RE: Sex Hindi Kahani एक अनोखा बंधन
दिन पर दिन इनकी सेहत अच्छी होने लगी थी.... इसलिए पिताजी ने जो इन पर कमरे से बाहर निकलने का बैन लगाया था वो भी उठा लिया और अब ये ड्राइंग रूम में बैठ जाया करते और टी.वी. भी देखा करते| पर जो बदलाव मैंने इनमें देखा वो ये था की इनका मन कुछ न कुछ लिखने को करता पर ये अपना मन दूसरे कामों में लगाने की कोशिश करते| कभी पिताजी से estimate पर discussion करते तो कभी बच्चों का होमवर्क ले कर बैठ जाते| हाँ होमवर्क करते समय 'ये' उनका mathematics का होमवर्क कभी नहीं करते, उससे इन्हें डर लगता था! (ही..ही...ही...)
पर मैंने भी ठान ली थी की इन्हें फिर से लिखने के लिए उकसा कर रहूँगी| इसलिए मैंने राजेश भाई से मदद माँगी| मैंने अपनी आप बीती लिखना शुरू किया और जीता भी लिखती उन्हें मेल कर दिया करती| मेरा प्लान था की मैं इस आप बीती के बारे में इन्हें तब बताउंगी जब मैं पूरा लिख लूंगी| तब उससे पढ़ने के बाद शायद इनका मन बदल जाए और ये फिर से लिखना शुरू कर दें| इसलिए मैं राजेश भाई से हुई सारी बातें इन से छुपाने लगी और इन्हें मुझ पर इतना भरोसा है की इन्हें जरा सा शक भी नहीं हुआ|
अब आगे.......
एक दिन की बात है ... मैं ड्राइंग रूम में बैठी लैपटॉप पर अपनी आप बीती टाइप कर रही थी| मेरी पीठ कमरे की तरफ थी, क्योंकि डाइनिंग टेबल की मैं कुर्सियों पर सिर्फ 'इनका' और पिताजी (ससुरजी) का हक़ है| मुझे लगा की ये सो रहे होंगे क्योंकि मैंने नेहा और आयुष को 'इनके' पास सोने के लिए भेजा था| पता नहीं चला कब ये मेरे पीछे आ कर खड़े हो गए और पता नहीं इन्होने क्या-क्या पढ़ा होगा| मुझे तो तब पता चल जब इनका हाथ मेरे सर पर आया|मैंने एकदम पलट के देखा और हैरान रह गई. ऐसा लगा जैसे इन्होने मेरी कोई चोरी पकड़ ली हो| मुझे तो लगा शायद ये मुझ पर गुस्सा होंगे, पर ‘इन्होने’ कुछ नहीं कहा और सर पर हाथ फेर कर कमरे में जाने लगे और बोले; "keep it up"| मेरा सरप्राइज फुर्ररर हो गया था.... फ़रवरी का महीना शुरू हो चूका था और अब इनकी तबियत काफी ठीक हो चुकी थी और आयुष का जन्मदिन आ रहा था| पर मैं अब भी बहुत सावधानी बारात रही थी| घर से बाहर कहीं भी नहीं जाने देती थी| जानती थी की मैं इनके साथ जबरदस्ती कर रही हूँ पर क्या करूँ, प्यार भी तो इतना करती हूँ इनसे! इधर इन्होने आयुष के जन्मदिन की planing शुरू कर दी थी| मैंने इन्हें बहुत समझाया की हम इस बार जन्मदिन हर पर ही मनाएंगे पर ये नहीं माने| इन्होने तो आजतक का सबसे best birthday plan बनाया था! जैसे-जैसे दिन नजदीक आने लगा, आयुष ने अपने जन्मदिन का राग अलापना शुरू कर दिया| पर उसे जरा भी भनक नहीं थी की जन्मदिन पर उसे क्या मिलने वाला है| इधर मैंने ‘इनका’ कुछ ज्यादा ही ध्यान रखना शुरू कर दिया| दिन पर दिन इनकी तबियत ठीक होने लगी थी, जिसका श्रेय ये मुझे देते हैं पर मैं इसकी हक़दार