RE: Maa ki Chudai मा बेटा और बहन
"बेटा, उन्ह! क ...कच्छी, माँ साड़ी के नीचे ...ओह! नीचे नंगी है" वैशाली बेटे के कंधों को बलपूर्वक झकझोरते हुए सिसयाई और अभिमन्यु भी झटके से वर्तमान मे लौट आता है। खुद को स्थिर करने हेतु उसे थोड़ा समय मिलना चाहिए था जो उसे उसकी माँ के निंदनीय कथन को सुनकर नही मिल पाया था। उसने बिस्तर पर उसके सबसे नजदीक पड़ी कच्छी पर झपट्टा मारा और बिना अपना सिर उठाए कच्छी को जकड़ने वाला अपना दायां हाथ ऊपर कर देता है।
"तुम अपने हाथ से पहनाओ मन्यु, तुम्हारे बचपन मे मैंने भी अनगिनत बार तुम्हें चड्डी और निक्कर पहनाए है। आज उस अहसान को उतार दो बेटा, पहनाओ अपनी माँ को उसकी कच्छी। समझो यही मेरी मिन्नत है और आज्ञा भी" कहकर वैशाली ने कोई इंतजार नही किया और अपनी साडी़ को अपने पेटीकोट समेत पकड़कर ऊपर उठाने लगती है। वह जानती थी उसका यह पापी कृत्य उसकी मर्यादित छवि को सदा-सदा के लिए समाप्त कर देगा, अपने मातृत्व का अबतक अर्जित किया सारा तप माटी मे मिल जाएगा। उसकी चूत की तात्कालिक दुर्दशा से भी वह अंजान नही थी, चूत से उमड़े रस ने उसकी घनी घुंघराली झांटों को भी पूरी तरह से भिगो दिया था।
"माँ मुझसे न ...." अभिमन्यु अपनी आँखें मूदते हुए बोला मगर उसके कथन को उसकी माँ बीच मे ही काट देती है।
"माँ से बेशुमार प्यार करते हो पर उसकी खुशी के लिए इतना भी नही कर सकते" कहते हुए वैशाली अखंड उन्माद से रो ही पड़ती, जाने अपने किस कठोर धातु द्वारा बने संयम के तहत उसने खुद को रोका था। अपने दोनो हाथों मे साड़ी और पेटीकोट को एकसाथ लपेटते हुए आखिरकार वह अधेड़ माँ अपने सगे इकलौते जवान बेटे अभिमन्यु के समक्ष अपने निचले धड़ से नंगी हो ही जाती है।
"मन्यु डू इट नाउ! पहना दो अपनी माँ को कच्छी, जल्दी करो ...माँ नीचे से नंगी है उसे बहुत शर्म आ रही है बेटा" वैशाली के इस घोर अश्लील कथन ने अभिमन्यु को अपनी बंद आँखें खोलने पर विवश कर दिया और अपनी खुली आँखों से जो कामुक दृश्य उसने प्रत्यक्ष देखा मानो वह अपने होश बैठता है। बड़ी-बड़ी झांटों के बीचों-बीच छुपी उसकी माँ की सांवली रंगत की अत्यंत सुंदर चूत गाढ़े लिसलिसे कामरस से सराबोर थी, चूंकि उसकी माँ के पैरों के बीच कोई खुलापन नही था तो चूत के दोनो सूजे होंठ आपस मे बुरी तरह चिपके हुए थे। जीवंत फड़कते होंठों के ऊपर शुशोभित उसकी माँ का मोटा भांगुर भी उसे स्वयं फड़फाता हुआ सा प्रतीत हो रहा था, पूरा स्थान ही भीषण अगिन--सी तपन का अहसास करवा रहा था। अभिमन्यु को अब अपने किसी भी पल झड़ जाने का कोई दुख नही रहा था, उसका लंड तो जैसे उसे महसूस भी नही हो पा रहा था इतना प्रचंड तनाव उसमे आ चुका था कि अपने-आप वह शून्य मे परिवर्तित हो चला था।
"माँ तुम बहुत ...बहुत सुंदर हो और बेहद गीली भी" अभिमन्यु ने अपना सिर ऊपर उठाया और मुस्कुराकर अपनी माँ की सुर्ख लाल आँखों मे झांकते हुए कहा, जो बरबस नशे सी खुलती व बंद होती जा रही थीं।
