RE: Maa ki Chudai मा बेटा और बहन
"हो गया" वह अभिमन्यु के लाल पड़े चेहरे को देख हौले से फुसफुसाई और कमरे के दरवाजे को आधा बंद कर सीधे अपने घुटनों के बल नीचे फर्श पर बैठ जाती है।
"कुछ खाते-पीते हो नहीं और मुट्ठ मारोगे दिन मे दस बार" मुस्कान के साथ वह पुनः धीमे स्वर मे बोली और बेटे की आँखों मे झांकते हुए ही उसके झड़ चुके लंड को उसकी जड़ से, अपने बाएं हाथ की प्रथम उंगली और अंगूठे के बीच पकड़ लेती है।
"उफ्फ! पापा ....पापा कैसे ....." अभिमन्यु मानो अबतक भय और रोमांच से कांप रहा था। उसे यह तक अहसास नही हो पाता कि जवान होने उपरान्त पहली बार उसकी सगी माँ उसके लंड का स्पष्ट स्पर्श कर रही थी, अपनी उंगलियों से उसके लंड की नग्न त्वचा को छू रही थी।
"तुम्हारी इस बेवकूफी से तो मैं बाद मे निपटूंगी, पहले यह बताओ कि तुम्हें आखिर सूझा क्या था?" कहकर वैशाली अपनी मैक्सी का पिछला अंतिम सिरा अपने दाएं हाथ से ऊपर उठाने लगी, उसने अपने घुटनों के भी ऊपर-नीचे किया और जिसके नतीजन क्षणभर मे उसकी मांसल गांड नंगी हो जाती है मगर अब उसे अपने बेटे से कोई झिझक, कोई शर्म महसूस नही हो रही थी बल्कि अपनी मैक्सी के छोर से वह प्रेमपूर्वक बड़ी नाजुकता से अभिमन्यु के वीर्य से लथपथ सुपाड़े को पोंछने लगी थी।
"पापा बाहर हैं माँ" अपने कमरे के अधखुले दरवाजे के उसपार अपने पिता की मौजूदगी का ध्यान कर वह वैशाली को रोकने के उद्देश्य से नीचे झुकते हुए बोला।
"तो होने दो, अपने बेटे के लंड को साफ कर रही हूँ इसमे उनकी क्यों जलती है" वैशाली लापरवाही से अपने दोनो कंधे उचकाकर कहती है, अभिमन्यु तो जैसे उसके कथन मे छुपे साहस से अचंभित--सा हो जाता है। कहाँ घड़ी-घड़ी रोने-धोने मे लगी रहती उसकी ड़रपोक माँ अचानक इतनी हिम्मतवाली कैसे हो गई थी, वह यही सोच रहा था।
"नही! नही! पागल दोबारा नही" एकाएक बेटे के लंड मे तेजी से आते तनाव को देखकर सहसा वैशाली चिहंक पड़ती है और ठीक उसी वक्त उसके सुपाड़े से अपने मखमली होंठ सटाकर उसका एक लघु चुंबन लेने के उपरान्त वह फौरन फर्श से उठकर खड़ी हो गई।
"एक माँ कभी अपने जवान बेटे के लंड को नही चूमती पर फिर भी अपने जिगर के टुकड़े की जवानी पर निहाल होकर मैंने तुम्हारे लंड को चूमा, मेरे इस चुम्बन को कभी मत भूलना मन्यु जो तुम्हें मेरी, यानी कि संसार की सबसे ज्यादा प्यार करने वाली माँ की याद दिलाता रहेगा" कह चुकने के बाद वैशाली ने उसके माथे पर भी चूमा और पलटकर कमरे से बाहर निकल जाती है।
अभिमन्यु काफी देर तक दीवार से सटा खड़ा रहा, इसके बाद वह सीधे अपने बाथरूम मे घुस जाता है। नाश्ते के समय उसकी हल्की-फुल्की बातचीत अपने पिता से भी हुई और मणिक ने ही उसे बताया कि उसका यह टूर किसी कारणवश रद्द कर दिया गया है मगर उसके अगले टूर के बारे मे पूछने की ना तो अभिमन्यु की हिम्मत हो सकी थी और ना ही मणिक ने स्वयं उसे बताया था।
"मॉम! कॉलेज जा रहा हूँ, लंच पर घर आऊँगा आज कैंटीन बंद रहेगी" किचन मे काम करती अपनी माँ के कान खड़े करने के बाद वह तेजी से फ्लैट के बाहर निकल जाता है क्योंकि अब वही एकमात्र समय था जब उसे उसकी माँ के साथ भरपूर एकांत मिल सकता था वर्ना अपने पिता की मौजूदगी मे तो वह शायद ही फिर कभी वैशाली के करीब फटक सकता था।
आज अभिमन्यु कॉलेज के भीतर ना जाकर, कॉलेज गेट के बाहर बने चाय-नाश्ते के टपरे पर बैठ जाता है।
