Maa ki Chudai मा बेटा और बहन
01-06-2019, 11:15 PM,
#28
RE: Maa ki Chudai मा बेटा और बहन
वैशाली और अभिमन्यु घर के मुखिया के बिस्तर पर नग्न लेटे हुए एक-दूसरे को चूमने में जैसे खो से गए थे, उनके बीच माँ-बेटे होने का अत्यंतपवित्र रिश्ता भी वासना की तपिश मे मानो उन्होंने भुला सा दिया था। अपनी-अपनी हथेलियों से एक-दूसरे का सिर थामे, दोनों विपरीत लिंग के होंठों पर अपना भरपूर दावा ठोक रहे थे। जहाँ एक अधेड़ माँ की कोमल जिह्वा उसके सगे जवान बेटे के मुंह में निरंतर मिठास घोल रही थी वहीं बेटे के कठोर निचले होंठ को उसकी माँ अपने नुकीले दांतों के मध्य दबाकर उसकी कठोरता से युद्ध करने को उत्सुक हो चली थी।

"उम्म्! पुच्च्च्!" लगातार एक-दूसरे की सुगन्धित लार को सुड़कते हुए अपने गले से नीचे उतरने के प्रयास में दोनों माँ-बेटे की आँखों का जुड़ाव उनकी उत्तेजना को हरसंभव प्रगति प्रदान करने में सक्षम था और इसीके साथ वैशाली के मन-मस्तिष्क मे कुछ देर पहले उसके बेटे द्वारा कहे गए पापी व बेहद नीच शब्दों का भान पुनः होने लगा।

"तो तुम अपनी माँ के अलावा अपनी बहन पर भी अपनी गंदी नजर रखते हो?" अचानक वैशाली ने उनके बीच काफी देर से चल रहे प्रगाढ़ चुम्बन को तोड़ते हुए पूछा, अभिमन्यु के आश्चर्य को उसकी माँ के प्रश्न ने सहसा बढ़ा दिया था।

"इंसेस्ट, एम आई एल एफ, बी टी डब्ल्यू यह मेरी फेवरेट पॉर्न थीम रही हैं माँ। अनुभा के बारे मे तो छोड़ो, जब से हम एक-दूसरे के करीब आए हैं मैंने तो हमारे बारे मे भी कभी ऐसा नही सोचा था। कल्पना कभी सच नही होती और सच कभी काल्पनिक नही होता, खैर मुझे तो अब भी यहसब सपने सा लगता है" जवाब मे अभिमन्यु बिना किसी अतिरिक्त झिझक के बोला।

"फिर आज कैसे तुम्हारी जुबान पर अनुभा का नाम आ गया? मेरे साथ तो तुमने अपनी बहन और अपने पापा तक को गाली दे डाली। क्यों मन्यु? क्या मैं तुम्हारे कहे हर गंदे शब्द को सच समझूं क्योंकि तुम्हारे शब्द काल्पनिक नही थे, मेरे कानों मे वह अबतक गूँज रहे हैं" वैशाली का अगला प्रश्न उसके बेटे को पहले से कहीं अधिक शर्मसार कर देने वाला था, अभिमन्यु तत्काल समझ गया कि उसकी माँ को उसकी गलती का स्पष्टीकरण हर हाल में चाहिए और वह स्वयं भी चाहता था कि खुद को दोषमुक्त करने का मौका वह किसी भी सूरत मे ना छोड़े। आखिर चूक उसीसे हुई थी, तो अपनी उस चूक में सुधार भी उसे खुद ही करना था।

"कॅकॅल्ड, स्वॉपिंग, शेयरिंग, एक्सबिशन पॉर्न देखकर। नेट पर ऐसी थीम्स से संबंधित लाखों कहानियां भी मौजूद हैं" अभिमन्यु ने इसबार भी दृढ़ता से जवाब दिया।

"वाइफ स्वॉपिंग के बारे मे पता है मुझे, एक्सबिशन भी जानती हूँ पर यह कॅकॅल्ड क्या होता है? माँ और बहन की अदला-बदली भी होने लगी है क्या आजकल? और शेयरिंग से तुम्हारा मतलब?" वैशाली बेटे की नग्न पीठ पर अपनी दायीं हथेली फेरते हुए पूछती है, उसके सवालों से अभिमन्यु का जरा भी भयभीत ना होना उसे वैसे भी उसके निर्दोष होने का पुख्ता प्रमाण दे चुका था।

