Maa ki Chudai मा बेटा और बहन
01-06-2019, 11:13 PM,
#24
RE: Maa ki Chudai मा बेटा और बहन
घर के मुख्य दरवाजे पर हुए पुनः आघात के परिणामस्वरूप वैशाली उस आघात को सीधे अपने धुकनी समान धड़कते दिल पर महसूस करती है और एकाएक एकसाथ उसके मन-मस्तिष्क मे कई तरह की सकारात्मक व नकारात्मक संभावनाएं जन्म लेने लगती हैं।

"कौ ...कौन हो सकता है?" वह बाईं हथेली से तत्काल अपने माथे पर पनपे पसीने को पोंछते हुए फुसफुसाई।

"कोई जान-पहचान वाला, कोई अपरिचित ...अभिमन्यु! अभिमन्यु तो नही" वह कांपते हुए सोफे से उठ खडी़ हुई, जब इसबार भी दरवाजे पर लगातार थापें पड़ना शुरू हो जाती हैं। कुछ वक्त पीछे इसी को अपने बेटे की बेचैनी समझ उसने बिना सोचे-विचारे नग्न ही दरवाजा खोल दिया था और जिसके नतीजन बीते जीवन मे पहली बार उसे अपने पति के समक्ष आंतरिक शर्म का अहसास हुआ था। अपनी जिस संस्कारी विवाहित छव पर उसे ताउम्र गर्व होता रहा था, इस तात्कालिक समय मे उसकी वह मर्यादित छव जैसे खंड-खंड हो चुकी थी।

"कहीं यही तो वापस नही लौट आए? कहीं इन्हें मुझपर कोई शक तो नही हो गया? कहीं मणिक मुझे परखना तो नही चाहते कि उनकी गैरहाजिरी मे उनकी बीवी क्या पापी गुल खिला रही है? आवाज देकर कन्फर्म भी तो नही कर सकती कि दरवाजे के उसपार कौन है, पहले भी मैंने कहाँ कन्फर्म किया था?" अपने ही संशित प्रश्नों से आप थर्रा उठी वैशाली सहसा अपने दोनो हाथों से अपने बाल नोचते हुए सीधे अपने बेडरूम की दिशा मे दौड़ पड़ती है मगर अभी वह हॉल के बीचों-बीच भी नही पहुँच सकी थी कि मुख्य दरवाजे के उसपार से गूंजे अभिमन्यु के ह्रदयविदारक स्वर ने उसके तीव्र कदमों को वहीं जमा कर रख दिया था।

"घबराओ मत माँ, मैं अकेला हूँ। तुम दरवाजा नही खोल रहीं, शायद तुमने मेरी कसम तोड़ दी। अगर ऐसा है तो मैं वापस लौट रहा हूँ, तुम्हें मेरी वजह से और ज्यादा परेशान होने की जरूरत नही है" वह एक अंतिम थाप दरवाजे पर देते हुए बोला और ना जाने उसके स्वर मे ऐसा क्या मर्म छुपा था जिसे महसूस कर वैशाली की अपनी नग्नता को लेकर सारी लज्जा पल मे हवा हो गई और उसी क्षण पलटकर वह उतनी ही तेजी से घर के मुख्य दरवाजे की ओर दौड़ पड़ने पर विवश हो जाती है।

"एक माँ अपने बेटे की कसम कभी नही तोड़ सकती मन्यु। देखो ना, मैं सिर से लेकर पांव तक नंगी हूँ और तुम वापस लौटने की बात कर रहे हो" अतिशीघ्र वैशाली ने बिना किसी अतिरिक्त झिझक के दोबारा घर के मुख्य दरवाजे को खोल दिया और उसपार खड़े अपने बेटे को अपने अनैतिक कथन का साक्ष्य, अपनी पूर्णनंगी अवस्था से परिचित करवाते हुए बोली। उसकी मंद-मंद मुस्कुराहट दो पाटों मे बंटी उसकी आंतरिक व्यथा की सफल परिचायक थी, जिसमे यकीनन निरंतर तेजी से बदलते जा रहे उसके अनेकों भावो का समावेश शामिल था।

