RE: Maa ki Chudai मा बेटा और बहन
बेटे के व्हाट्सएप्प पर रिसीव हुए इन विध्वंशक मैसेजस् को पढ़ते-पढ़ते वैशाली का पूरा बदन पसीने से लथपथ हो चुका था, सैंडर कोई और नही बल्कि उसका दोस्त विशाल ही था जो कानपुर से यहाँ बीटेक करने आया था और वह स्वयं भी इस लड़के को थोड़ा-बहुत जानती थी। कांपते हाथों से मोबाइल को ज्यों का त्यों टेबल पर छोड़ वह बिना पीछे मुड़े अपने बेडरूम के भीतर चली जाती है, उसके आश्चर्य और क्रोध का कोई पारावार शेष ना था।
"नही यार नही आ सकूँगा, नही माने नही"
"हाँ मैसेज पढ़ लिए थे और पैसों की भी कोई दिक्कत नही बट मेरा मन नही है, यू गाइज् एन्जॉय! मैं कल कॉलेज मे मिलता हूँ ...बाई"
बेटे के कमरे के अधखुले दरवाजे पर अपने कान लगाए खड़ी वैशाली की खुशी का कोई ठिकाना नही रहा था जब वह उसके मुँह से साफ इनकार के शब्द सुनती है। जाने क्यों एकाएक उसकी आँखें छलक आईं थी और जिन्हें पोंछती वह शाम की चाय बनाने के लिए दबे पांव किचन की दिशा मे चल पड़ती है।
"मैं जानती थी कि मन्यु मेरी बात का मान जरूर रखेगा, बाजारू रंडियों के पास फिर कभी नही जाएगा" खुशी से उछलकूद करती वैशाली बीते पिछले घंटेभर को जैसे तत्काल भूल जाती है, जिसमे बेटे के दोस्त के साथ उसने बेटे को भी अपने क्रोध मे शामिल कर लिया था।
"आज रात डिनर मे क्या खाओगे मन्यु? काफी दिन हुए तुम्हारी फरमाइश का कुछ अच्छा नही बनाया" वैशाली बेडरूम मे सोते अपने पति को चाय का न्योता देकर सोफे पर बैठे अभिमन्यु के करीब आते हुए पूछती है, उसके भाव बेहद चहके हुए थे और जिन्हें छुपाने का भी उस माँ ने अतिरिक्त कोई प्रयास नही किया था।
"रहने दो माँ, आज हम बाहर खाना खायेंगे। मेरी इस महीने की पॉकेटमनी पूरी की पूरी बची है तो आज की ट्रीट मेरी तरफ से" अभिमन्यु शांत स्वर मे बोला, बिना अपनी माँ की ओर देखे वह पुनः चाय की चुस्कियां लेने लगता है।
"वाह! अभिमन्यु तो वाकई अब बड़ा हो गया है, अपने माता-पिता को आज खुद अपनी तरफ से ट्रीट दे रहा है" पीछे से मणिक भी सोफे के नजदीक आते हुए बोला और सोफे पर बैठते ही अपने बेटे के कंधे को थपथपाना शुरू कर देता है।
"पापा नेक्स्ट वीक से एक्सटर्नल स्टार्ट है तो थोड़ा रिलेक्सेशन चाह रहा था, बाकी ऐसी कोई बात नही है" अभिमन्यु का स्वर महज शांत ही नही वरन गंभीर भी हो चुका था।
आज वैशाली ठीक उसी तरह से तैयार हुई थी जैसी कुछ दिन पूर्व वह बेटे के साथ मॉल जाते वक्त हुई थी, वही श्रंगार, वही उत्साह और बिलकुल वही खुशनुमा अंदाज। मूवी देखने जाने के बजाये वे प्रगति गार्डन घूमने चले आए थे, फरमाइश वैशाली की रही थी और जो अपने पति-बेटे का हाथ एकसाथ थामे किसी नवयुवती सी उत्साहित होकर गार्डन की नैसर्गिक सुंदरता का भरपूर लुफ्त उठा रही थी। उन्होंने फव्वारों का आनंद लिया, झूले झूले, फिसलपट्टी पर जमकर ऊधम किया और अंततः थकहारकर तीनों गार्डन की कोमल घाँस पर सुस्ताने लगे।
"उफ्फ्! मेरे तो पैर दुखने लगे" अपनी सैंडल उतारती वैशाली हांफते हुए बोली, यहाँ उसका कहना हुआ और वहाँ अभिमन्यु बिना किसी अग्रिम सूचना के उसके पैर के अत्यंत मुलायम पंजों को अपनी हथेलियों से हौले-हौले दबाना आरंभ कर देता है। अपने पति की मौजूदगी के एहसास से अचानक वैशाली की धड़कनें रुक सी गई थीं मगर जब उसने मणिक के मुस्कुराते चेहरे पर गौर किया, नौटंकी करते हुए वह जोर-जोर से दर्द भरी आँहें लेना शुरू कर देती है। जबकि सच तो यह था कि बेटे के हाथों का मर्दाना स्पर्श वह अपने पैर के पंजों से कहीं अधिक अपनी चूत के संवेदनशील मुहाने पर महसूस कर रही थी, लग रहा था जैसे अभिमन्यु उसके पंजे को नही बल्कि बारम्बार उसकी चूत को अपनी बलिष्ठ हथेली के मध्य भींच रहा हो। अपने पति की उपस्थिति मे वैशाली की यह नीच सोच एकाएक इस कदर पैश्विक हो जाती है कि मणिक के घाँस पर लेटते ही वह बेशर्मीपूर्वक अपनी मांसल जांघों को तीव्रता से आपस मे घिसने लगती है।
