RE: muslim sex kahani खानदानी हिज़ाबी औरतें
"फ़हमीदा बड़ी नायक परवीन बनती है. अमजद एक तो तुम किसी तरह उससे ये बता दो के में अपने बेटे के साथ उस की हरकतों से वाक़िफ़ हूँ और दूसरे कुछ करो ना करो मेरे सामने फ़हमीदा की चूत ज़रूर मारना.” उन्होने रिवायती नंद की तरह चाची फ़हमीदा को नीचा दिखाने का सोचा था. मुझे ये सुन कर खुशी भी हुई क्योंके बात मेरे ही फायदे की थी.
“वादा रहा फूफी खादीजा में पूरी कोशिश करूँ गा.” मैंने उन्हे खुश करने के लिये कहा.
“मुझे नही पता के ये कैसे हो गा लेकिन अगर ये कुत्ता ज़ाहिद मुझे चोदता है तो तुम उस की कंजड़ी माँ फ़हमीदा को ज़रूर चोदना. ये कल का क्छोकरा मेरी चूत ले तो अपनी माँ को भी तो तुम से चूत मरवाते देखे ना." वो फिर गुस्से में आ गई थीं . मैंने उन्हे इतमीनान दिलाया के बिल्कुल ऐसा ही होगा. फूफी खादीजा चाची फ़हमीदा से ता’अलुक़ात खराब होने की वजह से ज़ाहिद को भी सख़्त ना-पसंद करती थीं .
वो फिर किसी सोच में खो गईं.
"तुम भी शहनाज़ को चोदो गे किया?" चंद लम्हो बाद उन्होने अचानक सवाल किया.
"अगर आप की फुद्दी जैसी दो फुदियाँ एक वक़्त में चोदने को मिल जाएं तो और किया चाहिये." मैंने हंस कर जवाब दिया.
“लेकिन किया एक ही वक़्त में मुझे तुम दोनो को चूत देनी पड़े गी?”
“जब ज़ाहिद आप को और फूफी शहनाज़ को चोदेगा तो में देखता तो नही रहूं गा.” मैंने कहा.
“तुम तो डिसचार्ज होने में बहुत टाइम लेते हो और दो औरतों को संभाल लो गे ये खनज़ीर ज़ाहिद कैसे दो दो औरतें को चोदेगा?”
“पता नही फूफी खादीजा वो खलास होने में कितना टाइम लेता है मगर ज़ाहिर है जब आप दोनो उस के सामने हूँ गी तो वो सिरफ़ एक की चूत तो नही मारे गा फूफी शहनाज़ को भी चोदेगा.” मैंने जवाब दिया.
“हाय हाय? मुझे तो ये सोच कर ही घिन आती है के ये कुत्ता गाँडू मेरे अंदर अपना लौड़ा डाले गा.” उन्होने सीने पर हाथ रख लिया.
“में तो फूफी शहनाज़ को इस लिये चोदना चाहता हूँ के वो आप की तरह हैं.” मैंने कहा.
"खैर शहनाज़ बिल्कुल तो मेरी तरह नही है थोड़ी बहुत ही मिलती है. अब जब तुम उससे चोद लो गे तो पता चल जाए गा." उन्होने फूफी शहनाज़ को खुद से कम तर साबित करने की कोशिश की.
“वो मान जायेंगी?” मैंने पूछा.
“शहनाज़ को में संभाल लूं गी. उस का एक राज़ है मेरे पास. बस तुम उस वक़्त यही कहना के तुम भी इस राज़ से वाक़िफ़ हो.” उन्होने मुझे बताया.
मैंने उन से ये नही पूछा के वो किया राज़ था.
"चलें फूफी खादीजा कम ही सही मगर फूफी शहनाज़ हैं तो आप की बहन. उनकी चूत में भी काफ़ी मज़ा होगा.” मैंने कहा. वो मुस्कुरा दीं लेकिन कोई जवाब नही दिया.
घर में ये सब करने में ख़तरा था इस लिये मैंने हमेशा की तरह पिंडी से बाहर जाने का फ़ैसला किया. प्लान ये था के में, ज़ाहिद, फूफी खादीजा और फूफी शहनाज़ पिक्निक के बहाने नतियागली चलें और जो कुछ भी हो वहाँ पर ही हो. हमारा घराना आज़ाद ख़याल और मॉडर्न था इस लिये घर से बाहर जाने में कोई मसला नही था. हम पहले भी कई दफ़ा मिल कर लाहौर और अयूबीया जा चुके थे.
फूफी खादीजा ने फूफी शहनाज़ से फोन पर बात की तो वो अपने दोनो बच्चों को भी साथ ले जाने का कहने लगीं. फूफी खादीजा ने कहा के अमजद वहाँ अपने किसी दोस्त के बाप की फोत्गी पर ताज़ियत करने जा रहा है. ज़ाहिद भी उस के साथ है. मै अकेली यहाँ किया करूँ गी इस लिये इनके साथ ही जा रही हूँ. मैंने सोचा के तुम्हे भी साथ ले लेतीं हूँ. ये दोनो वहाँ चले जायें गे और हम इतनी देर गाड़ी में ही बैठे गे. बच्चे तंग हो जायेंगे. इस लिये उन्हे साथ ले कर जाना मुनासिब नही होगा. फूफी शहनाज़ बड़ी मुश्किल से हमारे साथ अकेले जाने पर राज़ी हुईं.
ये काम होते ही मैंने फोन पर नतियागली के एक महँगे होटेल में डबल बेड वाला कमरा बुक करवा लिया. दो दिन बाद में, ज़ाहिद और हमारी दोनो फूपियाँ कार में बैठ कर तक्शिला के रास्ते नतियागली रवाना हुए.
