Maa ki Chudai मा बेटा और बहन
01-06-2019, 11:15 PM,
#30
RE: Maa ki Chudai मा बेटा और बहन
"यहाँ नही मन्यु ...बाथरूम ही ठीक रहेगा बेटा" असंतुष्ट वैशाली की विनय दोबारा गतिशील हो चुकी थी। अभिमन्यु ने उसके मूत्रउत्सर्जन को देखने हेतु जबरन उसे किस शर्मनाक आसान मे ढाल दिया था, माना कि अब उसके पेशाब से बिस्तर के गीले हो जाने के आसार लगभग समाप्त हो गए थे मगर बाथरूम के भीतर बैठकर मूतने और बिस्तर पर लेटे-लेते मूतने का अंतर उस माँ की मानवीय उत्तेजना को एकाएक पैश्विक हिंसा मे परिवर्तित कर जाता है।

"अब कोई ना नुकुर नही मम्मी वर्ना अब जरूर मैं तुम्हारे यह गोरे-गोरे पोंद चबा जाऊंगा या तुम्हारी गांड के इस कुँवारे छेद के अंदर जबरदस्ती अपनी जीभ घुसेड़ दूँगा। बस अब मूत दो, तुम्हारे मूत की धार को सामने की उस दीवार से टकराते हुए देखना है मुझे। मूतो माँ मूतो ...शूऽऽऽऽ" अभिमन्यु के पूर्णतः निषेध वाक् प्रयोग के जवाब मे अकस्मात् वैशाली का तन उसके मस्तिष्क का साथ छोड़ देने को विवश हो गया और एक लंबी सीत्कार के साथ उसकी चूत के आपस मे सटे होंठ भी स्वतः ही खुल जाते है।

"फिसश्श्ऽऽ सश्श्श्ऽऽऽ" एक विशेष मधुर ध्वनि जिससे वैशाली का परिचय तो उसके बचपन से था मगर अभिमन्यु के कानों मे अचानक रस घुलने लगा था। उस नवयुवक के दिल की धड़कने सहसा रुक--सी जाती हैं जब वह वास्तविकता मे अपनी माँ की चूत के चिपके चीरे को चीरकर तीव्रता से बाहर निकले उसके मूत्र के लंबे फव्वारे की आरंभिक चोट को सीधे बिस्तर के सामने की दीवार से टकराते हुए पाता है, अपने मृत होते ह्रदय को जीवंत बनाए रखने के लिए वह नया नवेला मर्द बलपूर्वक अपनी छाती पर ताबड़तोड़ घूंसे जड़ने लगता है।

"मत मन्यु, मेरा ...मेरा हाथ पकड़ो" अपने बेटे को खुद की ही छाती पर मूसल आघात करते देख वैशाली उसकी ओर अपना बायां हाथ बढ़ाते हुए सिसकी और जैसे अभिमन्यु को अपनी माँ के इसी सहारे की तलाश थी, वह तत्काल उसके बाएं पंजे को अपने दोनों हाथों के बीच कस लेता है।

"अपनी माँ की बेशर्मी पर तुम्हें खुद को सजा देने का कोई हक नही मन्यु। बस चुपचाप देखो तुम्हारी माँ कैसे मूतती है, उसके फटे भोसड़े से छलककर उसका सूसू कैसे बाहर आता है" कमरे मे पसरे अत्यंत तनावपूर्ण वातावरण, अपने सहमे बेटे और स्वयं को संयत करने के प्रयास मे हँसते हुए उसने पिछले कथन मे जोड़ा मगर अभिमन्यु की फट पड़ी आँखें तो मानो उसकी माँ की चूत से भलाभल बहते उसके गरमा-गरम मूत्र की मोटी धार को विस्मय से देखते रहने में झपकना भी भूल चुकी थीं।

"मेरी सीटी तुम्हारे पापा ने पंचर कर दी है मन्यु। यह दिन हमारे जीवन मे आएगा अगर ऐसा पता होता तो अनुभा की शादी होने से पहले तुम्हें उसकी कुंवारी सीटी जरूर सुनवाती, हम माँ-बेटी एकसाथ तुम्हारे सामने मूतते और हमारे मुतास कॉम्पिटिशन के मेन जज होते तुम्हारे पापा" जाने क्या सोचकर वैशाली के मुँह से ऐसी विध्वंशक बात बाहर निकल आई और जिसे सुन तत्काल जहाँ अभिमन्यु अपनी हैरत भरी आँखें अपनी माँ की मूतती चूत से हटाकर उसकी मादक आँखों से जोड़ देने पर मजबूर हो जाता है वहीं वैशाली की गांड के छेद पर अविलंब झटके लगने लगते हैं, जो प्रमाण था कि उसके मूत्रउत्सर्जन के अब कुछ अंतिम पल ही शेष बाकी थे।

