RE: Sex Hindi Kahani एक अनोखा बंधन
मेरे चाय ले कर आते-आते माँ भी अंदर आ गईं थीं और फिर वहां बातों का माहोल शुरू हो चूका था| तभी ये बोले; "यार भूख लग रही है| ऐसा करो omlet बनाओ!" मैं थोड़ा हैरान थी क्योंकि अभी तक इन्हें खाने के लिए मसालेदार खाना नहीं दिया जा रहा था| मुझे तो कुछ समझ नहीं आया पर लगा की राजी जर्रूर मन कर देगी पर उसने तो आगे बढ़ कर कहा; "मैं बनाती हूँ!" हैरानी से मेरी भँवें तन गईं पर तभी नेहा बोली; "पर घर में eggs तो हैं ही नहीं?"
ये सुन कर इनका मुँह बन गया और मुझे ख़ुशी महसूस हुई क्योंकि मैं कतई नहीं चाहती थी की एक गैर हिन्दू लड़की मेरी रसोई में घुसे! पर नेहा से अपने पापा की ये सूरत नहीं देखि गई उसने बोला; "मैंdon't worry पापा ... मैं ले आती हूँ|" इन्होने उसे मना भी किया; "बेटा बाहर बहुत ठण्ड है|" पर नेहा जिद्द करने लगी आखिर इन पर जो गई है! हारकर इन्होने उसे जाने की इजाजत दी पर मोटी वाली जैकेट पहन के जाने के लिए बोला| अब ये सब सुन और देख मेरा मुँह उतर गया पर किसी तरह अपने भावों को छुपा कर मैं नार्मल रही|
राजी को रसोई के बारे में सब पता था ... और ये देख मैं हैरान थी! मुझे लगा था की वो मुझसे पूछेगी की तेल कहाँ है, प्याज कहाँ है पर नहीं ...उसने एक शब्द भी नहीं पूछा जैसे की उसे सब कुछ पता था| खेर मेरे ना चाहते हुए भी राजी ने ने अपने, नेहा और इनके लिए ऑमलेट बनाया| मैंने और माँ ने नहीं खाया...माँ तो वैसे भी नहीं खाती थीं पर मैं...मैं सिर्फ और सिर्फ इनके हाथ का बना हुआ ऑमलेट खाती थी| उस जलन को मैंने किस तरह छुपाया मैं ही जानती हूँ..... !
अब आगे........
चलो यही सोच लिया की कम से कम इनकी तबियत तो ठीक है| पिताजी के आने पर उन्हें ये सब पता चला तो वो भी नाराज हुए की आखिर क्यों इन्होने कमरे से बाहर निकलने की जहमत उठाई और सब के लिए तकलीफें बढ़ाई| ये सब पिताजी के शब्द थे ... ना की मेरे| तीन घंटे बाद मेरे पिताजी का फोन आया और जब मैंने उन्हें ये सब बताया तो वो भी घबरा गए और लगा की जैसे अगली फ्लाइट पकड़ के घर आ जायेंगे पर इन्होने बात संभाली और अपनी तबियत ठीक होने की खबर दे कर उन्हें संतुष्ट किया| दोपहर को बिना खाना खाए इन्होने राजी को जाने नहीं दिया| जाते-जाते वो कह गई; "take care मिठ्ठू!" और ये भी मुस्कुरा कर बोले; "i will"खेर मैंने ये भी बर्दाश्त कर लिया| रात सोने का समय आया तो नेहा और आयुष हम दोनों के बीच में आ कर सो गए| अगले दिन ये काफी देर से उठे, इनका पूरा बदन दर्द कर रहा था (ये उन छींकों का असर था|) ... रात में पिताजी ने सख्त हिदायत दी थी की इन्हें कमरे से निकलने की मनाही है! नाश्ता करने के बाद जनाब बिस्तर पर बैठे फिल्म देख रहे थे| मुझे पता था की ये बहुत बोर हो रहे हैं तो मैंने इन्हें Xossip पर लोगिन करने को कहा| सोचा इसी बहाने ये आप लोगों से कुछ बात कर लेंगे ... आगे कुछ लिखेंगे| पर हुआ कुछ अलग ही.... जैसे ही इन्होने थ्रेड पर अपने दुबारा दिखने की खबर दी, राजेश भाई का कमेंट आया| उनका कहने का मतलब था की इन्हें पहले आराम करना चाहिए उसके बाद ऑनलाइन आना चाहिए पर इन्होने उसका कुछ और ही मतलब निकला और फैसला कर लिया की ' मैं अब कभी नहीं लिखूँगा|" देखा जाए तो इनकी भी कोई गलती नहीं... दरअसल एक ही कमरे में बंद रहने से इंसान थोड़ा बहुत चीड़चिड़ा हो ही जाता है|
मैंने इन्हें समझने की बहुत कोशिश की पर ये हमेशा कहते; "यार प्लीज मुझसे इस बारे में बात मत करो|" इनका वो अकेलापन ...वो तड़प मैं अच्छे से महसूस कर रही थी| मैंने सोच लिया की मैं किसी भी तरह से इन्हें फिर से लिखने के लिए मना लूँगी| एक वही तो जरिया था जिसके जरिये ये अपने मन की बात सब से share कर पा रहे थे| लिखना बंद करने के बाद तो इन्होने अपने आप को बच्चों के साथ बिजी कर लिया.... कभी आयुष के साथ games खेलने लगते तो कभी नेहा से बातें करने लगते| दोनों की बातें सुन कर ऐसा लगता की पिछले 12-15 साल की सारी बातें इन्हें सुननी है...वो हर एक दिन जो नेहा ने इनके बिना काटा वो सब इन्हें सुन्ना था| इन्हीं बातों में नेहा ने अपने डर को जाहिर किया!
उसकी बातें सुन कर जो मुझे समझ आया वो ये था;.......
जब नेहा पैदा हुई तो मुझे वो ख़ुशी नहीं हुई जो आयुष के पैदा होने पर हुई थी| कारन ये की आयुष मेरे और 'इनके' प्यार की निशानी था और नेहा...वो तो मेरे साथ हुए धोके की निशानी! उस का जो भी लालन-पालन मैंने किया वो सिर्फ एक कर्तव्य समझ के किया, माँ होने का एहसास तो मुझे कभी हुआ ही नहीं! इसी कारन मैंने नेहा पर कही ध्यान नहीं दिया... उस समय मैं बस अपने जीवन को ही कोसती रहती थी| दिन में वो मिटटी में खेल रही है या धुप में मैंने कभी ध्यान नहीं दिया और रात में .... रात में उसे खुद से अलग दूसरी चारपाई पर सुलाती थी| रात में उसे डरावने सपने आते ... जैसे की हर बच्चे को आते हैं| सपने में किसी ऊँची जगह से गिरते हुए देखना, कभी सीधी से गिर जाना, कभी भूत-प्रेत देखना...ये ही सपने नेहा को परेशान किया करते| ऐसे में जब वो डर कर मुझे नींद से उठाने की कोशिश करती तो मैं उस पर चिल्ला कर उसे चुप करा दिया करती| वो मेरी डाँट से इतना डरती थी की उसने अब मुझे नींद से उठाना बंद कर दिया और चुप-चाप सहम के रह जाया करती| घर में उसे वैसे भी कोई प्यार दुलार करता नहीं था| जो कुछ प्यार उसे मिला वो अपने नानानानी से मिला... कुछ अनिल से मिला जब कभी वो वहाँ होता| मुझसे तो वो उम्मीद ही नहीं करती थी...... फिर जब मैं इनसे मिली.... दूसरी बार मिली.... ...... इन दोनों दफा नेहा को इनसे कुछ प्यार मिला... या फिर वो भी मेरी तरह इनकी तरफ आकर्षित होने लगी थी| जब मैं 'इनसे' तीसरी बार मिली तो इन्होने नेहा के लिए अपना प्यार बस स्टैंड जाते समय जाहिर किया .... और जब ये गाँव आये तब तो इन्होने अपना प्यार नेहा पर लूटना शुरू कर दिया| वो एक महीना नेहा को इनसे जो प्यार मिला वो ..... उसकी अभी तक की जिंदगी का सारा रास था| जितने दिन ये गाँव रुके नेहा का रात में डर के उठ जाना कम हो गया| आमतौर पर उसका डर हफ्ते में 4-5 से बार होता था, और इनकी मौजूदगी में ये 1-2 बार ही हुआ होगा|
