RE: Sex Hindi Kahani एक अनोखा बंधन
सब को अपने कमरे में जाते-जाते रात के दस बज गए थे| जब मैं कमरे में आई और मैंने लाइट जलाई तो देखा ये अभी भी जाग रहे थे| मेरे कुछ कहने से पहले ही ये बोल पड़े; "Sorry !!!" इनका Sorry सुन कर मन में जो सवाल था वो बाहर आ ही गया; "जब से आप को होश आया है तब से कई बार आप दबे होठों से मुझे Sorry बोल रहे हो? आखिर क्यों? गलती....." मेरे आगे कुछ बोलने से पहले ही ये बोल पड़े; "जान....Sorry इसलिए बोल रहा हूँ की उस दिन मैं उस कमीने बदजात की जान नहीं ले पाया! Sorry इसलिए बोल रहा हूँ की तुम्हारी वो दर्द भरी लेखनी पढ़ कर तुम्हारे दर्द को महसूस तो किया पर उस दर्द को कम करने के लिए कुछ नहीं कर पाया! Sorry इसलिए बोल रहा हूँ की इतने दिन तुमसे कोई बात नहीं की और तुम्हें तड़पाता रहा, वो भी ये जानते हुए की तुम माँ बनने वाली हो! Sorry इसलिए ............." उनके आगे बोलने से पहले मैंने उनकी बात काट दी! "पर आप की कोई गलती नहीं थी.... आप तो जी तोड़ कोशिश कर रहे थे की मैं हँसूँ-बोलूं पर एक मैं थी जो आपसे ....आपसे अपना दर्द छुपा रही थी| उनसे जो बिना किसी के बोले उसके दिल के दर्द को भांप जाते हैं..... आपने कुछ भी गलत नहीं किया| सब मेरी गलती है..... ना मैं आपको इस बच्चे के लिए force करती और ना..........” इतना सुन कर ही इन्हें बहुत गुस्सा आया और ये बड़े जोर से मुझ पर चिल्लाये; "For God sake stop blaming yourself for everything!” उनका गुस्सा देख कर तो मैं दहल गई और मुझे डर लगने लगा की कहीं इनकी तबियत फिर ख़राब न हो जाए! तभी नेहा जो की दरवाजे के पास कड़ी थी बोल पड़ी; "मम्मी....फिर से?" बस इतना कह कर वो अपने पापा के पास आई और उनसे लिपट गई और रोने लगी| इन्होने बहुत प्यार से उसे चुप कराया और फिर दोनों बाप-बेटी लेट गए| मैंने दरवाजा बंद किया, बत्ती बुझाई और मैं भी आ कर लेट गई| मैंने भी नेहा की कमर पर हाथ रखा पर कुछ देर बाद उसने मेरा हाथ हटा दिया....दुःख हुआ... पर चुप रही बस एक इत्मीनान था की कम से कम ये घर आ चुके हैं .... एक उम्मीद थी की ये अब जल्द से जल्द ठीक हो जायेंगे! इसी उम्मीद के साथ कब आँखें बंद हुई पता ही नहीं चला!
अब आगे ........
