Maa ki Chudai मा बेटा और बहन
01-06-2019, 11:12 PM,
#17
RE: Maa ki Chudai मा बेटा और बहन
वैशाली के अपने बेटे अभिमन्यु की नंगी चौड़ी छाती से टेक लगाकर बैठने के उपरान्त जो कुछ बदलाव उसे तत्काल महसूस हुए उनमे मुख्यतः बेटे की छाती के भीतर तीव्रता से धड़कते उसके ह्रदय की जोरदार धमक का स्पष्ट अहसास उस माँ को अपनी पीठ पर हो रहा था, दूसरे उसके तपते और पसीने-पसीने हुए अग्र शरीर से वैशाली का ब्लाउज क्षणमात्र मे भीग चुका था। तीसरे उस अत्यंत कामलुलोप माँ को अपने जवान बेटे का बेहद कठोर व निरंतर तेजी से फड़फडा़ता लंड सीधे अपनी गुदाज गांड की गहरी दरार के भीतर प्रवेश करने का दुस्साहस करता हुआ-सा प्रतीत होने लगा था, वह तो ठीक था जो उस वक्त माँ-बेटे अपने निचले धड़ से नंगे नही थे वर्ना उनके संग वह तात्कालिक वक्त भी अपनी रही सही मर्यादा का हरसंभव त्याग कर चुका होता।

"उफफ! मॉम रिलेक्स होकर बैठो, तुम्हें कोई तकलीफ नही होने दूंगा" अपनी माँ के अधनंगे कामुक बदन का सम्पूर्ण भार अपने नंगे सीने और टांगों की जड़ पर पाकर अभिमन्यु फौरन सीतकारते हुए कहता है, वैशाली के खुले व लंबे केश उसके अपने कंधों के साथ ही जहां-तहां उसके बेटे के भी कंधों और छाती पर फैल गए थे जिसके नतीजन उसके बालों से उठती एक विशेष जनाना गंध उसके बेटे के पूरे शरीर को एकाएक आनंदित करने लगी थी। उसने सहसा अपनी बाईं हथेली को अपनी माँ के नंगे सपाट पेट पर रखकर उसे बलपूर्वक पीछे खींचा और जिससे उसकी जॉकी के भीतर ठुमकता उसका विशाल लंड उसकी माँ की छोटी--सी कच्छी मे कैद उसकी मांसल व मुलायम गांड पर बरबस ठोकरें मारने लगता है, वह तो भाग्य वैशाली के पक्ष मे था वर्ना उसके बेटे का आलूबुखारे समान अत्यंत सूजा सुपाड़ा वाकई उसकी जॉकी और उसकी माँ की पतली--सी कच्छी को छेदकर सीधे उसकी गांड की दरार को चौड़ाते हुए उसके किसी भी नाजुक अंग को बड़ी सरलता से भेद सकता था।

"मन्यु ...उन्ह! मन्यु" सिसकती वैशाली तत्काल अपना निचला धड़ आगे को सरकाने का प्रयत्न करती है मगर बेटे के बाएं हाथ को अपने चिकने पेट से बलपूर्वक भी नही हटा पाती। अभिमन्यु उसकी गहरी व गोल नाभि के आसपास अपना बायां अंगूठा गोल-गोल आकृति मे घुमाने लगा था और साथ ही अपने दाएं की उंगलियों से वह अपनी माँ के रेशमी काले बालों को भी सहलाना शुरू कर देता है।

"तुम बहुत खुशबूदार बासती हो माँ, हम्म! हम्म! ...पहले पता होता हम्म! ...तो दिनभर बस तुम्हें ही सूंघता रहता" वह वैशाली के बालों मे अपना सम्पूर्ण चेहरा घुसेड़ते हुए जोरदार गहरी-गहरी सांसें खींचकर कहता है, वह यहीं रुक जाता तब भी ठीक था मगर ज्यों ही उसे अपनी नाक पर अपनी माँ की सुंदर, पतली व पसीने से लथपथ गर्दन का स्पर्श महसूस हुआ वह बिना किसी अतिरिक्त झिझक के फौरन अपने कंपकपाते होंठ उसकी गर्दन से चिपका देता है।