"सुनिये, मुझे बाथरूम जाना है" अपनी माँ के भीतर अकस्मात् आए बदलाव से हैरान हुए अभिमन्यु ने ज्यों ही उसके उत्तेजित चेहरे को देखा, वैशाली घाँस पर लेटे अपने पति से बोल पड़ी।
"अभिमन्यु, लेडीज़ टॉयलेट उधर है शायद" अपनी आँखें मूंदे लेटे मणिक ने अपनी दायीं दिशा की ओर इशारा करते हुए कहा और तत्काल वैशाली बेटे का हाथ थाम अपने संग उसे भी उठने मे मदद करने लगती है।
"मैं अब और रोक नही सकती मन्यु, मुझे ...मुझे यहीं मूतना पड़ेगा" पास ही एक बड़े से पेड़ के समीप पहुँच वैशाली सिसकी और आजू-बाजू के शांत वातावरण को देख अभिमन्यु का हाथ पकडे वह उसे भी पेड़ के पीछे खींच लेती है। एकबार फिर उस अधेड़ माँ पर उसके बेटे का खुमार पूरी तरह से हावी हो चुका था और अभिमन्यु की आँखों मे झांकते हुए ही वह खुलेआम अपनी साड़ी को अपनी कमर तक ऊँचा उठाने का दुस्साहस कर बैठी थी।
"कैसी तंग कच्छियां खरीद कर लाये हो तुम अपनी माँ के लिए, दिनभर मेरी गांड की दरार मे ही घुसी रहती हैं। तुम्हें नही पता कि कैसे मैंने अबतक इन्हें तुम्हारे पापा से छुपाया है, अगर पकड़ी गई ना तो याद रखना सीधे तुम्हारा नाम ले दूँगी" कहकर वैशाली ने वह साहसिक कार्य भी कर ही डाला जिसकी अभिमन्यु को कतई आशा नही थी।
"लो, रखो इसे अपनी पॉकेट में ...मैं बिना कच्छी पहने ही ठीक हूँ। ह्म्म्म! कितना खुला-खुला सा लग रहा है मन्यु, ऐसी ठंडी हवा मे तो मैं घंटों तुम्हारे साथ नंगी बैठी रह सकती हूँ" अपनी कच्छी को अपनी टाँगों से बाहर निकाल वह उसे अपने बेटे की दायीं हथेली पर रखते हुए बोली।
"तुम देखना मत, हाँ मन्यु ...मैं मूतने बैठ रही हूँ" बेहद अश्लीलात्मक व्यंग कसते हुए अपने निचले धड़ से यूँ सरेआम नंगी हो चुकी वह अत्यंत बेशर्म माँ वहीं घाँस पर नीचे बैठने लगी थी मगर तभी अभिमन्यु उसकी बायीं कलाई को बलपूर्वक थाम उसे खुद से बुरी तरह चिपका लेता है।
"आखिर तुम चाहती क्या हो? क्यों अपनी हँसती-खेलती जिंदगी को बर्बाद करने पर तुली है? कोई सहारा नही देगा हमें माँ ...ना तुम्हारा पति, तुम्हारी बेटी और ना ही कोई रिश्तेदार। समाज हमपर थूकेगा तो ना तुम सह सकोगी और ना ही मैं" हालाकिं अभिमन्यु द्वारा कहा गया उसका हर शब्द उसके क्रोध की थरथराहट से कांप रहा था मगर जिस प्यार से उसका हाथ उससे लिपटी उसकी माँ की पीठ को सहलाने मे व्यस्त था, उसके क्रोध की पहचान करना स्वयं उसके बस से बाहर था।
"मुझे तुम दोनों चाहिए ...बस मुझे तुम दोनों चाहिए" बेटे के सर्वदा उचित कथन के जवाब में वैशाली ने रट लगाते हुए कहा।
"हम हैं तो तुम्हारे साथ माँ, तुम अकेली कहाँ हो" अभिमन्यु अत्यधिक आश्चर्य से भरते हुए पूछता है, आखिर उसकी माँ क्यों बेवजह आशंकित है वह जानने का बेहद इच्छुक हो चला था।
"अधूरे नहीं, मुझे तुम दोनों पूरे चाहिए मन्यु। तुम्हारे पापा की तरह मुझे तुम भी पूरे चाहिए" वैशाली रुदन के स्वर मे बुदबुदाई, निश्चित वह रो पड़ने के बेहद नजदीक पहुँच चुकी थी।
"अच्छा तो क्या आज सुबह इसीलिए तुम मेरे कमरे मे नंगी-पुंगी चली आई थी?" अभिमन्यु ने जैसे विस्फोट किया, उसके विध्वंशक प्रश्न को सुन उससे लिपटी उसकी माँ क्षणमात्र मे ही उससे अलग होने का प्रयास करने लगती है मगर वह उसे खुद से लेशमात्र भी दूर नही होने देता बल्कि पहले से कहीं अधिक कसकर खुद मे समेटना शुरू कर देता है। आखिर उसे भी तो अपनी माँ से दूर हुए महीना बीतने को था, अब उसके एहसास नम नही होते तो फिर कब होते?
