RE: Maa ki Chudai मा बेटा और बहन
"डोन्ट एक्ट लाइक अ फूलिश टीनेजर मॉम, तुम्हारे इस बचकाने सवाल को सुनकर कौन विश्वास करेगा कि तुम अपनी बेटी तक की शादी कर चुकी हो। बी मैच्योर और तुमने कहीं दस जगह मुंह नही मारा, बस थोड़ी बहुत मिली अपनी फ्रीडम को एंजॉई कर रही हो एण्ड रियली एप्रीशियेट देट" डांटते स्वर मे ऐसा कहकर अभिमन्यु अपनी बाइक के नजदीक पार्क की एक साफ-सुथरी बेंच पर बैठ जाता है, पार्क लगभग खाली सा था और इसी एकांतवास की उसे उस वक्त सख्त आवश्यकता भी थी।
"चलो छोड़ो इन इजूल-फिजूल बातों को, यह बताओ कि क्या पापा ने कभी तुम्हारी चूत को चाटा है? मुझे पक्का यकीन है कि उन्होंने ऐसा कभी नही किया होगा" उसने बिना रुके अपने पिछले कथन मे जोड़ा, वह अच्छे से जानता था कि एकबार पुनः वह अपनी माँ की निजता से खिलवाड़ कर रहा है मगर वैशाली के साथ इतने अधिक अतरंग पलों को व्यतीत करने बाद अब निजता या गोपनीयता का कोई प्रश्न उठता भी कैसे?
अभिमन्यु को काफी देर तक दूसरी तरफ से कोई आवाज सुनाई नही देती, लाइन तो चालू थी परंतु उसकी माँ की धीमी सिसकियों के अलावा उसे अन्य कुछ विशेष सुनाई नही दे रहा था। जब वह बारंबार अपने उसी प्रश्न को दोहराता है तब वैशाली अपने मोबाइल का स्पीकर एक्टिवेट कर उसे अपने बिस्तर से सटी लैम्प टेबल पर रखकर, दोबारा अपनी उंगलियों से अपनी चूत को चोदना शुरू कर देती है। उसके बेटे का वही सवाल अब भी जारी था, जिसके जवाब मे वह तीव्रता से मुट्ठ मारते हुए उसे अपनी अत्यंत कामुक सीतकारों से और आंदोलित करती जा रही थी।
"देखा मॉम! मैंने सही कहा था ना कि उन्हें तुम्हारी चूत से घिन आती है और वह कभी उसे अपने होंठों से प्यार नही करते होंगे। इसके उलटे तुम उनका लंड चूसती हो, तुम्हें तो उनके लंड से कोई घिन महसूस नही होती" अभिमन्यु ने हवा मे तीर छोड़ते हुए कहा। अब उसका वह काल्पनिक उड़ता तीर उसकी माँ अपनी गांड मे ले लेती या घूम-घामकर वह स्वयं उसी की गांड मे घुस जाता, यह फैसला उसने किस्मत पर छोड़ दिया था।
"उन्ह! तुम्हें ...तुम्हें कैसे पता चला कि मैं उनका उफ्फ! ल ...लंड चूसती हूँ?" अपनी माँ के सवाल और उसमे शामिल उसकी हकलाहट को सुनते ही वह जोरों से हँस पड़ता है।
"फंस गई ना, हा! हा! हा! हा! खैर तुम्हारी गलती नही है मम्मी, कुछ लोगों की आदत होती है की वह उड़ता हुआ तीर उछलकर खुद ही अपनी गांड मे ले लेते है" हँसते-हँसते अभिमन्यु बैंच पर लेट जाने को विवश हो जाता है। उसकी माँ के भीतर कोई चालाकी, कोई शातिरपन नही है। अपने वास्तविक स्वभाव समान वह अंदर से भी उतनी भोली, उतनी ही कोमल है जितनी दिखाई देती है और यह सोचकर वह वह खुदपर काबू नही रख पाता, लगभग चीखते हुए अपनी माँ के प्रति अपने नैसर्गिक प्रेम को खुलेआम जताने लगता है।