"बद्तमीज लड़के, तुम्हारी माँ नीचे से नंगी है और तुम्हें मजाक सूझ रहा है। अगर मनभर कर वहाँ देख लिया हो तो अब माँ को उसकी कच्छी पहना दो, माँ को सचमुच शर्म आ रही है" अपने बेटे के संतुष्ट चेहरे को देख वैशाली भी मुस्कुराते हुए बोली, एक ऐसी संतुष्टता जो अब संसार की महज उस अकेली पापिन माँ को ही महसूस हो सकती थी।
"साड़ी को साड़ी मे उलझा दो मम्मी और फिर रखो मेरे कंधों पर अपने दोनो हाथ, शायद मेरा बीता हुआ बचपन तुम्हें दुबारा याद आ जाए" कहकर अभिमन्यु साडी़ को साडी़ के भीतर गोल-गोल लपेटने मे अपनी माँ की मदद करने लगता है, ताकि हाथ से छोड़ देने पर साड़ी नीचे न गिर सके।
"वेट अ मिनट माँ, एकबार और तुम्हारे वहाँ देख लूं फिर पहनाता हूँ तुमको कच्छी" वह पुनः अपनी आँखे अपनी माँ की चूत पर गड़ाते हुए बोला, वैशाली को उसका अनैतिक कथन सुनकर एकाएक चक्कर से आने लगे थे।
"वाउ! मॉम मे इस वर्ल्ड मे तुम्हारे यहाँ से बाहर निकलकर आया हूँ, बिलीव मी! मुझे हम दोनो पर प्राउड फील हो रहा है। तुम बहुत! बहुत! बहुत! बहुत ज्यादा सुंदर हो माँ, मेरी सोच से भी ज्यादा सुंदर" चहकते हुए उसने पिछले कथन मे जोड़ा। नासमझी या खुशी से बेहाल वह बुद्धु यह भी स्वीकार कर गया कि वह अपनी माँ की चूत के विषय मे सोचा करता है और कमाल यह कि उस पागल को भान ही नही कि गलतीवश वह अपनी माँ से क्या अनर्थ कुबूल बैठा था। जिसे सुनकर वैशाली मन ही मन मुस्कुराने लगती है, अपने सगे बेटे मुख से अपनी चूत की प्रशंसा का हर शब्द लगातार उसके कानों मैं रस घोले जा रहा था।
"बस मन्यु अब डन, मैं अब और देर नंगी खड़ी रह सकती" कहते हुए वैशाली ने आगे को झुककर अपने दोनो हाथ बारी-बारी से अपने बेटे के कंधे पर रख दिए और अभिमन्यु भी अपनी माँ की इच्छा को सहर्ष मान लेता है।
"अपना सीधा पैर उठाओ मम्मी" उसने वैशाली को आज्ञा दी, बिलकुल वैसे ही अंदाज मे जैसे हर माँ अपने बच्चों को कपड़े पहनाते वक्त देती है। अपने बेटे की आज्ञा को मानते हुए उसकी माँ से अपना दाहिना पैर फर्श से ऊपर लिया, फौरन जिसे पकड़कर अभिमन्यु कच्छी के दायं निचले छेद के भीतर कर देता है।
"अब उलटा पैर उठाऊं बेटा" बेटे के बोलने से पहले वैशाली ने स्वयं बोल दिया और एकसाथ दोनो माँ-बेटे जोरों से हँसना शुरू कर देते हैं। बायां पैर भी अब कच्छी के अंदर आ चुका था और फिर एक अंतिम नजर अपनी माँ की चिपचिपी स्पंदनशील चूत पर मायूसी से डा़ल अभिमन्यु कच्छी को तबतक ऊपर चढ़ाता गया जबतक उसकी माँ की नंगी चूत उसकी खुली आँखों से ओझल नही हो गई। मायूसी इस बात की कि शायद यह पहली और आखिरी बार था जो उसने अपनी असल जन्मस्थली के प्रत्यक्ष दिव्य दर्शन किए थे क्योंकि अपनी माँ से ना तो किसी तरह की कोई जबरदस्ती उसने भूत मे और ना ही वह आगामी भविष्य मे कभी करता, अब भविष्य तो बस उसकी माँ के अपने निजी निर्णय पर टिका रह गया था।
इसके उपरान्त वैशाली बिना कुछ कहे सीधे बेडरूम के बाथरूम मे चली जाती है, अभिमन्यु हॉल मे चला आया था और कुछ समय पश्चात उसकी माँ भी वहाँ आ गई और अंततः दोनो माँ-बेटे अपनी-अपनी सोच मे गुम घर की चौखट को पार जाते हैं।
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