RE: Maa ki Chudai मा बेटा और बहन
एक मर्यादित पति-पत्नी का सहवासी रिश्ता कहीं ना कहीं उनके शयनकक्ष तक ही सीमित माना जाता है, जिसकी चारदीवारी के अंदर का उनका संसार कैसा होता होगा? यह जानने का अधिकार शायद ही किसी अन्य को कभी रहा हो। मणिक और वैशाली ने ताउम्र अपने शयनकक्ष की गरिमा को बनाए रखा था मगर वर्तमान मे वासना का जो नंगा नाच वहाँ अपने पैर पसार चुका था, कौन कह सकता था कि अब भी उनके शयनकक्ष की वही गरिमा बरकरार थी या भविष्य में रहने वाली थी। पति-पत्नी के शयनकक्ष के बिस्तर पर आज पत्नी तो मौजूद थी लेकिन उसका पति नदारद था, पति के स्थान पर उसकी पत्नी के संग गुत्थम-गुत्था होने वाला शख्स कोई और नही उनके विवाहित जीवन का प्रेम उनका एकलौता जवान बेटा था, तो उनके शयनकक्ष की गरिमा आखिर बरकरार रहती भी कैसे?
माँ-बेटे पूर्णरूप से नंगे होकर एक-दूसरे के बदन की पापी तपन का भरपूर लुफ्त उठा रहे थे और इसी बीच वैशाली मूत्रउत्सर्जन की इच्छा से बिस्तर पर छटपटाने लगी थी, वह माँ विनयस्वरूप अभिमन्यु की मर्दाना पकड़ से खुद को मुक्त कर देने की गुहार लगाती है मगर उसका बेटा क्षणमात्र को भी अपनी माँ की जुदाई बरदाश्त करने को कतई तैयार नही होता बल्कि अश्लीलतापूर्वक उसे बिस्तर पर ही मूत देने के लिए मनाना आरंभ कर देता है, अपनी नीच मंशा के तहत कि अब वह अपनी जन्मदात्री की चूत से बहती उसकी मूत की धार को देखने हेतु बेहद लालायित हो चुका है।
"यहाँ ...यहाँ बिस्तर पर कैसे मन्यु? बिस्तर गीला हो जाएगा" वैशाली के कांपते स्वर फूटे। अपने बेटे के जिद्दी स्वभाव से अब वह काफी हदतक परिचित हो चली थी, अच्छे से जान चुकी थी कि अभिमन्यु के मन-मस्तिष्क मे एकबार कोई लालसा घर कर जाए तो उसके पूरे हो जाने तक उसका अपनी हार स्वीकारना असंभव था।
"तो क्या?" अपनी माँ के कथन को सुन अभिमन्यु तीव्रता से अपना चेहरा ऊपर उठाते हुए चहका।
"तुम्हें इस बात का डर है कि तुम्हारे मूतने से बिस्तर गीला हो जाएगा ...ओह! थैंक्यू ...थैंक्यू माँ" उसने बेहतरीन चूतियापे का परिचय देते हुए पिछले कथन मे जोड़ा।
"जाहिर है गीला तो होगा ही पर तुम इतना खुश क्यों हो रहे हो और अचानक यह थैंक्यू किस लिए?" बेटे की बेवकूफी भरी बात पर चौंकते हुए वैशाली ने पूछा।
"खुश! खुश दुनिया का कौन सा बेटा नही होगा माँ और मेरा थैंक्यू मेरी उसी खुशी को जाहिर करने का जरिया है क्योंकि तुम्हें इस बात की फिक्र नही की तुम अपने बेटे की खुली आँखों के सामने मूतोगी, बल्कि तुम्हें बिस्तर के गीले हो जाने की फिक्र ज्यादा है" अभिमन्यु दाँत निकालकर हँसते हुए बोला।