"हिजड़े हैं साले! अपने घर की औरतों को दूसरे मर्दों के सामने परोसकर, उनकी चुदाई देखते हुए मुट्ठ मारने मे ना जाने लोगों को क्या मजा मिलता है? वहाँ उनकी माँ, बहन, बेटी या बीवी दूसरे मर्दों से चुदवाते हुए जोरदार आहें भर रही होती हैं और यहाँ खुशी से अपना लंड हिलाया जाता है। कुछ लोगों को छुपछुपाकर ऐसा करने मे आनंद मिलता है तो कई सामने मौजूद रहकर इसका लुफ्त उठाते हैं" कहते-कहते अभिमन्यु तब अचानक से शांत हो जाता है जब अपनी माँ के दाएं हाथ की उंगलियों का कोमल स्पर्श बारी-बारी उसे अपनी गांड के दोनों पटों पर घूमता महसूस होता है।

"हम्म! मैं सुन रही हूँ आगे बोलो" बोलकर वैशाली अपने मुखमंडल पर कोई विशेष भाव लाए बिना ही अपनी नन्ही उंगलियों को अपने बेटे की गांड की कठोर मर्दानी त्वचा पर फिसलाती रहती है। कुंठास्वरूप कि अभिमन्यु ने उसे कैसे भी कर, सही-गलत जिस भी परिस्थिति का सामना किया हो मगर अपनी माँ को स्खलित करने मे सफल जरूर रहा था लेकिन वह अपने बेटे की तड़प को जरा--सा भी कम नही कर पाई थी। उसके बेटे का लंड अब भी पत्थर समान कड़क था, जो अपने तनाव की गवाही प्रत्यक्ष उसकी चूत के होंठों के बीच धंस कर दे रहा था।

"मैं देखना चाहता था, जानना चाहता था कि मेरी उन गंदी बातों का असर तुमपर होता है या नही क्योंकि मुझे तो लोगों की ऐसी चुतियापी मानसिकता से हमेशा नफरत रही है। ऐसे लोग या तो अपनी मर्जी से छक्का बन जाएं या समाज मे उन्हें खुद को गे घोषित कर देना चाहिए या फिर सबसे बढ़िया ऑप्शन यह है कि उन्हें सचमुच अपने घर की औरतों का दल्ला बन जाना चाहिए, कम से कम इसी बहाने मुफ्त मे उनके घर का चूल्हा भी जलता रहेगा और मनमुताबिक मुट्ठ मारने का सुख मिलेगा सो अलग" एकबार फिर अभिमन्यु बोलते-बोलते रुक गया, उसकी माँ की उंगलियां एकाएक उसकी गांड की पसीने से लथपथ दरार के भीतर जो प्रवेश कर गयीं थी।

"फिर क्या देखा तुमने? क्या जाना? क्या तुम्हारी माँ पर तुम्हारी गंदी बातों का कोई असर तुम्हें समझ आया?" पूछते हुए वैशाली अपने दाएं हाथ की उंगलियों को बेटे की गांड की दरार से बाहर निकाल लेती है, जाने अकस्मात् उस माँ को क्या ठरक चढ़ी कि वह अभिमन्यु की आँखों में झांकते हुए ही एक-एक कर अपनी उन्हीं उंगलियों को अपने होंठों के भीतर ठेल बेहद कामुकतापूर्वक चूसना शुरू कर देती है।

"उम्म्ऽऽ! पसीना तो तुम्हारा भी कम नशीला नही मन्यु, जब मेरी कांख के पसीने ने तुमपर वियाग्रा का काम किया था तो सोचो तुम्हारी गांड की दरार के अंदर की गंध को खुद में समेटे हुए पसीने में कितना ज्यादा नशा होगा। मैं जवानी भर से तुम्हारे पापा का लंड चूसती रही हूँ मगर किसी मर्द की गांड के छेद को कभी नही चाटा, तुमने अपनी माँ के एसहोल को किस्सी कर आज उसे एक नई सीख दी है" अश्लीलता की बीती सभी हदें पारकर वैशाली ने पिछले कथन में जोड़ा, वह अपनी दायीं सबसे बड़ी उंगली को चूसने में अधिक दमखम दिखा रही थी और ऐसा करते हुए उसके चेहरे पर वही चिरपरिचित शैतानी मुस्कान छा चुकी थी जिसे अकसर वह अपने बेटे के चेहरे पर छाते देखा करती थी।