"आई लव यू माँ, आई लव यूऽऽ" उसका ऊंचा स्वर वैशाली के बेडरूम मे भी गूंज उठा था, एकाएक वह भी जोरों से हँसने लगी और हँसते-हँसते कब उसकी आँखों की किनोर पर आँसू उमड़ आते हैं वह नही जान पाती। कामुत्तेजना की चपेट से सहसा बाहर निकली अपने बिस्तर पर पूर्णरूप से नंगी लेटी वह अत्यधिक सुंदर अधेड़ माँ भावविह्वल होकर रोने लगी थी मगर उसकी सुर्ख आँखों से बहने वाला उसका हर मूक आँसू उसके हर्ष, उसकी आंतरिक खुशी को प्रमाणित कर रहा था, अपने बेटे के निश्छल व निर्विकार प्रेम को बयान कर रहा था।
"मैं घर आ रहा हूँ माँ। तुम तुरंत हाथ हटाओ अपनी चूत से, तुम्हारी तड़प अब मेरी अपनी तड़प बन गई है और जबतक यह तड़प पूरी तरह नही मिटेगी, ना तुम्हें चैन पड़ेगा और ना मुझे। मैं अभी आ रहा हूँ घर" आवेश से भरकर ऐसा कहते हुए वह फौरन बैंच से उठ खड़ा होता है, कुछ वक्त पीछे समान घुटन मानो पुनः वापस लौट आई थी।
"नही मन्यु ...." वैशाली भी फुर्ती से उठकर बैठ जाती, उसने अपने बेटे को तत्काल रोकना चाहा मगर वह उसकी बात बीच मे ही काट देता है।
"तुम्हें मेरी कसम माँ। कपड़े मत पहनना और झड़ना तो बिलकुल नही, आज हम दोनो एकसाथ उस सुख को महसूस करेंगे जिसे हमने पहले कभी महसूस नही कर पाया है" बोलने के उपरान्त अभिमन्यु ने एकाएक लाइन काट दी और बाइक पर कूद पड़ता है।
फोन कट होते ही जैसे वैशाली के हाथ-पैर फूल गए, वह पागलों की भांति दीवार घड़ी को घूरने लगी, उसे अभिमन्यु के बाइक चालाने की तेज गति के विषय मे पहले से ही जानकारी थी और बीती बीती शाम को तो वह स्वयं उसके पीछे बैठकर मॉल भ्रमण पर निकली थी।
"ओह! क ... कै ...कैसे करूँगी यह सब? उफ्फऽऽ!" अपने ही प्रश्न पर उसका सम्पूर्ण बदन थर्रा उठा था। उसके बेटे ने उसे अपनी कसम दी थी कि वह उसका स्वागत अपनी नग्नता से करेगी और उसके आशय के मुताबिक इसके उपरान्त वह जी भरकर उसकी चूत को चाटेगा, उसकी गाढ़ी रज का भरपूर रसपान करेगा। जिस अकल्पनीय सुख से वह दोनो ही आजतक वंचित रहे थे अब से कुछ क्षणों बाद एकसाथ उस सुख के अथाह सागर मे आनंदतिरेक गोते लगाने वाले थे।
"उन्ह! निगोड़ी तेरे कारण ही यह सब हो रहा है" वह झुककर रस से सराबोर अपनी चूतमुख पर अपनी बाईं हथेली की हल्की थाप देते हुए सिसकी, पहले क्या वह कम रस उगल रही थी जो बेटे के आगमन की सूचना पाकर एकाएक झरने सी बहने लगी थी।
