RE: Maa ki Chudai मा बेटा और बहन
"क्योंकि ...क्योंकि यह महापाप है, गुनाह है और हम इंसानो की गंदी फितरत हमेशा ही पाप को बढ़ावा देती आई है। चाहे मर्द हो या औरत ...जानते हैं कि वह जो कर रहे हैं पूरी तरह से गलत है मगर फिर भी कीचड़ मे गंदे होने से खुद को रोक नही पाते। बात अगर केवल मेरी की जाए तो मेरा अपने जवान बेटे के सामने यूं बेशर्मों जैसे नंगी होकर बैठना मैं खुद कभी नही स्वीकार सकती पर यह सच भी नही झुटला सकती कि अभी मैं नंगी हूँ। मन्यु जाने क्यों मुझे लग रहा है कि अब से तुम जब भी अपनी माँ को देखो, उसकी इसी नंगी हालत मे देखो। मुझे कहते हुए जरा भी शर्म नही आ रही कि तुम्हारी माँ अब तुम्हारे सामने कभी कपड़े पहने हुए नही रहना चाहती, वह हमेशा नंगी ही बनी रहना चाहती है" कहकर वैशाली ने अपनी बाईं छोटी उंगली से अपनी आँखों की किनोर को पोंछा। उसे स्पष्ट अहसास हो रहा था कि भले ही अभिमन्यु गुपचुप बैठा हुआ था मगर अपनी माँ की हैरत से भरी बातों को सुनकर उसकी सिसकिया पूर्णरूप से रुक गई थीं, उसके चेहरे पर एकसाथ कई तरह के भाव उमड़ आए थे। शरीर मे होते कंपन के साथ ही उसके दिल की धड़कने भी तत्काल धुकनी मे बदल गई थी, जिनकी हर धमक को वह माँ सीधे अपनी धड़कनों से जुड़ता पा रही थी।
"दिखाओ अंगूठे के छाले का दर्द कहाँ तक पहुँचा, मैं तुम्हारा लंड चूसूंगी तो नही पर उसे देखना जरूर चाहूंगी" चेहरे पर मुस्कान लाते हुए वैशाली तीव्रता से अपने बेटे की जींस की बेल्ट को खोलने लगी, अभिमन्यु ठगा सा उसे रोकने मे जरा भी सक्षम नही था जैसे अपनी माँ के सम्मोहन पाश मे पूरी तरह से बंध गया हो। बेल्ट को जींस के बक्कलों से निकालकर वह जींस का बटन और चेन भी खोल देती है और उसकी कजरारी आँखों के इशारे से कब उसका बेटा अपनी गांड को बिस्तर से उठा देता है वह स्वयं नही जान पाता। जींस के बाद बारी आई उसकी शर्ट की और अगले ही पल उसे उसकी जॉकी भी नीचे फर्श पर बिखरे पड़े उसके अन्य कपड़ो मे शामिल नजर आती है, यह सोचकर कि अब दोनो माँ-बेटे पूर्णरूप से नंगे हो चुके हैं बेडरूम का प्रेमभरा वातावरण भी पुनः अखंड वासना से प्रज्वलित हो उठता है।
"ओह माँ! इस्स्स्ऽऽ!" बेटे को खुद के समान नंगा करने के कारण वैशाली को बिस्तर के बीचों-बीच आना पड़ा था और ज्यों ही वह बिस्तर के कोने मे बैठे अभिमन्यु को सीधे उसके अधखड़े लंड से पकड़कर अपनी ओर खींचती है, अपने बेटे की कामुक व दर्दभरी सीत्कार से उस माँ की चूत का रूका हुआ स्पंदन भी मानो एकाएक बढ़ गया था।