"असर हुआ था ना, बिलकुल हुआ था माँ। यह लाल निशान यूं हीं नही मेरे गालों पर छप गये हैं" अभिमन्यु अपनी माँ की तात्कालिक नीच हरकतों पर गौर फरमाते हुए बोला।

"अब गलती करोगे तो पिटोगे ही। शुक्र करो लड़के कि सिर्फ गाल लाल हुए हैं, मेरा दिल मजबूत होता तो मार-मारकर तुम्हारी गांड भी लाल कर देती" वैशाली खिलखिलाते हुए बोली, तत्पश्चात अपनी उसी उंगली दोबारा चूसने लगती है। कुछ क्षणों तक माँ-बेटे एकटक एक-दूसरे की आँखों मे झांकते रहे, जहाँ वैशाली का बेशर्मी के साथ अपनी उंगली को चूसना लगातार जारी था वहीं अभिमन्यु अपनी माँ के सहसा बदले भावों का बारीकी से अवलोकन करने में व्यस्त हो चला था।

अपनी आँखों का जुड़ाव बेटे की आँखों से रखते हुए ही वैशाली अपनी उंगली को एक विशेष चिपचिपी ध्वनि के साथ अपने मुंह से बाहर खिंचती है और तत्काल उसका दाहिना हाथ पुनः अभिमन्यु की गांड की दिशा में आगे बढ़ जाता है। एकाएक अपनी माँ की थूक से तर उंगली को अपनी गांड की शुरूआती दरार के भीतर घुसता महसूस अभिमन्यु को सारा सार पलों में समझ आ गया। वैशाली की उंगली झांटों भरी दरार की चिकनी सतह पर फिसलती हुई सीधे उसके बेटे के कुलबुलाते मलद्वार पर आकर ठहर जाती है और तभी दोनों माँ-बेटे एकसाथ मुस्कुरा उठते हैं।

"यह तो आखिरी असर था माँ जिसने मुझे समझाया कि मेरी तरह तुम्हें भी वह चुतियापी थीम्स कुछ खासी पसंद नही आई थीं मगर उससे पहले मेरा हम-दोनों को पेला-पेली करते हुए तुम्हारे पति से रंगे हाथों पकड़वाना तुम्हें जरूर पसंद आया था। आया था ना माँ? तुम उसी वजह से अपने आप झड़ने लगी थी क्योंकि तुम्हारे पति की मौजूदगी मे हम-दोनों के चुदाई मिलाप की कल्पना को सुनकर तुम चुदासी नही, अचानक महाचुदासी बन गयी थी मम्मी। शुक्र तो अब तुम्हें मनाना चाहिए की मैंने खुद पर कंट्रोल बनाए रखा वर्ना तुम तो मुझे चोदने की इजाजत दे चुकी थी, अभी प्यासी चूत मे अपने जवान बेटे का लंड घुसवाने को तड़प उठी थी" इसबार अभिमन्यु बिना किसी रुकावट के अपना कथन पूरा करने मे सफल रहा था। अपने कथन में उसने अपने जिस कंट्रोल, जिस संयम का उदाहरण पेश किया था वह वास्तविकता मे वैशाली को आश्चर्य से भर देने को काफी था।

"हे ...हे ...हे! घुसेड़ो ना अपनी उंगली मेरी गांड के छेद मे, तुम रुक क्यों गई माँ? या फिर से तुम्हारी गांड फट गई? जैसे अपने पति के हाथों पकड़े जाने की कल्पना भर से फट गई थी" हँसते हुए अभिमन्यु ने पिछले कथन मे जोड़ा, वह तो वाकई उसकी मुँहचोदी की सत्यता का प्रभाव था जो वैशाली बल लगाकर भी उसके अतिसंवेदनशील मलद्वार को अपनी उंगली से भेद नही पाई थी, अपने नुकीले नाखून की सहायता से उसकी सिकुड़ी त्वचा को कुरेदने मात्र से उस माँ को संतोष करना पड़ा था।

