RE: Maa ki Chudai मा बेटा और बहन
"मॉऽऽम!" अपनी माँ के प्रश्न और उसके दाएं हाथ के इशारे को समझ सहसा अभिमन्यु कुर्सी से उछल पड़ता है, इस पूरे वार्तालाप मे मानो पहली बार उसे शर्म महसूस हुई थी।
"अरे! अरे! अरे! नाउ वाट हैप्पन टू योर दोज वर्ड्स? वी बोथ आर अडल्ट मम्मी और अगर हम दोस्त बने तो हमारी शर्म खत्म हो जाएगी" वैशाली हँसते हुए बोली तो साथ मैं अभिमन्यु भी हँसने लगता है।
"तुम वाकई बहुत गंदे लड़के हो मन्यु पर क्या करूं, मेरे इकलौते बेटे हो तो मैं ठीक से तुम्हें डांट भी नही पाती" उसने पिछले कथन मे जोड़ा।
"आई नो मम्मी एण्ड देट्स वाए आई लव यू सो मच। उम्मऽऽ मुआऽऽ" अभिमन्यु ने फौरन उसकी ओर एक चुम्बन उछाल दिया।
"तो मैं सही हूँ, तुम्हारी क्युरीआसिटी औरतों के बदन से है" वैशाली ने अंधेरे मे तीर चलाते हुए कहा, हालांकि पूरी तरह से इसे अंधेरे मे तीर चलाना नही कहेंगे मगर उनके बीच चलते इस सामान्य से वार्तालाप को अब दूसरी दिशा मे मोड़ने हेतु उसे अभिमन्यु की भी सहमति की विशेष आवश्यकता थी। एक ऐसी सहमति जिसमे ना कोई शर्म हो, ना कोई हया हो महज सत्य ही सत्य हो।
"अब मैं बोलूंगा तो कहोगी मैं बेशर्म हूँ" अभिमन्यु दांत निकालते हुए कहता है। वह तो इस वक्त की प्रतीक्षा ना जाने कब से कर रहा था, जब उसकी माँ और वो दोनो ही खुलकर बातचीत कर सकते थे।
"जो लड़का किसी मजबूर कामवाली के साथ जबरदस्ती कर सकता है, अपनी माँ की बैस्ट फ्रैंड के घर से उसकी कच्छी चुरा सकता है और आज तो तुमने अपनी माँ की ही कच्छी चुरा ली। ऐसे बेशर्म को बेशर्म नही बोलूं को क्या शब्बाशी दूं" वैशाली का स्वर क्रोधित था मगर उसके भाव चहके हुए थे।
"मैं खुद को बिलकुल नही रोक पाता मम्मी, जब एक बेहद सैक्सी एण्ड हॉट एम आई एल एफ दिनभर मेरे करीब रहती है। जो मुझे अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करती है, मुझे खाना खिलाती है, मेरा ख्याल रखती है, मुझे कभी नही रोने देती, टाइम से पॉकेटमनी देती है, मेरे गंदे कपड़े धोती है, मेरे ...." वह आगे बोलता ही जाता यदि वैशाली बीच मैं उसे नही टोकती।
"बस बस, बहुत मक्खन लगा लिया तुमने और मैं कोई एम आई एल ...." इस बार अभिमन्यु अपनी माँ को बीच मे टोक देता है।
"मुझे बोलने दो मम्मी। जिसे पता है कि मैं चोरी छिपे उसे नहाते देखता हूँ, उसे मुट्ठ मारते हुए देखता हूँ। जिसे पता है कि मैं खुद उसके नाम की मुट्ठ मारता हूँ, जिसे पता है कि मैं पॉर्न देखता हूँ, जिसे पता है मैं वर्जिन नही। जो मेरी रग-रग से वाकिफ है मगर फिर भी मेरी हर छोटी-बड़ी गलती को हमेशा माफ कर देती है ....." अपने बेटे के अश्लील कथन को सुनकर अकस्मात् वैशाली का सम्पूर्ण बदन कांप उठा, चेहरे पर लहू उतर आया, कमर चरमरा गई, निप्पल ऐंठ गए, कामरस से भीगी कच्छी थरथराती चूत के मुख से बुरी तरह चिपक गई और तत्काल वह झटके से कुर्सी से उठकर खड़ी हो जाती है। अभिमन्यु अब भी बोले ही जा रहा था, उसका हर शब्द वैशाली के कानों मे पिघले शीशे सा घुसता महसूस हो रहा था।
"मुझे ...मुझे काम है" कहकर वह सीधे किचन की ओर दौड़ पड़ती है।
"मैंने सिर्फ फ्रेंडशिप का प्रपोजल नही रखा था मॉम और भी बहुत से प्रपोजल थे मेरे। तो क्या मैं उन्हें भी मंजूर समझूं?" दौड़ लगती अपनी माँ को देख अभिमन्यु ने जोर से चिल्लाते हुए पूछा और उसके प्रश्न को सुन वैशाली बिना पीछे मुड़े अपने दाएं हाथ से अपना माथा ठोकते हुए मुस्कुराकर किचन के भीतर घुस जाती है।