सुबह पाँच बजे मेरी आँख खुली तो महसूस किया की ये (मेरे पति) Bedpost का सहारा ले कर बैठे हैं, नेहा का सर इनकी गोद में है और ये मेरे सर पर हाथ फेर रहे थे| क्या सुखद एहसास था वो मेरे लिए..... मैं उठी तो इन्होने मुझे लेटे रहने के लिए बोला पर मैं नहीं मानी| मेरा मन किया की आज इन्हें सुबह वाली Good Morning Kiss दूँ पर मेरी 'माँ' नेहा जो वहाँ थी, वो भी एकदम से उठ गई, आखिर उसके स्कूल जाने का टाइम जो हो रहा था|
“Good Morning बेटा!" इन्होने उसके माथे को चूमते हुए कहा| जवाब में नेहा ने इनके गाल को चूमते हुए Good Morning कहा! पर जब इन्होने नेहा को तैयार होने के लिए कहा तो वो ना नुकुर करने लगी| मैं उसकी इस न-नुकुर का कारन जानती थी .... दरअसल उसे मुझपर भरोसा नहीं था| उसे लग रहा था की मैं कुछ न कुछ ऐसा करुँगी की इनकी तबियत फिर से ख़राब हो जाएगी|
पर इनका भी अपना स्टाइल है! जिसके आगे बच्चों और मेरी कतई नही चलती! इन्होने बहुत लाड-दुलार के बाद नेहा को स्कूल जाने के लिए मना लिया| पर उसने एक शर्त राखी; "Promise me पापा की आप किसी को गुस्सा नही करोगे फिर चाहे कोई आप को कितना भी provoke करे (ये उसने मेरी तरफ देखते हुए कहा|), आप टाइम से खाना खाओगे और टाइम से दवाई लोगे और हाँ proper rest करोगे|" ये सब सुनने के बाद मेरे और इनके चेहरे पर मुस्कराहट आ गई और इन्होने हँसते हुए जवाब दिया; "मेरी माँ! आप बस स्कूल जा रहे हो.... दूसरे continent नही जो इतनी साड़ी हिदायतें देकर जा रहे हो| और फिर यहाँ आपकी मम्मी हैं .... आपके दादा-दादी हैं...नाना-नानी हैं ... सब तो हैं यहाँ फिर आपको किस बात की चिंता? यहन कौन है जो मझे PROVOKE करेगा?" अब मुझे किसी भी हालत पर ये टॉपिक शुरू होने से बचाना था वरना मुझे पता था की नेहा की डाँट जर्रूर पड़ेगी तो मैंने कहा; "नेहा बीटा.... जल्दी से तैयार हो जाओ ...लेट हो रहा है|" जबकि उस समय सिर्फ साढ़े पाँच ही बजे थे!| बच्चे तो तैयार हो कर स्कूल चले गए इधर इन्होने मुझे बुला कर 'सभा' का फरमान दिया| जब बड़की अम्मा और अजय आ गए तो सबजने अपनी-अपनी चाय का कप थामे हमारे कमरे में आ गए और सब घेर कर बैठ गए| कमरे में हीटर की गर्माहट ने माहोल आरामदायक बना दिया था| ऐसा लग रहा था जैसे President of America Parliament को Address कर रहे हों| सब बड़ी उत्सुकता से इन्हें देख रहे थे| मैं भी हैरान थी की आखिर इन्हें कौन सी बात करनी है|
(आगे इन्होने जो बोला उसका एक-एक शब्द मैं जैसा का तैसा लिख रही हूँ!)
"मुझे आप सभी से कुछ कहना है................ मैं आप सभी से हाथ जोड़ कर क्षमा चाहता हूँ की मेरे कारन आप सभी को ये तकलीफ उठानी पड़ी!"
ये सुन कर सभी एक साथ बोल पड़े; "नहीं...नहीं... बेटा....ये तू क्या बोला रहा है ....." पर इन्होने ने अपनी बात जारी रखी ......
"मैं जानता हूँ की मेरी इस हालत का जिम्मेदार इन्होने (मेरी तरफ इशारा करते हुए) खुद को ही ठहराया होगा! ये इनकी आदत है...मेरी हर गलती का जिमेदार ये खुद को मानती हैं और मेरे सारे गम अपने सर लाद लेती हैं| जानता हूँ की ये हर जीवन साथी का ये फ़र्ज़ पर मैं नहीं चाहता की मेरी वजह से आप संगीता से नफरत करें....और उसे मेरी गलतियों की सजा दें! उस हादसे के बारे में सोच-सोच कर मेरा खून खौल ने लगा था.... दिल में आग लगी हुई थी.... बहुत गुस्सा आ रहा था मुझे| अपनी गुस्से की आग में मैं खुद ही जल रहा था| पता नहीं क्या ऊल-जुलूल हरकतें कर रहा था .... कभी दुबै जाने के बारे में सोच रहा था तो कभी कुछ... ऐसा लगा जैसे दिमाग ने सोचने समझने की ताकत ही खो दी थी| दवाइयाँ खाना बंद कर दिया और अपनी ये हालत बना ली! इसलिए मैं आप सभी से हाथ जोड़ के माफ़ी माँगता हूँ| और पिताजी (मेरे पिताजी) इन्होने मुझसे आपकी या किसी की भी शिकायत नहीं की! मैं जानता हूँ की सबसे ज्यादा आप मुझे प्यार करते हो तो सबसे ज्यादा डाँटा भी आपने ही होगा!"
