को तरो ताज़ा करे …..एक उदासी सी छा गयी थी उसके चेहरे पे …..जो भी सुनील ने और परिवार ने उसपे अपना प्यार लूटाया था वो उसे सिर्फ़ एक एहसान समझती थी ना कि अपना हक़ …जो एक बहन अपने भाई पे जता सकती है …ज़िद करके अपना हक़ उस से माँग सकती है ….ना सुनील उसके इतना करीब गया कि दिल खोल के बता सके …कि जब बहन बोल दिया और मान लिया …,तो वो बहन उसके लिए कितना माइने रखती है …डर गया था वो हर रिश्ते से ..क्यूंकी जिसके वो करीब जाता वो ही उसकी तमन्ना करने लगता ….कविता में तो वो उस बहन को देख रहा था …जिसे वो खो चुका था …जब सोनल उसकी जिंदगी में एक पत्नी के रूप में आ गयी थी …वो तड़प्ता था एक माँ के लिए जिसे वो सवी में ढूंड रहा था …वो तड़प रहा था एक बहन के निश्पाप प्यार के लिए जिसे रूबी ने नकार दिया था ….एक कविता ही थी …जिसमे वो एक बहन का प्यार ढूंड रहा था …पर अपने दिल की बात कभी भी उसे खुल के नही कह पा रहा था …उसके इस दर्द को सिर्फ़ एक ही समझ रहा था ….और वो थी सुमन …क्यूंकी सोनल ने एक डर का साया पाल लिया था …एक परदा डाल लिया था अपने और सुनील के बीच …वो सोनल जो कान्फरेन्स बीच में छोड़ के आ गयी थी ….वो सोनल आज ना चाहते हुए भी एक डर के साए में जी रही थी …जितना भी सुनील ने उसे समझाया था शायद वो काफ़ी नही था…उसका प्यार उसके अंदर एक डर का मोहताज हो गया था…..जो ना उसे जीने दे रहा था ना उसे मरने दे रहा था …कई बार उसने सोचा और यकीन भी किया कि ये डर बेबुनियाद है ..पर ये डर उसका साथ नही छोड़ रहा था और उसकी वजह भी थी और वो वजह ये थी कि सुनील ने उसके प्यार को ज़बरदस्ती कबूल किया था वो भी सुमन के ज़ोर देने पर ….वो अपनी जान से ज़यादा सुनील को प्यार करती थी पर साथ ही साथ ये डर भी पाल के बैठी हुई थी ….शायद ये डर तब तक उसके दिल में रहेगा जब तक वो माँ नही बन जाती …हाँ एक लड़की जब माँ बन जाती है तब उसका प्यार पूरा होता है और सोनल को इंतजार था उस घड़ी का जब वो एक प्यारे से बच्चे को जनम दे कर खुद को पूरा महसूस करेगी …अपने प्यार को पूरा होता हुआ महसूस करेगी …अभी 2 साल पड़े थे ….2 लंबे साल जब सुनील का कोर्स पूरा होगा और वो डॉक्टर बन जाएगा …..इन 2 साल के पूरे होने का इंतेज़ार सुमन को भी था …वो भी तड़प रही थी अपने सुनील के बच्चे की माँ बनने के लिए अपने जीवन को एक पूरा अर्थ देने केलिए.

खाते वक़्त सुनील ने कविता से सवाल कर ही लिया ….कविता तुम कुछ कहना चाहती हो ….लग रहा है जैसे तुमने अभी तक इस भाई को अपना नही माना है.

कविता….ना नही भाई ऐसी कोई बात नही है ….वो अपना सर झुकाए हुए बोली

रूबी ….भाई ये डरती है आपसे ……इसीलिए कभी कुछ नही बोलती .

कविता पास बैठी रूबी की जाँघ पे चिकोटी काट लेती है.

रूबी ….ऊऊउचह 

सुनील …क्या हुआ……

रूबी …ये मार रही है मुझे 

कविता गुस्से से उसकी तरफ देखी….

