RE: Maa ki Chudai मा बेटा और बहन
हाल-फिलहाल मे बीते पिछले बीस दिनों पहले वैशाली की सबसे अभिन्न महिला मित्र मिसिज मेहता अचानक से उसके घर आ धमकी और उसने वैशाली को अभिमन्यु की एक नई घ्रणित करतूत से परिचित करवा दिया की उसके घर हालचाल पूछने का बहाना बनाकर वह बाथरूम से उसकी कच्छी चुराकर ले गया है। अपने बेटे के बचाव मे मिसिज मेहता से उसकी काफी तूतू-मैंमैं हो गई थी मगर अंत तक उसने मिसिज मेहता की शिकायत को अपना विश्वास नही दिया था बल्कि उल्टे वह अपनी सबसे अच्छी दोस्त पर ही बेगैरत होने का इल्जाम लगा देती है। हालांकि उसने तत्काल अपने बेटे की पॉकेटमनी पर रोक लगा दी थी, उसका कॉलेज के अलावा कहीं और घूमने-फिरने जाना भी तब से बिलकुल बंद था और आज सुबह जब सफाई के दौरान उसे अभिमन्यु के स्टडी ड्रॉअर से वाकई मिसिज मेहता की कच्ची बरामद हो गई अत्यंत तुरंत वह खुद की ही परवरिश पर शर्मिंदा हो जाती है।
मणिक उस वक्त घर पर मौजूद था, वैशाली ने निर्णय लिया कि आज वह अपने बेटे की सभी गंदी करतूतों को अपने पति के साथ सांझा करके ही रहेगी क्योंकि पानी अब सिर के पार जा चुका था। कुछ यही सोचते हुए वह तेजी से अपने बेडरूम की दिशा मे चल पड़ी मगर चाहकर भी बेडरूम के भीतर कदम नही रख पाती और इसके दो मुख्य कारण थे :-
१) मणिक के घोर गुस्से से अभिमन्यु कहीं का नही रहता, क्या पता आज वह अपने लाडले को एक अंतिम बार देखती? या तो उसका पति उसके बेटे को जान से ही मार देता या फिर हमेशा-हमेशा के लिए उसे घर से बेदखल कर देता।
२) अभिमन्यु को बिगाड़ने मे सबसे बड़ा हाथ खुद वैशाली का ही था। यदि समय रहते वह अपने बेटे पर सख्ती करती, उसे उसके पिता का झूठा भय दिखाती या स्वयं भी उसकी पिटाई कर सकती थी मगर इन तीनों मे से वैशाली ने कुछ नही किया बल्कि बेटे की देखादाखी खुद भी रोजाना नियम से मुट्ठ मारने लगी और पॉर्न तो जैसे अब उसकी रग-रग मे बस चुका था। जैसे वह अबतक अपने बेटे की जासूसी करती आई है अब वक्त बदल गया था, उल्टा अभिमन्यु अपनी माँ की जासूसी करने लगा था और एक तरह से उसकी जासूसी मे वैशाली की सहमति भी शामिल थी वर्ना अबतक या तो वह पूरी तरह से नंगी होकर मुट्ठ मारना छोड़ चुकी होती या ठीक उसी पूर्ण नंगी हालत मे उसने बाथरूम के भीतर नहाना बंद कर दिया होता।
मणिक के घर से चले जाने के बाद वैशाली ने रोजमर्रा के सभी काम निबटाए और खुद के लिए दो परांठे बनाकर, कम्प्यूटर पर पॉर्न देखते हुए उन्हें खाने लगी। अभिमन्यु अपना लंच कॉलेज मे ही करता था तो घरपर उसके लिए सिर्फ रात का खाना बनाया जाता था। मिसिज मेहता की पेंटी वाकई बेटे द्वारा चुराए जाने को लेकर और पति के इस बार पिछले टूर से भी लंबे टूर पर चले जाने से परेशान वैशाली बिना हॉल का दरवाजा चैक किए अपने बेडरूम मे आ गई। यह सोचकर कि हॉल का दरवाजा बंद है, बिना अपने बेडरूम का दरवाजा लगाए उसने अपनी पेंटी को उतरकर फौरन अपनी गीली चूत से खेलना शुरू कर दिया। अगर अभिमन्यु अचानक से बीच मे नही आता तो कुछ ही पलों बाद हमेशा के जैसे वैशाली का पूरी तरह से नंगी होकर मुट्ठ मारने का इरादा था और जो एकाएक बाधा उत्पन्न हो जाने के कारण अधूरा रह गया था।