ये सुन कर पिताजी कुछ नहीं बोले बस मुस्कुरा दिए| तभी इन्होने (मेरे पति) मुझे उनके (मेरे पिताजी) के पाँव छूने को कहा| मैंने उनके पाँव छुए और उन्होंने मुझे माफ़ करते हुए कहा; "खुश रहो बेटी!" मैं ने आगे बढ़ कर माँ (अपनी माँ) के पाँव छुए तो उन्होंने भी मुझे प्यार से आशीर्वाद दिया| जब मैं बड़की अम्मा के पास पहुंची और उनके पाँव छूने लगी तब ये बोले; "अम्मा....मैं जानता हूँ आपने संगीता को कुछ नहीं बोला होगा है ना?" अम्मा ने मुस्कुराते हुए मुझे आशीर्वाद दिया और कहा; "बेटा तू तो जानता ही है सब....मैं इसे कुछ कहती भी तो किस हक़ से!"
"क्यों अम्मा... आप मेरी बड़ी माँ हो आपका पूरा हक़ बनता है की आप हमें डांटें चाहे तो मार भी लो!" मैंने कहा|
"नहीं बेटी..... मेरे अपने खून की गलतियों के आगे मैं कुछ नहीं कह सकती|" अम्मा कहते हुए रो पड़ी तो माइन आगे बढ़ के उन्हें संभाला और कान में खुस-फुसा के कहा; "आप अगर रोओगे तो ये भी रो पड़ेंगे|" अम्मा ने अपने आँसूं पोछे और खुद को संभाला| मैं जानती थी की अम्मा की बात इन्हें कहीं न कहीं लगी अवश्य होगी.... आर मुझे कैसे भी अभी सब कुछ सम्भालना था|
"और माँ-पिताजी..... आप ने तो संगीता को नहीं कोसा ना?" इन्होने पूछा|
इसपर माँ (सासु माँ) बोली; "भई गलती तेरी..... तो भला हम अपनी बेटी को क्यों कोसेंगे? मुझे पता था की ये तेरी ही करतूत है और इल्जाम हमारी बेटी अपने सर ले रही है|" इस पर मेरे पिताजी ने इनका पक्ष लेते हुए मुस्कुरा कर कहा; "समधन जी ये आपने सही कही! हमारे ही लड़के में खोट है?" ये सुन कर सब हँसने लगे.....!!!
नाश्ते का समय हुआ तो सब बाहर बैठक में आ रहे थे तभी मेरे पिताजी आकर इनके पास बैठ गए और इनके कंधे पर हाथ रख कर बोले; "संगीता....तू सच में बहुत नसीब वाली है की तुझे ऐसा पति मिला जो तेरी साड़ी गलतियां अपने सर ले लेता है!"
"पर पिताजी...ऐसा कुछ नहीं है...गलती मेरी ही थी!" इन्होने फिर से अपनी बात दोहराई और तब तक मेरी माँ भी वहीँ आ कर कड़ी हो गईं|
"बेटा मेरे एक सवाल का जवाब दे, ऐसी कौन सी पत्नी होती है जो अपना दुःख-दर्द अपने ही पति से छुपाये?" पिताजी का सवाल सुनकर मुझे पता था की इनके पास कोई जवाब नहीं होगा पर हुआ इसका ठीक उल्टा ही! इन्होने बड़े तपाक से जवाब दिया; "वही पत्नी जो ये जानती है की उसका दुःख-दर्द सुन उसके पति की तबियत ख़राब हो जायेगी!" और ये कहते हुए उन्होंने मेरी माँ की तरफ देखा जैसे कह रहे हों की माँ आपने पिताजी से अनिल के हर्निया की बात छुपा कर कोई पाप नही किया| इस बार इनका जवाब सुन पिताजी चुप हो गए... और मुस्कुरा दिए और बोले; "बेटा तुझसे बातों में कोई नही जीत सकता! तेरे पास हर बात का जवाब है|" इतना कह कर पिताजी ने इनको आशीर्वाद दिया और बाहर बैठक में आ गए| आजतक ऐसे नहीं हुआ...कम से कम मेरे सामने तो कतई नही हुआ की कोई पिताजी को इस तरह चुप करा दे| पर मैं जानती थी की इनका प्रभाव पिताजी पर बहुत ज्यादा है! शायद ये इन्हीं का प्रभाव था की अब दोनों घरों में औरतें यानी मेरी माँ और सासु माँ बोलने लगीं थी!