नहीं| इनका घर पर रहने को जरा भी मन नहीं था और ये दिन पर दिन बेचैन होने लगा था| मैं चाह कर भी इन्हें घर पर रोक नहीं पा रही थी| मेरा दिल कह रहा था की ये अभी पूरी तरह स्वस्थ नहीं हैं, और मैं नहीं चाहती थी की बिना पूरी तरह ठीक हुए ये घर से बाहर कदम रखें|मैंने इन्हें बहुत समझाने की कोशिश की पर ये नहीं माने| इनका कहना था; "यार मेरी बीमारी की वजह से बहुत खर्च हो गया है| पिताजी ने नए projects उठाना भी बंद कर दिया है| अब मुझे काम सम्भालना पड़ेगा|" बात सही भी थी पर मन बहुत बेचैन था तो मैंने माँ से बात की| उन्होंने पिताजी से और फिर हम तीनों ने इनसे बात की पर ये अपनी जिद्द पर अड़े रहे| आखिर पिताजी ने इन्हें इजाजत दे दी पर एक शर्त के साथ, वो ये की working hours सुबह 11 बजे से शाम 4 बजे तक रहेंगे| अब काफी बहस बाजी के बाद इन्होने हमारे आगे हार मान ही ली| रात में खाना खाने के बाद जब हम लेटे तो हमेशा की तरह नेहा इनकी छाती पर चढ़ कर सो गई और आयुष हम दोनों के बगल में सोया था| दोनों सो चुके थे तभी ये बोले; "मुझसे शादी कर के तुम्हें की मिला? B.P. की प्रॉब्लम......sinus की प्रॉब्लम.... हुँह.... तुमने पहले ही इतना सब...... और अब मेरी वजह से....." बस कुछ कहते कहते ये रूक गए| मुझे ये सुन कर बहुत गुस्सा आया और मैं जोर से बोली; "आप मानोगे नहीं ना? आपने शादी से पहले मुझे सब बता दिया था ना? ये B.P. की प्रॉब्लम तो hereditary है... माँ को है.. पिताजी को है...इसमें आपकी क्या गलती? और आपकी sinus की प्रॉब्लम ... अगर मैं गलत नहीं तो ये (sinus) और B.P. की प्रॉब्लम मुझसे दूर रहने के बाद ही शुरू हुई है तो इसकी कसूरवार तो मैं हूँ! और आप कहते हो की आपसे शादी कर के मुझे क्या मिला? तो आप बताओ की मुझसे शादी कर के आपको क्या मिला? you don't want me to say anything right?" मेर आक्रोश सुन कर ये चुप हो गए और मुझे sorry बोला| इनका sorry सुन्न कर मेरा गुस्सा काफूर हो गया और मैंने इन्हें kiss किया और आयुष के साथ मैं भी इन्हें झप्पी डालकर सो गई|
अगली सुबह मैंने इन्हें एक छोटे बच्चे की तरह अच्छे से नाश्ता कराया और साइट पर जाने दिया| (मन तो नहीं था पर क्या करूँ|) हर एक घंटे बाद इन्हें फोन करती और फोन करते समय यही सोचती की इनकी तबियत कैसी होगी? जान निकल के रख दी थी इन्होने मेरी! एक बजे मैंने जब इन्हें फोन किया तो इन्होने फोन नहीं उठाया| दुबारा मिलाया .... फिर नहीं उठाया| अब मुझे बहुत चिंता होने लगी थी| मैंने तीसरी बार फोन मिलाया तो घंटी मुझे अपने नजदीक बजते हुए सुनाई दी| मेरे पीछे पलटने से पहले ही इन्होने मुझे पीछे से आ कर जकड लिया और कान में खुसफुसाते हुए बोले; "surprise मेरी जान!" ये सुन कर मेरी जान में जान आई पर मैंने थोड़ा नाराज होने का नाटक किया; "फोन क्यों नहीं उठाया? जानते हो मेरी जान निकलगई थी! मैं आपसे बात नहीं करुँगी!"