"कितने ...कितने बड़े हो चुके हो तुम मन्यु, उफ्फ! बहुत खूबसूरत लंड है तुम्हारा, अगर आज हम पापी ना बनते तो मुझे कभी पता ही नही चलता कि अपने सगे बेटे के जवान लंड को अपनी नंगी आँखों से देखने का सुख कैसा होता है?" वह अभिमन्यु की खुली टांगों के मध्य नीचे झुकते हुए सिसकी, उसकी अत्यंत नाजुक दाहिनी मुट्ठी मे कैद उसके बेटे का अधसिकुड़ा लंड ठुमकियां लगाते हुए तत्काल तनाव से फूलने लगा था और जिसमे तीव्रता से होते जा रहे परिवर्तन को करीब से देखने की चाह मे वह माँ फौरन उस अत्यधिक ज्वलंत मूसल को अपनी मुट्ठी से आजाद कर देती है।
"माँऽऽ! ओह मम्ऽमीऽऽ!" अभिमन्यु की सीत्कारें तब एकदम से उसकी चीख-पुकार मे तब्दील हो गईं जब उसे प्रत्यक्ष अपनी माँ का बेहद सुंदर चेहरा अपने लंड पर झुकता हुआ नजर आता है।
"यह ...यह खडा़ हो रहा है मन्यु, देखो कितनी तेजी से बड़ा हो रहा है यह। उन्ह! उन्ह! बेशर्मों की तरह कैसे झटके खा रहा है नालायक, इस्स्! क्या ...क्या तुम्हारी तरह यह भी तुम्हारी माँ से सच्चा प्यार करता है? बताओ ना मन्यु ...क्या यह मेरे लिए तन रहा है?" वैशाली बेहद उत्साहित स्वर मे पूछती है, ऐसा अद्भुत व उत्तेजक नजारा उसने अपने बीते जीवनकाल मे कभी नही देखा था, तब भी नही जब अपनी सुहागरात पर पहली बार वह अपने पति के विशाल लंड से परिचित हुई था। इसे महज अपवाद कहा जाएगा कि जहाँ अधिकतर स्त्रियां अपने कौमार्य को अपने विवाह तक संभालकर नही रख पातीं, वैशाली के संस्कार, उसकी मर्यादा, उसकी अडिग विचारधारा, यह उसके अखंड संयम का ही फल था जो मणिक को अपनी पत्नीरूप मे यौवन से भरपूर एक कुंवारी युवती की प्राप्ति हुई थी और जिसपर वह स्वयं अचंभित हुए बगैर नही रह सका था, बल्कि गर्व से आनंदित भी हो उठा था।
"हाँ माँ हाँ ...मेरी तरह यह बेशर्म भी सिर्फ तुम्हारे लिए ही खड़ा हो रहा है। देखो ...मेरे फूले ट्टटों को देखो मम्मी, आहऽऽ! तुम्हारे सच्चे प्यार, अच्छी परवरिश और देखभाल की वजह से इनमे कितना ज्यादा रस भरा पड़ा है और जो केवल तुम्हारे लिए है ...उम्म! मुझे पैदा करनेवाली मेरी सगी माँ के लिए है" अभिमन्यु सिसियाते स्वर मे चिल्लाया। वह सचमुच नही जानता था कि उसकी भोली-भाली, सीधी-साधी सी दिखनेवाली माँ के भीतर इतनी अधिक आग भरी हो सकती है, उसकी संस्कारी व मर्यादित छव के पीछे इतनी हिंसक प्रवृत्ति छुपी हो सकती है।
"देख रही हूँ मन्यु, वीर्य ही वीर्य भरा है इनमे। तुम्हारे कड़क लंड की इन नीली-लाल-हरी नसों को भी देख रही हूँ मैं, बिलकुल मेरे अपने दिल जैसी धड़क रही हैं और ...और तुम्हारा यह चिकना सुपाडा़ ओह! अभिमन्यु तुम्हारा यह बैंगनी सुपाड़ा तो मुझे पागल ही कर देगा बेटा ...कितना प्यारा है यह, जैसे कोई छोटा सेब हो। इसमे से बहार निकलते गढ़े रस की खुशबू, आऽईऽऽ...." अतिउत्तेजित वैशाली इसके आगे कुछ और नही कह पाती, चीखते हुए अपने दोनो से वह सचमुच किसी पागल भांति अपने बालों को नोंचने लगती है।
"क्या माँ ...खुशबू क्या?" अपनी माँ के ताउम्र रहे स्वच्छ मुंह से अपने लंड की इतनी अधिक अश्लील प्रशंसा सुनकर तत्काल अभिमन्यु भी उद्विग्न स्वर मे पूछता है, अपनी माँ के हाथों से उसके केश छुड़वाकर उसने उसके तमताते चेहरे को अपनी मजबूत हथेलियों से बलपूर्वक थाम लिया था।