ये सब देख मेरा दिल भर आया था ... मन तो किया की इनके सीने से लग कर रो पडूँ पर किसी तरह खुद को संभाला| इतने में अनिल आ गया और बोला; "दी... वो नाश्ते के लिए आपको बाहर बुला रहे हैं|" इतना कह कर वो बाहर चला गया| उसने आज भी मुझे दीदी की जगह 'दी....' कह के बुलाया था| मुझे बुरा तो लगा था पर मैं चुप यही पर इन्हें कुह शक हो गया| इन्होने मुझसे पूछा; "जब से अनिल आया है....तब से ये 'दी...' कह रहा है? ये का आजकल का trend है?" मैंने मुस्कुराते हुए कहा; "हाँ जी.... अब नई पीढ़ी है... शुक्र है दीदी का इसने 'दी...' कर दिया वरना मुझे तो लगा था की ये उसका कहीं 'DUDE' न बना दे...ही..ही..ही..ही.."
"अच्छा जी...ज़माना इतना बदल गया है? हम तो जैसे बूढ़े हो गए हैं!" इन्होने शिकायत की...शायद इन्हें शक हो गया था की मैं कुह बात छुपा रही हूँ| मैं बाहर आ कर नाश्ता बनाने में लग गई.... मैंने और इन्होने नाश्ता कमरे में ही किया क्योंकि वो कमरा काफी गर्म था और इनको exposure से खतरा था वरना जरा सी ठंडी हवा इन्हें लगी और हो गया इनका Sinus शुरू! घडी में करीब सवा बारह बजे होंगे, ससुर जी, अजय और पिताजी बाहर गए थे टहलने और माँ, सासु माँ और बड़की अम्मा अंदर कमरे में बैठीं बातें कर रहीं थी, की इन्होने मुझे कहा की अनिल को बुला दो| मैंने भी बिना कुछ सोचे उसे बुला दिया और मैं अपना काम करने लगी| तभी मेरे दिमाग में बिजली कौंधी और मैं भाग कर कमरे के पास आई और दरवाजे में कान लगा कर सुनने लगी|
"अनिल.... यार या तो तू थोड़ा मोडररन हो गया है या फिर बात कुछ और है?"
"मैं समझा नहीं जीजा जी?" अनिल ने असमंजस में पूछा|
"मैंने notice किया की तू आजकल अपनी दीदी को 'दी...' कह कर बुलाने लगा है! उसे तेरे मुंह से 'दीदी' सुन्ना अच्छा लगता है ना की 'दी...' उसके लिए ना सही कम से कम मेरे लिए ही उसे दीदी कह दिया कर?" इन्होने अनिल से request की वो भी सिर्फ मेरी ख़ुशी के लिए| अनिल चुप हो गया ....और मुझे पता था की ये उसकी चुप्पी जर्रूर पकड़ लेंगे|
"मतलब बात कुछ और है?" इन्होने उसके मन की बात भांप ली थी| आखिर अनिल ने शुरू से ले कर अंत तक की सारी बातें बता दी| मेरा दिल जोर से धड़कनें लगा था क्योंकि मुझे दर लगने लगा थी की कहीं इनकी तबियत फिर से ख़राब न हो जाए! पर इन्होने अनिल को समझाना शुरू किया; "यार ऐसा कुछ नहीं है.... तुझे लगता है की तेरी दीदी तुझे भूल गई? तुझे पता भी है की वो तेरे लिए रोज दुआ करती है, माँ-पिताजी की लम्बी आयु के लिए प्रार्थना करती है! शादी के बाद उसके ऊपर इस घर की भी जिम्मेदारी बढ़ गई है| तू तो जानता ही है की कितनी मुश्किल से ये सब संभला था...फिर स दिन वो सब.....She was emotionally broken ... तू सोच नहीं सकता की उस पर क्या बीती थी! वो बेचारी टूट गई थी.... बहुत घबरा गई थी... आयुष के लिए ... .उसे लगा था की हम आयुष को खो देंगे! घबरा चुकी थी ..... ऐसे में मैं भी उस पर दबाव बना रहा था की हँसो-बोलो ....तो वो और क्या करती? हम दोनों के बीच काफी तनाव आ चूका था.... देख मैं उसकी तरफ से माफ़ी माँगता हुँ!"