"तुमने सही कहा मन्यु। कोई औरत अपना मुँह काला करे और अपने पति द्वारा रंगे हाथों पकड़ी जाए, उसकी गांड फटना नेचुरल है। मैं यह भी मानती हूँ की मेरे अचानक से झड़ जाने का कारण तुम्हारे मुँह से तुम्हारे पापा का जिक्र था मगर मैंने तुम्हें मुझे चोदने की इजाजद इसलिए दी थी क्योंकि दुनिया की कोई माँ इतनी हिम्मत वाली नही हो सकती, जिसके बेटे का कड़क लंड उसकी उत्तेजित चूत से लगातार रगड़ खा रहा हो और वह टूटकर बिखरने से खुद को रोक ले" वैशाली ने भी बेहद गंभीरतापूर्वक अपने पक्ष को पेश किया और अपनी उसी गंभीरता की आड़ मे कथन समाप्ति के उपरान्त वह अपनी उंगली लगभग आधी अभिमन्यु की गांड के छेद के भीतर जबरन घुसेड़ देती है।

"आईईऽऽ! पागल ...पागल हो क्या तुम? बताकर तो घुसानी चाहिए थी दुष्ट औरत, उफ्फ्फ्! दर्द नही होता क्या मुझे" अपनी माँ की शैतानी क्रिया को समझने मे नाकाम रहे अभिमन्यु दर्द से बिलखते हुए चीखा, अब ठहाका मारकर हँसने की बारी वैशाली की थी।

"वाह बच्चू! तुम करो तो चमत्कार और हम करें तो बलात्कार" हँसते हुए वैशाली ने पुनः जोर लगाया और इसबार उसकी थूक से सनी उंगली उसके बेटे की गांड के छेद का अंदरूनी छल्ला भी पारकर जाती है।

"ओह माँऽऽ!" पीड़ा से बेहाल अभिमन्यु दोबारा कराह उठा हालांकि उसकी माँ की उंगली उतनी मोटी नही थी जितने मे उसकी जान पर बन आती मगर उसके साथ यह पहली बार हुआ था जो किसी वस्तुविशेष ने उसके मलद्वार के भीतर प्रवेश किया था।

"तुमने भी जबरदस्ती अपनी माँ की पोंद के छेद को किस्सी किया था, तब तो बड़ा मजा आ रहा था" वैशाली बेटे के खुल चुके होंठों पर लघु चुम्बन अंकित करते हुए चहकी, उसके चेहरे पर छाई बचकानी हँसी से अभिमन्यु हतप्रभ हुए बगैर नही रह सका था। उसे अपनी माँ का प्रफुल्लित मुखमंडल इतना अधिक सुंदर दिखाई पड़ने लगा था कि वह तत्काल दर्दभरी झूठी आहें भरना शुरू कर देता है, इस विचार से कि कुछ वक्त और वह अपनी माँ के चेहरे को खुशनुमा होते देख सके।

"ओह! ओह! ओह! मैं ...मैं भी बदला लूँगा तुमसे मम्मी। याद रखना, उंगली से ज्यादा दर्द लंड देता है .. गांड का छेद फट जाता है, औरत हगने तक को तरस जाती है" अभिमन्यु धमकी के स्वर मे बोला। क्षणभर भी नही बीत पाया और वैशाली अपनी उंगली को झटके से बाहर खींच लेती है, उसके चेहरे की सुर्ख हँसी फक्क सफेदी में परिवर्तित हो चुकी थी।

"वहाँ नही मन्यु, वहाँ ...वहाँ नही करना" अनजाने भय की प्रचुरता से कांपते वैशाली के स्वर फूटे, अचानक अभिमन्यु को लगा जैसे वह फौरन दीवार पर अपना माथा ठोक ले।

"इतना क्यों डरती हो तुम कि मजाक और गुस्से मे अंतर भी नही कर पाती?" वह अपना दायां हाथ अपनी पीठ पर ले जाकर अपनी माँ के उसी हाथ को थामते हुए पूछता है जिसकी उंगली ने कुछ वक्त पीछे जबरन उसकी गांड के छेद को भेदा था।

"वहाँ बहुत दर्द होता है, तुम्हारे पापा ने..." वैशाली ने जवाब मे बोलना चाहा मगर अभिमन्यु के उसे बीच मे टोक देने से वह अपना कथन पूरा नही कर पाती।


