RE: Sex Hindi Kahani एक अनोखा बंधन
सुबह के नौ बजे थे, डॉक्टर सरिता भी आ चुकी थीं और सारे लोग कमरे में ही बैठे थे| डॉक्टर सरिता सब को क्या-क्या एहतियात बरतनी है उसके बारे में सब बता रही थी| उनके अनुसार तो अब कोई घबराने की बात नहीं थी| पर सब के दिलों को चैन तब मिलता जब वे इन्हें होश में देखते! जब इन्हें होश आया तो सब के सब फिर से हमें घेर कर खड़े हो गए! सबको अपने पास देख के इनके (मेरे पति के) चेहरे पर मुस्कान आई....हाय! क्या कातिल उस्काण थी वो! ऐसा लगा मानो एक अरसे बाद उनकी मुस्कान देख रही हूँ! इन्हें मुस्कुराता हुआ देख सबके दिल को इत्मीनान हुआ और मेरी माँ और सासु माँ ने इनकी नजर उतारी और भगवान को शुक्रिया अदा किया| नेहा तो बेड पर चढ़ गई और आके अपने पापा के गले लग गई और रोने लगी| रोते-रोते बोली; "i love you पापा" उसकी ये बात सुन कर ये अपने हमेशा वाले अंदाज में बोले; "awwwwwwww मेरा बच्चा!" ये सुनने के बाद ही नेहा के चेहरे पर मस्कान आई! हॉस्पिटल का बेड थोड़ा ऊँचा था तो आयुष उस पर चढ़ नहीं पा अहा था| वो भरसक प्रयास कर रहा था पर फिर ही छाड़ नहीं पा रहा था| अंत में उसे अपनने दादा जी को ही इशारा किया और बोला; "दादा जी...मुझे पापा ...." बस इसके आगे कुछ बोलने से पहले ही पिताजी ने उसे गोद में उठाया और उसके पापा की पास छोड़ दिया| वो घुटनों के बल छलके आया और नेहा के साथ साथ उसने भी अपने पापा को झप्पी डाल दी, पर वो रोया नहीं! बच्चों के गले लगने से इनका ध्यान उनपर चला गया और मेरा हाथ छूट गया| मैं उठ के डॉक्टर सरिता के पास चली गई जो ये सब देख कर काफी emotional हो गईं, चूँकि सबका ध्यान इनपर था तो किसी को उनके आँसूं नहीं दिखे| मैंने उन्हें दिल से थैंक्स बोला तो वो बस मुस्कुरा दीं|
आखिरकार जब सब ने हम दोनों को आशीर्वाद दे दिया तब सबसे पहला सवाल आयुष ने पूछा; आंटी हम पापा को घर कब ले जा सकते हैं?" उसक सवाल सं सब हँस पड़े थे| इतने दिनों बाद सबको हँसता देख मेरे दिल को थोड़ा सुकून आया| डॉक्टर सरिता ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया; "बेटा...दो-तीनं दिन अभी आपके पापा को यहाँ observation के लिए रुकना होगा| उसके बाद आप उन्हें ले जा सकते हो|" ये सुन के आयुष खुश हो गया और इधर-उधर नाचने लगा| उसका dance देख सब खुश हो गए और हँस पड़े| ख़ुशी का मौहाल बन चूका था ..... ये (मेरे पति) यही ज्यादा बात नहीं कर रहे थे| शरीर काफी कमजोर हो चूका था| बहत धीरे-धीरे बात कर रहे थे..... तभी माँ उठ के मेरे पास आईं और बोलीं; "बेटी अब तो घर चल... थोड़ा आराम कर ले... जब से मानु हॉस्पिटल आया है तो तब से घर नहीं गई|" ये सु कर इनके चेहरे पर परेशानी की शिकन पड़ने लगी और मैं इन्हें कतई परेशान नहीं करना चाहती थी तो मैं ने माँ की बात ये कह कर ताल दी; "माँ अब तो मैं इन्ही की साथ गृह-प्रवेश करुँगी|" ये सुन कर माँ हँस पड़ी और इनके हेहरे पर भी मुसस्काण आ गई| आयुष जो हमारे पास बेड पर बैठा था उसने मेरी बात को थोड़ा और मजाक में बदल दिया ये कह के; "दादी तो इस्सका मतलब की इस बार पापा चावल वाले लोटे को लात मार कर घर के नदर आयेगे?" उसके इस अचकन मजाक को सुन सभी जोर से हँस पड़े और कमरे में हंसी गूंजने लगी| एक परिवार जो तकरीबन बीस दिन से, मेरे कारन दुःख भोग रहा था वो आज... finally हँस रहा था अब भला मुझे इससे ज्यादा क्या चाहिए था!