"जीजा जी आप माफ़ी क्यों माँग रहे हो.... उन्होंने मुझे नहीं पूछा कोई बात नहीं...वो Loan के बारे में भूल गईं कोई बात नही..... पर उनके कारन आपकी ये हालत हुई ये मुझसे बर्दाश्त नहीं होता! वो जानती हैं की आप उन से कितना प्यार करते हो और फिर भी आपसे ऐसा सलूक किया? मैं पूछता हूँ की गलती क्या थी आपकी? अगर आप दीदी की जगह होते और वो आपको हँसने-बोलने को कहतीं तो क्या आप उन्हीं पर बिगड़ जाते?" अनिल ने बड़े तर्क से उनसे बात की थी|
"नहीं...बिलकुल नहीं| पर अगर मुझे ये पता चलता की वो मुझे मेरे ही परिवार से अलग कर रही है वो भी सिर्फ मेरी तस्सल्ली भर के लिए तो हाँ मैं जर्रूर नाराज होता| उन्हें गुस्सा आया क्योंकि मैंने उन्हें इस परिवार से अलग करने की कोशिश की| मैं चाहता था की हम सब दुबई settle हो जाएं पर माँ-पिताजी ने जाने से मन कर दिया| हारकर मुझे ये तय करना पड़ा की मैं, आयुष, नेहा और संगीता ही दुबई जायेंगे| नौकरी तक ढूंढ ली थी| तो ऐसी बात पर किसी गुस्सा नहीं आएगा?"
"आपने ये सब उनके लिए किया था ना? अपने लिए तो नहीं? फिर?"
"देख भाई...अब या तो तू इस मुद्दे पर बहस कर ले या फिर लड़ाई कर ले....मेरे लिए She is always right!"
"देखा जीजा जी..... आपके लिए वो हमेशा सही हैं और उनके लिए आप गलत? क्या combination है! खेर आपके लिए मैं उन्हें माफ़ कर देता हूँ| पर मेरी एक शर्त है?"
"क्या?"
"आप मुझे बेटा कह कर बुलाओगे? जब दीदी मुझे बेटा कहती हैं तो मुझे अच्छा लगता है आखिर बड़ी बहन माँ सामान ही तो होती है और फिर इस हिसाब से आप तो पिता समा हुए|"
"ठीक है बेटा पर...तुझे अपनी दीदी को दिल से माफ़ करना होगा|" और उन्होंने मुझे आवाज दी और मैं एक दम से अंदर आ गई| मुझे देख के दोनों समझ गए की मैं उनकी सारी बातें सुन रही थी|मुझे देख कर अनिल खड़ा हुआ और बोला; "Sorry दीदी... मेरे बुरे बर्ताब के लिए मुझे माफ़ कर दो| मैं जीजा जी....." बस आगे बोलने से पहले वो रो पड़ा| मैंने उसे गले लगाया और सर पर हाथ फेरा| पर उसका रोना अभी कम नही हुआ था तो इन्होने मजाक में बोला; "बेटा जब माँ के गले लग कर रो लो तो इधर भी आ जाना, इधर भी खेती गीली कर देना|" उनकी बात सुन कर हम दोनों हंस पड़े और अनिल जा कर उनके गले लग गया| कूकर की सीटी बजी तो मं दौड़ी-दौड़ी बाहर आई और गैस बंद की| खाना लघभग बन चूका था और अनिल बच्चों को लेने जा चूका था| स्कूल से आते ही नेहा और आयुष भागे-भागे कमरे में आये और बस्ता पहने हुए ही दोनों आ कर अपने पापा के गले लग गए और उनका हाल-चाल पूछने लगे| काफी लाड-दुलार के बाद बच्चों ने उन्हें छोड़ा| ऐसा लगा जैसे बच्चों ने एक अरसे बाद अपने पापा को देखा हो| खेर अब खाने का समय हो चूका था तो बच्चे जिद्द करने लगे की हमें पापा के साथ खाना खाना है| पर मैंने इन्हें कमरे के अंदर रहने की सलाह दी थी, कारन दो; पहला की इस तरह हम दोनों को साथ रहने का थोड़ा समय मिलता था और दूसरा बाहर का कमरा बहुत ठंडा था और अंदर का कमरा गर्म! अब आप इसे मेरा selfish नेचर कहो या इनके लिए मेरी care!