"हाँ वाकई, तेरे कारण ही तो यह संभव हुआ है" अगले ही पल वह बड़े प्यार से अपनी चूत की दोनो सूजी फांकों को अपनी दो उंगलियों की मदद से चौड़ते हुए मुस्कुराई। उसकी चूत के भीतर का गुलाबीपन मानो गहरी लालामी मे परिवर्तित हो गया था और जो अंदर किसी ज्वलंत भट्टी सा तप रहा था, वह अपने फूले भांगुर को भी बलपूर्वक मसल देती है और तभी फ्लैट के मुख्य दरवाजे पर जोरदार आघात हुआ। तत्काल वैशाली बिस्तर पर उछल पड़ी, घबराहटवश अपने आप उसका हाथ उसकी गीली चूत से अलग हो गया था और इसके साथ ही पुनः मुख्य दरवाजे पर आघात होने लगते है जो निश्चित उस माँ को अपने बेटे की बेचैनी का स्पष्ट प्रमाण समझ आता है।
"झूठा कहीं का! कॉलेज के पास वाले पार्क मे होता तो पाँच मिनट मे कैसे घर लौट आता?" वैशाली ने चिहंकते हुए अपने नंगे कंधे उछाले, उसने बिस्तर पर पड़ी टॉवल से अपना चेहरा पोंछा और फिर अभिमन्यु से अपनी उत्तेजना छुपाने हेतु वह अपनी गीली चूत की भी अच्छे से पुछाई कर लेती है। तत्पश्चात वह अपने बेडरूम से बाहर निकल आई, नंगी अवस्था मे घर के मुख्य द्वार को खोलना उसके पूरे बदन को कांपने पर मजबूर कर रहा था और साथ ही वह यह भी महसूस करती है कि उसके हर आगे बढ़ते कदम पर उसकी नग्न गदराई गांड अविश्वसनीय ढंग से हिल रही है, मटक रही है, नृत्य सा कर रही है और सहसा अपनी ही गांड की मादकता वह नंगी अधेड़ माँ इठला--सी जाती है।
दरवाजे के बिलकुल समीप पहुँचकर उसने कुछ गहरी-गहरी सांसें लेकर खुद को एक अंतिम बार संयत करने का असफल प्रयत्न किया, अपने ऐंठे दोनो निप्पलों को बारी-बारी स्वयं अपने कोमल व रसीले होंठों से चूमा और एक लंबी अंगड़ाई लेकर, अपने आधे नंगे बंदन को दरवाजे की ओट से बिना छुपाए ही वह झटके से फ्लैट का मुख्य द्वार खोल देती है।
"वैशालीऽऽ" दरवाजे के बाहर खड़े अपने पति के कठोर व अत्यंत क्रोधित सम्बोधन को सुन वैशाली जैसे मूर्छित होते-होते बची मगर अपने बेटे समान अपने भावों को तत्काल बदलते हुए वह एक शैतानी मुस्कुराहट के साथ दरवाजे से पीछे हटकर उसे फ्लैट के भीतर आमंत्रित करने का सफल अभिनय करती है। हालांकि गांड तो उसकी पूरी तरह से फट चुकी थी पर अभिमन्यु के संग अश्लीलता, अनैतिकता, निकृष्टता आदि अमर्यादित खेल लगातार खेलने से उसके भीतर कोई विशेष बदलाव आया हो या नही मगर वह अब पहले की भांति डरपोक नही रही थी, यकीनन एक साहसी नारी मे तब्दील हो गई थी।
"तुम ...तुम नंगी? शर्म आनी चाहिए तुम्हें" सामाजिक भय के कारण मणिक ने कोई विलंब नही किया और अतिशीघ्र फ्लैट के अंदर आ जाता है और उतनी ही तेजी से मुख्य द्वार को बंद करते हुए उसने अपनी मुस्कराती पत्नी की ओर पलटकर पूछा।
"अपने पति का इससे बढ़िया स्वागत कोई पत्नी भला कर कभी सकती है?" मणिक के प्रश्न का जवाब देने के बजाए वैशाली सीधे उसे अपनी नंगी बाहों मे जकड़ते हुए पूछती है मगर उसका क्रोधित पति उसे खुद से दूर धकेलते हुए फौरन उसके नग्न आलिंगनपाश से मुक्त हो जाता है।
