RE: Maa ki Chudai मा बेटा और बहन
"चलो इस गलती के लिए भी मैंने तुम्हें माफ किया पर क्या तुम मुझे यह समझाओगे कि तुम्हें अपनी उम्र की लड़कियों मे दिलचस्पी क्यों नही है?" वैशाली ने पूछा और अपना बायां हाथ वह पुनः अपने दाएं मम्मे पर रख लेती है। शिकार और दाना! यह दोनो शब्द अर्थ मे भले ही एक-दूसरे से कितने अलग क्यों ना हों मगर फिर भी इन्हें समानार्थक शब्दों मे गिना जाता है, ठीक उसी तरह यदि अभिमन्यु के मन-मस्तिष्क को भेदना था तो उसके लिए वैशाली को सीधे उसकी जवान फितरत पर वार करना था और जो वह हौले-हौले करने भी लगी थी।
"हर किसी की अपनी अलग फैंन्टसी होती है। मुझे अपनी एज की गर्ल्स पसंद नही यह तुम्हें किसने कहा? मुझे लड़कियां पसंद है मगर भाभी टाइप और खासकर मॉम्स टाइप मे मेरे दिलचस्पी थोड़ी ज्यादा है। यू नो मम्मी, 'एम आई एल एफ' टाइप्स?" अभिमन्यु के चेहरे पर पसरा भय पलभर मे हवा हो गया जब उसकी माँ ने उसकी इस गंदी हरकत के लिए भी उसे फौरन माफ कर दिया और तभी वह अपनी कल्पना, अपनी निजी फैन्टसी को वैशाली के साथ सांझा करने से पीछे नही हट पाता।
"मॉम आई वुड लाइक टू फक" वैशाली अत्यंत तुरंत बेशर्मी से बोली मगर अंदर ही अंदर उसे कितनी अधिक शर्म का अनुभव हो रहा था यह उसकी कामुक अवस्था या वह स्वयं ही जान सकती थी।
"सही कहा मम्मी! कभी-कभी तुमपर मुझे बहुत ज्यादा प्यार आ जाता है। यू नो! मेरे किसी दोस्त की मॉम इतनी समझदार नही और हमारे जैसा कूल रिलेशनशिप भी किसी और का नही हो सकता" अपनी माँ के मुंह से 'फक" शब्द का उच्चारण सुन अभिमन्यु के सम्पूर्ण शरीर मे सुरसुरी छूटने लगी थी। वाकई उसकी माँ उसके सभी दोस्तों की माओं से बैस्ट थी और इस बात से हमेशा ही उसे खुद पर फक्र होता आया था।
"सो! तुम्हारी फैन्टसी मे तुम्हारी अपनी माँ का क्या रोल है" वैशाली अपनी साड़ी के पल्लू को अपने ब्लाउज पर से हटाते हुए पूछती है, उसके दाएं हाथ का अंगूठा उसकी चूत के फूले हुए भांगुर को छेड़ने लगा था।
"क्या तुम मेरे साथ, अपनी सगी माँ के साथ सैक्स करना चाहते हो? क्योंकि मुझे पता है मिसिज मेहरा की पेंटी तुमने किस कारण से चुराई थी। मैं भी तो उसी की तरह ही एक 'एम आई एल एफ' हूँ, अगर तुम्हें ऐसा लगता हो तो वर्ना मैं कितनी बूढ़ी हो चुकी हूँ मुझे पता है" अभिमन्यु के साथ वैशाली भी अपने तात्कालिक कथन पर चौंक उठी थी। वह हैरत से अपनी साड़ी के भीतर छुपे अपने दाहिने हाथ की हलचल को घूरती है, जोकि सचमुच साड़ी के ऊपर से उसके द्वारा अपनी चूत सहलाने का स्पष्ट दृश्य दर्शा रहा था। उस कुंठित माँ की उत्तेजना उस वक्त एकदम से शीर्ष पर पहुँच जाती है जब अपनी बेशर्मी को सफा त्यागकर वह अपने बाएं हाथ के अंगूठे और प्रथम उंगली के बीच खुल्लम-खुल्ला ब्लाउज के अंदर कैद अपने दाहिने निप्पल को बलपूर्वक जकड़ लेती है, अपने बेहद ऐंठे चुके निप्पल को तेजी से मसलने लगती है।