मैं चाहती थी की पहले ये खाना खा लें पर इन्होने जिद्द की, कि पहले बड़ों को खिलाओ फिर हम दोनों साथ खाएंगे| शायद ये कुछ private पल इन्हें भी पसंद थे! खेर सब को खिलने के बाद मैं हम दोनों का खाना ले कर कमरे में आ गई| उस समय नेहा और आयुष अपने कमरे में पढ़ रहे थे| डॉक्टर साहिबा कि हिदायत थी कि इन्हें खाने के लिए खाना ऐसा दिया जाए जिसे शरीर आसानी से digest कर सके| अब ऐसा खाना स्वाद तो कतई नहीं होता| उस दिन घर पर राजमा बने थे जो इन्हें बहुत पसंद हैं| मुझे पता था कि इन्हें वो बेस्वाद खाना खाने में कितनी दिक्कत हो रही है, इलिये मैं एक कटोरी में उनके लिए राजमा ले आई| अभी मैंने उन्हें एक चम्मच खिलाया ही था कि नेहा कमरे में आ गई और मुझसे कटोरी छीन ली और बड़ी जोर से मुझ पर चिल्लाई; "मम्मी! फिर से पापा को बीमार करना चाहते हो? डॉक्टर आंटी ने मना किया है ना?" मुझे उस समय अपनी बेवकूफी याद आई और शर्म भी आई| शोर सुन आयुष भी अंदर आ गया और नेहा के हाथ से कटोरी छीन के कमरे में इधर-उधर भागने लगा| नेहा भी उसके पीछे भागने लगी.... मैं अपना मन मसोस कर रह गई! मुझे पता था कि इन्हें बहुत गुस्सा आ रहा होगा इसलिए मैंने बात संभाली; "आयुष...बेटा चोट लग जाएगी! नेहा आयुष से कटोरी ले कर किचन में रख आओ|” पता नहीं कैसे पर ये अपना गुस्सा control कर गए! खाना तो इन्होने खा लिया और कुछ देर बाद बोले; "नेहा को बुलाओ.... नहीं रुको... नेहा........|" इनकी एक ही आवाज में नेहा अंदर दौड़ी-दौड़ी आई| मुझे पता था कि आज उसकी क्लास लगने वाली है इसलिए मैं हूप-छाप बाहर जाने लगी वरना नेहा सोचती कि मैंने ही उसकी शिकायत की है| पर इन्होने मुझे रोक लिया और वहीँ बैठ जाने को कहा|
"नेहा...बेटा क्या बात है? आप अपनी मम्मी से बहुत बदतमीजी से पेश आ रहे हो आज कल? वो तो बस मेरे मुँह का टास्ते बदलना चाहती थी इसलिए उन्होंने मुझे राजमा खिलाये! आप तो उन पर ऐसे चिल्लाये जैसे उन्होंने मुझे जहर खिला दिया हो? क्या यही सब सिखाया है मैंने आपको? " ये सुन कर नेहा ने अपना सर झुका लिया और खामोश हो गई|
"इतना सब होने के बाद भी आप ने मम्मी को इतनी जल्दी माफ़ कर दिया?" नेहा ने सवाल पूछा|
"बेटा आपकी मम्मी की कोई गलती नहीं थी.... गलती मेरी थी|" ये सुन कर आखिर नेहा के अंदर दबा हुआ ज्वालामुखी फुट पड़ा और उसने अपने sorry से ले कर मेरे साथ हुई उसकी बात सब उन्हें सुना डाली| ये सब सुन कर इनका दिल भर आया पर फिर भी अपने आपको बहुत अच्छे से संभाल कर बोले; "बेटा आपकी मम्मी गलत नहीं हैं...उन्होंने कुछ नहीं किया? वो मुझसे बहुत प्यार करती हैं! आपसे भी ज्यादा .... मेरे अच्छे future के लिए उन्होंने मुझे खुद से दूर किया था, ताकि मैं अपनी जिंदगी में कुछ बन जाऊँ...... अपनी जिंदगी संवार सकूँ|"