"ठीक ही तो किया उन्होंने जो तुम्हारी चूत पंचर कर दी, अब यह पंचर कभी जुड़ नही सकता और ना ही इसमें आगे होने वाले पंचरों का उन्हें कभी पता चलेगा। वैसे मुझे यह ठरक तुम्हीं से मिली है माँ, लगता है अपने इस नए मर्द को तुम जल्दी ही मादरचोद भी बना दोगी" इसबार अभिमन्यु मुस्कुराते हुए बोला क्योंकि अपने ही पिछले अश्लील कथन पर उसकी माँ का सुर्ख चेहरा अचानक से पीला पड़ गया था, माँ-बेटे के बीच का ऐसा प्रेम, लगाव, खुलापन ना ही उसने कभी किसी कहानी मे पढ़ा था और ना ही किसी पोर्न वीडियो मे देखा था। वह एकाएक गर्व से भर उठता है, जब उसके बचकाने मस्तिष्क में उनका व्यभिचारी सम्बन्ध उसे कोई नया इतिहास बनाता हुआ--सा नज़र आता है।

"धत्! लगाऊंगी एक अगर फिर कभी मुझे अपनी औरत बोला तो। मैं अपने पति माणिकचंद गुटखे की थी, हूँ और हमेशा रहूंगी" वैशाली की खोई हुई हँसी भी फौरन लौट आई, कुछ असर इसका भी अवश्य था कि अब वह अनचाहे मूत्रदबाव से पूरी तरह मुक्त थी।

"एक क्या दो ...चार ...दस लगा लेना मम्मी मगर यह मत भूल जाना कि घर के भेदी ने ही कभी लंका तक की लंका लगवा दी थी। कभी माणिकचंद जी ने तुम्हारी जिस चूत मे सेंध मारी थी, मैं भी उसमें सेंध लगाने के नजदीक ही हूँ। खैर तुम्हारी दोस्त सुधा को तो मैं पक्का चोदूँगा, अब तुम्हारी चूत नही मिलेगी तो मैं कैसे अपनी गर्मी शांत करूँगा भला" अभिमन्यु अपनी माँ के टांगों पर बनाए अपनी हथेलियों के दबाव को खत्म करते हुए बोला, उसने जानबूचकर अपने कथन मे सुधा को घुसेड़ा था ताकि अपनी माँ के चेहरे पर आए या आने वाले बदलाव पर अपनी परिपक्व नजर रख सके।

"किसी के पास जाने की जरुरत नही तुम्हें, मैं जल्द से जल्द तुम्हारी गर्मी शांत करने का हल भी ढूंढ लूँगी। वादा करो मन्यु, मुझसे बिना पूछे अब ना तो दोबारा तुम उन बाजारू रंडियों के पास जाओगे और ना ही उस कमीनी सुधा के पास वर्ना ...." कहते-कहते एकाएक जबड़े मिसमिसा जाने से वैशाली चुप हो गई, अभिमन्यु को जो बदलाव देखना था जाने-अनजाने उसकी माँ ने उसे दिखा दिया था। जलन की प्रारंभिक तपन से उसकी माँ को यह आभास भी नही हो पाया था कि उसकी टाँगें अबतक ज्यों की त्यों उसकी छाती से चिपकी हुई थीं जबकि अपनी हथेलियों की गिरफ्त से वह कबका उन्हें आजाद कर चुका था। उसने यह भी स्पष्ट देखा कि मनचाहे मूत्रउत्सर्जन के उपरान्त भी उसकी माँ की चूत से चिपचिपे द्रव्य का बहना निरंतर जारी था, जो कि पूर्ण साक्ष्य था कि अभी भी उसकी माँ के भीतर उत्तेजना के कण बचे थे।