"उफ्फऽऽ पिज्जा ....पिज्जा ठंडा हो रहा है मन्यु" जिस तरह कोई हिंसक, शक्तिशाली पशु किसी निरीह पशु को दबोचकर उसका भक्षण करने से पूर्व उसके स्वादिष्ट कच्चे मांस की गंध को मन भरकर सूंघता है ताकि तत्काल उसकी भूख मे चौगुना इजाफा हो जाए और चाहते हुए भी उस निरीह की असहाय चीख-पुकार उसके खूंखार ह्रदय को ना पिघला सके ठीक उसी प्रकार वैशाली को भी अपने बेटे की नाक का लगातार फुसफुसना और उसके सूंघने से पैदा होता अजीब--सा रोमांचक स्वर एकाएक असहाय, दुर्बल करने लगा था। अपना कथन कहकर वह अपनी गर्दन को झटकने लगती है मगर तभी अभिमन्यु अपना दायां अंगूठा उसकी गहरी नाभि के भीतर प्रवेश करवा देता है।

"तुम्हारा हक है माँ तो तुम ही खिलाओ मुझे" अभिमन्यु ने पुनः गहरी सांस खींचते हुए कहा, जिसके मूक उत्तर मे वैशाली उनके दाईं और रखे डिनर को खाने हेतु तैयार करने लगती है। हालांकि अभिमन्यु ने उसे स्वयं अपने हाथों से खिलाने की चाह जताई थी पर कहीं वह अपनी चाह की आड़ मे अपनी माँ से और अधिक छेड़छाड़ करना आरंभ ना कर दे कुछ ऐसा सोच वह जल्द से जल्द डिनर को निपटने मे व्यस्त हो जाती है। उसने पिज्जा के ऊपर सारी उपस्थित सीजनिंग डाली और तीव्रता से दोनो तरह के सॉसेजिस भी उड़ेलने लगती है, वहीं उसका बेटा उसकी व्यस्तता को सफलतापूर्वक भुनाने मे जुटा हुआ था। वह अपनी माँ की गर्दन को महज सूंघने के अलावा अब चूमने लगा था और साथ ही उसकी नाभि के भीतर अपने अंगूठे के नाखून की हल्की-हल्की खुरचन भी देना शुरू कर देता है।

"खाने ...खाने पर कॉन्सनट्रेट किया करो मन्यु, जवान लड़के खाने से अपना जी नही छुड़ाते" हकलाते स्वर मे ऐसा कहकर वैशाली पिज्जा की एक तिकोनी स्लाइस अपनी गर्दन से चिपके उसके बेटे के दाएं कान के समकक्ष ले आई मगर जैसे उसके कथन और कार्य को सफा भुलाते हुए अभिमन्यु पर उनका कोई खास असर नही पड़ता और शीघ्र ही वह अपने होंठों को खोल अपनी गीली जीभ बाहर निकालकर, उसे लपलपाते हुए अपनी माँ की गर्दन पर निरंतर एकत्रित होते पसीने की नमकीन बूंदों को अविराम चाटने लगता है।

"मन्यु ...उन्ह! खाओ इसे, खाने पर कॉन्सन्ट्रेट करो बेटा" वह अपनी ठोड़ी और गर्दन को आपस मे दबाते हुए सिहर पड़ती है लेकिन इसका परिणाम पहले से अधिक घातक सिद्ध हुआ, अभिमन्यु का चेहरा उसकी गर्दन और ठोड़ी के बीच फंसकर रह जाता है और जिसके कारण अब उसने अपनी माँ की गर्दन की अत्यंत नाजुक त्वचा को बेकाबू होकर चूसना भी आरंभ कर दिया था। वैशाली अपने जबड़े भींचकर अपनी चूत के अंदरूनी संकीर्ण मार्ग पर होते अविश्वसनीय स्पंदन को झेलने पर विवश थी, उसके ब्लाउज और ब्रा के भीतर कैद उसके मम्मे भी उसके निप्पल समान कठोरता पाने लगे थे और वह सहसा मात्र एक लघु अंगड़ाई लेने तक को तड़प उठती है, जो की उसके बेटे के बलिष्ठ हाथों की जकड़न से मजबूर वह चाहकर भी नही ले पाती।

"भूख ही तो मिटा रहा हूँ मॉम। अपनी और तुम्हारी, हम दोनो की" अपना चेहरा अपनी माँ की गर्दन से पीछे खींच अभिमन्यु बोला, उसका विस्फोटक कथन एकसाथ दोनो को चौंका गया था।