अपनी माँ के कथन और उसमे शामिल प्रश्न को सुन अभिमन्यु गहरी सोच मे पड़ जाता है। कैसे उसकी मर्यादित माँ उसकी आँखों के समक्ष ही अपने अधनंगे बदन से खेल रही थी, वह चाहकर भी वैशाली की अश्लील हरकत पर से अपनी अचरज भरी नजरें हटा नही पाता। सच कितना कड़वा होता है, वह स्वयं भी तो अपनी उत्तेजना के हाथों हमेशा हारता आया था फिर उसकी माँ कौन--सी दूसरे किसी ग्रह की प्राणी थी? मनुष्य चाहे कितनी तरक्की कर ले, लाख रोगों के इलाज ढ़ूँढ़े जा चुके हैं पर कामरोग का इलाज कोई ढ़ूँढ़ सका है भला? वह पुनः वैशाली के अधनंगे पैर को बिस्तर से उठाकर अपनी गोद के बीचोंबीच रख लेता है ताकि अपनी माँ के नंगे तलवे से अपनी पेंट के भीतर फड़फड़ाते अपने बेहद तने हुए लंड का स्पर्श करवा सके, उसके ऐसा करते ही जहां उसका लंड क्षणमात्र मे ही ठुमकी पर ठुमकी लगने लगता है वहीं वैशाली फौरन अपनी आँखें मूंद लेती है।
अपने बेटे की इन्हीं बेशर्म व ओछी हरकतों से आज वैशाली को सरेआम लज्जित होना पड़ रहा था। वह अभिमन्यु से उम्रदराज थी, परिपक्व थी, रिश्ते मे उसकी सगी माँ थी और यह अच्छे से जानती थी कि अपनी जिस निर्मल, निष्कलंक छवि का वह प्रत्यक्ष हनन कर रही है उसे कदापि उचित नही ठहराया जा सकता है। अपनी कामुत्तेजना को ढ़ाल बनाकर वह अपने इकलौते पुत्र के अंतर्मन को खंगालने की प्रयासरत थी, यह विध्वंश्क सत्य जानने की इच्छुक कि उसकी जन्मदात्री उसकी अपनी माँ के प्रति उसके विचार कितने निष्छल, निष्कपट और निस्वार्थ है। अपनी आँखें मूदकर उसने अपने मुट्ठ मारने की धीमी गति को एकाएक तीव्रता प्रदान कर दी ताकि अभिमन्यु की रही-सही झिझक का भी पूर्ण रूप से अंत हो जाए, बस उसके द्वारा पूछे गए प्रश्न का जवाबभर उसे मिल जाए फिर वह निर्णय ले सकेगी कि भविष्य मे उसे और क्या-क्या व कैसे-कैसे बदलावों से गुजरना होगा। वह यह भी सोच चुकी है कि यदि उसका बेटा सचमुच उसके साथ कौटुंबिक व्यभिचार करने का इच्छुक हुआ तो परिणामस्वरूप उसके अपना मुंह खोलते साथ ही उसे अपनी माँ के करारे थप्पड़ का सामना करना पड़ेगा और जो निश्चित उसकी घरनिकासी तक भी जा सकता था।
"मैं तुम्हारे साथ सैक्स नही करना चाहता मम्मी मगर ......" काफी सोच-विचारने के उपरान्त अभिमन्यु ने अपना अंतिम और निर्णायक फौसला सुना दिया, जिसे सुनकर वैशाली भी तत्काल अपनी मुंदी हुई आँखें खोल देती है। उसकी प्रसन्नता का कोई पार नही था जब उसे उसके बेटे द्वारा सकारात्मक उत्तर की प्राप्ति हुई लेकिन ज्योंहि उसकी नजर बेटे के चूतड़ के नीचे पूर्व से दबी अपनी कच्छी पर पड़ी उसकी प्रसन्नता मानो हवा हो गई। उसके अपनी आँखें मूंदने के पश्चात अभिमन्यु उसकी कच्छी को गायब कर चुका था और अपने इस घ्रणित कार्य को उसने बड़ी सफाई से अंजाम दिया था, जिसकी जरा--सी भी भनक आँखें मूंदे लेटी वैशाली को नही हो पाई थी।
