Maa ki Chudai मा बेटा और बहन
01-06-2019, 11:09 PM,
#15
RE: Maa ki Chudai मा बेटा और बहन
मल्टी पार्किंग मे बाइक पार्क कर अभिमन्यु और वैशाली मल्टी की सीढ़ियां चढ़ने लगते हैं, एकदम शांतिपूर्ण वातावरण मे उनके पैरों की चाप के अलावा कोई अन्य ध्वनि उस वक्त मल्टी के भीतर उत्पन्न नही हो रही थी। उनकी मल्टी का असल नाम शराफत पैराडाइस होना चाहिए था क्योंकि लगभग पूरी मल्टी ही नौकरी पेशा और व्यापारियों से भरी पड़ी थी जो कि खुद से मतलब रखने वाले लोग थे, अपनी स्वयं की उलझनों मे उलझे रहने वाले लोग। अब इससे बड़ी बात और क्या होगी कि उस मल्टी को बने डेढ़ साल बीत गया था मगर व्यवस्थापक या इंचार्ज का पद अबतक रिक्त था।

"तुम्हारी लंगड़ाहट से मुझे बहुत तकलीफ हो रही है मम्मी, फ्लैट मे पहुँचकर मैं सबसे पहले तुम्हारी कच्छी ....." अभिमन्यु ने मल्टी के शांत वातावरण मे एक और ध्वनि को जोड़ते हुए कहा, उसकी ऊंची आवाज और कथन मे शामिल अश्लीलता से घबराकर तत्काल वैशाली उसके बोलते मुंह पर अपना बायां पंजा दबा देती है और जिसमे सफल उसका बेटा बोलते-बोलते अचानक गूंगा सा हो जाता है।

"शश्श्ऽऽ मन्यु! कोई सुन लेगा तो मैं बेफालतू बदनाम हो जाऊंगी। फ्लैट के अंदर तुम्हें अपनी माँ के साथ जो भी करना हो कर लेना मगर प्लीज बेटा" वैशाली कांपती हुई--सी हौले से बुदबुदाई, सामाजिक भय की प्रचूरता से प्रभावित चंद लम्हों मे उसका अधिकांश चेहरा पसीने-पसीने हो गया था।

"तुम फिर डर गईं मॉम?" अपनी माँ के बाएं पंजे को आसानीपूर्वक अपने मुंह से दूर करते हुए अभिमन्यु ने जानकर भी अंजान बनते हुए पूछा, उसकी ऊंची आवाज मे कोई विशेष अंतर नही आया था बल्कि उसके स्वर पहले से भी कठोर हो गए थे।

"डरूं नही तो क्या करूं मन्यु, किसी को हमारे बारे मे अगर भनक भी लग गई तो मेरे पास मरने के अलावा कोई दूसरा चारा नही बचेगा" वह पुनः बुदबुदाई और उनके उस बेतुके से वार्तालाप की शीघ्र समाप्ति के उद्देश्य से अपने बेटे की दाईं कलाई को थामकर बलपूर्वक उसे भी अपने चलायमान कदमों के साथ अपने पीछे खींचने का प्रयत्न करने लगती है। एक अधेड़ उम्र की कामुक स्त्री मे इतना बल कहाँ कि वह अपने से लगभग आधी उम्र के एक बलिष्ठ नौजवान पर अपनी शारीरिक क्षमता का दम-खम आजमा सके, बात यदि उसके बुद्धिबल की होती तो जरा सी साड़ी ऊंची उठाई नही कि संसार का हर मर्द स्वतः ही उसके पीछे किसी पालतू कुकुर सामान फौरन अपनी दुम हिलाता हुआ चला आता। एक! दो! तीन! चार! ऐसे ही उसके दर्जनों झटके विफल रहे, बेटे को अपने पीछे खींचना तो दूर वह उसे उसके स्थान से हिला तक नही पाती है।