"लाओ लाओ खिलाओ, मैं परेशान हूँ तो जरूरी नही कि तुम्हें भी होना पड़े" अपने इस सामान्य कथन की आड़ मे वह अपने पिछले कथन की ज्वलनशीलता को कम करने का झूठा प्रयास करता है और अपनी माँ के हाथ से पिज्जा स्लाइस अपने दाएं हाथ मे लेकर वह फौरन उसे उसके बंद होंठों से सटा देता है। बड़े जतन के उपरान्त वैशाली अपने भींचे जबड़ों को ढ़ीला छोड़ पाई थी और अपने होंठ खोल पिज्जा का छोटा--सा नुकीला भाग काटकर वह पुनः अपने होंठ सी देती है।

"कैसी परेशानी? हम्म! और ऐसे काम नही चलेगा, तुम भी खाओ चुपचाप" अभिमन्यु को ना खाते देख वैशाली उसके हाथ से पिज्जा स्लाइस छीनकर उसे डांटते हुए बोली और जबरदस्ती स्लाइस उसके अधखुले होंठों के भीतर ठूंस देती है। तत्पश्चात उसने बड़ी सफाई से अपनी चौड़ी टांगों को आपस मे चिपकाया ताकि उसकी चिकनी नंगी जांघों का निचला भाग बेटे की नंगी बालों भरी जांघों के ऊपर से हट जाए, जिसपर पनपे पसीने के चिपचिपे अहसास से लगातार उसकी चूत पनिया रही थी।

अपनी माँ के कथन मे शामिल प्रश्न को सुनकर अभिमन्यु उसका जवाब सोचते हुए पिज्जा चबाने लगा, वह एकाएक इतना अधिक ध्यानमग्न हो गया था कि अपनी माँ की टांगों का एकदम से हिलना-डुलना भी महसूस नही कर पाता और जब वैशाली उसे पुकारते हुए पुनः उसकी ओर पिज्जा बढ़ती है तब कहीं जाकर वह अपनी गहरी सोच से बाहर निकल पाता है।

"मॉम! मेरा लंड इस बुरी तरह दुखने लगा है कि मुझसे ठीक से खाया भी नही जा रहा" वह बेझिझक बोला और पिज्जा की अगली फरमाइश को फौरन ठुकरा देता है, उसके इस लज्जाहीन कथन को सुनकर तो जैसे वैशाली का रोम-रोम सिहर उठा था और स्वयं अपने बेटे समान उत्तेजित वह कामलुलोप माँ तत्काल भावनाओं के वशीभूत होकर अपनी हाल मे ही जोड़ी हुई जांघों को बलपूर्वक आपस मे घिसना शुरू कर देती है।

"माँ तुम्हारी चूत मे भी खुजली मच रही है ना? वहां, उस शीशे मे साफ दिख रहा है" अभिमन्यु ने एकाएक जोरों से हँसते हुए कहा, वह अपने दाएं हाथ की प्रथम उंगली से बिस्तर के ठीक सामने स्थापित ड्रेसिंग टेबल के बड़े--से दर्पण की ओर इशारा करता है। अपने बेटे के अश्लील प्रश्न को सुन वैशाली ने भी अत्यंत तुरंत अपनी उड़ती निगाहें उसके ड्रेसिंग टेबल के कांच पर डा़ली और उसमे खुद को अपने ही बिस्तर अपने पर सगे जवान बेटे से टिक कर बैठे देख वह आंतरिक शर्म से पानी-पानी हो जाती है, सबसे विशेष विचारने योग्य बात कि उस वक्त वह दोनो ही अपने-अपने निचले धड़ से लगभग पूरे नंगे थे जो ना तो उस वक्त के अनुकूल था और ही उसके मर्यादित पवित्र रिश्ते के। उस माँ ने अपनी और अपने बेटे की बैठक स्थिति पर भी गौर किया तो पाया कि वह किसी भी कोंण से अभी एक माँ नजर नही आ रही थी, आ रही थी तो कोई अधेड़ उम्र की वैश्या जिससे दूना छोटा उसका ग्राहक उसके पीछे बैठा उसे अपनी मजबूत बांहों मे जकड़कर उनकी आगामी चुदाई की चाह मे खुद भी बेहद उत्तेजित व उत्साहित हो रहा था।