"तुम कैसे इतना श्यॉर थीं कि दरवाजे के उस पार मैं ही था, कोई और भी तो हो सकता था? अभिमन्यु भी तो लंच के लिए कॉलेज से आने वाला था अगर मेरी जगह वह होता तो सोचो उसके दिल मे तुम्हारी क्या इज्जत रह जाती? नंगी ...कैसे घर का मेन गेल खोल सकती हो तुम" मणिक ने एकसाथ कई सवालों की झड़ी लगाते हुए पूछा परंतु अपनी पत्नी के मुखमंडल पर बरकरार मुस्कुराहट देख वह चौंकाने से भी खुद को रोक नही पाता है।
"नहाकर निकली, बालकनी मे कपड़े सूखने डालते समय मल्टी के एंट्रेंस पर तुम्हें और तुम्हारे स्कूटर को देखा ...." इतना कहकर वैशाली अपने गाल फुलाकर रूठने का नाटक शुरू कर देती है।
"अभिमन्यु मेरा बेटा है, मैं माँ हूँ उसकी, अपनी इसी कोख मे नौ महीने पाला है मैंने उसे। अपने सगे बेटे के समाने कैसे नंगी खड़ी रह सकती हूँ, क्या मुझे शर्म नही आएगी? उफ्फ! मेरे लिए तो यह सोचना भी पाप है, मैं नंगी ....अपने जवान बेटे के सामने छि!" अपने नग्न पेट पर दाहिना हाथ रखकर उसने स्त्री त्रिया-चरित्र का बेमिसाल उदाहरण पेश करते हुए पिछले कथन मे जोड़ा। अपनी आँखों की किनोर से वह अपने क्रोधित पति के तमतमाते चेहरे का गुपचुप अवलोकन भी कर रही थी और जिसमे एकाएक आया शीतल बदलाव तत्काल उस पापिन की गांड के छेद को मीठी-मीठी खुजाल से भर देता है।
"मुझे माफ करना वैशाली, मैंने बेवजह गुस्से मे आकर ना जाने तुमसे क्या-कुछ उलटा-सीधा कह दिया। वैसे मेरी भी गलती नही है, अपनी बीबी के ऐसे बॉम-ब्लास्ट सप्राइज से तो दुनिया का हर पति घबरा जाएगा" मणिक ने फौरन पछतावा जताते हुए कहा, उसका कठोर स्वर अचानक ही किसी याचक के नम्र स्वर मे परिवर्तित हो गया था।
"आप अगर घबरा जाते तो मुझे खुशी होती मगर आप तो हमेशा मुझे डांटते ही रहते हैं, मैंने तो सोचा था इतने दिनो बाद कुछ प्राइवेसी मिली है ...मगर आप तो मुझे हमारे बेटे के सामने नंगी ..." भर्राए स्वर मे ज्यों ही वैशाली ने अपने पति के ह्रदय पर मार्मिक आघात किया मणिक तीव्रता से आगे बढ़ उतनी ही तेजी से उसे कसकर अपने अंक मे जकड़ लेता है।
"नही वैशाली नही, मत उदास हो। मैं अच्छे से समझता हूँ कि मुझसे बिछड़कर तुम्हें कितना बुरा लगता होगा, बल्कि मैं खुद तुम्हारे बगैर कितना तड़पता हूँ बता नही सकता मगर यही बिछड़न तो सचमुच हमें जोडे़ हुए है वर्ना बताओ साथ रहने की चाह मे क्या हमारा और हमारे बेटे का भविष्य नही बिगड़ जाएगा? अरे! हमारा त्याग ही तो आगे चलकर अभिमन्यु की किस्मत बदलेगा और शादीशुदा होने के बाद अपने नन्हे-मुन्नो को वह हमारे इसी त्याग और संस्कारो के बारे मे बड़े गर्व से बताया करेगा" छाती से लिपटी अपनी नग्न पत्नी की नंगी चिकनी पीठ पर मणिक अपनी बाईं हथेली को हौले-हौले फेरते हुए बोला। पति के सदाचारी प्यार और उसके शरीर की सात्विक तपिश से तत्काल वैशाली भीतर तक शर्मिंदगी महसूस करने लगती है, उसके बदन की सारी वासना, सारी गंध को मानो पति के एक आलिंगन ने पूरी तरह से मिटा दिया था, उसका अंग-अंग सुगंधित कर दिया था। इसी बीच मणिक का मोबाइल बज उठा और वह वैशाली को अपने ह्रदय से लगाए रखते ही कॉल पिक कर लेता है।