"तुम्हारी बेशर्मी का कोई अंत नही मन्यु, बातें घुमाकर दूसरों को उलझाने मे तुम माहिर हो। भूल जाओ कि अब से तुम्हारी माँ तुम्हारी बातों के जाल मे दोबारा कभी फँसेगी ...मैं तुम्हारे सामने सूसू नही करूँगी! नही करूँगी! नही करूँगी" बेटे की शैतानी हँसी के जवाब मे वैशाली ने तुनकते हुए कहा। उस अधेड़ माँ के लिए यह सोच ही कितनी अधिक उत्तेजक थी कि वास्तविकता मे वह किसी लज्जाहीन वैश्या की भांति अपनी नग्न टाँगें चौड़ाए जोरों से मूत रही है और उस प्रचण्ड रोमांचक दृश्यपर अपनी आँखें गड़ाए उसका अपना जवान बेटा उसकी चूत की सूजी फांखों से भलभलाकर बाहर आते पेशाब को गहरी-गहरी आहें भरते हुए देख रहा है।
"माँ! माँ! माँ! तुम बार-बार क्यों भूल जाती हो कि अबसे तुम क्या, तुम्हारे पुरखे भी वही करेंगे जैसा मैं चाहूँगा। चलो उठो फटाफट, अभी और इसी वक्त से तुम्हारी ट्रेनिंग शुरू हुई समझो" बेहद गर्वित स्वर मे ऐसा कहकर अभिमन्यु सतर्कतापूर्वक अपनी माँ के पसीने से लथपथ नग्न बदन के ऊपर से परे हटने लगा, सतर्कता बरतने का उसका कोई खास उद्देश्य तो नही था मगर भविष्य की आनंदित सोच उसे वैशाली पर किसी भी तरह की कोई ढ़ील ना देने का भरपूर संकेत कर रही थी। उसकी माँ कहीं उसकी पकड़ से छूटकर बिस्तर से नीचे ना उतर जाए, वह बलपूर्वक सीधे उसकी बायीं पिंडली को जकड़ लेता है।
"क्या तुम मुझे अपना गुलाम बनना चाहते हो?" तत्काल वैशाली अपने बेटे पर आशंकित निगाहें डालते हुए पूछती है, हालांकि अभिमन्यु की कथनी और करनी का अंतर वह बखूबी समझती थी परंतु हर बात के स्पष्टीकरण की अपनी पुरानी आदत के हाथों विवश थी।
"अपनी औरत को बस मे रखना कोई गलत बात नही" प्रत्युत्तर मे अभिमन्यु गंभीरतापूर्वक बोला।
" मैं! ...और तुम्हारी औरत?" अभिमन्यु के नीच कथन को सुन वैशाली ने लज्जित मुस्कान के साथ पूछा। उम्र के हिसाब से अपने बेटे की निपुणता, पविपक्वता का उस माँ के पास कोई उत्तर नही था और तो और उसके अत्यंत प्रभावी अश्लील वाचन की तो वह पूरी तरह से कायल चुकी थी।
"हाँ माँ! तुम मेरी ...सिर्फ मेरी औरत हो। अब सवाल चोदना छोड़कर अपनी इन छोटी-छोटी उंगलियों से अपना प्यारा--सा भोसड़ा खोलो और फटाक से अपने बेटे को मूतकर दिखाओ" अपनी अनुचित ज़िद पर टिके अभिमन्यु ने क्रोधित स्वर मे कहा। अपने पापी कथन मे शामिल अपनी माँ के कामुक बदन की अमर्यादित संज्ञा को वास्तविकता प्रदान करते हुए बारी-बारी वैशाली की दोनों हाथोलियों को चूमने के उपरान्त अतिशीघ्र वह अपने होंठ उसकी चूत के स्पंदनशील खौलते मुहाने से सटा देता है।
"आह्हऽऽ मऽऽन्युऽऽऽऽ! न ...नहीऽऽ" वैशाली की आनंदित सीत्कार से सहसा पूरा बेडरूम गूँज उठा।
"जल्दी मूतो माँ वर्ना तुम्हारी चूत पर काट लूँगा, चबा जाऊँगा इसकी दोनों फांकें ...फिर देना अपने पति को झूठा जवाब कि कीड़े ने काट खाया" कहकर अभिमन्यु सचमुच अपनी माँ की चूत की दायीं फांक अपने नुकीले दाँतों के मध्य फँसा लेता है पर चाहकर भी उसकी बेहद मुलायम त्वचा पर अपने दाँत नही गड़ा पाता। वैशाली की लंबी-लंबी कामुक सिसकारियां उसके कानों को अविश्वसनीय सुख का अनुभव करवा रही थीं परंतु अपनी माँ को मानसिक या शारीरिक कष्ट पहुंचाने मे वह पूर्ण विफल रहा था।