जब भी नेहा इनके साथ इनकी छाती से लिपट कर सोती तो उसे सुरक्षित होने का एहसास होता| “i feel safe.” ये उसका कहना था... अब इसे मैं उसका बचपना समझूँ या फिर अपने पापा के लिए प्यार? या फिर नेहा को भी उनके सीने से वही तपिश मिलती है जो मुझे मिलती है जब मैं इनके गले लगती हूँ| "मैं आपको खोना नहीं चाहती|" ये भी उसी के शब्द थे..... सच में मैं उसके लिए कभी अच्छी माँ साबित नहीं हो पाई और इस बात का गिला मुझे सारी उम्र रहेगा|
“I love you my baby! और अब मेरे बच्चे को किसी भी चीज से डरने की बात नहीं|” ये कह कर 'इन्होने' नेहा को अपने गले लगा लिया| पर नेहा के जीवन से अभी भी पूरी तरह पर्दा नहीं उठा है|अगले कुछ दिन इसी तरह बीते.... लघ-भाग रोज राजी का फ़ोन आता और 'ये' उससे घंटों बात करते रहते| मैं ये सोच कर चुप रही की कम से कम इनका टाइम पास हो जाता है| पर मुझे इनका उससे बात करना फूटी आँख नहीं भाता था! खाना-खाने के लिए इन्हें कहना पड़ता थकी; "पहले खाना खा लो फिर बात करना|" और तब ये मुस्कुराते हुए राजी से कहते; "वार्डन आ गई है! खाना खा के फोन करता हूँ|" पर मैं इन्हें खाना खाने के बाद जबरदस्ती सुला देती और जब ये नहीं मानते तो बच्चों को इन के पास भेज देती और नेहा और आयुष इन्हें सुला ही देते| दिन पर दिन इनकी सेहत अच्छी होने लगी थी.... इसलिए पिताजी ने जो इन पर कमरे से बाहर निकलने का बैन लगाया था वो भी उठा लिया और अब ये ड्राइंग रूम में बैठ जाया करते और टी.वी. भी देखा करते| पर जो बदलाव मैंने इनमें देखा वो ये था की इनका मन कुछ न कुछ लिखने को करता पर ये अपना मन दूसरे कामों में लगाने की कोशिश करते| कभी पिताजी से estimate पर discussion करते तो कभी बच्चों का होमवर्क ले कर बैठ जाते| हाँ होमवर्क करते समय 'ये' उनका mathematics का होमवर्क कभी नहीं करते, उससे इन्हें डर लगता था! (ही..ही...ही...)
पर मैंने भी ठान ली थी की इन्हें फिर से लिखने के लिए उकसा कर रहूँगी| इसलिए मैंने राजेश भाई से मदद माँगी| मैंने अपनी आप बीती लिखना शुरू किया और जीता भी लिखती उन्हें मेल कर दिया करती| मेरा प्लान था की मैं इस आप बीती के बारे में इन्हें तब बताउंगी जब मैं पूरा लिख लूंगी| तब उससे पढ़ने के बाद शायद इनका मन बदल जाए और ये फिर से लिखना शुरू कर दें| इसलिए मैं राजेश भाई से हुई सारी बातें इन से छुपाने लगी और इन्हें मुझ पर इतना भरोसा है की इन्हें जरा सा शक भी नहीं हुआ|
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