RE: Maa ki Chudai मा बेटा और बहन
"अम्म! हाँ क्या पूछ रही हो? ओह! मुझे भी तो कपड़े उतारने थे, कंफर्ट जोन मे खाने का मजा ही कुछ और होता है। है ना मॉम?" पत्थर मे तब्दील हुई अपनी माँ से ऐसा विस्फोटक प्रश्न पूछ उसके जवाब की प्रतीक्षा किए बगैर ही अभिमन्यु फौरन बिस्तर से नीचे उतर आया और रिकॉर्ड समय मे अपनी शर्ट और फिर जीन्स उतारकर वह कई वर्षों बाद अपनी माँ के समक्ष सिर्फ अपनी अंडरवियर पहने खड़ा हो जाता है। उसकी अंडरवियर जॉकी कम्पनी की थी, फुल फ्रेंची स्टाइल और जिसके भीतर कैद उसका अधखडा़ लंड जॉकी के ऊपर एक बहुत ही उत्तेजक बड़े--से तम्बू का निर्माण कर रहा था। हालांकि उसके अपने कपड़ों को उतारने के दौरान वैशाली ने उसे रोकने की हर संभव कोशिश की थी मगर उसके शब्द थे जो उसके गूंगे गले से बाहर ही नही निकल पाए थे मानो उसकी जुबान को एकदम से लकवा मार गया था।
"चलो अब उतारो भी, डिनर दोबारा ठंडा करना है क्या?" वह अपनी कमर के आजू-बाजू अपने दोनो हाथ रखकर किसी युवा मॉडल की भांति पोज देते हुए पूछता है। उसकी फूली नंगी छाती, बलिष्ट भुजाएं और मांस से भरी जाघों पर चहुं ओर बालों की अधिकता देख वैशाली यकीन ही नही कर पाती कि उसका बेटा आज के पश्चिमी परिवेश मे विचरण करने वाला कोई आम--सा नौजवान है, जबकि इस आधुनिक युग मे लड़कियां हों या लड़के सभी सफाचट रहना ज्यादा पसंद करते हैं। उसकी बेटी अनुभा इसका प्रत्यक्ष उदाहरण थी जिसकी पॉकेटमनी का एक बड़ा हिस्सा उसके हेयर ट्रीटमेंट पर ही खर्च हुआ करता था।
"मैं तुमपर कोई प्रेशर नही डाल रहा हूँ माँ पर अगर तुम ऐसा करोगी तो मुझे बहुत खुशी होगी और साथ मे तुम्हें भी" वह ज्यों की त्यों बुत बनी खड़ी अपनी माँ की आँखों मे झांकते हुए कहता है, उसके चेहरे पर शरारत भरी मुस्कान तब व्याप्त होने लगती है जब एकाएक वैशाली का दायां हाथ उसके पेट और बाएं की उंगलियां उसके ब्लाउज के ऊपर रेंगनी शुरू हो जाती हैं।
"वैसे तो तुम वाकई एक घटिया इंसान हो मन्यु पर कहीं अपना प्रॉमिज मत भूल जाना, तुमने खुद कहा है कि तुम मेरे ...यानी कि अपनी माँ के साथ सैक्स नही करना चाहते" कहते हुए शर्म से लाल पड़ी वैशाली अपने पेटीकोट मे खुरसी साड़ी को अपनी दाईं मुट्ठी मे कसकर भींच लेती है, संग-संग उसने बाएं हाथ से अपना पल्लू भी फौरन ब्लाउज से नीचे गिरा दिया।
"बिलकुल याद है मम्मी, मैं सचमुच अपनी माँ की चुदाई नही करना चाहता। एकबार फिर से कहता हूँ, मैं तुम्हें नही चोदूंगा मॉम मेरा तुमसे वादा है" अभिमन्यु उनके मर्यादित रिश्ते की पूर्णरूप से धज्जियां उड़ाते हुए बोला, उसका अश्लील संवाद इतना अधिक विध्वंशक था कि अपनी माँ के साथ वह स्वयं भी अपने ही शब्दों से थरथरा उठा था।
"मन्यूऽऽ" वैशाली चीखते हुए बोली मगर बावजूद इसके कि वह क्रोध से तिलमिला रही है, वह अपनी साड़ी पेटीकोट के बाहर खींचने से खुद को रोक नही पाती। बेटे के ज्वलंत कथन ने सहसा उसकी माँ के सम्पूर्ण बदन को बुरी तरह से झुलसा दिया था, जिसके नतीजतन वह अपने शरीर पर बारीक--सी एक साड़ी तक बरदाश्त नही कर सकी थी और तो और साड़ी के उसके पैरों के पास नीचे फर्श पर गिरते ही वह तीव्रता से अपने दाएं हाथ की प्रथम उंगली को अपने पेटीकोट के नाड़े मे उलझा लेती है।
