RE: Maa ki Chudai मा बेटा और बहन
"हम्म!" अपरिचितों की उपस्थिति मे वैशाली सिर्फ इतना सा जवाब देकर चुप हो जाती है, अभिमन्यु उसकी चुप्पी का कारण समझ गया और बिना किसी परवाह के वह उन अपरिचितों के सामने ही अपनी माँ की चोटिल मुट्ठी को चूमने लगता है। उसने पाया कि उसकी माँ एकाएक असहज हो गई थी और अपने हाथ को बेटे के होंठों से दूर खींचने का प्रयत्न करने लगी थी मगर उसने अपनी माँ का हाथ नही छोड़ा, बल्कि उसकी आँखों मे झांकते हुए उसे यह विश्वास दिलाता रहा कि उसके होते हुए वैशाली को किसी से भी डरने की कोई जरूरत नही है, उसके जीवित रहते कोई उसकी माँ का बाल भी बांका नही कर सकता है।
"इतनी घबराती क्यों हो? अपने बेटे पर भरोसा नही है क्या?" लिफ्ट से बाहर निकलकर अभिमन्यु ने उससे मौखिक रूप से पूछा।
"औरत हूँ, डर लगता ही है" वैशाली ने जवाब मे कहा।
"अपने इसी बेतुके डर से तुमने अपनी पूरी लाइफ घुटन और परेशानी मे बिता दी, अपने बेटे के प्यार पर भी शायद तुम्हें कोई भरोसा नही" अभिमन्यु गहरी सांसें लेते हुए शांत स्वर मे बोला।
"तुम और तुम्हारे प्यार पर भरोसा नही होता तो तुम्हारी माँ होकर भी कभी तुम्हें बेशर्मों की तरह अपने शरीर का वह अंग नही दिखाती जिसे देखने का अधिकार केवल मेरे पति को है" वैशाली भी पूरी गंभीरता से बोली।
"पर एक बात तो है मॉम। जब भी तुम अपने मुंह से कच्छी, गांड, लंड और चूत जैसे देशी शब्द बोलती हो, कसम से कहर ढ़ा देती हो" अपनी माँ का मायूस चेहरा देख अभिमन्यु ने उसे लजाने के उद्देश्य से कहा, सचमुच उसकी माँ का शर्म से बेहाल चेहरा उसके दिल मे किसी नुकीली कटार--सा धंसता चला जाता था।
"कच्छी और गांड तक तो ठीक है मगर इसके आगे सिर्फ तुम्हारी गंदी कल्पना का विशाल समंदर है" वैशाली मुस्कुराते हुए बोली, धीरे-धीरे उसे भी समझ आने लगा था कि अभिमन्यु पलभर को भी उसका दुखी चेहरा नही देख पाता है फिर भले ही वह अपनी अश्लील या मजाकिया बातों से ही उसे हँसाने का प्रयास क्यों ना करे पर उसे हँसाकर ही मानता था।
इसी बीच वे चलते-चलते पिज्जा हट की होस्टिंग डेस्क तक पहुंचे, कांच से अंदर देखा तो एक सिंगल टेबल भी खाली नही थी। वैशाली यह देखकर हैरान हो गई कि वहाँ उसके उम्र की कोई भी अन्य औरत किसी जवान लड़के के साथ नही आई थी, औरतें थी भीं तो उनका परिवार उनके साथ वहां मौजूद था।
"डाइन इन इज फुल, इफ देयर इज ऐनी कैन्सलेशन आई लेट यू नो। मैम! सर! विल यू प्लीज वेट देयर" कहते हुए होस्टिंग कर रही धमाल लड़की ने अपनी दाईं ओर बनी एक गोल सीमेंटेड पट्टी की ओर इशारा किया जहाँ पहले से ही वेटिंग वाले लगभग आधा दर्जन कपल बैठे हुए थे।
"सर अगर चाहें तो टेक-अवे हो जाएगा" लड़की वैशाली की नजरों को ताड़ते हुए बोली जो वेटिंग कपलों की अधिकता को देख मायूस सी हो रही थी।
"ना! ना! वील वेट, थैंक्स अम्म! या थैंक्स मिस गौरी" अभिमन्यु ने लड़की के नेमबैच पर लिखे उसके नाम को पढ़ते हुए कहा और फिर अपनी माँ को उस दूसरी गोल सीमेंटेड पट्टी पर ले जाने लगता है जहाँ कोई भी मौजूद नही था। उसने पुनः गौर किया उसकी माँ लंगड़ाकर चल रही है और उसकी उस लंगड़ाहट पर वैशाली का जरा-सा भी ध्यान नही था, उसके शांत मुखमंडल पर कोई ऐसे लक्षण नही पनप रहे थे जो उसकी चाल से संबंधित उसके जबरन पाखंड को दर्शा पाते।
"तुम फिर लंगड़ाकर चल रही हो?" देर हुई नही कि उसकी शैतानी शुरू हो गई।
"अब इतनी भीड़ मे टांगें चौड़ाकर तो चल नही सकती तभी लंगड़ा रही हूँ" वैशाली सीमेंटेड पट्टी पर बैठते हुए बोली।
"ज्यादा दिक्कत हो तो टेक-अवे करवा लूं?" अभिमन्यु ने मुद्दे की गंभीरता को समझते हुए पूछा।