"उससे पहले मैं मर जाऊंगा या उस भैन के लौड़े को मार दूंगा जो मेरी माँ की तरफ सही-गलत, अपनी उंगली भी उठाने की कोशिश करेगा। तुम्हारा डर खत्म होना जरूरी है मॉम, बहुत जरूरी है" कहकर अभिमन्यु ने उल्टे अपनी माँ को ही अपनी ओर खींच लिया और तीव्रता से उसके दूसरे हाथ मे पकड़ा हुआ टेक-अवे का पॉलीबैग छीनकर उसे नीचे फर्श पर छोड़ देता है।

"क ...कैसे?" वैशाली इसके आगे कुछ और नही कह पाती जब अगले ही क्षण उसका बेटा उसके चिर-परिचत डर की मार से थरथराते अत्यंत कोमल होंठों पर अपने होंठ रखकर उनका कंपन अपने आप ही बंद कर देता है, साथ ही उसने माँ के बोलते मुंह को भी एकाएक सिल दिया था।

"ऐसे माँ ऐसे, तुम्हें यूं खुलेआम किस करके" उसने पलभर को उसके होठों को आजाद करते हुए कहा और पुनः अपने होंठ उसके होंठों से जोड़ दिए। बारम्बार वह उन्हें चूमता, भय स्वरूप उसकी भिंच चुकी मगर हिलती आँखों मे झांकता और फिर से उसके होंठों को चूमने लगता। अभिमन्यु ने जाना कि उसके लघु चुम्बनों के प्रभाव से भी उसकी माँ की सांसे निरंतर तेजी से गहरी पर गहरी होती जा रही हैं, उसकी छाती से सटे उसके मम्मों के भीतर धुकनी समान धड़कता उसकी माँ का दिल उसे स्वयं उसीके धड़कते दिल सा प्रतीत हो रहा था जो स्पष्ट प्रमाण था कि उसकी माँ ही नही घबराहटवश वह खुद भी पकड़े जाने की रोमांचक संभावना से ग्रसित था।

अपने इन्ही लघु चुम्बनों के दौरान मौका पाकर सहसा अभिमन्यु अपने सूखे होंठों पर अचानक अपनी जीभ फेरने लगता है और ज्यों ही उसके गीले होठों का परिवर्तित स्पर्श वैशाली ने अपने शुष्क होंठों पर महसूस किया उसने चौंकते हुए झटके से अपनी मुंदी आँखें खेल दीं, देखा तो उसका लाड़ला उसीके चेहरे को बड़ी बारीकी से निहारता हुआ मंद-मंद मुस्का रहा था।

"सिर्फ चूमने भर को किस नही कहते गंदे लड़के, होंठों को चूसा भी जाता है" जाने क्या सोचकर वैशाली अपना यह उकसावे भरा कथन कह गई और कहने के बाद पुनः सोचे-विचारे बगैर स्वयं ही अपने बेटे के होंठों से उलझ पड़ती है। यह कुछ और नही केवल अपने जवान बेटे की ह्रष्ट-पुष्ट भुजाओं के बल के मद मे चूर चुदाई की प्यासी एक शादीशुदा किंतु पति से तिरस्कृत माँ की अखंड बेशर्मी थी जो वह भी अपने संस्कार, जीवनपर्यंत अर्जित की हुई अपनी मर्यादित छवि को सरेआम तार-तार करने पर तत्काल आमदा हो गई थी।