"वाउ! माय नॉटी एण्ड सैक्सी बिच इस अॉन फायर ...आहां! यू बैटर कैरी अॉन मॉम, आइ रियली लव टू वॉच योर फकिंग अमेजिंग स्ट्रिप-टीज" अभिमन्यु ताली ठोकते हुए कहता है जैसे स्टेज पर खड़ी किसी रंडी के जल्द से जल्द नंगी हो जाने के प्रयास मे पब्लिक जोशो-खरोश से उसका उत्साहवर्धन करने लगती है ठीक उसी प्रकार वैशाली का बेटा भी अपनी माँ का आत्मविश्वास बढ़ा रहा था। वह तत्काल बिस्तर पर पैर लटकाकर बैठ जाता है ताकि उसकी माँ को अपना पेटीकोट उतारते देखने का अद्भुत व अद्वितीय कामुक दृश्य वह बड़े गौर से और बेहद नजदीक से देख सके।
"लाइक सन लाइक मदर, लाइक मदर लाइक सन। क्या कहते हो मन्यु, खींच दूं पेटीकोट की डोरी?" कामलुलोप वैशाली सीधे अभिमन्यु की जॉकी के भीतर पूरी तरह से तनकर कठोर हो चुके उसके लंड के बड़े से तम्बू को घूरते हुए पूछती है, अपने सगे बेटे के लंड की विशालता को वह सरलतापूर्वक उसकी जॉकी के ऊपर उभरा हुआ देख पा रही थी और जिसपर होती निरंतर हलचल से उसे उसके लंड की बारम्बार ठुमकियों का भी स्पष्ट अहसास होने लगा था। अतिशीघ्र वह माँ अपने अंतर्मन की उस आवाज को बेहद फूहड़ता से हँसकर दबा देती है जो उसे निकट भविष्य मे होने वाले दुष्परिणामों से बचने का हरसंभव संकेत दे रहा था, महज इस बहकावे मे कि उसके बेटे ने उसके संग चुदाई नही करने का उसे भीष्म वचन दिया था।
"बेशर्म मम्मी! अपने जवान बेटे से ऐसा नंगा सवाल पूछते हुए क्या तुम्हें जरा सी भी लज्जा नही आ रही?" अपने पेटीकोट के नाड़े मे अपनी दाईं उंगली फंसाए खडी़ अपनी माँ को चिढ़ाने के उद्देश्य से अभिमन्यु बोला।
"तुम कम से कम पलटकर तो खड़ी हो सकती हो माँ वर्ना मैं जरूर शर्म से मर जाऊंगा" उसने नीचतापूर्ण पिछले कथन मे जोड़ा और फिर खुद ही अपने दोनो हाथ अपनी माँ की ओर बढ़ाते हुए वह उसकी पतली कमर को मजबूती से थामकर, उसे आसानीपूर्वक अर्धाकार घुमा देता है। अपनी माँ की नंगी त्वचा की अत्यधिक गरमाहट ने अभिमन्यु को विस्मय से भर दिया था, लगा जैसे वह अत्यंत तेज बुखार से तप रही हो। खुद उसका भी तो यही हाल था, जॉकी के भीतर कैद उसका फड़फड़ाता लंड बिना उसके हाथ लगाए ही झड़ पड़ने की कगार पर पहुँच चुका था। वहीं वैशाली बेटे के मजबूत हाथों के स्पर्श से एकाएक सकपका--सी गई थी, उसका बचाखुचा धैर्य बेटे के अनैतिक, निकृष्ट कथनों ने तोड़ दिया था और इससे पहले कि वह पूरी तरह से टूट जाती या अभिमन्यु के वचन को मिथ्या साबित करने का स्वयं प्रण कर लेती, वह झटके से अपने पेटीकोट का नाड़ा खींच देती है।
"इश्श्श्ऽऽ!" एकसाथ दोनो माँ-बेटे सीत्कार उठे, किसकी सीत्कार मे ज्यादा वजन था यह पहचान पाना असंभव सा था। पेटीकोट के वैशाली की चिकनी त्वचा से नीचे फिसलते ही अभिमन्यु का कलेजा मुंह को आ गया, वह फौरन अपनी जॉकी के ऊपर से अपने कठोर लंड को बलपूर्वक उमेठ देता है ताकि तीव्रता से शून्य मे परिवर्तित होता जा रहा उसका मस्तिष्क उसके नाजुक कामांग पर किए उसके खुद के निष्ठुर प्रहार से यथासंभव जीवंत बना रह सके।