"ओह माँ! ओह माँ! ओह माँ! आई लव यू, सच मे बहुत प्यार करता हूँ मैं तुमसे" अभिमन्यु अपनी माँ के अश्लील कथन और उसके अपनी सुडौल नंगी काया के लज्जाहीन प्रदर्शन से मन्त्रमुग्ध होते हुए सिसका और तीव्रता से फ्लैट के भीतर प्रवेश कर जाता है, तत्पश्चात उसने उसी तीव्रता से घर के मुख्य द्वार को लॉक किया और दो-चार कदम पीछे हट चुकी अपनी माँ के गौरवर्णी नग्न रूप-स्वरूप का वह अत्यंत बेशर्मी से चक्षुचोदन करने लगा। उसने स्पष्ट देखा कि उसकी माँ का चेहरा नीचे को झुक गया था, अपनी दाहिनी हथेली को अपने सपाट चिकने पेट पर रखे शर्म से लाल पड़ी वह अपने बाएं हाथ की उंगलियों के नुकीले नाखूनों से अपनी बाईं जांघ की बेहद कोमल त्वचा को हौले-हौले कुरेदे जा रही थी। जबतक वह अपने पैरों के पंजों पर भी खड़ी हो जाती जो प्रत्यक्ष प्रमाण था कि वह अपने लगातार तेजी से ऐंठते जा रहे नग्न बदन की कष्टकारी ऐंठन से मुक्त होने का हरसंभव प्रयत्न करने को विवश थी।

"क्या तुम मुझसे ...अपने सगे बेटे से शर्मा रही हो मम्मी?" वह आगे बढ़कर अपनी दाईं हथेली से वैशाली की ठोड़ी को पकड़, उसका पसीने से तर-बतर चेहरा ऊपर उठाते हुए सीधे उसकी सुर्ख लाल आँखों मे झांककर पूछता है। उसकी आँखों मे तैरतीं उसकी काली गोल दोनो पुतलियां कुछ इस तरह हिल रही थीं जैसे ठहरे हुए पानी की सतह पर बारम्बार भूचाल आ रहा हो, निश्चित जिनकी गहराई मे अभी वासना से कहीं अधिक शर्म का वास था। वह अपने बाएं हाथ को अपनी माँ के जूड़ाबंद बालों पर रख अपनी उंगलियों की मदद से एकाएक उन्हें खोल देता है जो तत्काल उसकी माँ की नंगी पीठ, उसके नग्न कंधे और उसके अत्यंत सुंदर चेहरे पर चहुं ओर बिखर जाते हैं, फौरन उसने वैशाली की लंबी लटों को उसके कानों के पीछे दबाया तत्पश्चात वह उसके माथे पर एक लघु चुम्बन अंकित कर मुस्कुराने लगता है।

"मन्यु तुम्हारे ...." अपने बेटे के हाथों का स्पर्श अपने चेहरे पर महसूस कर वैशाली ने कुछ कहने के लिए अपने होंठ खोले ही थे कि तुरंत अभिमन्यु अपना दायां अंगूठा उसके खुले होंठों के मध्य रख उसे वहीं चुप करवा देता है।

"शश्श्श्श्श् माँ! कुछ ना कहो। तुम कांप रही हो, जोरों से हांफ रही हो, तुम्हारी आँखें खुली नही रह पा रहीं, तुम अंगड़ाई लेने को मचल रही हो, तुम्हारे निप्पल बेहद कड़क हो चुके हैं, चूत से निकलकर तुम्हारा रस तुम्हारी नंगी जांघों तक बहा चला आया है, तुम्हारी गांड तुम्हारे लाख रोकने के बाद भी हिलना बंद नही कर रही और मैं बेवकूफ पूछ रहा हूँ कि तुम मुझसे शर्मा तो नही रहीं" अभिमन्यु उसके नाजुक होंठों पर अपने अंगूठे का घर्षण देते हुए बोला। दाएं से बाएं, बाएं से दाएं वह गोल-गोल आकृति मे लगातार अपना अंगूठा अपनी माँ के नर्म दोनो होंठों पर दबा रहा था, रगड़ रहा था, उन्हें उमेठ रहा था। अपने बेटे के मुंह से अपनी तात्कालिक उत्तेजित स्थिति की अनैतिक प्रशंसा सुन वैशाली की चूत के सूजे होंठ भी स्वतः ही फड़क उठे थे जैसे वह अपने अंगूठे से उसके उन्हीं सूजे होठों का मर्दन किए जा रहा हो, उस माँ को अपनी लज्जित परिस्थिति पर बेहद अचंभा होता है जब ना चाहते हुए भी अपने बेटे की निकृष्ट हरकत के समर्थन मे वह एकाएक उसके अंगूठे को अपने होंठों के बीच फंसा लेती है और अविलंब उसे बलपूर्वक चूसना शुरू कर देती है।