"मैं तुम्हारा लंड नही चूस सकती, तुम ...तुम जबरदस्ती इसे अपनी माँ के मुंह मे ठूंस दो मन्यु और फिर जितना चाहो उतना मेरे गंदे मुंह को चोदो बेटा मगर मैं ...." एक बार पुनः वैशाली बोलते-बोलते रूक गई, उसके अंतर्मन मे रह-रह कर यह विस्फोटक प्रश्न उठ रहा था कि क्या अब वह एक ऐसी नीच माँ बन जाएगी जो अपने ही सगे जवान बेटे का लंड चूसा करती है और इसी विशेष उल्लाहना से दुखी वह नंगी अधेड़ माँ चाहकर भी स्वयं अपने बेटे के अत्यंत सुंदर व विशाल लंड को अपने छोटे--से मुंह की गहराई मे नही उतार पा रही थी, अपने बेटे को अपने मुखमैथुन की परिपक्व कला से आनंदित नही करवा पा रही थी, बेटे के गाढ़े सुगंधित वीर्य को चखने का साहस नही जुटा पा रही थी, बेटे की इस पापी मांग को जरा भी स्वीकार नही कर पा रही थी।
"जबरदस्ती और तुम्हारे साथ ...हाँ जबरदस्ती तो मैं जरूर करूंगा मगर मेरी वह जबरदस्ती तुमसे अपना लंड चुसवाने की नही सिर्फ तुम्हारी चूत को चाटने की होगी, उसे जी भरकर चूसने की होगी माँ" मुस्कुराकर ऐसा कहते हुए अभिमन्यु ने उस तात्कालिक घटनाक्रम को एक नई दिशा प्रदान कर दी। वह वैशाली को दोबारा बिस्तर पर गिरा देता है, अंतर महज इतनी था कि कुछ वक्त पीछे उसने हँसते-हँसते उसे बिस्तर पर पटक दिया था अब उसे हल्का का धकेलने भर से उसका काम पहले से भी अधिक आसान बन गया था।
"मत ...मत मन्यु, तुम्हारे आने से पहले तुम्हारे पापा ...." वैशाली अपने कथन को पूरा कर पाती, अभिमन्यु ने फौरन उसके बोलते मुंह पर अपनी दाईं हथेली को दबा दिया।
"श्श्श् मॉम! कुछ मत कहो, मुझे सब पता है और मैं उनसे कन्फर्म भी कर चुका हूँ की वह कबतक घर लौटेंगे" उसने बताया और साथ ही बिस्तर पर नंगी लेटी अपनी माँ की जुड़ी टांगों को विपरीत दिशा मे चौडा़ते हुए अतिशीघ्र वह उनके बीच पसर जाता है।
"कबतक लौटेंगे? तुम्हें ...तुम्हें कैसे पता चला कि ...आईऽऽ मन्यु! मान जाऽऽ" एकाएक वैशाली की कामुक सीत्कार से उसका अपना बेडरूम गूंज उठता है क्योंकि उसके प्रश्न की समाप्ति से पहले ही उसके बेटे ने उसकी रस उगलती चूत के रोंएदार आपस मे चिपके दोनो सूजे होंठों पर एकसाथ अपनी गीली व खुरदुरी चपटी जीभ को पूरी लंबाई मे रगड़ दिया था।
"वह सीधे शाम को आएंगे और माँ और तुम्हारी रज बहुत गाढ़ी, बहुत ...बहुत स्वादिष्ट है" अपनी बात पूरी करने के लिए क्षणमात्र को वैशाली के भभकते चूतमुख से अपनी जीभ हाटाने के उपरान्त अभिमन्यु पुनः उसे अपनी माँ की अत्यंत मादक, सुगंधित चूत की गीली पर्त पर रगड़ना शुरू कर देता है। निश्चित अपनी माँ का ध्यान बांटने के उद्देश्य से ही उसने अपने पिता से संबंधित जानकारी को अबतक उससे छुपाकर रखा था ताकि सही समय पर वह अपनी माँ को यथासंभव चौंका सके और जिसके परिणामस्वरूप उसका अपना बेटा होने के बावजूद भी वह उसके शरीर के सबसे वर्जित अंग, उसकी चूत से अपना मुंह बिना किसी अवरोध के सटा देने मे पूर्णरूप से सफल चुका था।