ब्लाउस से नीचे लगभग पूरी नंगी हो चुकी अपनी माँ की पीठ से अपनी फट पडी़ आँखों को नीचे लाते हुए अभिमन्यु सीधे उसकी गुदाज गांड को घूरने लगता है, उसकी माँ ने एकदम सच कहा था कि उसके द्वारा लाई गई फैशनेबल कच्छी बार-बार उसकी गांड की गहरी दरार के बीच घुस जाती है। वैशाली की गांड का दायां पट बिलकुल नंगा था और बाएं पट को भी कच्छी बेमुश्किल आधा ही ढ़ांक सकने मे सक्षम नजर आ रही थी। उसने स्पष्ट यह भी देखा कि कुछ वक्त पीछे उसके अपनी माँ की गांड को दबोचने और शक्तिपूर्वक उसे मसलने के परिणामस्वरूप गांड के दोनो गौरवर्णी पट सुर्ख लाल हो गये थे और जिनकी सुर्खियत पर एकाएक मोहित होकर अभिमन्यु बिना कोई अतिरिक्त क्षण गंवाए, बारी-बारी उसके दोनो पटों को तेजी से चूमना शुरू कर देता है।
"मन्युऽऽ! ये ... ये क्या?" अपने बेटे के होंठों का स्पर्श अपनी नंगी गांड पर महसूस करते ही वैशाली अचानक से अपने पैरों को चलायमान कर देने पर विवश हो जाती है और इसके तुरंत बाद ही उसने पलटकर खडे़ होते हुए पूछा। उसे कोई विशेष परवाह नही थी कि अब अभिमन्यु कच्छी के भीतर निरंतर रस उगलती उसकी चूत पर अपनी आँखे गड़ा सकता है, यकीनन समझ भी सकता है कि उसकी माँ किस बुरी तरह से उत्तेजित हो चुकी थी।
"सॉरी! मैं बस तुम्हारे उस दर्द को कम करना चाहता था जो मैंने खुद तुम्हें दिया था" वह धीमे स्वर मे बोला, हरपल शरारत से भरा रहने वाला उसका चेहरा जैसे फौरन कुम्भला सा गया था।
"अब मैं और तुम्हारी झूठी, मक्कार बातों मे नही आनेवाली मन्यु" कहकर वैशाली नीचे फर्श पर पड़े अपने पेटीकोट को उठाने लगती है, हालांकि अपनी नंगी गांड पर उसे बेटे के होंठों का स्पर्श अंदर तक मंत्रमुग्ध कर गया था मगर वह इस सत्य को एकाएक अभिमन्यु के समक्ष कबूल भी तो नही सकती थी। जीवन मे पहली बार किसी मर्द के होठों ने उसके निचले धड़ को छुआ था और वह मर्द कोई और नही उसका अपना सगा बेटा था, उनका पवित्र रिश्ता ही एकमात्र कारण था जो उसे बेवजह बेटे पर झूठा लांछन लगाना पड़ रहा था जबकि वह अच्छे से जानती थी कि भले ही उसका बेटा दुनियाभर से झूठ कहता-फिरता हो पर अपनी माँ से कभी नही बोल सकता था और वह भी तब जब वह अपनी माँ को अपनी खुद की जान से ज्यादा चाहने लगा था, वाकई उसके सच्चे प्रेम मे पड़ गया था।
"तुम्हारे पीछे ....वहाँ पूरे मे रेड-रेड हो गया है और जो मेरी अपनी गलती की वहज से हुआ, तुमने तो मुझे रोकने की कोशिश की थी यह बाताकर कि तुम्हें वहाँ दर्द हो रहा है पर मैं कहाँ माना था। शायद इसीलिए मैंने ....." अभिमन्यु गहरी व लंबी-लंबी सांसें भरते हुए बोला, जाहिर था कि अपनी माँ के हाथ मे उसका उतरा हुआ पेटीकोट देख उसे जरा भी अच्छा नही लगा था परंतु इस संबंध मे वह वैशाली से कुछ नही कहता बल्कि पेटीकोट को वापस पहनने का निर्णय वह खुद उसी पर छोड़ देता है।