"उस छाले का दर्द अब मेरे लंड पर पहुँच चुका है माँ, अगर मेरे अंगूठे के बजाय तुम मेरे लंड को चूसोगी तो शायद मुझे इससे ज्यादा राहत मिलेगी" दुष्ट हँसी हँसते हुए अभिमन्यु बिना किसी झिझक के बोला, उसके कथन मे शामिल उसकी पापी चाह के फलस्वरूप तत्काल वैशाली की चूत की अंदरूनी गहराई मे इस कदर स्पंदन होना आरंभ हो जाता है, जिससे अतिशीघ्र राहत पाने की आकांक्षा मे वह सबकुछ भूलकर अपने निचले धड़ को बेशर्मों की तरह अपने बेटे की मर्दाना जांघ पर घिसने लगती है। उसका अंगूठा चूसती वह अधेड़ नंगी माँ अचानक किसी बेल समान उसके बलिष्ठ शरीर से लिपट गई थी और कब धड़ाधड़ वह अपनी झरने--सी बहती चूत को अपने बेटे की कठोर बाईं जांघ पर अत्यंत बेचैनीपूर्वक ठोकने लगी थी, उसे स्वयं पता नही चल पाता।

"मन्यु! ओह मन्यु, तुम्हारे उफ्फऽऽ ...तुम्हारे ..." अपने जबड़े भींच वैशाली अपने बेटे को कुछ वक्त पीछे घटी घटना से परिचित करने का हरसंभव प्रयास करती है, अपने पति के अकस्मात् घर लौट आने के विषय मे वह अभिमन्यु को बताना चाहती थी मगर अपनी दयनीय परिस्थिति के हाथों मजबूर उसके मुंह से उसकी जोरदार सीत्कारों के सिवाय यदि कुछ बाहर निकला था तो वह था उसकी गाढ़ी लार से भीगा उसके बेटे का दायां अंगूठा जिसे वह एकाएक पुनः मूक हो जाने के पश्चात दोबारा तीव्रता से चूसने लगी थी।

"शश्श्श्श्! मैंने कहा ना, कुछ ना कहो और यह भी बता चुका हूँ कि दर्द मेरे अंगूठे मे नही, मेरी जींस और जॉकी के अंदर खड़े मेरे लंड मे हो रहा है। उन्ह! मैं अब और इंतजार नही कर सकता मॉम, मुझे मेरे तड़पते हुए लंड पर तुम्हारे इन मुलायम होठों की सख्त जरूरत है। मैं उसकी दर्द भरी जकड़न से जल्द से जल्द बाहर आना चाहता हूँ, अपने वीर्य भरे टट्टों को तुरंत खाली करना चाहता हूँ" उद्विग्न स्वर मे ऐसा कहते हुए अभिमन्यु अपने सूखे होंठों पर जीभ फिराने लगा और अपनी थूक से उन्हें अच्छी तरह भिगोने के उपरान्त फौरन वह नीचे झुककर अपने गीले होंठ सीधे वैशाली के तनकर पत्थर हो चुके बाएं निप्पल से सटा देता है। कुछ देरतक अपने गहरे व लंबे शीतल चुंबनों से वह अपनी माँ के निप्पल की असीमित कठोरता का अनुमान लगता रहा और जब मनभरकर वह उसे चूम चुका तब बिना किसी अग्रिम संकेत के अपना अंगूठा वह अपनी माँ के रसीले होंठो से बाहर खींच लेता है।

"चलो तुम्हारे बेडरूम मे चलें मम्मी। तुम्हारे अपने बिस्तर पर जी भरकर तुम्हारी चूत चाटूँगा, तुम्हारा मन्यु आज तुम्हारी सारी तड़प चूसकर पी जाएगा क्योंकि तुम्हारी तड़प ...अब अकेली तुम्हारी नही रही माँ, उसकी अपनी तड़प मे शामिल हो चुकी है" विश्वास से प्रचूर स्वर मे ऐसा कहकर वह फौरन अपने बाएं हाथ से अपनी माँ की मांसल पिछली जांघे पकड़ लेता है और साथ ही दाहिने को उसने उसकी नंगी पीठ पर कस दिया, उसके जरा से बलप्रयोग से हतप्रभ वैशाली तत्काल उसकी बलिष्ठ भुजाओं पर टिक गई थी और अपने बीते बचपन समान वह उसे अपनी गोद मे उठाकर सरलतापूर्वक अपने कदमों को चलायमान कर देता है, बस अंतर था तो महज इतना कि बचपन मे स्वयं वह नंगा हुआ करता था मगर वर्तमान मे उसकी माँ नंगी थी।