"हाँ तिवारी जी, बस ज्यादा से ज्यादा आधा घंटा लगेगा"
"अरे! रोकिए उस यूडीसी को तिवारी जी"
"अच्छा आज उसका हॉफ टाइम है, चलिए मैं बस बीस मिनट मे पहुँचता हूँ, बिलकुल ...बिलकुल निकल चुका हूँ घर से"
"वैशाली! मेरा चमड़े वाला हैन्ड बैग निकालो, उसमे रद्द हुए पिछले टूर के बिल रखे हैं" कॉल कट कर उसने कहा।
"मैं ...मैं कुछ पहन लूं फिर ...." अपने पति की अधेड़ बाहों से आजाद होते ही वैशाली लज्जा से भरते हुए बोली।
"समय नही है, वह बाबू बहुत जिद्दी स्वभाव का है दोबारा बिल पास करवाने मे कोई हेल्प नही करेगा" मणिक ने उसे अपनी व्यथा बतलाई।
"और वैसे भी तुम नंगी ज्यादा सुंदर लग रही हो, काश मेरा बस चलता तो मैं कभी तुम्हें कपड़े नही पहनने देता। सचमुच वैशाली यू आर लुकिंग डेम हॉट राइट नाउ" वह मुस्कुराकर अपनी नंगी बीवी को उसके सिर से लेकर पाँव तक घूरते हुए अपने पिछले कथन मे जोड़ता है।
"आप भी ना, बस ...." इसके आगे वैशाली कुछ और नही कह पाती, अपने पति के अश्लील कथन को सुनकर सहसा उसे अपने बेटे की अश्लीलता याद आ गई थी और शर्म से अचानक लाल पड़ी वह वह नंगी अधेड़ पत्नी और साथ ही दो जवान बच्चों की अत्यधिक सुंदर माँ सीधे अपने बेडरूम की ओर दौड़ लगा देती है। अपनी कामुक दौड़ से तो उसने मणिक के सीने मे जैसे कोई खंजर ही उतार दिया था और अपनी पत्नी के पीछे जोरदार आहें भरते हुए वह भी दौड़ पड़ा था।
अपने बेडरूम के भीतर आकर वैशाली ने आनन-फानन मे गॉदरेज की अलमारी खोली, अलमारी के सबसे निचले ड्राअर मे मौजूद पति के हैन्ड बैग को ड्राअर से बाहर निकाले के लिए वह बिना किसी सोच-विचार के आगे को झुक जाती है। हालांकि यह उसने जानबूझकर नही किया था पर उसके एकदम से नीचे को झुक जाने के कारण उसके पीछे खड़े मणिक को उसकी चिपकी मांसल जांघों के बीचों-बीच बाहर को उभर आई उसकी सांवली-सलोनी चूत के दुर्लभ दर्शन होने लगते है, काली घनी झाटों के मध्य उसकी चूत के बेहद सूजे होंठ उसे अब भी ठीक उतने ही कामुक नजर आते हैं जितने उनकी सुहागरत पर आए थे।
"इसकी गांड मे तो सचमुच मेरे प्राण बसते हैं" मणिक पत्नी की गांड के गौरवर्णी दोनो गुदाज पटों को घूरते हुए बुदबुदाया जिनकी गहरी दरार के भीतर उगी झांटों के संग उसे पसीने की अधिकता से चमचमाता उसका कुंवारा मलद्वार भी स्पष्ट दिखाई दे रहा था, उसका दायां हाथ स्वतः ही पैंट के ऊपर से उसके तेजी से तनते हुए लंड पर पहुंच गया और ठीक उसी वक्त वैशाली पुनः सीधी हो जाती है।