कुछ क्षणों तक किचन के बर्तनों की मिथ्या ध्वनि से खुद को व हॉल मे बैठे अभिमन्यु को भ्रमित करने का सफल अभिनय करती वैशाली जोरदार हंपाई लेती रही, अपने सगे जवान बेटे के मुंह से यूं खुल्लम-खुल्ला अपनी अश्लील प्रशंसा सुनना संसार की किस माँ को हंपाई से नही भरेगा? अपनी प्रशंसा पर प्रसन्न हो उठना तो स्त्री स्वभाव का पहला प्रमुख गुण है मगर प्रसन्न होने के साथ ही उसपर लजा भी जाना, यह अवश्य स्त्री विशेष की अत्यंत मर्यादित छवि को प्रदर्शित करता है। वैशाली उन चुनिंदा स्त्रियों मे से एक है जिसकी मर्यादित छवि के कारण उसकी लज्जा उसकी प्रसन्नता पर सदैव भारी पड़नी चाहिए और ऐसा वह प्रत्यक्ष महसूस कर भी रही थी।
"हाँ मुझे पता कि तुम अपनी माँ, अपनी सगी माँ, जिसने तुम्हें पैदा किया अपनी उसी सगी माँ के नाम की मुट्ठ मारते हो। तुम इतने बेशर्म कैसे हो सकते हो मन्यु? अपनी माँ के विषय मे सोच अपने लंड से खेलते हुए क्या तुम्हें जरा सी भी शर्म नही आती बेटा?" किचन की स्लैब पर अपने दोनो हाथ टिकाए खड़ी उस मर्यादित, संस्कारी माँ के अनैतिक बोल उस वक्त उसे और भी अधिक लज्जा से भर देते है जब चलचित्र की भांति चहुं ओर उसे मुट्ठ मारता हुआ उसका जवान बेटा अभिमन्यु ही नजर आने लगता है। माँ शब्द की रट लगाए जोरदार सिसकियां भरता हुआ वह अपने दोनो हाथों से अपने अत्यंत सुंदर व तने हुए लंड को तीव्रता से मुठिया रहा था जिसके काल्पनिक चित्रण मात्र ने कब वैशाली की लज्जा को उसकी कामुत्तेजना मे परिवर्तित कर दिया, वह नही जान सकी।
अपने आप वह स्लैब पर झुक गई, कपकपती टांगें फैलने लगीं, दायां हाथ बिना किसी अतिरिक्त रुकावट के टागों की जड़ से जोंक--सा चिपक गया, उंगलियां मैक्सी समेत कच्छी को चूतमुख पर बलपूर्वक घिसने लगीं, सूखा मुंह नमी तलाशने हेतु खुल गया, कमर धनुषाकर तन उठी, पैर के पंजे फर्श मे धंसने लगे और अंततः इन सभी लक्षणों से जोड़ से वैशाली को समझ आ गया कि जीवन मे दूसरी बार वह यूं खुलेआम मुट्ठ मारने लगी थी। अभिमन्यु हॉल मे है और किचन का दरवाजा भी खुला है, पुनः बेटे द्वारा रंगे हाथों पकड़े जाने का भय और उस भय से पैदा होता असीमित रोमांच जैसे तत्काल उस कामुक माँ को अधिकाधिक उत्साह से भरने लगा था।
"हाय रे बेशर्म, आखिरकार तुम अपनी माँ से भी तुम्हारे नाम की मुट्ठ मरवाने मे सफल हो गए। उफ्फ! आओ उन्ह! आओ मन्यु, खुद अपनी आँखों से देख लो। अब हमारे बीच कोई अंतर नही रहा, आहऽऽऽऽ! तुम्हारी माँ, उन्ह! तुम्हारी अपनी माँ भी तुम्हारी ही तरह बेशर्म, आह! सफा बेशर्म बन चुकी है मन्युऽऽ" अपने जबड़ों को भींच अपने स्वर दबाने की प्रयासरत वैशाली अगले ही क्षण स्खलन के चर्मोत्कर्ष को पाने लगती है, उसके पापी काल्पनिक चित्रण मे अभिमन्यु भी उसके साथ ही झड़ रहा था। अंतर बस इतना--सा कि वह स्वयं के स्खलन को महसूस भर कर सकती थी मगर बेटे के लंड के फूले हुए सुपाड़े से लगातार बाहर आती उसके वीर्य की लंबी-लंबी धारें वह स्पष्ट देख पा रही थी, मानो प्रत्यक्ष उसका बेटा उसके समक्ष ही स्खलित हो रहा हो।