"कभी-कभी मुझे लगता है कि तुम एक नही दो इंसान हो जो पता नही कब हँसने लगे और कब रूठ जाए, कब शैतानी कर बैठे और कब प्यार जताने लगे। अब बोलो भी ...कि मैं पेटीकोट नही पहनूँ वर्ना सचमुच पहन लूंगी" मुस्कुराकर ऐसा कहते हुए वैशाली तत्काल अपना पेटीकोट हवा मे झुलाने लगती है वह जानबूझकर उसे बार-बार बेटे के नजदीक ले जा रही थी ताकि वह उसे जबरन अपनी माँ के हाथ से छीन ले मगर अभिमन्यु उसे सफा चौंकाकर बिस्तर पर चढ़ गया और पीछे सरकते हुए बिस्तर की पुश्त से टेक लगाकर बैठ जाता है।
"आओ माँ! आज तुम्हें अपने हाथों से खिलाऊँगा ...यहाँ आओ और अपने बेटे की टांगों के बीच आकर बैठो। घबराना मत, तुम्हें चोदूंगा नही ....तुमसे वादा जो किया है" काफी गंभीर स्वर मे ऐसा कहकर अभिमन्यु अपनी माँ की आँखों मे झांकते हुए ही जॉकी के ऊपर से अपने कठोर लंड को बड़ी बेशर्मी के साथ सहलाने लगा और जिसे देख खुद ब खुद पेटीकोट वैशाली के हाथ से पुनः नीचे फर्श पर गिर जाता है। वह माँ अपने बेटे की अश्लील वाणी से कहीं ज्यादा उसकी पापी हरकत, उसके नीच इशारे से अचंभित हुई थी। एकसाथ क्रोध, लज्जा, कुठां, कामुत्तेजना आदि कई भावों से तड़प उठी, एकाएक अत्यधिक चुदास महसूस करती वह माँ भी खुद पर संयम नही रख पाती और किसी बाजारू वैश्या की भांति अपने दाएं हाथ की मुट्ठी मे तत्काल अपनी कच्छी को बलपूर्वक भींच लेती है। उसकी कच्छी के निचोड़ से उसका ढ़ेर सार कामरस उसकी दाईं मुट्ठी मे एकत्रित होने लगा और जो शीघ्र ही उसकी उंगलियों की पोर से छलककर लिसलिसी बूंदों के रूप मे नीचे फर्श पर टपकने लगता है।
"अब आती हो या फिर मैं अपनी यह जॉकी भी उतार दूं" अपनी माँ की इस विस्फोटक कार्यवाही को प्रत्यक्ष देख अभिमन्यु अखंड उन्माद से कांपते हुए बोला और तीव्रता से अपने हाथ के दोनो अंगूठे अपनी कमर के इर्द-गिर्द लाकर उन्हें अपनी जॉकी की इलास्टिक मे फंसा देता है, तत्पश्चात उसने फौरन अपनी गांड बिस्तर से पूरी तरह ऊपर उठा दी मानो सचमुच वह अगले ही पल अपनी सगी माँ के समक्ष पूर्णरूप से नंगा हो जानेवाला था।
"नही! नही! नही! ...मैं आ रही हूँ, मैं आ रही हूँ बेटा" लगभग चीखते स्वर मे ऐसा कहकर वैशाली अचानक ही बिस्तर पर कूद पड़ती है। यह दृश्य भी बहुत कामुक था, बिस्तर पर पहले से ही अधनंगे बैठे अपने अत्युत्तेजित जवान बेटे की चौड़ी छाती से टेक लगाकर बैठने के अत्यंत पापी उद्देश्य से, सिर्फ ब्लाउज और छोटी--सी कच्छी पहने एक माँ अपने घुटनों और हाथों के बल बिस्तर पर चलना शुरू कर चुकी थी। उसके हर बढ़ते कदम पर उसके गोल-मटोल मम्मे उसके ब्लाउज से बाहर निकल आने को मचल उठते, पति के जीवित होने का प्रमुख प्रमाण उसका मंगलसूत्र झूले--सा झूलता हुआ, उसकी मांसल गांड हवा मे तनी हुई, बाल कंधे और चेहरे पर बिखरे हुए, हाथों के पंजे और दोनो घुटने मुलायम गद्दे मे धंसे हुए; एक अजीब से रोमांच को जाग्रत कर देने वाला दृश्य था। अभिमन्यु के नजदीक पहुँचकर जब वैशाली ने अपने शरीर को घुमाया तब सहसा उसकी गांड बेटे के चेहरे से रगड़ खाती हुई गुजरी, उसने अपने दोनो हाथों से स्वयं अपने बेटे की टांगों को विपरीत दिशा मे चौड़ाया और अंततः वह पापिन माँ बिस्तर पर बेटे के अधनंगे बदन से टेक लगाकर बैठ जाने मे सफल हो ही जाती है।
|