"जनता हूँ, तुम्हारी गांड कुंवारी है मम्मी ...लेकिन पता है ऐसा क्यों है? चलो मैं ही बता देता हूँ। तुम्हारी चूत तो मुझे वर्जिन मिल नही सकती थी खास इसीलिए पापा ने तुम्हारी गांड को वर्जिन छोड़ दिया, वह हमेशा से चाहते थे कि बड़ा होकर मैं ही तुम्हारी गांड के छेद का उद्घाटन करूं और अगर तुम्हें मुझपर यकीन ना हो तो शाम को अपने पति से कन्फर्म कर लेना, तब तुम खुद अपने बेटे से अपनी गांड मरवाने के लिए बेचैन रहने लगोगी" अभिमन्यु पुनः दुष्ट हँसी हँसते हुए बोला और अपनी माँ के हाथ को उसके मुँह के समीप लाने लगता है।

"अब अपनी इसी उंगली को सूँघो, दोबारा से इसे चूसो माँ ...आखिर तुम्हें पता होना चाहिए एक जवान मर्द की गांड के छेद के अंदर की महक और स्वाद कैसा होता है? फिर मैं तो तुम्हारा अपना बेटा हूँ, शायद तुम्हें घिन ना आए" उसने अपने पिछले कथन मे जोड़ा। अपने बेटे के सर्वदा अनुचित शब्दों के सम्मोहनपाश मे बंधकर एकाएक वैशाली स्वयं को इस बुरी तरह उत्तेजित होना महसूस करती है कि वह माँ अपनी सारी लज्जा, सारी शर्म त्यागकर बिना किसी घृणा के अपनी मैली उंगली को प्रत्यक्ष बेटे की आँखों मे झांकते हुए बड़े उत्साह से सूंघने लगी।

"हम्फ्! तुम अपनी माँ से और क्या-क्या गंदे काम करवाना चाहते हो मन्यु? हम्फ्ऽऽ! अभी बता दो बेटा ...रोज पागल होने से अच्छा है, आज ही सारी कसर निकल जाए ...हम्फ्ऽऽ! हम्फ्ऽऽ!" कहकर वैशाली ने देर नही की और किसी चरित्रहीन कुलटा की भांति अपने बेटे की गुदागंध से सनी उंगली को सीधे अपने मुंह के भीतर घुसेड़ लेती है। उसके गहरे मूँगिया रंगत के भरे हुए होंठ सिकुड़कर स्वतः ही उसकी उंगली पर कस गए थे, जिनकी अत्यंत कोमल त्वचा से व्यभिचारिणी बनने को बेहद उत्सुक हो चली वह अधेड़ माँ बहुत ही कामुकतापूर्वक अपनी गंदी उंगली को हौले-हौले चूसना प्रारंभ कर चुकी थी।

"उम्मम्! तुम्हारी माँ मर्दानी महक और उसके स्वाद से एक लंबे अरसे से परिचित है मन्यु, क्योंकि मैं लंड चूसने मे एक्सपर्ट हूँ। लगभग हर चुदाई से पहले तुम्हारे पापा मुझसे अपना लंड जरूर चुसवाया करते थे, मेरे मुँह मे झड़ भी जाते। हालांकि मैं कभी उनका वीर्य अपने गले से नीचे नही उतार सकी मगर वीर्य की जो तीखी गंध मेरे मुँह के अंदर रह जाती, ना बता सकने वाला उसका अजीब--सा स्वाद जो मेरी जीभ, मेरे दांतों, मसूड़ों मे बसा रह जाता कुछ ऐसा ही स्वाद तुम्हारी गांड के छेद का है ...हाँ! उम्म्! महक वीर्य से ज्यादा तीखी और उत्तेजक है मगर ..." वैशाली बेशर्मों की भांति अपने और अपने पति के अत्यधिक गोपनीय सहवासी राज़ों को खोलती ही जाती अगर अभिमन्यु की आश्चर्य से फट पड़ी आँखों के साथ उसे हैरानीपूर्वक खुल चुका उसका मुँह भी दिखाई नही देता, उसने सहसा यह भी महसूस किया कि उसके भड़काऊ कथन और उनमे शामिल अश्लील शब्दों का सबसे ज्यादा असर उसके बेटे के लंड की कठोरता पर हुआ था, जो उसकी रसीली चूत के मुहाने पर अब भी धीरे-धीरे रगड़ खाए जा रहा था।

"मगर ...मगर क्या माँ? मगर क्या?" अभिमन्यु ने अकस्मात् बेकाबू हुई अपनी अनियंत्रित साँसों की परवाह किए बगैर पूछा। उसकी उत्सुकता, उसका परिवर्तित उन्माद उसकी कमर के धीमे झटकों को एकाएक रफ्तार प्रदान कर गया था।