"मेरी गर्मी निकालने का कोई हल निकले या ना निकले माँ पर तुम्हारी गर्मी अभी पूरी तरह से नही निकल पाई है, देखो तुम्हारी चूत अभी भी झरने सी बह रही है" कथन उवाच से पूर्व अभिमन्यु बड़ी चतुराई से बिस्तर से नीचे उतरने मे सफल हो गया था और ज्यों ही उसने अपनी विचारमग्न माँ का ध्यान उसकी रिसती चूत के मुहाने पर केंद्रित किया, इससे पहले कि वैशाली अपनी टाँगों को यथावत नीचे कर वास्तव मे अपनी चूत का मुआयना कर पाती अकस्मात् वह अपना सम्पूर्ण चेहरा अपनी माँ के वर्जित अंग से रगड़ना आरंभ कर देता है। कोई घिन नही और ना ही कोई दुर्गंध, अब तो मानो उसे अपनी माँ को अपनी जिह्वा व होंठों से मुखमैथुन का अतुलनीय सुख पहुंचाने भर से सरोकार रह गया था।

"उफ्फ् मन्यु! अगर ऐसा कर तुम्हारा मन अपनी माँ की चूत से खेलना भर है तो मैं विनती करती हूँ, मुझे वहाँ मत छेड़ो ...मैं तुम्हारी छेड़खानियां और बरदाश्त नही कर पाऊँगी बेटा" वैशाली पीड़ा के स्वर मे बुदबुदाई। एकबार पुनः अपने बेटे के चेहरे को अपनी स्पंदनशील चूतमुख पर दबते महसूस कर सहसा उस माँ की जिह्वा लड़खड़ा गई थी, अपने यौवनांग पर बेटे की गर्म साँसों के असंख्य झोंके उसे अतिप्रबलता से उन्माद भरी सीत्कार भरने पर मजबूर कर गए थे, उसके निचले नंगे धड़ में अचानक अकल्पनीय लचक आने लगी थी।

"आँऽऽहाँ!" अपनी माँ की विनती के जवाब मे अभिमन्यु गुनगुनाया और अतिशीघ्र उसके लचकते निचले धड़ को स्थिर करने के उद्देश्य से वह उसकी मांसल गांड के दोनों पटों का कंकपकपाता मांस अपनी विशाल हथेलियों मे बलपूर्वक जकड़ लेता है। माना मुखमैथुन संबंधी क्रियाओं मे उस नवयुवक की परिपक्वता ना के बराबर थी मगर दृढ़ता, एकाग्रता और विश्वास उसमे कूट-कूट कर भरा हुआ था और यही कारण रहा जो वह अपने मन के घोड़ों का रुख तीव्रता से इंटरनेट पर अबतक देखे पोर्न की ओर मोड़ देता है। उसने कहीं पढ़ा था कि जो लोग रतिक्रिया की परिभाषा से अंजान रहते हैं, उत्सुकतावश उनकी पहली चुदाई ही उनके जीवन की यादगार चुदाई बन जाती है।

अभिमन्यु जानता है कि उसकी माँ कामुत्तेजना के शिखर के बेहद करीब खड़ी है, उसकी सकुचाती चूत से अनियंत्रित रस का रिसाव अभी से इतना तीव्र हो चुका है मानो उसकी लपलपाती जीभ का पहला स्पर्श भी वह नही झेल सकेगी। उसके धुकनी समान धड़कते दिल की धड़कनें तेजी से बहुत तेज होती जा रही हैं जिन्हें वह इतनी दूर से भी स्पष्ट अपने कानों मे गूंजता महसूस कर पा रहा है और उसके बदन की तपन का तो जैसे कोई पारावार ही शेष नही है।

"मैंने कहा ना बंद करो ये छेड़छाड़ मन्यु। जानकार भी अनजान बनना अच्छी बात नही बेटा, मुझपर इस वक्त क्या बीत रही है तुम सोच भी नही सकते" अपने बेटे के चेहरे को अपनी चूत के मुहाने पर सोता--सा समझ वैशाली पुनः बड़बड़ाई। अपनी माँ की कष्टकारी अनय को दोबारा सुन अकस्मात् अभिमन्यु की खोई चेतना वापस लौट आती है और बिना कुछ सोचे-विचारे वह अपनी माँ की चूत के बेहद सूजे होंठों को पटापट चूमना आरंभ कर देता है, तात्पश्चयात अत्यंत तुरंत उसके होंठ खुल गए और उसकी लंबी जिह्वा उसकी माँ की चूत से बाहर बहते उसके गाढ़े रस को अविलंब चाटने मे जुट गई। उसने प्रत्यक्ष जाना कि उसकी माँ के बदन की सुगंध समान उसका कामरस भी उतना ही सुगंधित है और जिसका अहसास जल्दबाजी मे वह पहले नही कर पाया था बल्कि अकबकाई से उसके मस्तिष्क मे एक तरह की घृणा--सी पैदा हो गई थी मगर अब उसकी वही घृणा मंत्रमुग्ध कर देने वाले आनंद मे परिवर्तित हो चली थी।