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अपने कमरे के अटैच बाथरूम मे बंद शॉवर के नीचे खड़ा अभिमन्यु अब से कुछ वक्त पहले बीती घटना पर बड़ी गंभीरता से गौर कर रहा है। हालांकि अपनी माँ के किचन मे जाते ही वह भी फौरन कुर्सी से उठकर खड़ा हो गया था, वह स्वयं वैशाली के पीछे जाना चाहता था मगर चाहकर भी अपना कदम आगे नही बढ़ा पाया और इसके ठीक उलट अपने कमरे के भीतर लौट आया था।
"तुम बदल गई हो मॉम, सचमुच बदल गई हो" अपने दाएं हाथ की मुट्ठी में कैद वह अपनी माँ की कच्छी को घूरते हुए बड़बड़ाया और फिर एकाएक मुट्ठी खोलने के पश्चात कच्छी को सीधे अपनी नाक से सटाकर बारम्बार गहरी-गहरी सांसे लेने लगता है।
"उफ्फऽऽ! कहीं मैं पागल ना हो जाऊँ" अपनी माँ के बदन की सच्ची मादकता से परिचित होकर अभिमन्यु चहक उठा था, कच्छी मे रची-बसी वैशाली के तन की सुगंध सूंघते हुए वह बाएं हाथ से अपने पत्थर समान कठोर लंड को तीव्रता से मुठियाने लगता है। बीते चार-पांच घंटो से उसकी जवानी लगातार उससे रहम की भीख मांग रही थी, अब वह चाहकर भी अपने शरीर के भीतर निरंतर उबल रहे लावे को और अधिक उपेक्षित नही कर सकता था।
"मैं जानता हूँ माँ कि यह गलत है, बिलकुल गलत है पर मैं तुम्हारे इल्जाम को झूठा साबित नही होने दूंगा, आई एम सॉरी मम्मी" अपनी इसी सोच के साथ कामलुलोप अभिमन्यु फौरन अपनी माँ की कच्छी को उत्तेजना की मार से थरथराते अपने लंड के इर्द-गिर्द लपेटकर, अत्यंत आक्रमकता से मुट्ठ मारना शुरू कर देता है। अपने सूख चुके होठों पर तेजी से जीभ फिरते हुए वह अपने बाएं हाथ से, गाढ़े वीर्य से लबालब भरे अपने टट्टों को भी सहलाने लगा था।
कहते हैं पाप करना और पाप मे भागीदार बनना, दोनो की एक सी सजा होती है। एक तरफ वैशाली है जो खुलेआम किचन के भीतर पाप करने मे व्यस्त थी और ठीक उसी वक्त दूसरी तरफ अभिमन्यु है जो एकांत मे बाथरूम के अंदर उसी पापी कृत्य मे लिप्त है, सबसे बड़ी समानता यह कि दोनो ही अबोध नही बल्कि पूर्ण समझदार पापी हैं। माँ-बेटे के लिए हाथ से मिलने वाला सुख नितांत अनूठा है मगर संभोग की तृप्ति महज हाथों से मिलने लगे तो कोई पापी ही क्यों बने?
"आहऽऽ! इतना मजा तो उस भैन की लौड़ी सुधा की कच्छी भी नही दे पाई थी जितना मजा तुम्हारी कच्छी दे रही है माँ। आई एम सॉरी मम्मी, ओह! आई एम सॉरी" कपकपाती टांगें बीच मे कहीं उसका साथ ना छोड़ दें इस कारण अभिमन्यु दीवार से टिक गया था, रह-रहकर उसकी सुर्ख आँखों मे उसकी माँ की लाल ब्रा के भीतर कैद उसके गोल-मटोल अधनंगे मम्मे घूमने लग जाते जिसके प्रभाव से उसका दायां हाथ और तेजी से उसके लंड को पीटने लगता।
"मैं लाऊँगा तुम्हारे लिए नई ब्रा और कच्छी, उन्ह! उन्ह! तुम उन्हें पहनोगी ना माँ? आहऽऽऽऽ पहनोगी माँ, तुम उन्हें जरुर आहऽऽऽऽऽऽ!" अभिमन्यु की नीच इच्छा के समर्थन मे तत्काल उसके बेहद सूजे बैंगनी रंगत के सुपाड़े ने गाढ़े वीर्य की लंबी-लंबी फुहार उगलनी शुरू कर दी और जो तीव्रता से सीधे सामने की दीवार से टकराने लगती हैं। उसकी आंखों के समक्ष जैसे पलभर को अंधेरा सा छा गया था, निचला धड़ एक मंत्रमुग्ध कर देने वाली ऐंठन से जकड़ा हुआ और साथ ही लगातार लगते हर झटके पर उसके टट्टे पहले से कहीं अधिक मात्रा व गति से वीर्योत्सर्जन करने लगते। ग्लानिस्वरुप जो वह बार-बार अपनी माँ से माफी मांगे जा रहा था इस मनभावन स्खलन को पा लेने के उपरान्त धीरे-धीरे उसका तन और मन दोनो ही शांत होते जा रहे थे।
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