"तुमने चोरी छिपे मेरे मैसेज भी पढ़े माँ, बोलो क्यों किया तुमने ऐसा?" अभिमन्यु का यह लगातार दूसरा विस्फोट था और जिसे सुनने के बाद तो वास्तविकता मे वैशाली की आँखें झरने सी बहने लगी थीं।
"क्योंकि ...क्योंकि मैं चाहती हूँ कि तुम उन रंडियों को नही अपनी ...अपनी माँ को चोदो" वैशाली के रुंधे गले से अचानक बाहर आया यह विस्फोट उसकी पीठ पर कसे उसके बेटे के हाथों को भी अचानक ही शून्य मे परिवर्तित कर देता है और जो मरणासन्न हुए स्वतः ही नीचे गिर जाते हैं।
"हाँ मन्यु यह सच है बेटा, तुम्हारी माँ तुमसे चुदवाने को तड़प रही है मगर चाहकर भी वह पापी नही बन पा रही। तुम्हारी कसम खा कर कहती हूँ मेरे लाल, मैं हरपल सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे बारे मे ही सोचती हूँ। तुम्हें पूरी तरह से पाने की चाह मे मेरा तन और मन पागल सा हुआ जा रहा है, रह-रहकर मेरी चूत बस तुम्हें ही पुकारती रहती है इस आस मे की तुम वापस इसमे समा जाओ ...हमेशा हमेशा के लिए इसमे समाकर रह जाओ" वैशाली बोलती ही जाती यदि बीच मे ही अभिमन्यु के मोबाइल पर फोन नही आया होता, रिंगटोन उसके पिता के नंबर पर सेव थी और जिसे वैशाली भी खूब पहचानती थी।
"बस लौट ही रहे हैं पापा, टॉयलेट बहुत दूर था" कहकर वह कॉल कट कर देता है।
"अपने ये आँसू पोंछों माँ, तुम भी बात-बेबात रोना शुरू कर देती हो" अभिमन्यु अपने अंगूठों से अपनी माँ की नम पलकें पोंछते हुए उसे प्यार भरी डाँट लगाते हुए कहता था।
"मूतना है?" उसने पिछले कथन मे जोड़ा, जिसके जवाब मे फौरन वैशाली इनकार मे अपना सिर हिला देती है।
"कच्छी पहनोगी?" अभिमन्यु के नटखटी प्रश्न जारी रहे, उसकी माँ का इनकार भी कहाँ पीछे हटने वाला था।
"मेरा लंड चूसना है?" उसने लगातार तीसरा प्रश्न पूछा, इस बार ना चाहते हुए भी जाने क्यों वह जोरों से हँसने भी लगा था।
"धत्!" पहले बेटे का अश्लील प्रश्न तत्पश्चयात उसकी हँसी से लज्जित वैशाली उसकी बलिष्ठ छाती पर घूंसा जड़ते हुए कुनमुनाई।
"नौटंकी कहीं की ...अब चलो। दो जवान बच्चों की माँ होकर भी साड़ी के नीचे बिना कच्छी पहने यूँ सरेआम घूमती हो, शर्म तो तुम्हें आती नही वैशाली" बीते संपूर्ण जीवन मे प्रथम बार अपनी माँ के सम्मुख स्वयं उसी का नाम प्रत्यक्ष अपनी जुबान पर ला कर अभिमन्यु जितना संतोष खुद महसूस कर रहा था, वैशाली उससे कहीं अधिक संतुष्ट, बेहद हर्षित थी।
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