RE: Maa ki Chudai मा बेटा और बहन
"ओह! मन्यु, जब तुम्हारी बेशर्म माँ को तुम्हारे सामने यू खुलेआम मुट्ठ मारने मे शर्म महसूस नही हो रही तो क्या पता कल से वह सचमुच ही घर मे नंगी ना घूमने लग जाए और क्या पता कि आह! आह! आह! कि आगे वह तुमसे चु ......" अभिमन्यु ने ज्यों ही अपनी माँ के बाएँ हाथ को थामा, उसकी आँखों मे देखते हुए वह तीव्रता से झड़ पडी़।
"उफ्फ! मन्यु उफ्फ! आहऽऽऽऽऽऽ! आहऽऽऽऽ! अभिमन्यु मैं गई" पूरा बेडरूम वैशाली की सीत्कारों से गूंज उठा।
"कोई नही मॉम, कोई बात नही। मैं हूँ ना यहाँ, तुम्हारा बेटा तुम्हारे पास ही है घबराओ मत" कहते हुए अभिमन्यु अपनी माँ का कांपता बाएँ हाथ अपने दोनो पंजों से सहलाने लगता है।
"फिकर मत करो, मैं तुमसे सैक्स नही करना चाहता। आहां! नेवर मॉम और तुम कोई बेशर्म नही हो, बेशर्म तो मैं हूँ देखो जिसने तुम्हें रुला दिया, अपनी बैस्ट फ्रेंड को रुला दिया" कुछ मनभावन स्खलन और कुछ आंतरिक लज्जा के प्रभाव से वैशाली की आँखे बहने लगी थीं जिन्हें देख अभिमन्यु भी लगभग रोने-सा लगता है। भले ही वह जवान था, कई बार चुदाई कर चुका था मगर जिस तरह के अद्भुत, अकल्पनीय स्खलन को वह अभी तत्काल मे देख रहा था मानो उसका सम्पूर्ण शरीर एक अनजाने भर से थरथरा उठा था। उसके लंड की कठोरता सुन्न-सी हो चुकी थी, माथे से बहकर पसीना उसके गालों से होता हुआ उसकी शर्ट भिगोने लगा था।
स्खलन के दौरान वैशाली की पीठ एकाएक बिस्तर से ऊपर को उठ गई, उसके चेहरे पर गहन पीड़ा के भाव उमड़ आये थे, चीखते हुए वह रोने लगी थी, उसके शारीरिक कंपन की तो कोई सीमा ही नही रही थी और जिसे प्रत्यक्ष इतने नजदीक से देख सहसा अभिमन्यु के जबड़े जोरों से भिंच गए जैसे अपनी माँ के स्खलन के आनंद को वह दर्द स्वरूप स्वयं महसूस करने लगा था।
कुछ देर तक हांफते रहने के उपरान्त वैशाली का ऐंठा हुआ शरीर स्थिर हो गया और ज्यों ही वह शांत हुई, अभिमन्यु फौरन उसकी साड़ी को नीचे खींच उसके घुटनों तक ढांक देता है ताकि स्खलन के साथ बाहर आए अपने कामरस को देख पुनः उसकी माँ को लज्जा का सामना नही करना पड़े। वैशाली ने जब यह देखा तो उसकी नम आँखें उसके बेटे की नम आँखों से जा टकराईं और यही वह क्षण था जब क्रोधित या शर्मिंदा होने की बजाए वह अभिमन्यु को अपने बाएं हाथ से अपनी ओर खींचते हुए उसे अपने सीने से चिपका लेती है।
"लो जी करलो बात! मै तो तुम्हें काफी डेरिंग लड़का समझती थी जो कुछ दिनों पहले मेरी दोस्त, यानी कि अपनी माँ समान औरत के बाथरूम से उसकी यूस्ड पेंटी तक चुरा लाया था पर तुम तो चूहा निकले" वैशाली अपने बाएं हाथ से अभिमन्यु की पीठ सहलाते हुए बोली, उसके चेहरे पर बेहद सुंदर--सी मुस्कान छा गई थी।