"अभी तो पौने दस हुए हैं, पापा दस बजे घर से निकलेंगे" मोबाइल मे समय देखने के तुरंत बाद वह अपने लिए एक चाय बोल देता है, दो साल से ज्यादा हो चुके थे उसे इस टपरे पर पंचायत करते हुए तो स्वाभाविक था कि उसे वहाँ बैठा देख और भी कई लड़के उसके नजदीक चले आए। सभी चाय पीते हुए इधर-उधर की बातों मे लग जाते हैं पर हमेशा पंच बनने वाला अभिमन्यु आज ना जाने कहाँ खोया हुआ था और जल्द ही वहाँ बैठे रहते हुए उसे घुटन सी महसूस होने लगती है।
"तुम बैठो यारों मैं बाइक सर्विसिंग पर डाल कर आता हूँ, काका हिसाब मे जोड़ देना" झूठा बहना बना वह बाइक लेकर टपरे के ठीक पीछे बने पार्क के भीतर चला आता है, बाइक स्टेंड पर खड़ी कर वह उसी के ऊपर बैठ गया और बिना समय देखे सीधे वैशाली का नम्बर डायल कर देता है। एक, दो, तीन; पूरे पाँच बार वह उसे कॉल कर चुका था पर दूसरी तरफ से कोई रिस्पॉन्स ना मिलने के कारण उसकी घुटने जैसे दूनी बढ़ गई थी।
"हैलो माँ! म ...मैं कब से तुम्हें फोन लगा रहा हूँ" आठवीं बार मे ज्यों ही वैशाली ने उसकी कॉल पिक की वह फौरन भर्राए स्वर मे बोला।
"क्या हुआ मन्यु, तुम्हारी आवाज ...कहाँ हो तुम?" बेटे की आवाज मे शामिल गीलेपन को तत्काल समझ वैशाली ने जवाब मे पूछा, एकाएक वह घबरा सी भी गई थी।
"कॉलेज मे हूँ मॉम मगर तुम फोन क्यों नही उठा रही थी? पता है मैं कितना परेशान हो गया था" वह उलटे अपनी माँ से प्रश्न करता है।
"झूठे! तुम कॉलेज मे नही हो, अब तुम मुझे और चूतिया नही बना सकते लड़के" वैशाली हँसते हुए कहती है, इसी सोच मे कि उसकी हँसी को सुन शायद उसके बेटे की आवाज का भर्राना खत्म हो जाए।
"कॉलेज के पास वाले पार्क मे हूँ, अब बताओ तुम कहाँ थी जो फोन लगाते-लगाते मेरे अंगूठे मे छाला पड़ गया?" वह भी मुस्कुराकर पूछता है। आखिर अपनी माँ की आवाज सुनने को ही तो बेचैन हुआ जा रहा था, बेचैनी के साथ-साथ उसकी घुटन भी पल मे हवा हो गई थी।
"नहा रही थी और हाँ! अपने अंगूठे के छाले की टेंशन मत लेना, तुम्हारे घर लौटने के बाद मैं उसे अच्छे से चूस दूँगी। कभी-कभी मुंह की सिकाई भी फायदेमंद होती है" वैशाली कहकहा लगाकर हँसते हुए कहती है। वह स्वयं हैरान थी कि एकाएक कैसे उसके मुंह से ऐसी गंदी-गंदी बातें निकलने लग गई हैं, इतनी बेशर्म तो वह अपने बीते जीवन मे कभी नही रही थी और सबसे विशेष बात यह कि उसके मुंह से ऐसी अनैतिक बातें सुनने वाला शख्स कोई अन्य नही उसका अपना सगा जवान बेटा था, जिसके विषय मे सोचते ही उसकी धुली-धुलाई चूत जैसे पुनः पनियाने लगी थी। वहीं दूसरी ओर अपनी माँ के अश्लील कथन को सुनकर अभिमन्यु का बायां हाथ सीधे उसके लंड पर पहुँच जाता है जो पलभर मे उसकी जॉकी के भीतर तनकर पत्थर हो गया था।
"तुम अभी नंगी हो ना माँ?" उसने जींस के ऊपर से अपने तम्बू को मसलते हुए पूछा।
"मेरे अंगूठे के छाले का दर्द एकदम से मेरे निचले शरीर पर पहुँचता जा रहा है माँ, उफ्फ! तो क्या ...क्या तुम मेरे वहाँ भी अपना मुंह लगाओगी, मेरे उसको भी चूसोगी" वह सिहरते हुए अपने पिछले प्रश्न मे जोड़ता है।
"हाँ नंगी हूँ, बिलकुल नंगी। तुम्हें अपनी माँ को नंगी देखना अच्छा लगता है ना मन्यु?" वैशाली ने बिस्तर पर लुड़कते हुए पूछा, यकीनन उसे शीघ्र-अतिशीघ्र अपनी सुबह से ऐंठी पड़ी चूत की पीड़ादाई ऐंठन से मुक्त होना था।
"अगर तुम अपने लंड के बारे मे कह रहे हो तो भूल जाओ मन्यु, मम्मियां अपने बेटों का लंड नही चूसा करतीं और वह भी खासकर तब, जब उनके बेटे मुश्टंडे गबरू जवान हो जाएं" अपने पिछले कथन मे जोड़ते हुए उसने अपनी दाहिनी दो उंगलियां एकसाथ अपनी चूत की संकीर्ण गहराई मे उतार दीं, जिसके नतीजन उसके मुंह से जोरदार सिसकी निकल जाती है।