"तो तुम ऐसे नही मानोगी क्योंकि तुम जानती हो कि मैं तुम्हें चोटिल नही कर सकता मगर मेरे पास एक मस्त-फाडू आइडिया है माँ ...क्यों ना मैं तुम्हारे यहाँ जोर से दबाऊं, तुम्हारा मूत अपने आप छूट जाएगा, हा! हा! हा! हा!" दुष्ट हँसी हँसते हुए अभिमन्यु तत्काल अपनी माँ के फूले पेडू पर अपने दाएं अंगूठे से बारम्बार दबाव देने लगता है, अपनी मर्दाना बायीं हथेली में उसने बलपूर्वक वैशाली की नाजुक दोनों कलाईयाँ एक-साथ जकड़ रखी थीं।
"मत ...मत करो मन्यु, ओह! बिस्तर गीला हो जाएगा" छटपटाती वैशाली कांपते स्वर मे चीखी, अभिमन्यु के अंगूठे के तीव्र दबाव के प्रभाव से उसके पेडू केे भीतर एकत्रित मूत्र उसकी चूत से बाहर निकल जाने पर जल्द ही आमदा हो गया था।
"शूऽऽऽ! मूतो मम्मी मूतो ...तुम्हारी क्यूट--सी चूत से तुम्हारा सूसू बाहर निकले ना निकले मगर मैं जरूर झड़ जाऊँगा। बचपन मे तुम मुझे मुतवाती थीं, देखो जवान होकर आज मैं तुम्हें मुतवा रहा हूँ ...शूऽऽ! कर दो सूसू मम्मी, शर्माओ मत। तुम्हारे बेटे के अलावा तुम्हें कोई और नही देख रहा, मूत दो बिस्तर पर ही ...शूऽऽऽऽ!" अभिमन्यु सफा नंगपन पर उतारू होते हुए बोला, उसके अत्यंत प्रभावशाली मुखमंडल पर एक अवसरवादी मर्द होने के साक्ष्य उभर आये थे। उसकी वाणी से मिलनसार होते उसके बेहतरीन अभिनय को उपेक्षित कर पाना वैशाली के बस से कोसों दूर था, उसके कथन के भीतर छुपी उसकी निकृष्ट उत्सुकता, जिज्ञासा आदि के परिणामस्वरूप वह अधेड़ नंगी माँ खुद ब खुद टूटकर बिखर जाती है।
"मैं तैयार हूँ मन्यु। मूतूंगी ...तुम्हारी आँखों के सामने मूतूूंगी लेकिन यहाँ बिस्तर पर नही, बाथरूम मे" वैशाली का थरथराता स्वर उसके खोखले विरोध का सफल परिचायक था। नारी की तो सदैव से यही इच्छा रहती है कि उसका मर्द प्रेम, भय, क्रोध, आज्ञा किसी भी भाव का प्रयोग कर उसे सदा टूटने पर मजबूर करे, इसे नारी के संकोची या दुर्बल स्वभाव से नही आँका जाना चाहिए बल्कि इसमें उसके मर्द की, मर्दानगी, बलिष्ठता, उसके प्रति हरसंभव सम्मान की भावना निहित होती है।
"तुम्हारी इसी अदा का मैं दीवाना हूँ माँ। ना ना करते हुए भी आखिरकार तुम अपने बेटे के काबू मे आ ही जाती हो जैसे तुमने वाकई मान लिया हो कि अब से मैं ही तुम्हारा असली मर्द हूँ" अपनी माँ की स्वीकृति मिलते ही अभिमन्यु अपनी बाएं हथेली मे कैद उसकी दोनों कलाइयों को क्षणों मे मुक्त करते हुए चहका तत्पश्चयात फौरन उसकी दोनों पिंडलियाँ पकड़कर पीछे खिसकते हुए अपने साथ उसे भी बिस्तर के अंत तक खींच लाता है। वैशाली उसकी तीव्रता से अचानक आश्चर्य मे पड़ गई थी और जबतक उसे कुछ भी समझ आ पाता, उसके बेटे ने एकबार फिर उसकी दोनों टाँगों को ऊपर उठाते हुए बलपूर्वक उन्हें पुनः उसकी नग्न छाती से चिपका दिया था।
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