Maa ki Chudai मा बेटा और बहन
01-06-2019, 11:16 PM,
#33
RE: Maa ki Chudai मा बेटा और बहन
नयी सुबह की पहली किरण के साथ वैशाली की दैनिक गृहस्त दिनचर्या आरंभ हुई। नींद खुलने के पश्चयात तत्काल उसने मणिक की नग्न बाहों से मुक्त होना चाहा मगर एक लंबे अंतराल के उपरान्त मिले पति के शारीरिक सुख से आनंदित वह चाहकर भी उसके अंक से खुद को मुक्त नही कर पाती, बल्कि बरसों बाद पति संग बिस्तर पर पूर्ण नग्न होकर सोने के विचार ने उस अधेड़ नारी को अद्भुत रोमांच से भर दिया था।

बीती रात हुई घमासान चुदाई से जर्जर अपने बदन की कष्टप्रद पीड़ा को भुलाकर अपने पति की बलिष्ठ नग्न छाती को चूमती वैशाली कब उसके थुलथुले पेट, तात्पश्चयात उसके सुशुप्त लंड को चूमना शुरू कर चुकी थी उसे स्वयं होश ना था। बस एक चाह कि उसके पति को इस नयी-नवेली सुबह के आगमन पर नींद से जगाने का इससे उत्तम विकल्प और क्या हो सकता है, वह अपने परिपक्व होंठों से उसके मुरझाए लंड को बड़े ही प्रेमपूर्वक ढंग से चूसना आरंभ कर देती है।

अपने लंड मे भरती अकस्मात् चेतना के परिणामस्वरूप मणिक भी जल्द ही नींद की खुमारी से बाहर निकल आया और वैशाली के कंधों को थाम उसे फौरन अपनी नग्न छाती से चिपकाकर वह उसके कोमल होंठों को चूमने, उन्हें कठोरतापूर्वक चूसने लगता है। एक बार फिर पति-पत्नी सहवास के अतुलनीय आनंद में खो गए थे, कभी मणिक ऊपर तो कभी वैशाली, उनकी गुत्थम-गुत्थी से रात्रिपश्चयात दोबारा उनका बिस्तर चरमराने लगा था, उनकी उत्तेजक कराहों से पुनः उनका शयनकक्ष गूंजने लगा था।

बाथरूम मे नहाती वैशाली उस वक्त चौंक--सी गई थी जब उसके आधे-अधूरे स्नान के बीच ही मणिक ने उसे पीछे से दबोच लिया था, हमेशा एकांत मे नहाने वाली उस अधेड़ पत्नी की शर्म दूनी होते देर नही लगती क्योंकि बीते जीवन मे पहली बार उसे उसके स्नान के मध्य चोदा जाने लगा था। अतिशीघ्र पति-पत्नी के गीले बदन से भाष्प पैदा होने लगी थी, उनकी शारीरिक तपन ने एकाएक बाथरूम को मानो घने कोहरे से भर दिया था।

साथ स्नान करने के पश्चयात आज बरसों बाद जहाँ मणिक अपने पसंदीदा कुर्ते-पाजामे को पहन लेता है वहीं उसके जोर देने पर वैशाली पूरे श्रृंगार के साथ एक लाल साड़ी का जोड़ा पहन लेती है। उत्साहित दंपति अपने बेडरूम से बाहर आए तो पाया उनका बेटा हॉल के सोफे पर पूर्व से तैयार होकर बैठा था, यकीनन इस इंतजार मे कि कब उनके घर नाश्ता बने और जिसे खाकर वह जल्द से जल्द अपने कॉलेज को रवाना हो जाए।

बीती रात मनभरकर सोने की वजह से अभिमन्यु का चेहरा भी अपने माता-पिता के चेहरे की भांति खुशमय, बेहद चहका हुआ था और जिसे कुछ पल विस्मय से देख वैशाली फौरन किचन के भीतर प्रवेश कर जाती है। हॉल मे होते पिता-पुत्र के सामान्य से वार्तालाभ ने उस अधेड़ पत्नी व माँ को आश्चर्यचकित ही नही किया था, बल्कि वह इस विषय पर वह ज्यादा हैरान थी कि बीती रात और सुबह अपने पति संग बिताए अंतरंग क्षणों मे क्षणमात्र को भी उसका ध्यान अपने बेटे की ओर नही भटक पाया था। शायद उस माँ की शारीरिक व मानसिक अतृप्तता की हरसंभव पूर्ती होना शुरू होते ही उसकी संस्कारी मर्यादित छव भी स्वतः ही पुनः लौट आई थी।