"तुम अपनी माँ को चोदना नही चाहते फिर अचानक मेरी गांड मे इंटरेस्ट क्यों लेने लगे हो? चोदा तो दोनों को जाता है" अभिमन्यु के प्रश्न को नकार हड़बड़ी मे वैशाली अपना सवाल पूछ बैठी। वैसे प्रश्न तो उसका भी अत्यंत महत्वपूर्ण था, जिसके उत्तर प्राप्ति से दोनों माँ-बेटे के बीच पनपे अनाचार को सही पथ मिल जाना था, जिसपर साथ उन्हें एक अंतिम सफर तय करना शेष रह जाना था।

"चोदा चूत को जाता है माँ ...हाँ! मैं तुम्हें चोदना नही चाहता लेकिन गांड चोदी नही जाती, वह मारी या मरवाई जाती है। तो चुनना अब तुम्हें है मम्मी, मुझसे अपनी चूत चुदवाओगी या फिर अपनी गांड मरवानी है? तुम्हारे दोनों छेदों मे से एक को तो हलाल होगा ही होगा, आखिरी फैसला तुमपर है" अभिमन्यु ने बिना किसी झिझक अपना अनैतिक पक्ष प्रस्तुत कर दिया। उसके शब्दों में उसकी भरपूर जवानी, उसकी मर्दानगी, उसका लक्ष्य और सबसे मुख्य उसका खुदपर अटल विश्वास, वस्तुविशेष को पाने की लालसा व जिद, विनय नही बल्कि एक आज्ञारुपी मिश्रण सम्मिलित था।

"मेरी चूत तुम चोदना नही चाहते और तुमसे अपनी गांड मैं मरवा नही पाऊंगी, तो सबकुछ यहीं रद्द हुआ समझो" वैशाली के शब्दों में भी बेटे सामान एकदम वही दृढ़ भाव शामिल थे।

"एक सवाल और है मेरा, मुझे उसका सही जवाब हर हाल मे चाहिए मन्यु। तुमने बताया कि तुम्हें घर की औरतों को बाहरी मर्दों के सामने परोसने वाले लोगों से सख्त नफरत है, तो क्या घर के अंदर रिश्तों का कोई महत्व नही? तुम्हारी नजर मे हम जो कर रहे हैं, क्या यह सही है? तुम अनुभा के संग भी यही सब करना चाहते हो ना, जो हम माँ-बेटे होकर भी कर रहे हैं?" मौके की नज़ाकत को समझ वैशाली ने बेहद तार्किक प्रश्न पूछा, उसके इस प्रश्न का उत्तर तो वह स्वयं भी नही जानती थी। हालांकि उसे मालूम था कि वह और अभिमन्यु उनके पवित्र रिश्ते की मर्यादा को तोड़कर काफी आगे बढ़ चुके हैं, अब उनका चाहकर भी पीछे लौट पाना मुमकिन नही रहा था, सिर्फ एक छोटी सी निर्णायक सहमति और दोनों के तन का मिलन निश्चित था।