"यह लीजिए" उसने पलटकर हैन्ड बैग मणिक की और बढ़ाते हुए कहा, वह फुर्ती से अपना हाथ अपने खड़े लंड से झटकता है और अत्यंत-तुरंत वैशाली सारा मसला समझ जाती है।
"इन्हें कल कर दीजिएगा जमा" उसने मुस्कान के साथ पति की पैंट के तम्बू को निहारते हुए पिछले कथन मे जोड़ा, उसके तम्बू की विशालता को देख क्षणमात्र मे वैशाली की चूत पनियाना शुरू हो गई थी।
"रात मे मॉइ लव ... तुम्हारी सारी शिकायतें दूर कर दूंगा। प्रॉमिज!" कहकर मणिक अनमने मन से बेडरूम के बाहर जाने लगा, कितने दिनो बाद तो आज उसे अपनी पत्नी के साथ संभोग करने का सही मौका नसीब हुआ था और उसपर भी उसके पैसे कमाने की ललक ने सफा पानी फेर दिया था।
"चाहें तो चूस दूँ, ऐसी हालत मे कैसे जाएंगे?" वैशाली ने भी उसके पीछे-पीछे हॉल मे आते हुए पूछा, इस समय उसे बस अपने पति की उत्तेजना शांत करने से मतलब था इसके अलावा शर्म-बेशर्मी, मान-मर्यादा आदि की जैसे उसे कोई परवाह नही थी।
"थैंक्स डार्लिंग ...रात मे" कहकर वह वैशाली के होंठ चूम लेता है।
"नंगी ही मुझे विदा करो ना" मणिक तब शैतानी मुस्कान के साथ अपने पिछले कथन मे जोड़ता है जब वैशाली एकाएक बेडरूम के भीतर जाने को मुड़ने लगी थी। बस फिर क्या था अब तो उसे अपने पति की स्वीकृति मिल गई थी और अंतत: वह मुख्य दरवाजे को पुनः खोलकर अपने पति को घर से नंगी ही रुखसत भी कर देती है।
मणिक के जाने के उपरान्त वैशाली ने दरवाजे को लॉक किया और धम्म से हॉल के सोफे पर गिर पड़ी, उसके साथ यह कैसा अजीब खेल खेल रही है उसकी किस्मत? सोफे पर बैठे एकाएक उसे रोना आ गया था, अपने बेटे या पति मे से किसी एक के चुनाव ने उसे गहरी सोच के गर्त मे ढ़केल दिया था। अपनी सोच को जल्द पूरा करने के उद्देश्य से ज्यों ही उसने अपनी पलकें बंद की तत्काल उसके पति का क्रोधित चेहरा उसकी मुंदी आंखों मे उभर आता है और जिसके भयस्वरूप वह थरथराते हुए उनके परिवार के भावी भविष्य की व्यर्थ आशंकाओं से घिर उठती है।
"आज तू बच भले गई मगर हमेशा नही बच सकेगी, पाप का घड़ा देर-सवेर पर भरता जरूर है। अगली बार अगर तू पकड़ी गई तो तेरी घर-निकासी पक्की है, तेरा पति तुझे ही दोष देगा क्योंकि तू उम्र और रिश्ते मे अभिमन्यु से बड़ी है। तेरा बेटा अभी अपने पिता पर आश्रित है, वह तुझे क्या खाक अपना पाएगा?" अपने अंतर्मन की कचोटना से पसीने-पसीने होकर वैशाली ने फौरन कपड़े पहन लेने का मन बनाया मगर सोफे उठकर वह खड़ी भी पाती इससे पहले ही घर के मुख्य द्वार पर हुए दोबारा आघात ने अकस्मात् उस नंगी अधेड़ माँ के पुनः प्राण सुखा दिए थे।
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