आज नाश्ते मे अभिमन्यु के पसंदीदा इंदौरी पोहे बने थे और जिन पर वह किसी राक्षस सा टूट पड़ा था, खैर बीती रात का भूखा वह जवान मर्द आखिर कब तक अपनी मुख्य शारीरिक भूख को उपेक्षित कर सकता था। एक अन्य विशेष कारण था नींद से जागने के उपरान्त उसका मनन, उसका धैर्यपूर्ण चिंतन और जिसमे उसने अपनी माँ को मानसिक कष्ट ना पहुंचाने का खुद से भीष्म प्रण किया था। वह अच्छे से जानता था कि यदि वह अपनी माँ के समक्ष उदास बना रहेगा या खाने-पीने मे लैतलाली बरतेगा तो उसकी माँ यह कदापि सह नही पाएगी, लंबे अंतराल के बाद उसे मिला उसके पति का साथ भी खुद ब खुद चिंता, कष्ट व नीरसता से भरा रह जाएगा। पूरे नाश्ते के दौरान ही वह हँसता रहा था, मुस्कुराता रहा था और पिता के साथ उसने अपनी माँ को भी अपने हास्यपूर्ण वार्तालाभ मे शामिल कर लिया था।

"लेट आऊंगा माँ और लंच कैंटीन मे ही कर लूँगा" प्रसन्नता भरे स्वर मे अपनी माँ को संबोधित कर आखिरकार वह घर के मुख्य द्वार से बाहर निकल जाता है।

बेटे के विदा लेते ही मणिक एकबार फिर वैशाली पर टूट पड़ता है, यह जानते हुए भी कि अभी उनके फ्लैट का मुख्य द्वार ज्यों का त्यों खुला हुआ है जैसे उसे कोई खासा फर्क नही पड़ा था। जैसे तैसे वैशाली दरवाजे को बंद कर पाती है और पीछे पलटते ही अपने पति को उसके पाजामे के बंद नाड़े से उलझता पाती है।

"ब ...बस अब और ...और नही जी" वह आशंकित स्वर मे हकलाते हुए बोली, निकट भविष्य की सोच ने उसका चेहरा घबराहट से नीचे फर्श की ओर झुका दिया था, उसके पैर जहाँ वह खड़ी थी वहीं जमे रह गए थे।

"अरे आओ ना जान, एक-आध राउंड और हो जाए" पाजामे को उतार चुका मणिक उसे खुद से दूर उछालते हुए बोला, उसके स्वर उत्तेजना से कहीं अधिक शरारत से भरपूर थे।

"आप ...आपको देरी हो जायेगी, लौटकर कर ...." अत्यंत शर्मसार वैशाली अपना कथन तक पूरा नही कर पाती, इसकी एकमात्र वजह थी उसके ताउम्र अनुशासित रहे पति का अविश्वसनीय व्यक्तिव बदलाव। अकस्मात् उसके मन-मस्तिष्क मे अपने जवान बेटे संग पूर्व मे बिताए अमर्यादित पलों का कतरा-कतरा उमड़ पड़ा था, वह स्वयं हैरान थी कि बीती दोपहरी कैसे वह अपनी पूर्ण नंगी अवस्था मे अभिमन्यु की गोद मे बैठकर इसी हॉल मे बेशर्मों की भांति खिलखिलाते हुए खुद उसीके हाथों से दिन का खाना खा रही थी और अभी इस तात्कालिक समय मे अपने पति के सम्मुख उसकी लज्जा का कोई पारावार शेष ना था।

"अच्छा-अच्छा ठीक है डार्लिंग, पर कम से कम इसे चूसकर तो शांत कर दो वर्ना दिनभर दफ़्तर मे बेवजह तड़पता रहूँगा" कहकर निचले धड़ से नंगा हो चुका मणिक आनन-फानन मे उनके बेडरूम के भीतर प्रवेश कर जाता है, एकाएक वैशाली के मन मे टीस उठी कि क्यों ना वह उससे यहीं इसी हॉल मे अपने लंड को चुसवाने का कार्य पूरा करवाता। शायद इसी बहाने वह अपने बेटे संग बिताए रोमांचक पलों से, अपने पति संग बीतने वाले पलों का अंतर स्पष्ट कर पाती और जो यकीनन उसे भविष्य की राह चुनने का अवसर प्रदान मे सहायक सिद्ध होता।

एक नही बल्कि दो बार लगातार अपने लंड को अपनी पत्नी के परिपक्व सुन्दर मुँह से चाटने-चुसवाने के बाद मणिक भी खुशी-खुशी अपने दफ़्तर निकल गया, पीछे रह गई अपने मुँह मे पति के ताजे वीर्य को सहेजी वैशाली। प्रथम वीर्यउत्सर्जन के पश्चयात वह बाथरूम के सिंक मे उसके वीर्य को थूंक चुकी थी मगर दूसरी बार का साक्ष्य अब भी उसके मुँह के भीतर ज्यों का त्यों भरा हुआ था। बरसों बाद उसे अपने पति की बरकरार मर्दानगी का पुनः एहसास होता है और जिससे आनंदित वह पहली बार उसके वीर्य को चखने पर विचारमग्न होने लगती है मगर जल्द ही उसकी तन्द्रा टूटी और और दोबारा उसके कदम बाथरूम की ओर बढ़ जाते हैं, उसके विचारों को भंग करता अभिमन्यु का विशाल लंड व उसके जवान गाढ़े वीर्य से लबालब भरे उसके अत्यधिक प्रभावशाली टट्टे सहसा उसकी अधेड़ माँ की बंद आँखों मे विचरण कर गए थे।