"तो क्या वो बस एक बार आपसे पूछ नहीं सकती थीं? बिना आपसे कुछ पूछे ही उन्होंने अपना फैसला आपको सुना दिया? बिना किसी गलती के आपको सजा दे डाली| मैं जानती हूँ आप बाकियों की तरह नहीं जो अपनी जिम्मेदारियों को नहीं उठाते| मुझे पूरा विश्वास है की आप माँ और अपना career दोनों एक साथ संभाल लेते| क्यों उन्होंने ने मुझे आपसे दूर किया? क्या उन्हें पता नहीं था की आपके आलावा मुझे वहां पर प्यार करने वाला कोई नहीं था?" नेहा ने एक-एक शब्द वही बोला था जो इन्होने मुझसे उस दिन कहा था, इसलिए ये थोड़ा हैरान थे| इन्हें लगा की मैंने नेहा को सब बताया है पर तभी नेहा बोल पड़ी; "उस दिन जब मेरे लिए फ्रॉक लाये थे तब उस gift pack में सबसे ऊपर आपने चिप्स का पैकेट रखा था| मेरी इस पसंद के बारे में आपके इलावा कोई नहीं जानता इसलिए मजबूरन मैं आपसे पूछना चाहते थी की इतने साल आप मुझसे मिलने गाँव क्यों नहीं आये? पर तभी मैंने आपकी और माँ की बातें सुन ली|"
इन्होने बड़े इत्मीनान से नेहा से सवाल किया; "बेटा मेरा भी आपके लिए एक सवाल है? अगर आपको सर्दी-खाँसी हो जाए और डॉक्टर आपको हिदायत दे की आपको आयुष से दूर रहना है ताकि उसे ये infection ना हो जाए तो क्या आप तब भी उसके साथ खेलोगे?"
"बिलकुल नहीं|" नेहा ने जवाब दिया|
"पर क्यों? आपको तो मामूली सा सर्दी-जुखाम है! भला आयुष को सर्दी खाँसी के अलावा क्या होगा? दो-तीन दिन दवाई खायेगा और फिर ठीक हो जायेगा!"
"पर पापा इस बिमारी से उसे थोड़ा बहुत कष्ट तो होगा ही और वो दो-तीन दिन स्कूल नहीं जा पायेगा और उसकी पढ़ाई का नुक्सान होगा! और मैं उसकी बहन हूँ उसका बुरा कैसा चाहूँगी?"
ये थोड़ा सा मुस्कुराये और बोले; "बेटा आपने तो सर्दी-खाँसी जैसी मामूली बिमारी के चलते आयुष को खुद से दूर कर दिया और मेरे तो CBSE Boards के exam थे वो भी आयुष के पैदा होने के ठीक एक महीने बाद! अब बताओ इसमें आपकी मम्मी की क्या गलती? अगर आप मम्मी की जगह होते तो क्या आप अपने स्वार्थ के लिए मेरा एक साल बर्बाद होने देते?" ये सुन कर नेहा एक दम चुप हो गई|
"हाँ एक गलती आपकी मम्मी से हुई, वो ये की उन्हें मुझसे एक बार बात करनी चाहिए थी| मेरे exams मार्च में थे और मैं आप से मिलने अक्टूबर holidays में आ सकता था| और एक गलती मुझसे भी हुई... की मुझे आपकी मम्मी की बात का इतना बुरा नहीं मन्ना चाहिए था की मैं आपसे भी नाराज हो जाऊँ? इसलिए मैं आज आपको SORRY बोलता हूँ की मैंने आपसे भी इतना rude behave किया|
जिस माँ को आप नफरत करते हो आपको पता है की मेरे लिए उन्होंने कितनी कुर्बानी दी हैं? आपके नाना-नानी तक को छोड़ दिया सिर्फ मेरे लिए? आप बोलो क्या कभी आप ऐसा करोगे?" नेहा ने ना में सर हिलाया| उस की आँखें भर आईं थी पर वो सर झुकाये सब सुन रही थी|
"मैंने और आपकी मम्मी ने प्लान किया था की जब उनकी डिलीवरी होगी तब मैं उनके साथ रहूँगा पर मेरी पढ़ाई के लिए उन्होंने ये सब कुर्बान कर दिया और मुझे खुद से अलग कर दिया| पर आयुष के जीवन के वो '*" साल जो मैं नहीं देख पाया....जिन्हें मैं महसूस नहीं कर पाया...उसे गोद में नहीं खिला पाया .... उसका मेरी गोद में सुसु करना...