"और पता है इस चूहे की सजा क्या है? उसने उसे अपने सीने से हल्का सा दूर करते हुए पूछा।
"हम्म! क्या है सजा बोलो?" अभिमन्यु धीरे से फुसफुसाया, वह अबतक अपनी माँ के उस अद्भुत स्खनल के अलावा कुछ भी अन्य सोचने-विचारने मे असमर्थ था और उसके चेहरे पर छाई परेशानी व घबराहट देख वैशाली के मन मे एकदम से कुछ ऐसा अजीब कार्य करने की इच्छा जाग्रत हुई, जो उसके माँ होने की छवि को पुनः दागदार कर दे। उसने अभिमन्यु के होंठों को चूमने का निर्णय लिया पर फिर अचानक दूसरा ख्याल मन मे आते ही उसके चेहरे पर व्याप्त उसकी सुंदर--सी मुस्कान एक दुष्ट मुस्कान मे परिवर्तित हो जाती है।
"तुम्हें तुम्हारी यह शर्ट अपने हाथों से धोनी पड़ेगी, मंजूर?" वैशाली ने पूछा तो अभिमन्यु हैरत मे पड़ गया।
"यह कैसी सजा हुई मॉम? मैंने तो सोचा था कि इसबार तुम मुझे सीधे घर से बाहर निकाल देने से कम सजा नही दोगी या फिर मेरे अगले महीने की पॉकेटमनी पर भी रोक लगा दोगी" अभिमन्यु ने उल्टा उससे प्रश्न किया।
"ऊंहूं! यह सजा उससे भी बड़ी है शैतान लड़के" हँसते हुए ऐसा कहकर वैशाली अपने दाएं हाथ को अपनी साड़ी से बाहर निकाल लेती है। उसका पूरा पंजा उसके गाढ़े व चिपचिपे कामरस से भीगा हुआ था और जिसे अपने बेटे की अचरच से फट पड़ी आँखों मे झांकते हुए वह नई-नवेली बेशर्म माँ उसकी शर्ट से पोंछने लगती है। दाईं छाती पर अपनी लिसलिसी उंगलियों को रगड़ने के उपरान्त बाकी बचा कामरस उसने दाईं छाती से पोंछ डाला।
"उफ्फ मम्मी! तुम कितनी डर्टी हो। छी! छी! छोड़ो मेरी शर्ट को यू नॉटी बिच" अभिमन्यु भी हँसते हुए बोला, वह फौरन वैशाली के गीले दाएं हाथ से दूर होने का झूठा प्रयास करने लगता है। उसकी नाक के दोनों नथुए उसकी माँ के कमरस की मादक सुगंध से तुरंत फूल गए थे, स्खलन के चरम को छू लेने के बाद उसका चेहरा पूरनमासी के चाँद--सा दमक उठा था जिस कारण अभिमन्यु की खोई उत्तेजना दोबारा लौट आती है और अपनी उसी उत्तेजना के मद मे वह कब अपनी माँ के संबोधन मे 'बिच' जैसे गंदे शब्द को शामिल कर लेता है इसका ख्याल जबतक उसे हो पाता तब तक काफी देर हो चुकी थी
"तो मैं कुतिया हूँ? घटिया इंसान, चलो अब जाओ यहाँ से, माफ किया" वैशाली ने मुस्कान के साथ कहा। उसके लगातार अभिमन्यु की छोटी-बड़ी गलतियों को यूं ही हमेशा से माफ करते जाने का परिणाम था जो आज उसे अपने इकलौते बेटे के मुंह से एक कुतिया की संज्ञा प्राप्त हुई थी और इसपर भी जैसे फौरन उसने उसे माफ भी कर दिया था, अजीब तो था मगर जानकर भी वह उस अजीब शब्द के हँसी-हँसी मे भुला देती है।
बिस्तर से नीचे उतरने से पूर्व अभिमन्यु ने वैशाली के माथे का एक छोटा--सा चुम्बन लिया और फिर बिना उसकी ओर देखे तेजी से उसके बेडरूम के खुले हुए दरवाजे से बाहर जाने लगता है।