"तुम जिद्दी हो मन्यु तो तुम्हारी माँ तुमसे भी ज्यादा जिद्दी है। जब तुम मेरी खुशी के लिए खुद खुश बने रहने का नाटक कर सकते हो तो मैं भी खुद से किये अपने वादे को जरूर निभाऊंगी, मर्दाने वीर्य का स्वाद कैसा होता है? यह मैं सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे वीर्य को चखकर महसूस करूंगी। माना कि अब यह जरा भी मुमकिन नही तो तुम्हारे पापा का वीर्य भी कभी मेरे गले से नीचे उतरना संभव नही" तत्काल अपना मुँह धोकर वैशाली कुछ इसी सोच के साथ घर की साफ-सफाई मे जुट जाती है। डाइनिंग टेबल साफकर उसने किचन की ओर अपना रुख किया, लबालब भरे डस्टबिन का कचरा बड़े से पॉलीबैग मे उड़ेलते वक्त उसकी नजर एकाएक उस छोटे पॉलीबैग पर आकार ठहर जाती है जिसे उसकी सोच-अनुसार कतई भरा नही होना चाहिए था।

"जनाब ने पिज्जा मंगवाया तो जरूर पर खाने की जगह डस्टबिन मे फेंक दिया, तभी मैं सोचूँ सुबह-सुबह मेरे लाल मे अचानक कुम्भकरण कैसे घुस गया था?" वैशाली ने मन ही मन सोचा। जहाँ कई दिनों बाद नाश्ते को संतुष्टिपूर्वक खाते अभिमन्यु का जिक्र उसे प्रसन्न होने पर विवश कर रहा था वहीं पिछली रात को भूखा सोया वह अपनी माँ की आँखों को नम करने से भी बाज़ नही आया था। किचन के बाद घर मे झाडू-पोंछा कर वैशाली पुनः अपने बेटे के शयनकक्ष के भीतर प्रवेश कर जाती है, जिसे कुछ क्षणों पहले ही उसने झाड़ा-पोंछा था।

अभिमन्यु के बिस्तर पर बिछी सिलवट भरी चादर को एकटक देखते हुए वैशाली कब नग्न हो चुकी थी वह स्वयं नही जान पाती, उसके मस्तिष्क से उसके शरीर का जुड़ाव मानो पूरी तरह से टूट गया था। अपने पति के समक्ष रहकर जिस स्त्री ने बीते चार पहरों तक पलभर को भी अपने बेटे का ध्यान नही कर पाया था, पति से बिछड़ते ही पुनः खुद को तिरस्कृत महसूस करते हुए पूर्णरूप से अपने बेटे के ख्यालों मे डूब गयी थी।

"ओह मन्यु! ऐसा क्या हो गया तो एकाएक तुम अपनी माँ से इतना दूर हो गए, क्या मेरे पति का वापस लौटना तुम्हें नागवार गुजरा है?" अभिमन्यु के बिस्तर पर लेटी वैशाली उसकी तकिया मे अपना मुँह घुसाए जैसे उसकी शारीरिक मर्दाना गंध से ऐसा भाव-विह्वल प्रश्न पूछती है, उस प्राणहीन तकिया से भला उस व्याकुल माँ को क्या उत्तर मिलना था। उत्तरप्राप्ति ना होने के पश्चयात क्रोध व उद्विग्नता के सम्मिश्रण से आहत अतिशीघ्र वह बेटे की तकिया को अपनी अपनी नग्न बाँहों और टाँगों के मघ्य कसकर जकड़ इस बुरी तरह रोने लगती है, मानो उसका सर्वस्व ही लुट गया हो।