"उल्प्प्!" इसी बीच वह क्षण भी आया जिसकी अभिमन्यु जैसे अपरिपक्व जवान मर्द को कोई उम्मीद नही थी मगर वैशाली जैसी परिपक्व स्त्री को यकीनन इसी क्षण का इंतजार था। हुआ कुछ यह कि जबतक अभिमन्यु अपनी माँ की चूत के चिपके चीरे के ऊपर-ऊपर अपनी गीली जीभ फेरता रहा तबतक उसके आनंद, उसके अखंड रोमांच की कोई सीमा नही थी मगर ज्यों ही उसकी लपलपाती जीभ ने उसकी धधकती चूत के भीतर प्रवेश किया। उसकी माँ की चूत भीतर की घनघोर तपन, भरपूर चिकनापन, लिसलिसाहट, कसैला स्वाद, फड़फड़ाता अंदरूनी जीवंत मांस व एक ऐसी अजीब--सी गंध जिसमे उसकी माँ की गाढ़ी रज, उसके पसीने और उसके मूत्र का मिश्रण शामिल था; उसे एकाएक अकबकाई भर उठी थी और इससे पहले कि उसकी माँ को उसके जी मचला जाने के संबंध मे कुछ भी पता चल सके, वह दृढ़ता से प्रयत्न करता है कि वह उसके चूतमुख से अपना मुंह ना हटाए परंतु चाहकर भी वह पुनः अपनी जीभ को वैशाली की चूत के रस उगलते वर्जित छिद्र के भीतर ठेलने मे सक्षम नही हो पाता।
"चलो अब उठ जाओ, तुमने कोशिश की मुझे अच्छा लगा" अब चौंकने की बारी अभिमन्यु की थी और चौंकने से कहीं अधिक उसे अपनी माँ के कथन को सुनकर दुख पहुँचा था।
"तुम्हारी चूत को चाटूंगा, जी भरकर तुम्हारी गाढी़ रज पियूंगा माँ" सुबह से दर्जनों बार अपनी माँ से कहे उसके यह खोखले शब्द तत्काल उसे कुंठा से भर देते हैं, शर्मशार वह अपनी आँखें तक मूंद लेने पर विवश हो जाता है।
"होता है मन्यु, सबके साथ ऐसा होता है। औरत हो या मर्द, एक-दूसरे के गुप्तांगों को पहली बार अपने मुंह से सुख पहुँचाने मे घिन आती ही आती है। शर्मिंदा मत हो, मुझे तुमसे कोई शिकायत नही" वैशाली प्रेमपूर्वक अपने बेटे को समझाते हुए बोली। सहसा उसे उस बीते वक्त की याद आ गई थी जब पहली बार उसने अपने पति के लंड को अपने मुंह के भीतर ठूंसा था, हालांकि वह कोई जबरदस्ती भरा कृत्य नही था बल्कि हर पतिव्रता की भांति वह भी मणिक को यौन सुख के अखंड आनंद से परिचित करवाने का अनूठा प्रयत्न कर रही थी। अभिमन्यु को महज एक अकबकाई आई थी मगर इसके विपरीत वैशाली को तत्काल उल्टियां होनी शुरू हो गई थीं, अब इसे मणिक के प्रति उसका नैसर्गिक प्रेम ही कहा जाएगा की कुछ दिनों पश्चात उसने अपने अनूठे प्रयत्न को पुनः दोहराया और तबतक दोहराती रही थी जबतक कि वह बिना किसी घृणा के उसके लंड को परिपक्व होकर चूसना नही सीख गई थी।