"मुझे मेरी पेंटी धुली हुई वापस चाहिए" वह दरवाजे से मात्र दो कदम आगे निकल पाया था कि सहसा अपनी माँ की आवाज और हँसी सुनकर वहीं ठिठक जाता है।
"तुम्हें पता था माँ। ओह मॉम! यू डेम फकिंग नॉटी बिच। खैर तुमने मेरे स्टडी ड्रॉअर से मेहता आंटी की पेंटी चुराई तो मैंने तुम्हारी चुरा ली, हिसाब बराबर। अब यह पेंटी मेरी है" कहकर अभिमन्यु अपनी पैंट के अगले हिस्से के भीतर हाथ डालकर वैशाली की कच्छी को बेशर्मों की तरह वहीं उसके सामने बाहर निकाल लेता है और अपने दाएं हाथ की प्रथम उंगली के ऊपर उसे लपेट गोल-गोल घुमाते हुए हँसकर उसकी नजरों से ओझल हो जाता है। वैशाली स्तब्ध है कि उसके बेटे ने उसकी कच्छी को बिलकुल अपने लंड के ऊपर छुपाया था या शायद उसने उसे सीधे अपनी अंडरवेयर के अंदर रखा था।
"बिच! तूने अपनी इज्जत खुद अपने ही हाथों गवां दी और जो अब कभी वापस नही आएगी" वैशाली बिस्तर पर बैठे हुए यही सोच रही थी।
अपने कमरे के भीतर आकर अभिमन्यु ने दरवाजा लॉक किया और उसी दरवाजे से अपनी पीठ रगड़ते हुए नीचे फर्श पर बैठ जाता है। तत्पश्चात उसने अपने दाएं हाथ मे पकड़ी अपनी माँ की काली कच्छी जोर से फर्श पर दे मारी और अपने दोनों हाथ से अपना चेहरा ढ़ांक कुछ समय पीछे घटे पूरे घटनाक्रम पर सोचने-विचारने लगता है।
"वह बिलकुल सही कहती है, मैं एक निहायती बेशर्म और घटिया इंसान हूँ" वह खुद को कोसते हुए बुदबुदाया।
वैशाली का स्वभाव हमेशा उसके गर्व का कारण रहा था, उसके साथ ही उसकी माँ ने उसकी बड़ी बहन की भी एक--सी परवरिश की थी, कभी कोई अंतर नही। हाँ यह अवश्य था कि बेटा घर का चिराग माना जाता है और इस वजह उसे भी अपने माता-पिता का अतिरिक्त स्नेह प्राप्त था पर इसका यह अर्थ कतई नही कि उन्होंने अपनी बिटिया को कभी अनदेखा किया हो, बल्कि अनुभा की भव्य शादी की गूंज सालभर बाद भी घर की चारदीवारी मे सुनाई देती थी।
पिता मणिक चंद्र जैन! जिसे कभी-कभार अभिमन्यु और अनुभा माणिकचंट गुटखा के नाम से भी संबोधित कर देते थे मगर तब, जब दोनों भाई-बहन एकांत मे वार्तालाप कर रहे हों वर्ना तो पिता के क्रोध मात्र से ही दोनों को अक्सर दस्त लग जाया करते थे। वैशाली को जब अपने पति के बिगड़े हुए नाम का पता चला तो अपने बच्चों पर गुस्सा करने से पहले वह भी दिल खोलकर हँसी थी और जब हँसते-हँसते उसके पेट मे बल पड़ गया तब वह चाहकर भी उन्हें डांट नही पाई क्योंकि अधेड़ उम्र की वह हँसमुख माँ खुद अपने बच्चों की शैतानी मे शामिल हो गई थी।