"मगर क्या? हूं!" अपने नंगे बाएं तलवे पर अपने जवान बेटे के पूर्ण विकसित कठोर लंड का घिसाव वैशाली को अजीब-सी संसनाहट से भरने लगा था पर उस घिसाव और उससे पैदा होती संसनाहट को भुलाकर वह बेटे से ऊसके अधूरे उत्तर का स्पष्टीकरण मांगती है। अपनी तीन उंगलियों से निरंतर तेजी--से अपनी चूत को चोदती उस अत्यंत सुंदर माँ ने अपनी आँखें खेलने के उपरान्त भी अपनी अश्लील कार्यवाही को बंद नही किया था अपितु अपने दाएं निप्पल को भी वह लगातार बलपूर्वक उमेठे जा रही थी।
"मगर मैं तुमसे दोस्ती करना चाहता हूँ, तुम्हें अपना सबसे करीबी दोस्त बनाना चाहता हूँ" कहते हुए अभिमन्यु वैशाली के बाएं अधनंगे पैर की घुटनों तक मालिश करना शुरू कर देता है। उसकी जवान आँखें अपनी माँ के प्रत्यक्ष मुट्ठ मारने का लुफ्त उठ रही थीं, ऐसा आनंद तो उसे तब भी कभी नही आया था जब वह छुप-छुपाकर उसे पूरी तरह से नंगी होकर मुट्ठ मारते हुए देखता था। विपरीत लिंगाकर्षण के अद्भुत प्रभाव ने उस नये-नवेले मर्द को यहां तक गिरा दिया था कि वैशाली को नग्न देखने का वह कोई मौका अपने हाथ से जाने नही देता था, फिर चाहे उसकी माँ बाथरूम मे नहाए या जबतब अपने पति से चुदवाए।
"क्या मैं तुम्हें माँ रूप मे अच्छी नही लगती जो तुम मुझ बूढ़ी को अपना सबसे खास दोस्त बनाना चाहते हो?" बेटे के बलिष्ठ हाथों की मालिश से हौले-हौले खुद को चरम पर पहुँचते महसूस कर वैशाली ने पूछा।
"इश्श्श्श्! यह क्या कर रहे हो मन्यु? उफ्फ! माँ को ...माँ को दर्द हो रहा है बेटा" हस्तमैथुन और बेटे की मालिश से उत्पन्न होती उत्तेजना को पीड़ा का नाटकीय रूप देती वह कामुक अधेड़ माँ जोर-से सिसियाते हुए बोली।
"नाटक मत करो मॉम, मुझे पता है कि तुम्हें कोई दर्द-वर्द नही हो रहा। खैर हम अगर बैस्ट फ्रेंड बनते है तो उससे हमे बहुत फायदे होंगे। एक-दूसरे से हमारी शर्म खत्म हो जाएगी, अपनी बॉडी की जरूरतों को हमे छुप-छुपाकर पूरा नही करना पड़ेगा। हम दोनो अडल्ट हैं, तुम भी जानती होगी कि मैं भी मैस्टबेट करता हूँ। तुम जानती हो ना माँ?" वैशाली के बाएं पैर को दाएं से दूर खींच अभिमन्यु ने उनके बीच एक निश्चित चौड़ाई उत्पन्न करते हुए पूछा। उसकी इस शर्मनाक हरकत के नतीजन उसकी माँ की साड़ी उसके पेटीकोट समेत उसकी ढ़की हुई मांसल जांघों के काफी ऊपर तक पहुँच जाती है, इतने ऊपर कि अब वह अपनी माँ के दाएं हाथ की तीव्रता से हिलती हुई कलाई को साफ देख सकता था।
"रुक जा वैशाली, यहीं रुक जा अब भी कुछ नही बिगड़ा। तेरे बेटे के विषय मे तू पहले से ही वह सबकुछ जानती है, जिसे जानने का स्वांग रचकर बस तू अपनी शारीरिक कामिच्छा की पूर्ति करने का उद्दंडित प्रयास कर रही है" सहसा वैशाली के कानों मे उसके अंतर्मन की यह नैतिक आवज गूंजने लगी मगर अब उस आवाज से मोल-भाव करने का वक्त बीत चुका था, तेजी-से अपनी चूत के भीतर अपनी उंगलियां हिलाती अपने पति द्वारा तिरस्कृत वह विवाहित माँ अपने अंतर्मन को यह सोचकर फौरन झुठला देती है कि उसके बेटे से उसकी पूछताछ अभी पूरी नही हो पाई है।
