RE: Maa ki Chudai मा बेटा और बहन
"झूठ! जानवर हो या इंसान, आजादी सभी को चाहिए। मैं जानता हूँ कि पापा के नाम से हम भाई-बहन के अलावा तुम्हारी भी उतनी ही फटती है मॉम, तुम्हें भी उनका अकड़ू नेचर पसंद नही लेकिन फिर भी तुम हमेशा से उसे पसंद करती आ रही हो, उसे झेलती आ रही हो क्योंकि वह तुम्हारे पति हैं" कहकर अभिमन्यु बाइक की रफ्तार को हौले-हौले कम करने लगता है। उसका कहा हर शब्द सीधे उसके दिल से निकला था, उसके उसी दिल से जिसके एक छोटे--से कोने मे नही बल्कि अब उसकी माँ उसके पूरे दिल मे ही रच-बस गई थी।
"तुम्हें अपनी जुबान पर लगाम लगाने की जरूरत है मन्यु वर्ना हम यहीं से घर लौट सकते है" यह आवाज वैशाली के दो-तरफा बंटे हुए मन से बाहर आई थी। अपने बेटे के कथन से वह पूर्णतः सहमत थी, उसे वाकई मणिक का भय जीवनपर्यंत सताता रहा था मगर अपने बहुमूल्य राज़ के अकस्मात् उजागर हो जाने से वह सहसा दुखी हो गई थी। अभिमन्यु पर उसकी कोई भी नाराजगी नही होने का प्रमाण यह था कि वह अबतक उससे उसी तरह से सटकर बैठी हुई थी जब माँ-बेटे के बीच अश्लील वार्तालाप और उससे पनपा हँसी-मजाक शुरू हुआ था, यहां तक कि अपने दोनो हाथ भी उसने जरा भी पीछे नही खींचे थे।
"अजीब लड़की हो तुम, अपनी पहली डेट पर साथ आए लड़के को यूं बेवजह धमकाते हुए तुम्हें शर्म नही आती। पता भी है मेरा कितना खर्चा हो गया? सत्ताइस सौ के अंडरगारमेंट्स, चालीस का गुलाब, आने-जाने का डेढ़ लीटर पेट्रोल और दोबारा घर से निकलने के बाद भी लगभग आधा लीटर पेट्रोल जल चुका है। हाँ यार! लड़कियां नही हुईं आफत हो गईं" बाइक को दाएं मोड़ते हुए ऐसा कहकर वह फौरन अपनी माँ के अत्यंत कोमल होठों को चूम लेता है। उसने बिलकुल सही समय का चुनाव किया था, बाइक मोड़ते वक्त उसका चेहरा भी स्वभाविक रूप से दाहिनी और घूमा था और इससे पहले की उससे सटकर बैठी उसकी मायूस माँ को पहले से ही उसकी इस शरारत का पता चल पाता अभिमन्यु उसके रसभरे होठों का प्रथम चुम्बन लेने मे सफल हो गया था।
"ये ये क्या? उफ्फ! मैं क्या करूं इस बेशर्म लड़के का, बातें भी गंदी करता है और हरकतें तो बातों से भी कहीं ज्यादा गंदी हैं" वैशाली लज्जा से दोहरी होते हुए बोली, खुलेआम चलती सड़क पर बेटे का उसके होंठों को चूम लेना मानो पलभर मे उसकी सारी मायूसी तत्काल हवा हो जाती है। हालांकि उनका चुम्बन क्षणिक था, अहसास भी ना हो सकने जैसा मगर फिर भी दोनो माँ-बेटे खुशी से फूले नही समा रहै थे।
"नौटंकी मत करो लड़की, तुम्हें भी अच्छे से पता है कि पहली डेट पर कपल और क्या-क्या गंदे काम करते हैं" मुस्कान के साथ कड़क आवाज बनाकर ऐसा कहते हुए वह पुनः अपना चेहरा दाहिनी ओर घुमाने लगता है ताकि दोबारा अपनी माँ को चौंकने पर मजबूर कर सके। भले उसे अब और चुम्बन नही लेने थे क्योंकि जो आंतरिक आनंद उसे अपने पहले चुम्बन मे महसूस हुआ था उतना शायद वह उनके आगामी अनगिनती चुम्बनों मे भी महसूस नही कर सकता था, एक विशेष बात और थी कि जब उसने वैशाली के होठों को चूमा था तब उसका ध्यान अपने बेटे की हरकत की ओर जरा भी नही था और वह अकस्मात् किसी दूसरी दुनिया मे पहुँच गई थी, लज्जा और बेतुकी घबराहट से उसका मुंह खुला का खुला रह गया था, वह बुरी तरह कांप उठी थी। यही उनके पहले चुम्बन की विशेषता थी जिसे सरल शब्दों मे अबोध, आश्चर्य से भरा हुआ एक निष्कपट, निष्छल कृत्य कहा जाए तो उसका सही भाव समझने मे आसानी होगी।