सिलसिला आगे बढ़ा और देखते ही देखते कब अनुभा अपने ससुराल रुखसत हो गई, घर मे बाकी बचे तीनो सदस्यों को पता ही नही चल पाया। मणिक सरकारी नौकर था, बीटीसी का एक पीजीटी प्रॉफेसर जिसे अक्सर ट्रेनिंग प्रोग्राम्स के चक्करों मे अन्य सरकारी विभागों मे आना-जाना होता था। पहले-पहल इन विजिटों से उसे कोई लगाव नही था, अॉफिस से सीधे घर, घर पर उसकी सुंदर--सी बीवी और दो प्यारे बच्चे, मानो यही उसका पारिवारिक और सामाजिक संसार था। अनुभा की महंगी शादी का खर्च और घर का लोन दोनों से जूझते मणिक को नये पाठ्यक्रम मे एकाएक यह खबर लगी कि बीटीसी के ट्रेनिंग प्रोग्राम की हर छोटी-बड़ी विजिट पर अब अलग से खर्च मिलेगा। टीए डीए, खाना-रहना खर्चा पहले से अधिक था और फर्जी बिल भी जो कि लगभग हर सरकारी विभाग मे मान्य हो जाते है, मणिक ने तब से एक भी विजिट अपने हाथ से नही जाने दी और पिछले सात-आठ महीनों से वह लगातर सिर्फ कमाई करने मे व्यस्त था।
बेटी की विदाई और पति की कमाई से घर सूना सा रहने लगा, सही मायने मे अब घर मे सिर्फ माँ और बेटे ही बचे थे। वैशाली को पति के प्यार की असल कमी भी तभी खलनी शुरू हुई जब मणिक के बगैर उसकी रातें बिस्तर पर महज करवट बदलते रहने मे बीतने लगीं। हर विजिट पर जाने से पहले पत्नी का मुंह लटकते देख चुदाई के शौकीन मणिक का भी कुछ यही हाल था मगर शर्मवश कि मात्र चुदाई के चलते वह हाथ आए पैसे कमाना छोड़ दे, वैशाली ने उसके आने-जाने पर कभी कोई रोक नही लगाई और मणिक भी पत्नी की इस समझदारी को समझ संतोष कर गया। वाकई मणिक पर बहुत कर्जा हो चुका था, उसका आधा जीपीएफ भी उसने अपनी सेवानिवृत्ति से पहले ही निकाल लिया था।
चार से बचे तीन और तीन से बचे दो, जब माँ-बेटे घर पर अकेले रह गए तब वैशाली का पूरा ध्यान अपने बेटे की देखरेख पर केन्द्रित हो गया और तभी से उसे अभिमन्यु की गलत हरकतों के विषय मे पता चलने लगा, गलत हरकतें क्या वही जवान होते हर मर्द की नई-नवेली ख्वाहिशें और उन ख्वाहिशों की खानापूर्ती के जरिए को खोजने की हर संभव तलाश।
जल्द ही वैशाली को बेटे के रोजाना क्रम से मुट्ठ मारने की भनक लगी, नहाने के बाद वह अक्सर लापरवाही से अपने अंदरूनी कपड़े गीले ही बाथरूम के फर्श पर छोड़ जाया करता था और जिन्हें धोते वक्त वह हमेशा ही उन्हें चिपचिप--सा होते पाती थी। उसके बिस्तर की बेडशीट और ओढ़ने की चादर पर भी उसे पीले-पीले गाढ़े दाग लगे नजर आते थे जिसकी सत्यता आसानी से समझना उस विवाहित स्त्री के लिए कोई बड़ी समस्या नही थी। समस्या थी तो सिर्फ अभिमन्यु के नियम से मुट्ठ मारने की गंदी आदत जो की बीतते समय के साथ खुद भी तीव्रता से बढ़ती ही जा रही थी।