"तुम्हारी वजह से मैं अपने बीते हुए बचपन को फिर से जी पा रहा हूँ माँ। खैर मुझे तो याद नही पर शायद उस वक्त तुम मुझे ऐसे ही अपनी गोद मे उठाकर इधर-उधर घूमती रहती होगी मगर देखो ना, आज मैंने तुम्हें अपनी गोद मे उठा रखा है। मैं बहुत खुश हूँ मॉम, बहुत खुश" अपने माता-पिता के बेडरूम के समीप पहुँचकर अभिमन्यु चिंहकते हुए कहता है, यकीनन उसके कथन समतुल्य उसकी प्रसन्नता का जैसे कोई पारावार शेष नही था।

"बचपन मे तुम नंगे रहा करते थे आज तुम्हारी बूढ़ी माँ नंगी है, फर्क सिर्फ इतना है मन्यु" वैशाली सामान्य स्वर मे बोली, काफी देर बाद उसके मुंह से स्पष्ट कुछ बाहर आ सका था। किसी जवान मर्द की मजबूत बाहों मे झूला झूलने का गर्व संसार की किस स्त्री को नही होगा और फिर वह जवान मर्द कोई अन्य नही आपका अपना लल्ला हो तो कहने ही क्या? वह अपने बेटे के अतुल्य बल पर सम्मोहित--सी हो गई थी, यह तक भुला बैठी थी कि अब से कुछ क्षणों बाद उसका वही बेटा उसकी चूत को जी भरकर चाटने व चूसने का अत्यंत पापी कार्य शुरू करने वाला था।

"हाँ तुमने बिलकुल सही कहा मम्मी, तुम नंगी मेरे हाथों मे हो यह कोई छोटी-मोटी बात नही। किसी बेटे और उसकी सगी माँ के बीच अगर कभी ऐसा हुआ हो तो उसे केवल उन दोनो का एक-दूसरे पर बेशुमार प्यार और भरोसा ही माना जाएगा मगर तुम बूढ़ी हो यह मैं नही मान सकता क्योंकि तुम्हारे बदन मे हड्डियों के अलावा अभी भी काफी चर्बी चढ़ी हुई है और तभी मैं सोचू कि ... उफ्फऽऽ! मैंने कितना भारी वजन उठा रखा है" हँसते हुए ऐसा कहकर उसने वैशाली को एकाएक उसके गद्देदार बिस्तर पर छोड़ दिया, हालांकि यह उसने बेहद सोच-विचारकर किया था और इस विशेष बात का भी पूरा ध्यान रखा था कि उसकी माँ को उतनी ऊंचाई से नीचे गिरने के बाद कोई चोट-वोट ना आ सके।

"आईऽऽ! नालायक कहीं के, कोई इतनी बेरहमी से अपनी माँ को नीचे पटकता है भला" बिस्तर पर गिरने के उपरान्त सहसा वैशाली के मुंह से निकल जाता है, वह क्रोधित नही थी पर बुरी तरह चौंक जरूर गई थी। बिस्तर के मुलायम गद्दे पर एकदम से गिर पड़ने के नतीजन उसका सम्पूर्ण गुदाज बदन दोबारा ऊपर उछालते हुए बेहद कामुकतापूर्वक हिल उठा था, उसके गोल-मटोल मम्मे उसके चेहरे से जा टकराए थे जैसे अपनी स्वामिनी की एकाएक नाराजगी से क्रोधित स्वयं उसके मुख पर थप्पड़ लगा रहे हों।

"अले अले, क्या मम्मा को पोंद मे लग गई?" पूछते हुए अभिमन्यु की हँसी से पूरा बेडरूम गूंज उठता है और यही वह अद्भुत क्षण था जब बेटे के बचपने को देख वैशाली भी खुद को हँसने से रोक नही पाती, बचपन मे अधिकतर बच्चे सभ्य भाषा मे 'गांड' को 'पोंद' कहकर सम्बोधित करते हैं और यही कारण था जो दोनो माँ-बेट एकसाथ खुलकर हँसे जा रहे थे।