"लो! लो! करो ...किस करो, अब रुक क्यों गए मन्यु?" जब वैशाली को समझ आ गया कि उसके बेटे ने दूसरी बार सिर्फ उसे हैरान-परेशान करने के लिए ही अपना चेहरा दाहिनी ओर घुमाया है, वह स्वयं अपना चेहरा उसके दाएं कंधे के पार निकालते हुए बोली, पहले-पहल तो वह वास्तव मे पुनः चौंक गई थी और तीव्रता से अपना चेहरा पीछे खींच लिया था मगर सत्य जानने के उपरान्त वह खुद ही अपने होठों को सिकोड़कर उसे चिढ़ाने लगती है। सत्य तो यह भी था कि वह चाहती थी कि उसका बेटा उसके उकसावे पर दोबारा उसके होठों को चूमे मगर अभिमन्यु ने ऐसा कुछ भी ना कर उसे लगातार तीसरी बार चौंका दिया था।
"तुम्हें तो कोई शर्म है नही मम्मी मगर मुझे है, जमाना क्या सोचेगा? छि!" कहकर वह हँसने लगा और वैशाली फौरन उसकी पीठ पर मुक्के जड़ने लगती है।
"वैसे जब घर पहुँच जाएंगे तब मैं पक्का बेशर्म बन जाऊँगा माँ, तब देखूँगा तुममे कितना दम है मुझे रोकने का" अभिमन्यु पहले से भी कहीं तेज हँसते हुए बोला और उसके कथन के अर्थ को सोचते ही वैशाली के खुले मुंह से एकाएक लंबी सीत्कार बाहर निकल जाती है।
"तुम्हें रोक तो मैं चाहकर भी नही सकूंगी मन्यु, क्या पता मैं ही खुद को ना रोक पाऊं" वह अपनी चूत के अंदरूनी स्पंदन को स्पष्ट महसूस करते हुए सोचती है, उसकी गांड का छेद भी स्वतः ही कुलबुलाने लगा था।
अगले कुछ क्षणों तक दोनो चुप रहे और तबतक मॉल भी नजदीक आ गया मगर हर-बार की तरह इस बार वैशाली के उतरने के लिए अभिमन्यु ने बाइक को मॉल के बाहर जरा भी नही रोका बल्कि अपने साथ वह उसे भी सीधे मॉल की भूमिगत पार्किंग के भीतर ले जाता है।
"तुम जानते हो ना कि तुम्हारे पापा मुझे और अनुभा को कभी पार्किंग के अंदर नही ले गए, फिर तुम मुझे क्यों वहाँ साथ ले जा रहे हो मन्यु?" वैशाली ने तत्काल पूछा, पार्किंग नीचे चार मालों तक थी और अभी वे दूसरे तल पर पहुँचे थे। उसका दिल धुकनी की तरह जोर-जोर से धड़कने लगता है जब उसका बेटा उसके प्रश्न का जवाब देने की बजाय बाइक को तीसरे तल पर ले जाने के लिए मोड़ने लगता है।
"मन्यु उतारो मुझे ...यहीं उतार दो, मुझे नही जाना और नीचे" किसी अनिष्ठ की कल्पना से घिरी वह माँ एकाएक इतनी अधिक घबरा जाती है कि चंद लम्हों मे उसकी कजरारी आँखों मे आँसू उमड़ने लगते हैं, सिसकियां लेनी शुरू कर चुकी वह माँ यह तक भूल जाती है कि अभी वह संसार के सबसे सुरक्षित हाथ अपने सगे बेटे के साथ है।
"उतरो माँ, यहां से लिफ्ट मे साथ चलेंगे। मैंने बाइक ऊपर इसलिए नही रोकी क्योंकि मुझे तुम्हारा नेचर पता है, कोई गार्ड-वार्ड भी तुमसे अगर पुछताछ करने लगता तो तुम बेवजह घबरा जातीं" जब बाइक रोक देने के बावजूद वैशाली उसपर से नीचे नही उतरी तब अभिमन्यु ने उसे शांत स्वर मे वजह समझाते हुए कहा, बेटे की बात सुन हथप्रभ वह फौरन बाइक से उतर जाती है।
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