एक रोज वैशाली ने मल्टी की छत पर उसे पड़ोस की कामवाली के नंगे मम्मे दबाते हुए रंगे हाथों पकड़ लिया पर बेटे को समझाने के अलावा वह ठीक से डांट तक नही सकी। उसकी जवान उम्र की प्यास और दोनो मेल-फीमेल की रजामंदी ने उस क्रोधित माँ के क्रोधित मुंह को एकाएक मानो सिल--सा दिया था और परेशान सी वह वापस अपने फ्लैट मे लौट आई थी। कुछ दिनों बाद उस कामवाली ने स्वयं वैशाली से शिकायत की कि अभिमन्यु उसे राह चलते छेड़ता है, जबतब उसके गुप्तांगों को बुरी तरह से मसलना शुरू कर देता है और एक-दो दिन ही पहले पैसों का लालच देकर चुदाई करवाने का प्रस्ताव भी उसने उसके समक्ष रखा, वह कामवाली यहीं नही रुकी बल्कि खुली धमकी देकर गई कि अगली बार परेशान करने पर वह अभिमन्यु की सीधे पुलिस कमप्लेन कर देगी। उस सारी रात वैशाली अपने बिस्तर पर लेटी मात्र रोती रही थी, बेटे से इस अश्लील विषय मे बात करने मे उसे बेहद संकोच हो रहा था और अंतत: यह बात भी आई-गई सी हो गई।
अकेले रात नही काट सकने की अपनी गंभीर बीमार का इलाज वैशाली को भी जल्द से जल्द ढ़ूंढ़ना था और इस मर्ज की दवा उसे मिली उसके बेटे की पॉर्न देखने की दूसरी नियमित गंदी आदत से। पढ़ी-लिखी वैशाली जबतब घर के इकलौते कम्प्यूटर पर गेम आदि खेलकर अपना उबाऊ समय काटा करती थी और साथ ही इंटरनेट पर खाना बनाने की नई रेसेपीज देखना भी उसे काफी पसंद था। एक रोज दोपहर मे वह एकदम से दौड़कर किचन से बाहर आई और बीते दिन देखी करेले की व्यंजनविधि कम्प्यूटर की हिस्ट्री मे तलाशने लगी, जल्दबाजी मे वह यह भूल गई थी कि बीती देर रात तक कम्प्यूटर को अभिमन्यु ने यूज किया था। किचन मे बनते करेले जलकर खाक हो गए और वैशाली को रेसेपी की जगह दर्जनों पॉर्न वेबसाइट्स की लिंक देखने मिली, कौतुहल और जिग्यासावश वह उन पॉर्न वेबसाईट्स को देखने से खुद को रोक नही पाई और तभी से उसे भी मुट्ठ मारते वक्त अपने मोबाइल पर हर तरह का पॉर्न देखने की आदत सी हो गई। इसी के जरिए अभिमन्यु पर उसकी जासूसी शुरू हुई जो अबतक जारी थी, उसे पता चल चुका था कि उसके बेटे को 'एम आई एल एफ' और 'बी बी डब्ल्यू' पॉर्न देखने मे 'टीन' पॉर्न से कहीं ज्यादा रुचि है।
आगे एक रोज वह हॉल मे बैठा खुलेआम मुट्ठ मारते हुए पकड़ा गया था मगर वैशाली ने अपने आगे बढ़ते कदमों को रोक बिना कोई हलचल किए फौरन वापसी की राह पकड़ ली थी। इसके अलावा बीते कुछ महीनों से उसे संदेह था कि अभिमन्यु उसके एकांत कार्यों को छुप-छुपाकर देखने का उद्दंड करने लगा था, बाथरूम मे नहाते वक्त उसने बंद दरवाजे की निचली सांस से किसी व्यक्ति के पैरों द्वारा अवरुद्ध होती रोशनी से यह अनुमान लगाया था और उसके साथ घर मे सिर्फ उसका बेटा ही रहता है तो ऐसे मे संदेह करने की तो अब कोई गुंजाइश ही नही गई थी। यही नही अपने बेडरूम के भीतर भी उसने उसे लगातार तांका-झांकी करते हुए देखा था, पहले क्रोध फिर शर्म और अंत मे टूटकर वैशाली उसकी हरकतों की जैसे आदी-सी हो जाती है।
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