"चाटो मन्यु उन्घ्! अब ...अब अधर मे मत लटकाना अपनी माँ को। बचपन मे मैंने तुम्हें अपना दूध पिलाया था आज मेरी दिली इच्छा है कि मेरा जवान बेटा मेरी चूत से बहती मेरी रज पिये। तुम ...तुम भी तो यही चाहते हो ना मन्यु, तो चूस लो सारा रस अपनी माँ का, आहऽऽ! सुखा दो आज पूरी तरह से उसकी चूत को" पराये मर्द का अनैतिक स्पर्श, आंतरिक पीड़ा, निराशा, अखंड उत्तेजना आदि मिले-जुले संगम से ओतप्रोत वैशाली जोरों से चिल्लाई। अपनी माँ की पापी इच्छा के सम्मान मे अभिमन्यु तत्काल अपनी जीभ से उसकी चूत के चिपके चीरे को चीरते हुए उसे उसके अत्यधिक संकुचित मार्ग के भीतर ठेलने का प्रयत्न करता है मगर ज्यादा भीतर तक अपनी जीभ घुसेड़ नही पाता और तभी उसे ख्याल आया कि नीली फिल्मों मे उंगलियों का भी हरसंभव प्रयोग किया जाता है, इसी विचार से वह अपनी माँ की गांड के दाएं पट को छोड़ फौरन उसकी जांघ अपने दाहिने कंधे पर टिकाने के उपरान्त अपनी दाहिनी मध्य दो उंगलियां एकसाथ कठोरतापूर्वक उसकी चूत के भीतर गहरायी तक ठूंस देता है।

"आईऽऽ! तुम्हारे पापा ने मेरी चूत का ऐसा तिरस्कार किया है मन्यु कि पिछले बीस दिनों से इसका सूनापन मैं चाहकर भी भर नही पाई, मेरी ...मेरी उंगलियां छोटी हैं, अंदर तक नही जा पातीं। उफ्फ्! तुम ...अब तुम ही इसका सूनापन मिटा सकते हो मेरे लाल, उफ्फ्ऽऽ! और ...और अंदर, जबरदस्ती पूरा हाथ घुसेड़ दो अपनी माँ की चूत मे मन्युऽऽऽ" बीते एकांत समय को सोच वैशाली हाहाकार करने पर विवश हो जाती है, जिसके साथ ही अभिमन्यु अपनी उँगलियों को अपनी माँ की संकीर्ण चूत के भीतर विपरीत दिशा मे चौड़ा देता है। अकस्मात् उसे चूत की अंदरूनी बेहद लाल त्वचा स्पष्टरूप से नजर आने लगी, उसकी माँ की साँसों के लगातार उतार-चढ़ाव से उसकी चूत का अत्यंत नाजुक मांस जीवंत फड़फड़ाता महसूस होता है, जिसपर तीव्रता से होते कंपन ने उस नवयुवक के मुलायम होंठ स्वतः ही कठोर कर दिए और वह अपने होंठों की कठोरता से चूत के भीतर छुपी उसकी माँ की गाढ़ी स्वादिष्ट रज सुड़कते हुए उसे अपने मुँह मे एकत्रित करने लगता है। बिस्तर पर तड़पती वैशाली अपने बेटे के इस ज्वलंत कार्य पर अचानक रुआंसी हो पड़ी थी, उस माँ का रोम-रोम चीख-पुकार मचाने लगा था और मदहोशीवश वह अपने दांतों के मध्य अपना निचला होंठ दबाते हुए अपने दोनों मम्मों को बलपूर्वक गूंथना शुरू कर देती है।