"उन्ह! तुम एक निहायती बेशर्म और गंदे लड़के हो मन्यु, जब तुम जानते हो कि तुम्हारी माँ तुम्हारे रग-रग से वाकिफ है फिर भी तुम यदि उसके ही मुंह से सुनना चाहते हो तो सुनो। हाँ मुझे तुम्हारी मुट्ठ मारने की घिनौनी हरकत का पता है ...ओह! उन्ह! और यह भी पता है ...उन्ह! कि मेरा बद्तमीज बेटा कभी-कभार अपनी माँ को सोचकर ही मुट्ठ मारा करता है" अब वैशाली नही मात्र उसकी उत्तेजना बोल रही थी। सिसकियां लेते हुए वह पहले से कहीं ज्यादा तीव्रता से अपनी उंगलियां अपनी निरंतर रस उगलती चूत के अंतर-बाहर करने लगी थी, जिसकी संकीर्ण गहराई मे एकाएक अधिक से अधिक गाढ़ कामरस उमड़ने लगा था। उसके निप्पल बुरी तरह से ऐंठ गए थे और साथ ही उसकी गांड के छेद मे अविश्वसनीय सिरहन की लंबी-लंबी लहरें दौड़ना शुरू हो गई थीं, कुल मिलाकर वह स्खलन से पूर्व महसूस होने वाली आनंदमयी तरंगों मे पूर्णरूप से खो चुकी थी।
"हाय मम्मी! तुम मेरे, अपने इकलौते बेटे के बारे मे इतना गलत सोचती होगी, मुझे बिलकुल नही पता था लेकिन कोई बात नही, अब हम बैस्ट फ्रेंड जो बन गए हैं। इसके अलावा मुझे लगता है कि हमें अपनी न्यूडिटी को भी कोई खासी वेल्यू नही देनी चाहिए बल्कि मैं तो कहूंगा कि अगर हमारे बीच अच्छी अंडरस्टेंडिंग है तो हम अपने मनमाने ढंग से घर मे रह सकते हैं" अपनी माँ की कामुक सिसकियों से भड़के जवान अभिमन्यु ने बेखौफ उसे अपनी उम्र मुताबिक ही अपनी कामलुलोप इच्छाएं बतना जारी रखा। फिलहाल तो बस उसे वैशाली से गहरी दोस्ती निभाने की चाह थी, एक इतनी गहराई युक्त दोस्ती जिससे वह दोनों एक-दूसरे से अपना कोई राज ना छुपा सकें और उनके मर्यादित रिश्ते मे हर संभव खुलापन आ सके। वह उसके साथ कोई जबरदस्ती नही करना चाहता था, वह चाहता था कि उसकी माँ खुद उसे आमंत्रित करे, उसे ललचाए और अगर वह स्वयं ऐसा करती है तब वह उसकी मर्जी से उसे जरूर चोदेगा।
"तो क्या ...तो क्या न्यूडिटी से तुम्हारा यह मतलब है कि घर पर मैं तुम्हारे सामने नंगी रहा करूं? तुम्हारी अपनी सगी माँ। ओह मन्यु! तुम सच मे एक घटिया सोच रखने वाले लड़के हो, उन्ह! उन्ह! अपनी मॉम ...आह! अपनी मॉम को घर मे नंगी होकर काम करते देख तुम्हें शर्म नही आएगी बेशर्म लड़के। उफ्फ! मैं घर मे नंगी घूमूं, जबकि मेरे साथ मेरा अपना जवान बेटा भी घर मे मौजूद हो। आह! मन्यु आह! क्या बेहुदा चाहत है तुम्हारी" वैशाली स्खलन के बेहद करीब पहुँचते हुए फुफकारी। एक तो बेटे की उपस्थिति और ऊपर से उसकी वर्जित व निषिद्ध चाहतों ने उस अबतक रही संस्कारी माँ को स्वयं निर्लज्ज बना दिया था। अभिमन्यु की सुर्ख लाल आँखों मे खुद अपनी आँखों समान तैरती वासना देख बिस्तर पर लेटी खुल्लम-खुल्ला मुट्ठ मारती वह शिष्ट माँ घबराहटवश अपना बाएं हाथ अपने कड़क निप्पल से हटाकर अत्यंत-तुरंत उसे अपने बेटे की ओर बढ़ा देती है।
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