"यार ऐसा करोगे तो अबकी बार जान मेरी निकल जाएगी?" मैं ये सुनते ही इनसे लिपट गई| पर हमारा ये मिलान बहुत छोटा था| अचानक माँ आ गईं और मिअन छिटक कर इनसे अलग हो गई| (माँ ने हमारा ये प्रेम-मिलाप जर्रूर देखा होगा!) मैं 'इनसे' अलग तो हो गई... पर इनके जिस्म की तपिश ने मुझे जल के राख कर दिया था|मेरे लिए खुद पर काबू कर पाना मुश्किल हो रहा था| अगर उस समय माँ नहीं आई होती तो शायद वो सब..........हो जाता! खाना बनाने का समय हो रहा था.... तो जैसे-तैसे मैंने खुद को काबू करने की कोशिश की और खाना बना कर मैं फटाफट बाथरूम में घुस गई| नल खोला तो उसमें बर्फीला पानी आ रहा था| जब तक बाल्टी भर रही थी मैं खुद को फिर से काबू करने लगी| मैं जानती थी की मेरे जिस्म को इनके प्यार की जर्रूरत है, पर इनकी बिमारी के कारन मैं इन्हें खुद से दूर रख रही थी|मैं अच्छी तरह जानती थी की इन्हें भी मेरे प्यार की उतनी ही जर्रूरत है जितना मुझे थी| पर फिर भी इन्होने मेरे सामने ये बात कभी भी जाहिर नहीं की थी| बाल्टी भरते ही मैंने अपने ऊपर ठंडा पानी डालना शुरू कर दिया .... उस ठन्डे पानी का जैसे मेरे ऊपर कोई असर ही नहीं हो रहा था| जिस्म अंदर से भट्टी की तरह जल रहा था| आधे घंटे तक ठन्डे पानी की बौछारों ने जिस्म की इस आग को शांत किया| जब मैं बाहर आई तो ये लैपटॉप पर कुछ काम कर रहे थे| फिर ये उठ कर बाथरूम में चले गए और जब बाहर आये तो मुझे डाँटते हुए बोले; "ठन्डे पानी से क्यों नहाये?" ये सुनते ही मुझे लगा की मेरी चोरी पकड़ी गई है| मैं जवाब सोचने लगी; "वो....वो जल्दी-जल्दी में geyser चलाना भूल गई!"
"ऐसी भी क्या जल्दी थी? खाना तो बन चूका था, और पिताजी को आने में अभी समय है?" इनके सवाल के आगे मेरे पास कोई जवाब नहीं था| मैं सर झुकाये खड़ी थी| ये चल कर मेरे पास आये और मेरी ठुड्डी पकड़ के मेरे चेहरे को ऊपर उठाके बोले; "मन कर रहा था न?" ये सुन कर मेरे गाल शर्म से लाल हो गए| "यार इस तरह ठन्डे पानी से नहाओगे तो बीमार पड़ जाओगे!" मेरे अंदर तो हिम्मत ही नहीं थी की मैं इनसे नजरें मिलाऊँ इसलिए मैं सर झुकाये खड़ी रही और फिर इनकी छाती से लिपट गई| जिस आग को मैंने इतनी मुश्किल से शांत किया था, उसे मैंने फिर से भड़का दिया था| दिल एक अजीब सी हालत में फंस गया था, मुझे इनका प्यार भी चाहिए था पर डर लग रहा था की कहीं मेरे स्वार्थ के चलते ये फिर से बीमार न पड़ जाएँ क्योंकि इनकी body अब भी recover कर रही थी|
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