"बाल ...बाल मुंह मे आ गए थे मॉम, झांटे बहुत बड़ी हैं ना तुम्हारी" अभिमन्यु हकलाते हुए बोला, वह बड़े जतन से मुस्कुराने का भी अभिनय करता है मगर उसकी हकलाहट उसकी फीकी मुस्कान का भेद छुपाने मे सफा नाकाम थी। बस अपने अश्लील झूठ से उसने अपनी माँ को लज्जा से अवश्य भर दिया था और जो बिस्तर पर उसके संग स्वयं भी पूर्णरूप से नंगी होकर लेटी अपने चेहरे की सुर्खियत के कारण उसके बेटे को किसी काल्पनिक काम सुंदरी सामान नजर आने लगी थी, जिसके अतुलनीय कामुक सौंदर्य का कोई मोल नही था, कोई तोड़ नही था, कोई विकल्प नही था।
"इक्स्पिरीअन्स नही मेरे पास ओरल सेक्स का मम्मी। तुम तो मुझसे बड़ी हो ...मेरी माँ हो, तुम मुझे गाइड क्यों नही करती?" शैतानीपूर्वक अपने पिछले कथन मे जोड़ वह वैशाली की दोनो पिण्डलियों को बारी-बारी थामकर उन्हें ऊपर उठाने के पश्चात उसके घुटने सीधे उसके कंधों पर दबा देता है। स्त्री मुखमैथुन व उसकी घनघोर चुदाई करने का सर्वोत्तम आसन जिसे उस जवान नवयुवक ने अनगिनती नीली फिल्मों मे देखा था, जिसमे औरत का गुप्तांग अधिकाधिक उभरकर स्पष्ट उसके प्रेमी को नजर आने लगता है।
"बेशर्म! अब क्या एक माँ खुद अपने बेटे को उसकी चूत चाटने या उसे चूसने का गाईडेन्स देगी?" अभिमन्यु की निकृष्ट मांग और उसकी शारीरिक हरकत से अत्यंत रोमांचित होते हुए वैशाली ने उल्टे उसीसे सवाल किया, उस माँ की कामुत्तेजना जैसे अकस्मात् दूनी बढ़ गई थी जब वह महसूस करती है कि उसके सगे बेटे को उसकी रस उगलती चूत के अलावा अब सिकुडन से भरा, कंपकपाता उसका कुंवारा गुदाद्वार भी प्रत्यक्ष दिखाई दे रहा होगा।
"क्यों इसमे क्या बुराई है?" अभिमन्यु ने अपनी फट पड़ी आँखों को अपनी माँ के बेहद कुलबुलाते गहरे भूरे रंगत के गांड के छेद से सटाते हुए पूछा, जिसके चहुं ओर भी उसकी घनी काली झांटों का अखंड साम्राज्य मौजूद था। कुछ पसीने और कुछ उसकी माँ की चूत से बहे उसके गाढ़े कामरस से उसकी गांड की दरार पूरी तरह गीली व चिपचिपी नजर आ रही थी और उसके मलद्वार से उठने वाली तीखी गंध ने तो एकाएक पुनः अभिमन्यु को अपनी सांस रोक देने पर विवश कर दिया था।
"बुराई-वुराई मैं कुछ नही जानती और अब उठो फटाफट वर्ना तुम्हारा फिर से जी मचला जाएगा और मैं नही चाहती की तुम्हारी तबियत पर इसका कोई बुरा असर पडे़" कहकर वैशाली अपने कंधों से पार निकली अपनी टांगों को अभिमन्यु की हथेलियों से मुक्त करवाने का प्रयत्न करती है मगर तभी अपने बेटे के अगले विध्वंशक कथन और उसकी विस्फोटक हरकत से उस माँ के कान क्षणभर को शून्य मे परिवर्तित हो गए। उसके पेट मे अचानक असहाय मरोड़ उठने लगी, पूरा नग्न बदन एकसाथ ऐंठ गया, चूत झड़ने को पहुँच गई और संग-संग अति-संवेदनशील उसकी गांड का छेद भी अविश्वसनीय संसनाहट से भर उठा।
"हम्फ्! हम्फ्! देखो माँ, मैं तुम्हारी गांड के छेद को सूंघ रहा हूँ, और मुझे घिन नही आ रही। हम्फ्! बिलकुल भी नही आ रही"
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