"अगर ऐसा कर सको तो मेरी बहुत हैल्प हो जाएगी बैटा, मुझसे अब सहा नही जा रहा और भीड़-भड़क्के मे बार-बार अपने पीछे हाथ लगा नही सकती" वैशाली उसके बाएं हाथ को सहलाते हुए कहती है, उसकी आवाज से साफ पता चल रहा था कि वह अवश्य किसी तकलीफ मे है।
"मगर बाइक पर तो कोई दिक्कत नही हुई थी" अभिमन्यु ने अपनी माँ के दाएं कंधे पर अपना सिर टिकाते हुए कहा।
"उसपर बैठी हुई थी इसलिए, चलने मे दिक्कत आती है मन्यु" वैशाली एक हाथ से उसका सिर सहलाते हुए बताती है।
"मगर बाइक तो चल रही थी ना फिर क्यों दिक्कत नही आई?" पूछकर वह हँसने लगता है और उसकी हँसी से वैशाली झेंप जाती है, फौरन उसने बेटे के सिर पर हल्की सी चपत लगा दी।
"चलो ठीक है मगर हमारी डेट" रंग बदलने मे माहिर वह उदास होते हुए बोला।
"मौका सिर्फ एकबार आकर हमेशा के लिए थोड़ी ना चला जाता है। हम घर पर अपनी डेट सेलिब्रेट करेंगे, टीवी देखते हुए" वैशाली ने उसका मन रखने के लिए आधिकारिक तौर पर उसकी डेट प्रपोजल को स्वीकारते हुए कहा।
"ओके! मुझे मंजूर है मगर मेरी एक शर्त है" अभिमन्यु सहसा चहककर बोला।
"बको क्या शर्त है तुम्हारी, वैसे मुझे पता था कि तुम जात के मुताबिक पक्के बनिया हो" वैशाली मुस्कान के साथ पूछती है, अब वह अपने बेटे हर संभव समझ चुकी थी।
"घर जाकर तुम्हारी कच्छी मैं खुद अपने हाथों से उतारूंगा" अभिमन्यु जैसे कोई विस्फोट करते हुए कहता है, उसकी माँ उसकी शर्त को सुन अकस्मात् हक्की-बक्की सी उसके चेहरे को घूरने लगती है।
"नही मन्यु, जो आज हो गया वह दोबारा अब कभी नही होगा, तुम उस बीते वक्त को तुरन्त भूल जाओ" उसने घबराते हुए कहा, बेटे की सर्वदा अनुचित शर्त ने उसकी माँ को हैरानी से भर दिया था।
"तुमने भी उस वक्त को एन्जॉइ किया था मॉम, हम फिर से उसे इन्जॉइ करेंगे। प्लीज मम्मी" यह अभिमन्यु का लगातार दूसरा विस्फोट था, वैशाली पसीने से तरबतर होने लगी थी।
"मैंने तुमसे ऐसा नही कहा मन्यु, यह बस तुम्हारे शैतानी दिमाग की उपज है" वह जरा क्रोधित लहजे मे बोली और उसका क्रोध करना जरूरी भी था, यह तो सीधे उसपर झूठा इल्जाम लगाने जैसा था और जिसे वह चाहकर भी कभी स्वीकार नही करती।
"अडल्ट हूँ मॉम, सबकुछ जानता हूँ। तुमने वाकई इन्जॉय किया था और इसीलिए उस वक्त तुम्हारी चूत से झरना बह रहा था" आखिरकार अभिमन्यु तीसरा विस्फोट भी कर ही देता है और उसके कथन को सुन अब वैशाली पूरी तरह से निरुत्तर हो जाती है। अपने बेटे के बुद्धि बल का वह माँ आज लोहा मानने पर मजबूर है, जो बेटा अपनी सगी माँ को एक स्त्री के रूप मे जीत सकता है वह संसार की किसी भी अन्य स्त्री को यकीनन ही फांस सकता है।
"ओके! तो फिर मैं टेक-अवे करवा लेता हूँ" वह प्रसन्न होकर सीमेंटेड पट्टी से उठते हुए बोला, उसकी माँ की चुप्पी ने उसे पुनः जीत का स्वाद चखा दिया था।
"बैठो अभी, हमारी बात पूरी नही हुई" वैशाली बलपूर्वक उसे दोबारा पट्टी पर बिठते हुए बोली।
"मौका सिर्फ एकबार आकर हमेशा के लिए थोड़ी ना चला जाता है" वह तत्काल अपनी माँ के ही कहे कथन की पुनरावृत्ति करता है और इसबार वैशाली पूर्वरूप से टूट जाती है।
"थैंक्स मॉम, मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ और तुम्हें कभी कोई दुख नही दूंगा" मुस्कुराते हुए ऐसा कहकर वह तेजी से होस्टिंग डेस्क पर पहुँचा और अपना अॉर्डर पंच करवाने लगता है। उसकी नजर गौरी के गौरवर्ण से हट नही पा रही थी मगर कहीं उसकी माँ उसकी हरकतों से भड़क ना पड़े वह चुपचाप अपना टेक-अवे लेकर चलता बनता है।
पार्किंग से बाइक निकालकर वह उसे पुनः हवा से बातें करवाने लगा, वैशाली पहले की तरह ही उससे चिपककर अवश्य बैठी मगर एकदम शांत थी और लौटते वक्त ना जाने क्यों अभिमन्यु भी उसे बिलकुल नही छेड़ता, बस जल्द से जल्द घर पहुँचने के इंतजार मे बाइक दौडा़ता रहता है।
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