"शिट मैन! कितना बड़ा गधा हूँ मैं जो जानबूझकर मॉम के प्राइवेट मोमेन्ट को तबाह करने उनके बेडरूम मे चला गया था। शिट! शिट! शिट!" अपने कमरे के बंद दरवाजे से टिककर नीचे फर्श पर बैठा अभिमन्यु खुद को लताड़ते हुए बोला।
"क्या सोच रही होंगी वह मेरे बारे मे, वैसे भी मैं पहले से ही अपनी काफी इज्जत उनकी आँखों मे खो चुका हूँ और आज तो मैंने हद ही कर दी" उसने पुनः अपना चेहरा अपने दोनों हाथों से ढांक लिया।
यह बिलकुल सत्य था कि अभिमन्यु के मन-मस्तिष्क मे अपनी माँ के प्रति कोई गलत भावना नही थी, बस जबतब उसे वैशाली को देख अपनी सबसे पसंदीदा 'एम आई एल एफ' विक्की वेट्टे की याद आ जाती थी। हाँ यह जरूर सत्य था कि उसकी माँ का अत्यंत कामुक नंगा बदन उसके दिल के भीतर तक घर कर चुका था मगर इसके बावजूद उसने वैशाली पर कभी कोई जबरदस्ती नही की थी, बल्कि उसके मुट्ठ मारने या नहाने के अद्भुत दृश्य को छुप-छुपाकर देखने के उपरान्त वह भी अपनी तृष्णा को अपने मनमाने ढ़ंग से शांत कर लिया करता था।
"उनके तलवे को अपने खड़े लंड पर रगड़ा, उनकी टांगें चौडा़ईं ताकि उन्हें और शर्मिंदा कर सकूं, उन्हें भला-बुरा कह जबकि वह मे माँ हैं और तो और उनकी पेंटी तक चुरा ली मैंने" अपनी गलतियों को सोचकर वह बेहद गंभीर व भावुक हो चुका है।
"मेरे सामने नंगी होकर रहो मम्मी, छि! खुल्लम-खुल्ला मेरे सामने मुट्ठ भी मारो क्योंकि हम बैस्ट फ्रेंड हैं" खुद की निकृष्ट इच्छाओं पर अब उसे क्रोध भी आने लगा था।
"बिच, मेरी मॉम बिच। अच्छा तो फिर मैं क्या हूँ? एक कमीना, बड़ा हरामखोर बेटा" उसका सिर दर्द से फटने लगा है।
"दूरी, हाँ दूरी। बस यही मेरी सजा है कि मैं अब उनसे दूरी बना लूं ताकि उन्हें मेरा यह बेशर्म चेहरा दोबारा ना देखना पड़े" वह फर्श से उठकर सीधे अपने बिस्तर पर जा गिरा, उसे एक लंबी व गहरी नींद की सख्त आवश्यकता थी और चंद पलों मे वह सो भी गया था।
इस चूतिया से समाधान को ठीक उसी की उम्र के नौजवान निकाल सकते है क्योंकि एक ही घर मे रहते हुए वह अपनी माँ से और कितनी अधिक दूरी बना सकता था।
अभिमन्यु के आँखों से ओझल होने के पश्चात वैशाली भी बिस्तर से नीचे उतरने लगती है कि सहसा उसकी नजर बेडशीट के उस बड़े--से गीले धब्बे पर पडी जो उसके कामरस के उसकी साड़ी व पेटीकोट से रिसने के बाद बेडशीट पर अंकित हुआ था। खैर यह कोई विशेष बात नही कि उसके स्खलन ने आज सुबह ही उसके द्वारा बदली गई नई बेडशीट को इतने जल्दी गंदा कर दिया था, बल्कि वैशाली को अचरज इस बात पर हुआ कि इस तरह के लंबे व अधिकाधिक रिसाव के स्खलन उसे उसकी बीती हुई जवानी मे हुआ करते थे। चूंकि अब वह जवानी की दहलीज पार कर एक अधेड़ उम्र को पा चुकी है फिर क्या कारण रहा जो एकाएक उसके स्खलन ने पुनः उसे उसकी बीती हुई जवानी मे वापस पहुँचा दिया था?