ये सब मैंने miss कर दिया क्योंकि आपकी मम्मी की उस एक बात को मैंने अपने दिल से इस कदर लगा लिया था! उसी कारन आपकी मम्मी को ये बच्चा चाहिए था ताकि मैं उस सुख को भोग सकूँ! सिर्फ मेरे लिए ...वो ये बच्चा चाहती थीं! इससे ज्यादा कोई किसी के लिए क्या कर सकता है?" ये सब सुन नेहा खामोश हो गई थी उस की आँखें छलक आईं थीं.... "बेटा I guess you owe your mummy an apology?” बस ये सुन कर नेहा उठी और मेरे पाँव छुए और बोली; "sorry मम्मी... मैंने आपको बहुत गलत समझा| मुझे माफ़ कर दो प्लीज!" माने उस के सर पर हाथ फेरा और कहा; "its okay बेटा.... कोई बात नहीं!" फिर वो जा कर अपने पापा के गले लगी और रो पड़ी.... बहुत जोर से रोइ... इन्होने उसे बहुत प्यार किया और तब जा कर वो चुप हुई|
"अच्छा बेटा आप है ना ... छुप-छुप कर बातें मत सुना करो! bad manners! मैं आपसे कोई बात नहीं छुपाता ना?" इन्होने कहा|
"sorry पापा! आगे से ऐसा कुछ नहीं करुँगी|"
"और आप देवी जी (अर्थात मैं) आप भी जरा कम कान लगाया करो!" वो कुछ देर पहले मैंने इनकी और अनिल की बातें सुनी थी ये उसी के लिए था ही..ही..ही...
सब कुछ सामान्य हो गया था....पर अभी भी कुछ था जो छूट गया था..... रात को खाना खाने के बाद सभी हमारे कमरे में बैठे थे और हँसी-मजाक चल रहा था| तभी मेरे पिताजी ने अपने जाने की बात कही| उस समय इनके आठ में लैपटॉप था| जैसे ही पिताजी ने जाने की बात कही ये मुस्कुराये और बोले; "इतनी जल्दी जा रहे हो आप?"
तभी बीच में अनिल बोल पड़ा; "सारे जा रहे हैं जीजू!" दरअसल उसका भी मन नहीं था जाने का|
"हम्म्म..... ठीक है.... बेटा अपना मोबाइल चेक कर!" इन्होने अनिल से कहा| अनिल ने अपना मोबाइल चेक किया तो देख कर दंग रह गया और जोर से चिल्लाया; "पिताजी!!! जीजू ने फ्लाइट की टिकट्स बुक करा दी हैं!" ये सुन कर तो मैं भी चौंक गई... उस कमरे में बैठा हर कोई चौंक गया सिवाय इनके जो मंद-मंद मुस्कुराये जा रहे थे! बड़की अम्मा बोलीं; "मुन्ना ये क्या?"
"अम्मा.... माँ-पिताजी को तो हवाई यात्रा करा दी, अब बारी थी मेरी बड़ी माँ की और सास-ससुर की| अब ऐसा मौका दुबारा कहाँ मिलेगा?” इन्होने मुस्कुराते हुए कहा| अम्मा ने पिताजी (मेरे ससुर जी) की तरफ देखा ओ पिताजी बोले; "हभी.... आप ही का लड़का है ... अब मैं कैसे इसे मना करूँ! जो काम बाप ना कर सका वो बेटे ने कर दिया! शाबाश!"
"अरे समधी जी, हवाई जहाज की टिकट तो बहुत महंगी होती है!" मेरे पिताजी ने कहा|
"पर पिताजी आप सबसे महंगी तो नहीं?" इन्होने अपना तर्क दिया| सब ने बहुत कोशिश की पर ये टस से मस नहीं हुए| आखिर कर सब को फ्लाइट से ही जाना पड़ा| सब बहुत खुश थे .... बहुत-बहुत खुश| शायद ही मैंने कभी ऐसी ख़ुशी एक साथ सब के चेहरे पर देखि हो!
आज रात बड़की अम्मा और अजय यहीं ठहरने वाले थे.... सब के सोने का प्रबंध किसी तरह हो गया था| आयुष और नेहा आज सब के साथ सोये थे और finally हम दोनों आज रात अकेले थे| मैंने झट से दवाजा लॉक किया| आखिर वो पल आ ही गया जिसका मुझे बेसब्री से इन्तेजार था!
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