"और ...और जोर से मन्यु, ओहऽऽ! चूसकर सुखा डालो मेरी चूत को। आईईईऽऽऽ पागल ...मैं पागल हो जाऊंगीऽऽ" वैशाली की निरंतर कामुक सिसकारियों से अभिमन्यु को अपने अपरिपक्व कार्य की इतनी मनमोहक प्रतिक्रिया मिल रही थी जिससे अभिभूत वह अपनी जीभ पहले से कहीं अधिक उत्साह से अपनी माँ की चूत के भीतर लपलपाने लगा, जल्द ही उसकी लंबी जीभ चूत को पूरी गहराई तक चाटने मे सफल होने लगी थी। उसके मुँह से संतुष्टिपूर्वक रज सुड़कने की मधुर आवाजें भी कमरे के अशांत वातावरण मे गूंजने लगी थीं। वह देख नही सकता था पर जानता था कि उसकी माँ के गोल-मटोल मम्मे उसके निप्पलों सहित स्वयं उसी के द्वारा गूंथे, मसले, ऐंठे व खींचे जाने की वजह से बेहद सुर्खियत पा चुके थे। उसकी टांगों मे होते अविश्वसनीय कंपन से उसकी अधेड़ तिरस्कृत माँ की चूत का लावा अपने आप पिघलकर उसके मुँह के भीतर किसी फुहार-सा बरसने लगा था, उसकी चूत के अंदर घुसी उसके जवान बेटे की उंगलियां भी उसके चिपचिपे रस से पूरी तरह तर-बतर हो चुकी थीं।

"उफ्फ् मऽन्युऽऽ! चूत चटवाने का सुख ..." कहते हुए एकाएक वैशाली की आँखें नटियाने लगती हैं, वह अपना कथन तक पूरा नही कर पाती क्योंकि ठीक उसी क्षण उसका बेटा उसकी चूत की दोनों फांकें बारी-बारी अपने होंठों के मध्य कठोरता से भींचते हुए अपनी दोनों उंगलियों से उसकी चूत की संकीर्ण परतें अत्यधिक तीव्रता से चोदना शुरू कर देता है, साथ ही साथ वह अपनी खुरदुरी जीभ को भी उसकी चूत के अत्यंत गीले छिद्र मे पूरी जड़ तक अविलंब ठेलने का बचकाना प्रयास कर रहा था ताकि छिद्र के भीतर उमड़ते सुगंधित रस को वह सीधे अपने गले के नीचे उतार सके।

"आहऽऽ मन्यु! माफ ...माफ करना, तुम अपनी माँ को झड़वाने के लिए कितना ...ओह! कितना जतन कर रहे हो और मैं ...ओहऽऽ! मैंने तुम्हारे झड़ने के बारे मे एक भी बार सोचा ...सोचा तक नहीऽऽऽ" वैशाली पूर्व से ही बेहद उत्तेजित थी और यह सोचकर हैरान भी की उसके बेटे ने मात्र अपनी जीभ, होंठ और उंगलियों के प्रयोग से ही उसे उसके मनभावन स्खलन के कितने नजदीक पहुँचा दिया है मगर अपने बेटे के स्खलन संबंधी विषय मे उसने वाकई जरा भी विचार नही किया था। अभिमन्यु खुद उसे चोदना नही चाहता था और उसका लंड चूसने से वह काफी देर पहले ही इनकार कर चुकी थी, इसी कारणवश वह माँ अबतक अपने बेटे का भरपूर लाभ उठाती रहने के लिए बारम्बार उससे माफी की गुजारिश करने लगी थी। सहसा अभिमन्यु का ध्यान भी अपने लंड की असीमित कठोरता पर गया मगर अतिशीघ्र वह बड़ी ललचायी नजरों से अपनी माँ की चूत की ऊपरी सतह पर चमचमाते उसके मोटे भांगुर को घूरने लगता है।