"मैं नालायक हूँ, घटिया हूँ, बेशर्म हूँ, बहुत ...बहुत गंदा हूँ। तुम मुझे डांट सकती हो, गाली दे सकती हो, मार-पीट सकती हो ...चाहो तो दोबारा मेरी पॉकेटमनी बंद कर देना मगर मुझसे कभी रूठना नही, कभी खुद से अलग मत करना। मेरे दिल के इतने करीब आजतक कोई नही आ पाया, जितना इन दो दिनों मे तुम आ चुकी हो और मैं तुम्हें कभी खोना नही चाहता माँ ...कभी खोना नही चाहता" कहते है कि जो जितना हँसता है बाद मे उतना ही रोता है, कुछ ऐसा ही अचानक अभिमन्यु के साथ हुआ और बोलते-बोलते कब उसके हँसते स्वर एकाएक भर्रा उठते है वह स्वयं नही जान पाता। उसकी आँखों नम हुईं और फिर जैसे आँसुओं का सैलाब उमड़ पड़ता है, जिसे देख वैशाली की हँसी भी तत्काल रुक गई थी। जवान हो चुकने के उपरान्त शायद यह पहली बार था जो वह प्रत्यक्ष अपने बेटे को रोता हुआ देख रही थी, जबकि वह तब भी नही रोया था जब उसकी इकलौती प्यारी बहन अनुभा उनके घर से हमेशा-हमेशा को रुखसत हुई थी।

"अच्छा! तो तुम लड़कियों की तरह रोते भी हो। आओ ...यहाँ आओ अपनी माँ के पास" अपनी नग्नता को सिरे से नकारते हुए वैशाली ने फौरन अपनी बाहों को फैलाते हुए कहा, दिल तो उसका भी फट पड़ा था मगर जानती थी कि यदि वह खुद भी रोना शुरू कर देती तो उसके बेटे को किसी कीमत पर चुप नही करवा सकती थी। कुछ लोगों की विशेषता होती है, जबतक नही रोते तबतक रुलाए नही रोते और जब रोना शुरू करते हैं तब मानाए नही चुप होते। अपने बेटे के इस पुराने रोग की बचपन से जानकार उस माँ ने अतिशीघ्र बिस्तर के कोने मे सरककर अभिमन्यु को बलपूर्वक अपनी गोद मे खींचा और इसे महज आश्चर्य ही कहा जाएगा कि अबतक हरबार विफल रही वह माँ अपने स्त्री बलप्रयोग से आज पहली बार अपने बेटे को परास्त करने पूरी तरह से सफल हो चुकी थी।

"अगर सारा प्यार अपनी माँ पर लुटा दोगे तो मेरी होनेवाली बहू को कैसे खुश रख सकोगे? हम्म!" अपनी बाईं हथेली से वह प्रेमपूर्वक अपने बेटे की भीगी पलकों को पोंछते हुए पूछती है।

"अब तुम्हारी माँ तो पूरी तरह से नंगी है, कपड़े का एक कतरा तक उसके बदन पर मौजूद नही तो फिर कैसे वह अपने बेटे के आँसूओं को पोंछे। बताओ?" उसने मुस्कुराते हुए अपने पिछले प्रश्न मे जोड़ा और हौले--से अभिमन्यु की दोनो नम आँखों पर अपने मर्यादित ममतामयी चुम्बनों की बरसात शुरू कर देती है।

"तुमने मुझसे पूछा था ना कि क्या मैं तुमसे ...अपने सगे बेटे से शर्मा रही हूँ? सच कहूँ मन्यु तो हाँ, तुम्हारे सामने जबजब मैंने अपने कपड़े उतारे हैं ...मैं हर बार शर्म से पानी-पानी हुई हूँ लेकिन यह भी सच है कि मुझे ऐसा करके उससे कहीं ज्यादा खुशी भी महसूस हुई है। जानते हो क्यों?" जब अभिमन्यु उसके पिछले प्रश्नों का कोई उत्तर नही देता तब वह आगे कहना आरंभ करती है। परिस्थिति मे एकाएक कितना अधिक बदलाव आ गया था, कुछ देर पहले सिर्फ बेटा बोले जा रहा था उसकी माँ खामोश थी और अभी सिर्फ माँ बोले जा रही थी उसका बेटा खामोश था। उनकी सहजता-असहजता मे भी काफी अंतर आया था, यकीनन घर के वातावरण मे छाई अनाचारी वासना सच्चे प्रेम मे परिवर्तित हो चली थी।
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RE: Maa ki Chudai मा बेटा और बहन - by sexstories - 01-06-2019, 11:13 PM

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