RE: Maa ki Chudai मा बेटा और बहन
अभिमन्यु एकांत मे बेहद गंभीर, मित्रों के साथ गुपचुप मगर अपने माता-पिता के सम्मुख सदा प्रसन्न बने रहने का हरसंभव प्रयत्न करता, तिहरा व्यक्तिव जीने को विवश वह नवयुवक जाने किस मिट्टी का बना था जो ऐसी अपरिपक्व उम्र मे भी वह मणिक और तो और अपनी माँ तक को भ्रमित करने मे पूर्ण सफल रहा था। हालांकि अपनी माँ के संग जुड़ी उसके जीवन की सर्वश्रेष्ठ यादें लेशमात्र भी उसके मन-मस्तिष्क से नही जा पाई थीं मगर उसके पिता की घर वापसी से उसकी माँ का अधूरापन मिट गया है, सदैव उसे खुश देखने की अपनी एकाकी चाह मे वह कभी खुद को दुखी नही होने देता। अब तो उसके आँसू भी उसे सुखद महसूस होने लगे थे, जो सोते-जागते मनमर्जी कभी भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवा देते और जिन्हें पोंछे बिना ही मानो वह पहले से अधिक प्रसन्नता से भर जाता।
वैशाली की दिनचर्या मे शामिल, सुबह अपने प्रियों को घर से रुखसत करना तात्पश्चयात पूर्ण नग्न अवस्था मे घर के सभी अधूरे काम पूरे करना, नियमित अपने बेटे के बिस्तर पर उसकी तकिया से लड़ना-झगड़ना, उस मूक वस्तु से अपने अनगिनती प्रश्नों के जवाब ना मिलने पर उसे खुद में समेटकर घंटों तक रोना, नग्न ही दिन का खाना बनाना, उसे गंदगी से खाना, खाते समय खिलखिलाना जैसे उस माँ के दिल का बोझ कम करने मे बहुत सहायक भूमिका निभा रहा था। हर शाम वह अभिमन्यु को पुनः पाने की अपनी विशेष चाह को भी अवश्य दोहराती, पति से पहले बेटे के लौट आने के इंतजार मे तबतक नग्न बनी रहती जबतक उसका इंतजार उसकी विवशता मे नही बदल जाता।
इस बीच माँ-बेटे को घर मे एकांतवास कम पर मिला जरूर था और उस वक्त यकीनन दोनों का हाल एक--सा कहा जा सकता था। दोनों चाहते थे कि अपनी-अपनी नाटकीय छव का रहस्य एक-दूसरे पर तत्काल खोल दें, एक-दूसरे को अपने अंक मे भरकर खूब रोयें, एक-दूसरे को डांटें-लड़ें, बेतहाशा एक-दूसरे को चूमें मगर प्यार और तड़प जब ज्यादा बढ़ जाए, मानवीय प्रवित्ति है कि मनुष्य शब्दविहीन हो जाता है। पहले आप--पहले आप की नवाबी इच्छा में दोनों मूक ही सारा समय व्यतीत कर देते, जिस वार्तालाभ की कोई आवश्यकता नही उसकी तो झड़ लगी रहती पर असल भावना दिल मे ही दबी रह जाती।
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मणिक की घर वापसी को सत्ताईस दिन बीत चुके हैं। आज सरकारी अवकाश है मगर आज भी उसे दफ़्तर मे अर्ध दिवस के रूप मे अपनी हाजरी लगानी थी। पति की घर निकासी होते ही वैशाली का हृदय एकाएक जोरों से धड़कने लगा, क्योंकि अपने आप उसके हाथ उसके बदन पर लिपटी साड़ी को खोलने लगे थे। साड़ी के बाद ब्लाउज, पेटीकोट, ब्रा और कच्छी एक के बाद एक लगातार वह अपने कांपते हाथों को रोकने का असफल प्रयत्न करती रही थी और इसके उपरान्त ना चाहते हुए भी उसके कदम भी स्वतः ही गतिशील हो जाते हैं।
बीते इन सत्ताईस दिनों के कष्टकारी एकांतवास के बाद यह प्रथम अवसर था जो वह अपने बेटे के समक्ष एक बार फिर से पूर्ण नग्न होकर पहुँचने वाली थी, हौले-हौले आगे कदम बढ़ाती खुद पर बेहद लज्जित होती वह अधेड़ नंगी माँ उस वक्त और भी अधिक शर्मिन्दगी का अनुभव करने लगती है जब उसके रोके से भी ना रुके उसके निरंतर गतिमान कदम वास्तविकता मे उसके बेटे के कमरे के खुले दरवाजे के भीतर प्रवेश कर जाते हैं।
अभिमन्यु नींद के आगोश मे गुम था। उसके बिस्तर के समीप पहुँचते-पहुँचते वैशाली ने जाना जैसे वह मीलों दौड़कर वहाँ पहुंच पाई हो, अपने करवट लिए लेते बेटे के मासूम से सोते चेहरे को निहारती उसकी माँ सावधानीपूर्वक अपनी दोनों कोहनियां बिस्तर के बाएं छोर पर टिकाकर तत्काल अपने घुटनों के बल नीचे फर्श पर बैठ जाती है। अभिमन्यु के कमरे मे उस वक्त सिर्फ दो ही आवाज गूँज रही थीं और वह थीं उसके चेहरे को टकटकी लगाए देखती उसकी माँ की अनियंत्रित चढ़ी उसकी जोरदार साँसों की, दूसरी उसके धुकनी समान धड़कते उसके दिल की।