मल्टी के जिस सार्वजनिक स्थान पर खड़े होकर दोनो माँ-बेटे वासना का नंगा खेल खेलने मे व्यस्त थे, वह जगह उनके पडो़सी मिस्टर नानवानी के फ्लैट के मुख्यद्वार के बिलकुल करीब थी, इतनी करीब कि यदि उसके परिवार का कोई भी अमुक सदस्य एकाएक फ्लैट का मुख्य दरवाजा खोल देता तो निश्चित ही वह उन माँ-बेटे के पापी चुंबन का राजदार हो जाता। एकबार को अभिमन्यु को दोष दिया जा सकता था कि वह जवान है, अपनी बेकाबू कामुक भावनाओं पर नियंत्रण नही रख सकता मगर वैशाली तो उसकी सगी माँ थी और इसके बावजूद खुद भी अपने बेटे के साथ बहक गई, यकीनन यह विश्वास करने योग्य बात नही थी। इस सब से बेखबर अपने बेटे के चेहरे को अपने दोनो हाथों से थामकर अपने पंजों के बल खड़ी उसकी वह अधेड़ कमसिन माँ उसके होंठों का तीव्रता से रसपान किए जा रही थी, कभी ऊपरी तो कभी वह उसका निचला होंठ चूसने लगती तो कभी दोनो होंठ एकसाथ अपने नाजुक होंठों के बीच फंसाकर बलपूर्वक उन्हें चूसने भिड़ जाती।

"वाउ मॉम! यू आर ...उफ्फ! यू आर फकिंग अॉसम। छत पर चलते हैं, बाकी मजा वहीं करेंगे" अचानक अपने होंठ अपनी माँ के होंठों से पीछे खींच अभिमन्यु साड़ी के ऊपर से उसकी मांसल गांड के दोनो पट अपने दोनो हाथों के पंजों मे जकड़ते हुए सिसका और फिर बिना रुके वैशाली की सुर्ख मतवाली आँखों मे झांकते हुए ही लगातार उसकी गांड को अत्यंत कठोरता से दबाने लगा, अपनी पूरी ताकत झोंककर वह उपनी माँ की गुदाज गांड के दोनो पटों को अधीरता से मसलना शुरू कर देता है।

"ओहऽऽ मन्यु! आहऽऽ ...आहऽऽ दर्द ....दर्द होता है बेटा" अपनी गांड पर अपने बेटे के जवान मर्दाने हाथों के मर्दन से वैशाली सीत्कारते हुए कहती है, वह एकदम से अभिमन्यु के ऊपर झूल--सी गई थी।

"ना कर मन्यु ...उन्ह! उन्ह! लगती है माँ को" उसने पिछले कथन मे जोड़ा जब उसका बेटा उसकी पीड़ा भरी आहों को सुनने के उपरान्त भी उसकी गांड को दबोचना नही छोड़ता।

"फिर से नौटंकी मम्मी! तुम्हें तो मेरी हर बात पर चिढ़ होती है, जबकि तुम जिसे दर्द का झूठा नाम दे रही हो मैं अच्छे से जानता हूँ वह क्या है" क्रोधित स्वर मे ऐसा कहकर अभिमन्यु ने फौरन उसकी गांड पर से अपने दोनो हाथ हटा लिए और फर्श पर पड़े टेक-अवे का पॉलीबैग उठाकर तत्काल पैर पटकते हुए बाकी की बची सीढ़ियां चढ़ने लगता है। उसके पास हमेशा उनके फ्लैट के मुख्यद्वार की चाबी मौजूद हुआ करती थी और जबतक अपनी सोच से बाहर निकलकर वैशाली भी उसके पीछे चलना शुरू कर पाती, दरवाजा खोलकर उसका बेटा फ्लैट को भीतर प्रवेश कर चुका था।

"मन्युऽऽ" फ्लैट के अंदर पसरे अंधेरे और सन्नाटे के बीच वैशाली अपने बेटे को पुकारते हुए हॉल की लाइट अॉन करती है, वह रूठने के अंदाज मे हॉल के सोफे पर अपनी नाक सिकोड़े बैठा हुआ था।

"अले! अले! मेरी डेट तो लगता है नाराज हो गई" वह सोफे के करीब आकर लाड़ भरे स्वर मे बोली।

"जस्ट लीव मी अलोन मॉम! यू नो, तुम्हीं मुझे पूरे दिन से उकसा रही हो और जब भी मैं अपने मन की करने को होता हूँ, फटाक से मुझे टोक देती हो" कहकर अभिमन्यु अपना चेहरा वैशाली की विपरीत दिशा मे मोड़ लेता है।