रूबी …भाई वो एग्ज़ॅम ने दिमाग़ की ऐसी तैसी कर दी है …इसलिए कविता और मैं सोच रहे थे कहीं घूमने चलें…ये तो कुछ बोलती ही नही आपसे सब मेरे उपर थोप देती है…

सुमन…क्यूँ कविता …तुम क्यूँ नही बोल सकती ….आख़िर तुम्हारा भी तो हक़ है अपने भाई पर 

कविता की आँखों में आँसू आ गये ……वो वो इतना प्यार कभी मिला ही नही तो तो विश्वास नही होता …कि सब कुछ मेरा अपना है …मेरा भी हक़ है…

सोनल उठ के उसके पास चली गयी …पगली अपने भाई से दिल खोल कर कुछ भी माँग लिया कर 

कविता ….सोनल से चिपक गयी …….

कुछ देर बाद …..कविता खुद बोल पड़ी ….भाई …गोआ ले जाओगे घूमने …मैने कभी कोई जगह नही देखी…9वो बहुत आहिस्ता बोली थी )

सुनील….ज़ोर से बोल…जैसे एक भाई को हुकुम देते हैं….चल फटा फट …

कविता ….हँस पड़ी …मुझे गोआ जाना है घूमने …..

रूबी ….याअहूऊऊऊओ गोआ …मज़ा आ जाएगा

सुनील…ये हुई ना बात …..क्यूँ भाई ….सब के लिए ठीक है या फिर कोई चेंज चाहता है.

सुमन…वहीं जाएँगे जहाँ मेरी बिटिया ने बोला है.

सुनील…डन फिर कल ही चलते हैं….अपनी पॅकिंग कर लो सब…

मिनी वहीं टेबल पे बैठी सर झुकाए खा रही थी…

सुनील…मिनी तुम भी पॅकिंग कर लो अपनी और रमण की 

सोनल ने एक दम सुनील की तरफ देखा और मिनी भी एक दम हैरानी से सुनील को देखने लगी .

सुनील…ऐसे क्या देख रही हो दोनो…..पूरा परिवार एक साथ घूमने जाएगा और अब तो रमण सहारा ले कर चल भी सकता है ….मैं सब इंतेज़ाम कर दूँगा उसे कोई तकलीफ़ नही होगी …..

सुमन ….मिनी को … हां बेटी तुम भी अपनी पॅकिंग कर लो.

सोनल चुप रही ….उसने सुनील को सबके सामने टोकना सही नही समझा….

रात को कमरे में ….सोनल और सुमन पॅकिंग कर रहे थे और सुनील सब की टिकेट्स और होटेल के इंतेज़ाम में लगा हुआ था…रमण के लिए उसने व्हील चेर का इंतेज़ाम करवा लिया था और फ्लाइट में भी स्पेशल सीट माँग ली थी एग्ज़िट गेट के पास जहाँ उसे लेग स्पेस मिल जाए और वो अपनी टाँग सीधी रख सके ….

पॅकिंग पूरी करने के बाद सोनल और सुमन दोनो थोड़ी थक गयी थी…

फिर सोनल एक बार रूबी और कविता के पास चली गयी ……कविता दौड़ के सोनल से चिपक गयी और उसके कान में बोली …थॅंक्स भाभी …..सोनल ने उसके गाल को चूम लिया ….अब तू चुप चाप रहेगी तो मारूँगी …समझी…

रूबी …..मेरे पास तो बिकिनी है ही नही …बीच पे कैसे नहाएँगे…

सोनल…चिंता मत कर वहीं खरीद लेंगे….अब अपनी पॅकिंग ख़तम करो ….और सो जाओ सुबह जल्दी निकलना है …
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RE: Sex Hindi Kahani वो शाम कुछ अजीब थी - by sexstories - 01-12-2019, 02:20 PM

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