"इन्सेस्ट होता हो या ना होता हो मगर उसका असर जरूर होता है" वह धीरे से फुसफुसाते हुए खुद से बोली और अपने ही व्यभिचारिक कथन पर बुरी तरह से लजा जाती है। वह इतनी नादान व अपरिपक्व स्त्री नही थी जो यह जान ना सके या मान ना सके कि उसके इस मनभावन स्खलन और अधिकाधिक रिसाव का एकमात्र कारण उसका अपना सगा जवान बेटा था। बेटे की मौजूदगी मे यूं खुल्लम-खुल्ला मुट्ठ मारना सचमुच एक ऐसा विचित्र रोमांचकारी क्षण था जिसकी अकल्पनीय रोमांचकता को दुनिया की कोई भी माँ नकार नही सकती थी और फिर यह कार्य सर्वदा अनुचित भी तो था, खुद वैशाली की चूत झड़ने के उपरान्त अब भी कुलबुला रही थी जैसे दोबारा उसे अभिमन्यु की प्रत्यक्ष उपस्थिति मे झड़ने का बेसब्री से इंतजार हो।
अपने चेहरे पर शर्म और कामुकता के मिलेजुले भाव लिए वह दो अत्यंत सुंदर जवान बच्चों की अधेड़ माँ अपनी अस्त-व्यस्त साड़ी को संभालते हुए अपने बेडरूम के अटैच बाथरूम के भीतर घुस जाती है। उसने तीव्रता से खुद को नग्न किया और फिर सीधे शॉवर के नीचे आकर खड़ी हो गई, ठंडे पानी की फुहार उसके तपते बदन पर गिरते ही मानो भाष्प मे तब्दील होने लगी थी। किसी अमुक विद्वान ने बिलकुल सही कहा है कि तन की ज्वाला, काम की अग्नि से ज्यादा ज्वलनशील अन्य कुछ भी नही, जिसने अच्छे-अच्छे ब्रह्मचारी, ऋषि-मुनियों के वर्षों के तप को भी पलभर मे जलाकर राख कर दिया। फिर वैशाली तो एक स्त्री है, हालात की मारी एक ऐसी तिरस्कृत स्त्री जिसकी कामग्नि बीते कई महीनों से शांत नही हो पाई थी, जो पति के जीवित होते हुए भी किसी विधवा की भांति बिस्तर पर लगभग अपना पूरा दिन बिता देने को बाध्य थी।
"मन्यु क्या सोच रहा होगा मेरे बारे मे? कहीं वह मेरी पेंटी को अपने लंड पर लपेटकर मुट्ठ तो नही मारने लगा होगा? वैसे लड़का है तो बड़ा बेशर्म, बद्तमीज! अपनी सगी माँ को कुतिया कहकर बुला रहा था" अपनी चूत और उसके आसपास उगी बड़ी-बड़ी घुंघराली झांटों को धोते वक्त भी वैशाली सिर्फ अपने बेटे के ही विषय मे सोच रही थी। एक अजीब--सी संनसनाहट भरा अहसास कि अपने कामरस को छुटाते हुए भी उस माँ का ध्यान अपने जवान बेटे पर से हट नही पा रहा, उस माँ की मर्यादित छवि के लिए कितना अधिक लज्जातृन था।
"क्या कोई माँ अपनी नंगी चूत को छूने के दौरान कभी अपने बेटे का ख्याल अपने मन-मस्तिष्क मे ला सकती है?" अचानक खुद से ऐसा अशिष्ट प्रश्न पूछ वैशाली की आँखें मुंद जाती हैं और सर्वप्रथम जो चेहरा उसकी बंद पलकों मे उभरा, उस चेहरे और उसपर व्याप्त हँसी को देखते ही वह तेजी से अपना हाथ अपनी नंगी चूत से दूर झटक देती है। उसने अपनी मुंदी आँखें भी तत्काल खोल लीं, निरंतर मलते हुए उन्हें ठंडे पानी से धोया मगर खुली आँखों से भी चहुं ओर उसे अपने बेटे अभिमन्यु का ही हँसता हुआ चेहरा नजर आ रहा था।