"हमेशा ऐसे मौकों पर ही तुम्हारी गांड का कीड़ा ज्यादा कुलबुलाता है माँ। अरे इतने प्यार से तुम्हारा फटा भोसड़ा चाट रहा हूँ, उसे पूरे मन से चूस रहा हूँ और अपनी उंगलियों से चोद भी रहा हूँ पर तुम हो कि ...अब बकवास की तो याद रखना अपने लंड की सारी गर्मी सीधे तुम्हारी चूत चोदकर ही बाहर निकालूँगा" यह पहली बार था जो मुखमैथुन की शुरुआत करने के उपरान्त अभिमन्यु के मुँह से कोई स्वर फूटे थे, अपने झूठे क्रोध से अपनी माँ को निरुत्तर करने के पश्चयात वह अपनी जीभ को फौरन उसकी चूत की ऊपरी सतह पर घुमाने लगा, उसने पोर्न देखते हुए सैकड़ों बार नायिकाओं को अपने भग्नासे से खेलते देखा था, अपने पार्टनरों से भी चीख-चीखकर वह फिल्मी रंडियां उनके भग्नासे को चाटने व चूसने की गुहार लगाती नजर आती थीं। तत्काल वह किसी पारंगत मर्द की भांति हौले-हौले अपनी माँ के सूजे व नाजुक भांगुर को चाटने लगा, अपनी जीभ की नोंक से उसे सहलाने लगता है, खरोचने लगता है, बारम्बार उसे छीलने लगता है और जिसके प्रभाव से बिस्तर पर अपनी पीठ के बल लेती उसकी नंगी माँ अत्यंत तुरंत अपनी गुदाज गांड हवा मे उछालते हुए अपनी स्पंदनशील चूत को तीव्रता से उसके मुँह पर रगड़ने लगती है, अविलंब अपनी सकुचाती चूत से उसका मुँह चोदना आरंभ कर देती है।

"य ...यहीं मन्यु यहीं उफ्फ्ऽऽ! यहाँ ...यहाँ मुझे बहुत दर्द उठता है आईईऽऽ! जोर से ...जोर से चूस मेरे जवान मर्द, दांतों से चबा जा अपनी माँ के दाने को ...हाय! उखाड़ के थूक दे इसे फर्श पर" 
अभिमन्यु की नुकीली जीभ का तरलता से भरपूर स्पर्श, उसकी लपलपाहट, प्राणघातक थिरकन अपने अतिसंवेदनशील नर्म भांगुर पर पाकर वैशाली की चीख अचनाक उसके बैडरूम की सीमित सीमा को भी लांघ जाती है और जिसके मूक जवाब में उसका बेटे ने उसके मोटे भांगुर को पलभर को चूम अत्यधिक प्रचंडता से उसकी चुसाई करना शुरू कर दी। बेटे की लार से भीगने के पश्चयात उस माँ का भांगुर पूर्व से कहीं ज्यादा चमकने लगा था, कहीं ज्यादा सूज गया था और जिसे चूसने मे अभिमन्यु ने मानो अपनी सारी ताकत झोंक दी थी, साथ ही साथ उसकी दोनों उंगलियां भी पूरे बल से उसकी माँ की कामरस से लबालब भर चुकी चूत की संकीर्ण परतों के धड़ाधड़ अंदर-बाहर होती जा रही थीं।

"आहऽऽ! बहुत ...प्यार करती है तुम्हारी माँ तुमसे। चूसो मेरे दाने को मेरे लाल, उफ्फ्! पियो जितनी रज पी सको अपनी माँ की। मेरी इच्छा नही ...मेरी आज्ञा है मऽन्युऽऽ" रुआंसे स्वर मे ऐसा कहते हुए वैशाली का संपूर्ण बदन थरथरा उठा, सिर से पांव तक वह कंपकपाने लगी। उसकी चूत की आतंरिक गहराई मे अकस्मात् जैसे भूचाल-सा आ गया था, अंदरूनी ऐंठन एकाएक उसके नियंत्रण से बाहर हो चली थी और जिसके नतीजन उसकी चूत से रज बहने की मात्रा में भी सहसा बढ़ोतरी हो गयी। पूर्व मे अपनी माँ से किए वादे को निभाते हुए अभिमन्यु उसकी स्वादिष्ट रज का कतरा-कतरा अपने गले से नीचे उतरते हुए बेहद आनंदित होने लगा था, अपने बायीं हथेली से उसके बालों को नोंचती एवं दाएं से अपने कड़क निप्पलों को उमेठती उसकी माँ जोरों से रोते हुए अपनी दोनों चिकनी जांघें उसकी गर्दन के इर्द-इर्द लपेट लेती है।
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RE: Maa ki Chudai मा बेटा और बहन - by sexstories - 01-06-2019, 11:15 PM

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