"उठने दो मन्यु, मुझे भी भूख नही है" अपने बेटे के दोनो हाथ अपने बदन से झटकने का प्रयास करते हुए वैशाली ने अपनी जगह उठना चाहा मगर हरबार की तरह इसबार भी वह अभिमन्यु पर अपने स्त्री बल का कोई खास प्रभाव नही दिखा पाती, बिस्तर से उठना तो दूर वह अपनी जगह से हिल भी नही पाई थी।

"अच्छा! अच्छा! मेरे कुछ सवालों का सही जवाब दो तो तुम्हें जाने दूंगा" कहकर अभिमन्यु ने पुनः उसे अपनी ओर खींचा और थोड़ा बहुत अंतर जो उनके शारीरिक स्पर्श मे आया था वह दोबारा से मिट जाता है, एकबार फिर माँ-बेटे एक-दूसरे से बुरी तरह चिपक जाते हैं।

"तुम कब से नही चुदी?" उसने बिना समय गंवाए पूछा।

"अठारह दिनों से, अब खुश ...अब मुझे उठने दो" समय व्यतीत करने का कोई विशेष लाभ नही मिलने की वजह से वैशाली भी बिना सोचे-विचारे अतिशीघ्र जवाब दे देती है।

"पापा तुम्हें चोदते नही क्या? वह तो इस बीच दो रातें घरपर रुके थे और अपनी ये टांगें चौड़ाओ" अभिमन्यु का अगला सवाल जैसे पहले से ही तैयार था और साथ ही वह अपने दोनो हाथ अपनी माँ की जुड़ी हुई जांघों पर रख देता है। उसने दोबारा अपना चेहरा वैशाली के खुले बालों के भीतर कर दिया और पलभर मे पुनः उसकी गर्दन को चाटना शुरू कर देता है।

"मन्यु गलत है ये, तुम मुझे कमजोर कर रहे हो। बेटा अपनी माँ से ऐसे निजी सवाल नही करता, उफ्फ! मैं क्या करूं इस लड़के का" एकसाथ कई हमलों से बहकने के चरम पर पग धरती वह माँ कुंठा भरे स्वर मे बोली। यह उसपर बेटे की कोई जबरदस्ती नही थी, जबरदस्ती तब कैसे मानी जाती जब वह अपने बेटे की निकृष्ट इच्छा व आज्ञा के समर्थन मे बिना उसकी जोर-आजमाइश के खुद ही अपनी जांघों को पहले से भी कहीं अधिक चौड़ा देने का नीच कर्म कर बैठती है, उसके बेटे ने तो अपने हाथ मानो शून्य से कर लिए थे।

"तुम कमजोर नही डरपोक हो माँ। तुम भी मेरी हो और तुमसे जुड़ी हर बात, हर चीज भी अब मेरी है। आखिर हम दोनो ही एक-दूसरे से प्यार जो करते हैं" कहकर अभिमन्यु अपना ढ़ेर सारा लार अपनी माँ की गर्दन पर उगल देता है और फिर तत्काल वह अपनी जीभ अपनी ही लार मे लपलपाने लगा, उसे जीभ के जरिये उसकी पूरी गर्दन पर मलने लगता है और कुछ ही क्षणों बाद उने एकबार फिर से अपनी माँ की नाजुक गर्दन को तीव्रता से चूसना शुरू कर दिया था।

"वह थक गये थे इसलिए मुझे नही चोदा" कहने को तो कमुकता की चपेट मे पूर्णरूप से आ चुकी वैशाली के मुंह से अचानक 'चोद' जैसे देशी शब्द का उच्चारण हो गया था मगर कह चुकने के उपरान्त वह अब कर भी क्या सकती थी, बस अपनी जांघों की अंदरूनी मांसल त्वचा पर अपने नुकीले नाखून गड़ाते हुए वह अपनी सिस्कारियों को रोकने का व्यर्थ प्रयत्न करने लगती है। अपनी गर्दन पर अभिमन्यु के होंठों का मर्दन उससे बरदाशत कर पाना मुश्किल था और इसी बीच जाने कब निर्लज्जतापूर्ण ढ़ंग से वह अपनी कमर को पीछे धकेलते हुए अपनी गुदाज गांड बरबस अपने बेटे के खड़े कठोर लंड पर ठोकने लगती है, उसे स्वयं पता नही चल पाता।
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RE: Maa ki Chudai मा बेटा और बहन - by sexstories - 01-06-2019, 11:12 PM

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