"तुमने भी तो कहा था कि आज के इंसान की यही सबसे बड़ी खूबी है, वह पाप की ओर पुण्य से ज्यादा आकर्षित होता है। वह सही-गलत मे फर्क जानता है, पहचानता है मगर चलता उसी राह पर है जो सरासर गलत है। मानो कल को मैं या पापा तुम्हें कोठे पर बिठा दें या घर के अंदर-बाहर तुम्हें परिचित-अपरिचितों के सामने परोस दें, ज्यादा बदनामी किसकी होगी? चोदने वाले की या चुदवाने वाले की? जाहिर सी बात है, चुदवाने वाले की। घर-परिवार के सदस्यों में अगर गलत रिश्ते बनते भी हैं तो उनके खुलासे घर की चारदीवारी के बाहर नही होते, मामले अपनों के बीच ही सुलझाये जा सकते हैं। मेरे मन में कभी ना तो तुम्हारे बारे में गलत विचार रहे और ना ही अनुभा के बारे में, गलती हम दोनों की है माँ। हम पीछे लौट सकते हैं, वक्त है हमारे पास और आपसी प्यार की इतनी ताकत मौजूद है कि आगे हम कपड़ों मे भी अपने रिश्ते को जीवनभर निभा सकेंगे मगर तुम्हीं सोचो मॉम क्या तुम इस वर्तमान समय से कभी अपना पीछा छुड़ा पाओगी? मुझे कपड़ों मे देखकर क्या तुम मेरे नंगे शरीर को भुला पाओगी? क्या यह उत्तेजक पल तुम्हारे जेहन से जा सकेंगे कि तुम्हारा सगा खून होकर भी कभी मैंने तुम्हारी नंगी चूत पर अपना खड़ा लंड रगड़ा था? क्या कभी याद नही करोगी कि तुम अपने बेटे के सामने पूरी तरह से नंगी रहने का प्रण कर चुकी थी? मेरा भी ठीक यही हाल होगा माँ, मैं भी इन पलों को कभी नही भुला सकूंगा" अभिमन्यु साँस लेने को ठहरा तो अपनी माँ को बहुत ही मायूस पाता है। जाहिर था कि उसके मुँह से निकला हर शब्द उसके दिल से होकर गुज़रा था और जो किसी नुकीले तीर समान सीधे उसकी माँ के दिल को भेद गया था, माँ-बेटे के वह दिल जो वाकई कभी दो हुआ करते थे लेकिन परिस्थिति ने आज उन्हें एक में तब्दील कर दिया था।

"पापा को हमारे बारे मे पता चल सकता है और नही भी मगर वह हमारा नुकसान नही कर पाएंगे। उन्हें तुमसे आज भी उतना ही प्यार है जितना पहले था, मुझे भी वह चाहकर खुद से अलग नही कर सकेंगे क्योंकि जान हूँ मैं उनकी। हाँ! उनकी नाराज़गी कबतक रहेगी कुछ कहा नही जा सकता लेकिन नाराज़गी खत्म होते ही घर का माहौल कुछ और होगा मम्मी, फिर हम दोनों मिलकर तुम्हें बजाया करेंगे। वैसे भी औरत ऑडियो कैसेट की तरह होती है, दोनों तरफ से बजाई जाती है। रोज तुम्हारा सैंडविच बनेगा, जिसे खाने के लिए हम बाप-बेटे हमेशा भूखे रहेंगे और तुम्हारी भूख, प्यास, तड़प, चुदास सब जैसे कभी तुमतक फटका भी नही करेगी। एक जरूरी बात और मम्मी तुम्हारी उस कमीनी दोस्त मिसिज मेहता को मैं किसी भी सूरत मे नही छोड़ने वाला, तुम चाहो या ना चाहो वह तो मुझसे पक्का चुदेगी ...मेरा वादा है तुमसे" कहकर अभिमन्यु अपने दांतों को आपस में घिसने लगा, एकाएक उसके चेहरे पर क्रोधित भाव उमड़ने लगे थे।

"ऐसा शायद ही हो पाए मन्यु कि तुम्हारे पापा हम-दोनों को माफ कर सकें पर मैं यह भी सोच रही हूँ कि उन्हें हमारे बारे मे पता कैसे चलेगा? मैं बताऊंगी नही और तुम्हारी गांड सिर्फ दिखावे की है। खुश मत को इतना, सबकुछ अभी भी रद्द ही समझो और रही बात सुधा की तो तुम उसके आस-पास भी नही फटकोगे वर्ना मुझसे बुरा कोई नही होगा समझे। अब हटो मेरे ऊपर से, घंटेभर से ज्यादा हो गया तुम्हारा भार सहते-सहते" वैशाली का चेहरा कुछ क्षणों पहले उसके बेटे की गंभीर बातों को सुन मायूस होकर लटक गया था, अब उसकी मायूसी लगभग छट चुकी थी।