"भाग जा यहाँ से छिनाल! अपने बेटे के नींद से जागने का इंतजार मत कर वर्ना आज वह तुझे कुतिया नही सीधे रंडी कहकर ही पुकारेगा। उठते ही तुझसे पूछेगा कि तेरी प्यास क्या तेरा पति अब भी नही बुझा पा रहा जो तू दोबारा अपने बेटे पर डोरे डालने नंगी उसके कमरे मे चली आई? भाग वैशाली, जो पाप तू जाने-अनजाने कर चुकी है उसे और ना बढ़ा भाग जा ...भाग! भाग! अरे भाग जल्दी यहाँ से रंडी! भागऽऽ!" सहसा वैशाली के अंतर्मन ने उसे जोरों से लताड़ा और जिससे घबराकर एकाएक वह माँ अपनी गांड के बल फर्श पर लुढ़क गई, उसकी कोहनियों की रगड़ से बिस्तर के गद्दे मे हुई हलचल अचानक उसके बेटे को शारीरिक हलचल प्रदान कर जाती है।
"देख वह उठा, भाग! जल्दी निकल यहाँ से वैऽशाऽऽलीऽऽऽ" उस नग्न अधेड़ माँ को पूरी तरह झकझोरे के लिए उसके अंतर्मन की यह लगातार दूसरी फटकार काफी थी और ऊपर से उसके बेटे का नींद मे कसमसाता शरीर देख तो मानो उसके रोंगटे खड़े हो गए थे, क्षणभर भी नही बीत पाया और अपनी गांड के चोटिल पटों की पीड़ा भूल वैशाली लंगड़ाती हुई सी बेटे के कमरे से बाहर निकल चुकी थी।
कुछ आधे घंटे पश्चयात अभिमन्यु अपने बेडरूम से बाहर आया और अपनी माँ को हॉल के सोफे पर बैठा पाता है। एक छोटा मगर प्यार सा गुड़ मॉर्निंग उसे कहकर वह सीधा किचन के भीतर आ पहुंचा और जब वापस आया तो उसके हाथों मे दो कप चाय थी।
"माँ चाय ..." अपनी बीती सर्वदा नीच हरकत पर लज्जित वैशाली अपने माथे को सहला रही थी जब अभिमन्यु उसके बगल मे बैठने से पूर्व चाय का एक कप उसकी ओर बढ़ाता है।
"पापा कहाँ हैं?" सोफे पर बैठते हुए उसने अपने पिछले कथन मे जोड़ा।
"वह ...वह ऑफिस गए हैं, उन ...उनका हॉफ डे है आज" चाहकर भी अपनी घबराहट को छुपाने मे नाकाम रही वैशाली कहते हुए आखिरकर हकला ही गयी थी।
"ओह! सब ठीक है न मॉम? सर दुख रहा हो तो बाम लगा दूँ" अभिमन्यु ने सामान्य से स्वर मे पूछा।
"न ...नही सब ठीक है, तुम्हारे लिए क्या नाश्ता बनाऊँ मन्यु? तुम्हारे पापा तो सिर्फ चाय पीकर ही निकल गए" उलटे वैशाली उससे सवाल करती है।
"कुछ नही। नहा-धोकर विशाल के रूम तक जाऊंगा, वहीं नाश्ता भी कर लूँगा और कुछ नोट्स भी लेने हैं उससे" अभिमन्यु ने बताया और चाय का अंतिम घूँट पीकर वापस अपने कमरे के भीतर चला गया।
"मैं क्या करूँ मन्यु, मुझे सचमुच तुमसे प्यार हो गया है बेटा" ठंडी चाय पकड़े बैठी वैशाली के बुदबुदाते होंठ बार-बार यही रट लगा रहे थे।
दोपहर को लंच के बाद मणिक अपने बेडरूम मे सुस्ता रहा था, अभिमन्यु तो कबका अपने कमरे के भीतर चला गया था, बाकी बची वैशाली जोकि थकहारकर हॉल के सोफे पर पसरी हुई थी। अचानक सोफे के पास की रूम टेबल पर रखे अभिमन्यु के मोबाइल मे बीप हुई, अपने ख्यालों मे खोई वैशाली के कानों ने भी उस ध्वनि को सुना मगर वह अलसाई तबतक अपना ध्यान उसपर पूरी तरह से केंद्रित नही कर सकी जबतक उसके बेटे का मोबाइल बार-बार बीप नही होने लगा।
"यार तेरे जाने के बाद हमसब ने आज रात फुलऑन मस्ती करने का प्लान किया है"
"तू भी उसमे शामिल रहेगा"
"3000 एंट्री फीस है"
"बियर, दारू, खाना, लड़की सबका इंतजाम हो चुका है"
"तीन झक्कास लौंडिया हैं, फुल नाईट मस्ती करेंगे"
"रिप्लाई कर फटाफट, हुआ तो चौथी भी बुलवा लेंगे"
"सारे रंडीबाज आज खुलकर धूम मचाएंगे, वैसे भी नेक्स्ट वीक से एग्जाम्स चालू हैं तो बॉडी और माइंड का रिलैक्स करना बनता है यार"
"वेटिंग फॉर योर रिप्लाई, बता फटाफट"
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