"पर मैं तो इकलौता हूँ मम्मी, तुम मुझ अकेले का लंड तो चूस ही सकती हो। तुम्हारे कौन से पाँच-सात मुश्टंडे गबरू जवान बेटे हैं, सिर्फ एक है कम से कम उसका ख्याल तो अच्छे से रखा करो और हाँ! मुझे तुम्हें नंगी देखना बहुत पसंद है पर कपड़ों मे भी, तुमसे सच्ची मोहब्बत जो करने लगा हूँ" कान से चिपके मोबाइल के स्पीकर से स्पष्ट सुनाई देतीं वैशाली की कामुक सिसकियां सुन अभिमन्यु ज्यादा देर तक अपनी बाइक पर बैठा नही रह पाता, वह फौरन नीचे धरातल पर कूदते हुए बोला।
"चल झुट्टे! अगर इतनी ही सच्ची मोहब्बत होती अपनी माँ से तो पिछली रात उसे यूं तड़पती छोड़कर भाग नही खड़े होते। क्या तुम्हें पता है मन्यु कि तिरस्कार किसे कहते है? अगर पता है तो यह भी समझते होगे कि एक औरत सबकुछ सह लेती है लेकिन किसी मर्द के हाथों अपना तिरस्कार सहन नही कर पाती" कहकर जवाब की प्रतीक्षा मे वैशाली कुछेक क्षणों के लिए अपनी चूत का मर्दन करना रोक देती है, अपने बेटे का सही उत्तर सुनने को वह बेहद उतावली थी।
"तुम्हीं ने मुझे भागने पर मजबूर किया था माँ। तुम्हें चोदकर तुम्हारी तड़प नही मिटा सकता था यह हम दोनो जानते थे मगर तुमने तो अपनी चूत चटवाने से भी इनकार कर दिया था, जबकि मैं वाकई तुम्हारी चूत को चाटता, उसे जी भरकर चूसता और तुम्हारी तड़प को पूरी तरह से मिटाने की कोशिश करता" गंभीरतापूर्ण लहजे मे ऐसा बोलकर अभिमन्यु पार्क के टॉइलेट की ओर रुखकर जाता है, वह जान गया था कि उससे बात करते हुए ही उसकी माँ अपनी उंगलियों से अपनी चूत को चोदना शुरू कर चुकी थी और अब वह भी अपने लंड के असहनीय तनाव से हरसंभव मुक्ति पाना चाहता था।
"क्या तुम्हें ओरल सैक्स पसंद है मन्यु? खैर आजकल के युवा चुदाई से ज्यादा मुखमैथुन का मजा लेते है मगर क्या तुम्हें अपनी माँ की चूत चाटने मे घिन महसूस नही होती? आखिर मुझे तुम्हारी पसंद-नापसंद से बारे मे कुछ खास पता भी तो नही। क्या पता तुम्हें मजबूरन अपनी माँ की चूत से अपने होंठ चिपकाने पड़ते जबकि तुम्हारा मन ऐसा बिलकुल नही चाहता होता" अपने दाएं अंगूठे के हल्के दवाब से वैशाली अपने अत्यंत संवेदनशील भांगुर को हौले-हौले सहलाते हुए बोली, फोन सैक्स के विषय मे आजतक उसने सिर्फ सुना ही था मगर तात्कालिक समय मे उसे इस अद्भुत खेल का भी आनंद मिलने लगा था और ऐसी उत्तेजक व बेहद गोपनीय बातें वह अपने सगे बेटे संग सांझा कर रही है, यकीनन यही विशेष बात उस नये-नवेले खेल को निरंतर अधिकाधिक रोमांच से भर रही थी।
"मेरी गर्लफ्रेंड है नही और रंडियों की चूत से अपना मुंह कोई नही लगता। माना तुम्हारी चूत वह पहली चूत होती जिसे मैं चाटता या चूसता मगर मैं ऐसा करता जरूर क्योंकि बात मेरी मम्मी की तड़प से जुड़ी थी और फिर जिससे आप बेशुमार प्यार करने लगो, उसके बदन का कोई अंग गंदा कैसे हो सकता है? नही मॉम, मुझे जरा भी घिन महसूस नही होती" अभिमन्यु जवाब मे बोला, वह पार्क के टॉइलेट के बाहर तक पहुँच तो गया था मगर आसपास अथाह गंदगी फैली देख फौरन पलट जाता है।
"वैसे कोई बेटा कभी अपनी माँ का आशिक नही हो सकता, तुम्हें अपनी माँ रंडी तो नजर नही आती ना? क्योंकि सिर्फ रंडियां ही दस जगह मुंह मारती-फिरती हैं, एक शादीशुदा माँ नही" वैशाली ने जानबूझकर अभिमन्यु से ऐसा मार्मिक सवाल पूछा, वह जानने की इच्छुक थी कि अबतक हुए पापी घटनाक्रमों के उपरान्त उसकी कितनी इज्जत उसके बेटे के दिल मे बची है।
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