लगभग पूरी दोपहरी ही वैशाली रोती रही, सिसकती रही, मर्मस्पर्शी आहें भरती रही और जब फिर भी बेटे संग बिताई खुशनुमा यादें उसका पीछा नही छोड़तीं तब वह बोझिल भाव से अभिमन्यु के बिस्तर से नीचे उतर नंगी ही किचन के भीतर पहुँच जाती है। खाने का उद्देश्य महज पेट भरना नही माना जा सकता, तृप्ति, संतुष्टि से सिर्फ पेट ही नही बल्कि तन, मन, धन सबकुछ अपने आप ही भर जाता है और शायद इसी प्रचिलत कहावत की सत्यता से ओतप्रोत बीते दिन की भांति आज भी वैशाली अपनी पूर्ण नग्न अवस्था मे ही खाना बनाने मे तल्लीन हो जाती है। हालाकिं आज वह घर मे अकेली थी मगर उसके अपने कामुक यौन अंगों को खुजलाते, सहलाते, ऐंठते हुए अपने उन्हीं गंदे हाथों से उसका लगातार अन्न को छूते जाना नही छूटा।

खाना खाते वक्त भी वैशाली उसी कुर्सी पर बैठी जिस पर बीते कल अभिमन्यु ने उसे अपनी गोद मे बिठाकर खुद अपने हाथों से खाना खिलाया था, उस वक्त की उसके बेटे की शैतानियां व उसके ठहाकों की गूँज भले ही इस तात्कालिक समय मे उस माँ के कानों में प्रत्यक्ष रस नही घोल पा रही थी मगर वह स्वयं अपनी शैतानियों से उत्पन्न ठहाके को अवश्य ही सुन सकती थी और वहाँ हो भी कुछ ऐसा ही रहा था। खाने का हर निवाला अपने मुँह के भीतर पहुंचाने से पूर्व वैशाली अच्छी तरह उसे अपनी रज से तर करती और फिर खिलखिलाते हुए वह दूषित निवाला बड़े चाव से चबाकर उसे अपने गले से नीचे उतारना शुरू कर देती।

एकबार फिर वही साफ-सफाई। शाम के साढ़े पांच बज चुके थे, अपने कहे मुताबिक अभिमन्यु अबतक घर नही लौटा था। अभी भी नग्न हॉल के सोफे पर बैठी वैशाली घड़ी-घड़ी दीवार पर टंगी घड़ी की ओर ही देख रही थी, बार-बार उसके थरथराते होंठों से बस एक-सा स्वर फूट रहा था कि काश उसका बेटा उसके पति के लौटने से पहले घर लौट आये और अपनी माँ को उसकी याद मे क्षणमात्र को ही सही पर उसकी पूर्ण नंगी अवस्था मे देख ले, फिर चाहे अत्यंत तुरंत ही वह अपनी नग्नता को ढांक लेगी।

"तुम चाहे जो भी सोचो मन्यु, तुम्हारी माँ दोबारा तुम्हें पाकर रहेगी और फिर कभी अपने से दूर नही होने देगी" अभिमन्यु के कमरे के भीतर अपने पूर्व में उतारे वस्त्रों को पुनः पहनती वैशाली के स्वर मे दृढ़ता और सुर्ख आँखों मे विश्वास की अखंड लालिमा चमक रही थी।

पिता-पुत्र के लगभग समानांतर घर लौटने के पश्चयात आपस मे उनके अजूल-फिजूल व कुछ जरूरी वार्तालाभ, शाम की चाय और रात का खाना, सबकुछ जैसे अपने समय से निपट चुका था। अभिमन्यु से वैशाली और वैशाली से अभिमन्यु, दोनों एक-दूसरे से इस खुशनुमा अंदाज मे बातचीत कर रहे थे जिसमे मणिक क्या वह स्वयं खोट नही निकाल सकते थे। उनके नाटक को देख कौन कह सकता था कि उनके बीच कितना अधिक विस्फोक तनाव पसरा हुआ था, उनके भाव कितने अधिक विह्वल थे, उनके हृदय कितनी अधिक ज्वलंतता से जल रहे थे।

रातभर उनके बेडरूम के बिस्तर चरमराते रहे, फर्क सिर्फ इतना--सा था कि जहाँ अभिमन्यु का बिस्तर सारी रात उसके करवट बदलते रहने की वजह से चरमराता रहा था वहीं मणिक के बलिष्ठ शरीर के नीचे दबी वैशाली की चूत मे देर राततक निरंतर लगते रहे उसके पति के विशाल लंड के हाहाकारी झटकों से उनके बिस्तर के साथ खुद वह भी चरमरा उठी थी।
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मणिक की घर वापसी को पन्द्रह दिन बीत चुके हैं। वह पहले से कहीं अधिक खुश है, अपनी इस नई-नवेली दिनचर्या से बेहद संतुष्ट है। दिन मे दफ़्तर के सामजिक, शाम को पारिवारिक और रात को अपने निजी व गोपनीय विवाहित जीवन का लुफ़्त उठाना भला कितने अधेड़ों को प्राप्त होता है, जब-तब बेटी अनुभा की कुशल-क्षेम भी उसे अत्यंत आनंदित कर जाती।
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RE: Maa ki Chudai मा बेटा और बहन - by sexstories - 01-06-2019, 11:16 PM

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