फूफी खादीजा और फूफी शहनाज़ को एक साथ बैठे देख कर मेरा लंड खड़ा हो गया. फूफी शहनाज़ के मम्मे भी फूफी खादीजा जैसे ही थे यानी खूब मोटे और सूजे हुए. उनकी हल्की नीली क़मीज़ के अंदर से उनका सफ़ेद ब्रा साफ़ नज़र आ रहा था. पता नही बहुत औरतों को ये एहसास क्यों नही होता के उनका ब्रा क़मीज़ में से नज़र आ रहा है. मैंने अंदाज़ा लगाया के फूफी शहनाज़ भी फूफी खादीजा के नंबर का ब्रा इस्तेमाल करती हूँ गी. मुझे पता था के फूफी शहनाज़ की फुद्दी मार कर भी उतना ही मज़ा आए गा जितना फूफी खादीजा और फूफी नीलोफर की फुदियाँ मारते हुए आता था. इन्सेस्ट में तो मेरे लिये वैसे भी बड़ा मज़ा था और आज तो हम बहुत ही अजीब-ओ-ग़रीब तजर्बा करने जा रहे थे. खुशी के आलम में मुझे ज़ाहिद की ब्लॅकमेलिंग भी याद ना रही.
नतियागली जाते हुए मैंने जान बूझ कर कार आहिस्ता ड्राइव की और हम शाम 4 बजे के क़रीब नतियागली पुहँचे. फूफी शहनाज़ को मैंने बताया के लेट हो जाने की वजह से मजबूरन हमें रात यहाँ रुकना पड़े गा. उन्होने कोई ऐतराज़ नही किया. शायद घर के शोर शराबे से दूर वो भी एंजाय कर रही थीं .
नतियागली में होटेल कम हैं और गर्मियों में वहाँ बहुत ज़ियादा रश होता है. जिस होटेल में मैंने कमरा बुक करवया था वो एक अलग थलग सी जगह पर वक़ीया था और उस के कमरे एक दूसरे से थोड़े फासली पर थे. मै होटेल के अंदर गया और फिर बाहर आ कर दोनो फुफियों को बताया के सिर्फ़ एक ही कमरा मिला है हमें गुज़ारा करना पड़े गा. फूफी खादीजा ने कहा कोई बात नही ज़मीन पर मॅट्रेसस डलवा लें गे. फिर हम चारों कमरे में आ गए.
कमरे में आ कर फूफी शहनाज़ ने कहा के वो तो अपने साथ रात को सोने के कपड़े नही लाईन क्योंके उनका ख़याल था के हम आज ही वापस चले जायेंगे. फूफी खादीजा चूँके हमारे प्रोग्राम से वाक़िफ़ थीं इस लिये अपने साथ कपड़ों के दो तीन जोड़े ले कर आई थीं . उन्होने फूफी शहनाज़ से कहा के वो लाहोर से आईं तो एरपोर्ट से घर आते हुए उनका एक बैग गाड़ी ही में पडा रह गया था उस में कपड़े हैं. मै उनका बैग कमरे में ले आया और उन्होने अपना एक जोड़ा फूफी शहनाज़ को दे दिया. उन दोनो ने कपड़े बदल लिये. में और ज़ाहिद अलबता कुछ भी ले कर नही आए थे.
हम बहुत देर तक अपनी दोनो फुफियों से बातें करते रहे. रात को बातें करते करते अचानक ज़ाहिद ने कहा:
"में भी कपड़े नही लाया अब सोते वक़्त किया पहनूं गा."
"कोई बात नही ज़ाहिद चादर लपेट कर सो जाना यहाँ बाहर का तो कोई नही है." मैंने कहा.
"ज़ाहिद बेटा रात ही तो गुज़ारनी है सब घर वाले ही हैं यहाँ." फूफी शहनाज़ हंस कर बोलीं.
ज़ाहिद बाथरूम गया और बेड की चादर कमर के गिर्द लपेट कर आ गया. ज़ाहिद बचपन से ही बहुत ज़ियादा मोटा था और अब भी उस का यही हाल था. उस का पेट काफ़ी बाहर निकला हुआ था और अपने लंबे क़द की वजह से वो पूरा जिन नज़र आता था. वो ऊपर से नंगा था और चादर में से उस के बैठे हुए लंड का उभार नज़र आ रहा था जिस से अंदाज़ा लगाया जा सकता था के उस का लंड बहुत मोटा और लंबा है. मैंने भी यही किया और होटेल की चादरों में से एक चादर कमर पर बाँध ली.
ज़ाहिद आ कर सीधा फूफी खादीजा के साथ बेड पर बैठ गया. मै समझ गया के वो पहले फूफी खादीजा की चूत मारना चाहता है. फूफी खादीजा के चेहरे पर हल्की सी परैशानी की झलक थी. शायद वो भी जानती थीं के अब खेल शुरू होने वाला था और ज़ाहिद उनकी चूत लेने को तय्यार था.
अब हमें किसी तरह फूफी शहनाज़ को अपने साथ शामिल करना था. बातों के दोरान ज़ाहिद ने बड़ी बे-तकल्लूफ़ी से फूफी खादीजा की रान पर अपना हाथ रख दिया. फूफी खादीजा की मोटी रान पर उस का हाथ आया तो मैंने उस की तरफ देखा. उस का लंड अब खड़ा हो गया था और चादर के ऊपर 6/7 इंच की कोई मोटी सी डंडा-नुमा चीज़ नज़र आने लगी थी. फूफी खादीजा ने उस का लंड देखा लेकिन अपने आप को क़ाबू में रखा और कुछ नही बोलीं.
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