"ठीक कहा तुमने, शुरूआत हरबार मैंने ही की थी मगर अब खाने से तुम्हारी क्या दुश्मनी है? चलो उठो, मुझे भी जोरों की भूख लगी है" कहकर वैशाली उसे उसके दाएं कंधे से ऊपर उठाने का विफल प्रयास करने लगी।

"अच्छा ...अम्म! हाँ पहले तुम माँ की कच्छी उतार दो इसके बाद ही हम अपनी डेट सेलीब्रेट करेंगे" उसने पिछले कथन मे जोड़ा जब वह थक-हारकर भी अभिमन्यु को सोफे पर से उठा नही पाती।

"देखा फिर करी ना तुमने मेरी गांड मे उंगली, दोबारा खड़े लंड पर धोखा मत करो और मुझे अकेला छोड़ दो। प्लीज!" वह खिसियाते हुए कहता है जैसे उसकी वाणी मे शामिल अश्लीलता की उसे कोई परवाह ही ना हो। ठीक भी तो था, एक जवान लड़का बार-बार कबतक अपनी घटती-बढ़ती उत्तेजना को सहता रहेगा जबकि उसकी उत्तेजना का कारण कोई और नही उसकी अपनी सगी माँ ही थी।

"मैं जानती हूँ कि तुम इस वक्त क्या और कैसा फील कर रहे हो और मानो या मानो तुम्हारी माँ का भी कुछ यही हाल है। तुम्हारे पापा के अलावा इतनी फ्री मैं आजतक किसी के साथ नही हुई, अनुभा के साथ भी नही मगर जाने क्यों मुझे ऐसा महसूस हो रहा है कि मुझे तुम्हारे, अपने बेटे के साथ की जैसे बरसों से तलाश थी और ज्यों-ज्यों मेरी तलाश पूरी होने के करीब आती जा रही है, मैं हमारे रिश्ते तक को भूलते जाने पर मजबूर होने लगी हूँ। तुम्हारी माँ होकर भी मैं सोच-समझ नही पा रही कि क्या सही है और क्या गलत, बस पानी की धार सी बहती चली जा रही हूँ" गंभीरतापूर्वक ऐसा कहकर वह बेटे के दाएं कंधे को थपथपाने लगती है। इसी को तो हम आम भाषा मे सुख-दुख बांटना कहते हैं, अपने राज़ को स्वयं बेटे के संग सांझा कर मानो वैशाली के दिल से एक बहुत बड़ा बोझ हल्का हो गया था, कुछ विशेष नही तो कम से कम वह अपने भीतर सहसा एक अजीब--सी खुशी के प्रज्वलित होने का अहसास तो अवश्य करने लगी थी।

"तुम्हें इस बात का अफसोस है कि तुम अपने बेटे के साथ इतना फ्री क्यों हुईं?" अभिमन्यु हौले से बुदबुदाते हुए पूछता है। अपनी निजता को उसके संग बांटकर उसकी माँ ने एकाएक उसे बेहद अचंभित कर दिया था, जिसके नतीजन वैशाली के प्रति उसका प्रेम और विश्वास अब पहले से कहीं अधिक प्रगाढ़ होने लगा था।