"तू अब उसकी माँ नही रही वैशाली। तेरी स्थिति वाकई तेरे बेटे के नीच संबोधन, सड़क की उस बेबस बूढ़ी कुतिया समान हो गई है जिसे जवान होकर जबतब उसका अपना पिल्ला ही चोद जाया करता है। तेरी उच्चतम पदवी, शीर्शतम रिश्ता, मान और सम्मान जैसे सबकुछ तूने स्वयं ही अपनी बेशर्मी से गंवा दिया। आज अभिमन्यु ने तेरे मुंह पर प्रत्यक्ष तुझे कुतिया कहकर पुकारा है, वह दिन दूर नही जब भविष्य मे तुझे रंडी कहकर भी पुकारेगा" अतिशीघ्र वैशाली अपने दोनों हाथ बलपूर्वक अपने दोनों कानों पर दबा देती है। यह उसके अंतर्मन की वही आंतरिक आवज थी जिसने उस वक्त भी उसे कचोटा था जब मुट्ठ मारते हुए वह बेटे के मुंह से, अपने प्रति उसके अंदरूनी गंदे व निषिद्ध विचारों को जानने की इच्छुक थी। वैशाली उससे वर्जित पर वर्जित सवाल पूछे जा रही और अपनी माँ के समान ही बेशर्म बनकर अभिमन्यु उसे अनैतिक से अनैतिक उत्तर देते हुए बारंबार अपनी पापी इच्छाएं भी उसे बेझिझक बतलाए जा रहा था।
"कुछ ...कुछ गलत नही हुआ, सिर्फ एक छोटा--सा बदलाव ही तो आया है। पहले वह छुप-छुपाकर मुझे मुट्ठ मारते हुए देखा करता था, आज प्रत्यक्ष देख लिया। उसने सही कहा था कि हम अडल्ट हैं, एक-दूसरे केयसभी रहस्यों से पूर्ण परिचित फिर छुप्पन-छुपाई का यह बचपना खेल कबतक खेलते रहेंगे?" वैशाली ने अपने अंतर्मन से तर्क-वितर्क करना शुरू कर दिया।
"माना उसकी माँ होकर मैं उसकी एकमात्र इच्छा का समर्थन नही कर सकती, उसे कतई उचित नही ठहरा सकती, जरा--सा भी स्वीकार नही कर सकती मगर अपनी धूमिल छवि मे जरूर सुधार कर सकती हूँ। हाँ! मुझे उसकी दोस्ती के प्रस्ताव पर गहराई से विचार करने की आवश्यकता है और बस अब मैं खुद को उसी नये रूप मे ढा़लने की कोशिश करूंगी" अपने अंतर्मन को अपना अंतिम व निर्णायक निर्णय सुनाकर वह बिना कुछ और सोचे, बेहद शांति से अपना नहाना पूरा करती है और बाथरूम मे पहले से ही मौजूद तौलिए को अपने अधगीले मांसल नंगे बदन पर लपेटकर बाथरूम से बाहर निकल जाती है।
अपने बेडरूम के पूर्व से खुले हुए दरवाजे को देख सहसा वैशाली की हँसी छूट जाती है कि कैसे वह एक छोटे--से तौलिए को अपने गदराए अध्उघड़े बदन पर लपेटे सरेआम अपनी निजता को स्वयं तारतार कर रही है। अभिमन्यु घर पर मौजूद है और यह जानते हुए भी अबतक संस्कारी रही उसकी माँ यूं खुल्लम-खुल्ला अपने अधनंगे बदन का निर्भीक प्रदर्शन कर रही है, जैसे उसे इस बात का कोई डर नही कि उसके बेडरूम का दरवाजा खुला हुआ है और उसका जवान बेटा किसी भी क्षण उसके कमरे के अंदर सरलतापूर्वक झांककर उसे उसकी इस अधनंगी कामुक हालत मे देख सकता है।
"हमें अपनी न्यूडिटी को कोई खास वैल्यू नही देनी चाहिए मॉम। ऐसी गंदी सोच रखने वाले गंदे लड़के, उफ्फ! जिसने तुम्हें पैदा किया, अपनी उसी सगी माँ को पूरी तरह से नंगी देखकर तुम्हें शर्म नही आएगी भला?" अपने खुद के विध्वंशक प्रश्न पर लंबी सीत्कार भरते हुए वैशाली फौरन अपना तौलिया अपने अधनंगे बदन से अलग कर देती है, तत्पश्चात पूर्णरूप से नंगी हो चुकी भव्य यौवन की स्वामिनी वह विवाहित माँ अपने उस छोटे--से तौलिए को एक बहुत ही निम्न स्तर की बेहुदा अदा के साथ नीचे फर्श पर गिराकर, तत्काल अपने बेडरूम के खुले दरवाजे को निहारने लगती है।
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