"नही मम्मी, अभी नही ...पापा तो शाम को लौटेंगे, कुछ देर और मुझे तुम्हारे नंगे बदन से चिपके रहना है। तुम्हें पता नही कि तुमने मुझपर कैसा जादू कर दिया है, अब तो एक पल को भी मैं तुमसे जुदा नही रह पाऊंगा। तुमने ऐसा क्यों किया ...मेरी माँ होकर भी तुम मुझसे एक औरत की तरह प्यार क्यों करने लगीं? क्यों तुम्हारी चूत तुम्हारे अपने बेटे के बारे मे सोचकर झरने-सी बहने लगती है? क्यों तुम्हारे ममतामयी निप्पल औरतरूपी निप्पलों समान ऐंठ जाते हैं? क्यों तुम्हारी गांड का छेद कुलबुलाने लगता है? आखिर क्यों तुम इतनी चुदासी हो जाती हो माँ कि तुम्हारी ताउम्र शर्म, मर्यादा, संस्कार ...तुम्हारे कपड़ों की तरह ही तुम्हारे अपने खून के आगे खुद-ब-खुद नंगे हो जाते हैं? आखिर क्यों?" उद्विग्न स्वर मे ऐसे विस्फोटक प्रश्न पूछते हुए अचानक अभिमन्यु वैशाली से बुरी तरह लिपट जाता है। उस नए-नवेले मर्द की बलिष्ठ बाहें उसकी माँ की अत्यंत चिकनी पीठ पर बलपूर्वक कस गई थीं, उसने अपना सुर्ख तमतमाया चेहरा अपनी माँ की नग्न छाती के बीचों-बीच धांस दिया था। अपने निचले धड़ को वह उत्तेजित मर्द पागलों की भाँति अपनी माँ के निचले नंगे धड़ पर रगड़ने लगा था, अपनी माँ की स्पंदनशील चूत के सूजे होंठों पर तीव्रता से अपने पत्थर समान कठोर लंड को घिसना शुरू कर चुका था, अपने लिसलिसे फूले सुपाड़े से बारम्बार अपनी माँ के फड़फड़ाते भांगुर को छीलते हुए वह आनंदमयी सीत्कारें भरने लगा था।

"क्योंकि ...क्योंकि मैं माँ हूँ तुम्हारी ...तुम्हें पैदा करने वाली, जन्म देनेवाली ...आहऽऽ मन्यु! तुम्हारी जन्मदात्री हूँ मैं" ममतास्वरूप चीखते हुए वैशाली को एहसास हुआ जैसे सहसा उसके स्तन पहले से अधिक भारी हो गए हों, लगातार तेजी से फूलते जा रहे हों। बीते दो दशकों का उनका खालीपन पुनः भराव की ओर अग्रसित हो चला हो जिनके ऊपर शुशोभित निप्पलों से अब किसी भी पल दोबारा ढूध का उत्सर्जन हो जाने वाला हो।

"हटो मन्यु ...उन्ह! मुझे जाने दो बेटा, बहुत ...बहुत प्यार कर लिया तुमने अपनी माँ से" कुछ भय, कुछ रोमांच और कुछ प्रेमरूपी भावों से सम्मिश्रण से गदगद वैशाली दोबारा चीखते हुए बोली।

"नही माँ नही, तुम कहीं मत जाओ ...मेरे पास रहो, उफ्फ्! एकबार फिर मुझे खुद मे समेट लो" अभिमन्यु की हाहाकारी सीत्कार ज्यों की त्यों बरकरार थी, बल्कि अब वह स्वयं ही खुद को अपनी माँ के भीतर पुनः समाने हेतु प्रचंड लालायित हो चुका था।

"वापस ...मैं वापस आऊंगी मन्यु, मुझसे ...मुझसे भी अब अपने बेटे से अलग होकर रहा नही जाएगा" वैशाली अनुरोध के स्वर मे बुदबुदाई।

"जब वापस आना ही है तो दूर क्यों जा रही हो माँ? मैं कहीं नही जाने दूंगा तुम्हें ...कहीं नही" अपने भावभीन स्वरों के साथ अभिमन्यु अपनी शारीरिक पकड़ भी अपनी माँ पर कसते हुए सिसियाया।

"मुझे सूसू आई है मन्यु, मैं वापस आऊंगी ना बेटा ...ओह! जल्दी वापस आ जाऊंगी" वैशाली दोबारा हौले से बुदबुदाई मगर अभिमन्यु मानो उसके नग्न बदन को छोड़ने के लिए कतई राजी नही था, बल्कि उसके थरथराते होंठों से बाहर निकले उसके अगले विध्वंशक शब्द वैशाली के मूत्रप्रवाह को अकस्मात् कष्टकारी पीड़ा मे बदल देते हैं।

"सूसू यहीं बिस्तर पर कर लो माँ, मुझे ...मुझे भी देखना है कि तुम्हारी सुदंर--सी चूत से मूत की धार कैसे बाहर निकलती है"
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