"नही बिलकुल नही। अब मेरा यह जवाब मेरी ममता का है, मर्यादा का है, मेरे संस्कारों का है या फिर बंधनों की जंजीर मे जकड़ी आजादी की चाह रखने वाली एक आम--सी औरत का है, मैं यह नही जानती। जानती हूँ तो बस कि मुझे यह आजादी अच्छी लग रही है और मैं खुद को दोबारा से जिंदा महसूस कर पा रही हूँ" कहकर वैशाली सोफे से दूर जाने लगती है, यकीनन उसने अपना ह्रदय स्वयं अपनी छाती को चीरकर अपने बेटे के समक्ष प्रस्तुत कर दिया था। अभिमन्यु अपना चेहरा घुमाकर अपनी माँ के चलायमान कदमों को गौर से देखने लगा, वह उसी क्षण अपनी माँ के हर आगे बढ़ते कदम को चूमने की चाह से तड़प उठा। उसकी माँ पुनः दुखी हो गई और जिसका इकलौता कारण वह खुद को मान बैठा था, एकपल को भी उसे अपने पिता का ख्याल नही आया जिसने अपनी पत्नी को कभी अपनी पत्नी--सा नही समझा, समझा तो सिर्फ अपना एक आजीवन गुलाम, नौकर या सेवक और नियम के मुताबिक संसार की हर पत्नी की भांति उसकी माँ ने भी जैसे अपने पति का ताउम्र दासत्व अपना एकमात्र भाग्य मानकर सहर्ष ही स्वीकृत कर लिया था।

"मॉम! भूख लग रही है, तुम्हारे बेडरूम मे खाएंगे" वह सोफे से उठते हुए बोला और टेक-अवे पॉलीबैग डाइनिंग टेबल से उठाकर किचन मे घुस जाता है। उसने पिज्जा माक्रोवेब मे दोबारा गर्म किया, गार्लिक ब्रेड भी और फ्रिज से कोल्ड्रिंक की बॉटल, दो तरह के सॉसेज्स आदि निकालकर अपने परिजनों के शयनकक्ष के भीतर पहुँच गया। बेडरूम के बिस्तर के बीचों-बीच प्लास्टिक की एक चौकोर शीट बिछाकर वह डिनर उसपर करीने से सजाने लगता है, बिस्तर के नजदीक चुपचाप खड़ी हतप्रभ वैशाली उनके फ्लैट की खरीदी के उपरान्त आज पहली बार डिनर को अपने बेडरूम मे लगता देख रही थी और वह भी सीधे उसके बिस्तर पर, सही मायने मे जिसपर यदि किसी का सच्चा अधिकार था तो वह था सिर्फ उसका और उसके पति मणिक का।


"अपनी साड़ी और पेटीकोट उतार लो मम्मी फिर हम अपना डेट-डिनर शुरू करेंगे" वह बिना अपनी माँ की ओर देखे कहता है, निश्चित ही यह माँ-बेटे के बीच पनपे उसी समय अंतराल का भीषण परिणाम था जो अभिमन्यु को अपनी इस अनैतिक सोच को विचारने का भरपूर वक्त मिल गया था।

"साड़ी, पेटी ...पेटीकोट?" वैशाली एकाएक चौंकते हुए पूछती है। यह क्या कम था जो वह उसीके बेडरूम मे, उसीके बिस्तर पर अपने सगे जवान बेटे के साथ डिनर करने को मन ही मन अपनी स्वीकृति प्रदान कर चुकी थी। अपने बेटे के महा-नीच कथन और उसमे शामिल उसकी पापी मांग ने उसकी माँ को महज चौंकाया ही नही था वरन तत्काल वह आंतरिक लज्जा से दोहरी भी हो गई थी।

"जल्दी करो मम्मी, भूख के मारे मेरी जान निकली जा रही है" वह अॉरिगेनो, वाइट पैपर और चिल्ली फ्लेक्स के पाऊच्स संभालते हुए बोला।

"मगर साड़ी और पेटीकोट ...कैसे मन्यु? मैं तुम्हारी बात को शायद ठीक से समझ नही पा रही" वैशाली अपना निचला कंपकपाता होंठ अपने मोती समतुल्य दांतो के मध्य दबाते हुए पूछती है, अपने अत्यंत नाजुक होंठ को अपने तीक्ष्ण दांतों से जैसे वह आज स्वयं ही चबाकर खा जाने पर विवश थी।
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RE: Maa ki Chudai मा बेटा और बहन - by sexstories - 01-06-2019, 11:09 PM

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