अब आगे.......
नेहा और आयुष इनके पास बैठे थे और सारे लोग भी वहीँ बैठे थे... तो मुझे इनसे बात करने का समय नहीं मिल रहा था| इधर नहा जिद्द करने लगी की वो तीन दिन तक स्कूल नहीं जायेगी और अपने पापा के पास ही रहेगी| सबने उसे प्यार से समझाया अपर वो नहीं मान रही थी..... इन्होने भी कोशिश की पर नेहा जिद्द पर अड़ गई! पिताजी (नेहा के नाना जी) को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने उसे डाँट दिया| उनकी डाँट से वो सहम गई और अपने पापा के पास आके उनके गले लग गई और अपना मुँह उनके सीने में छुपा लिया| आखिर मुझे ही उसका पक्ष लेना पड़ा; "रहने दो ना पिताजी.... मेरी बेटी बहुत होशियार है! वो तीन दिन की पढ़ाई को बर्बाद नहीं जाने देगी! है ना नेहा?" तब जा कर नेहा ने मेरी तरफ देखा और हाँ में सर हिला के जवाब दिया| पर पिताजी के गुस्से का सामना मुझे करना पड़ा; "तू बहुत तरफदारी करने लगी है इसकी? सर पर चढ़ाती जा रही है इसे? मानु बेटा बीमार क्या पड़ा तुम दोनों ने अपनी मनमानी शुरू कर दी?" मेरी क्लास लगती देख इन्हें (मेरे पति) को भी बीच में आना पड़ा; "पिताजी........ ये मेरी लाड़ली है! " बस इतना सुन्ना था की पिताजी चुप हो गए और मैं भी हैरान उन्हें देखती रही की मेरी इतनी बड़ी दलील सुन्न के भी उन्हें संतोष नहीं मिला और इनके कहे सिर्फ पांच शब्द और पिताजी को तसल्ली हो गई? ऐसा प्रभाव था इनका पिताजी पर!
सबको इन पर बहुत प्यार आ रहा था... और ये सब देख के मुझे एक अजीब से सुख का आनंद मिल रहा था| अगले तीन दिन तक सब ने हमें एक पल का समय भी नहीं दिया की हम अकेले में कुछ बात कर सकें| अब तो रात को माँ (सासु माँ), मेरी माँ या बड़की अम्मा वहीँ रूकती| दिन में कभी पिताजी (ससुर जी) तो कभी मेरे पिताजी तो कभी अजय होता| अगले दिन तो अनिल भी आ गया था और उसेन आते ही इनके (मेरे पति के) पाँव छुए! हम दोनों (मैं और मेरे पति) अस एक दूसरे को देख के ही आहें भरते रहते थे... जब माँ (सासु माँ) होती तो मैं जा कर इनके सिराहने बैठ जाती और ये मेरा आठ पकड़ लेते और हम बिना कुछ बोले बस एक दूसरे की तरफ देखते रहते| जैसे मन ही मन एक दूसरे का हाल पूछ रहे हों! हम दोनों के मन ही मैं बहुत सी बातें थीं जो हम एक दूसरे से करना चाहते थे .... ओ मेरे मन में जो सबसे अदा सवाल था वो था की आखिर इन्होने मुझे "Sorry" क्यों बोला?
घर में ये सब से बात कर रहे थे .... जैसे सबसे बात करने के लिए इनके पास कोई न कोई topic हो! मेरे पिताजी (ससुर जी) से अपने काम के बारे में पूछते, माँ (सासु माँ) से उनके favorite serial C.I.D के बारे में पूछते, मेरे पिताजी से खेती-बाड़ी के बारे में पूछते, और मेरी माँ..... उन्हें तो इन्होने एक नै hobby की आदत डाल दी थी! वो थी "experimental cooking" ही..ही...ही... आय दिन माँ कुछ न कुछ अलग बनती रहती थी....!!! बड़की अम्मा और अजय से सबका हाल-चाल लेते रहते थे..... पर मुझसे ये सिर्फ और सिर्फ इशारों में ही बात करते थे|
अगले दिन की बात है नर्स राजी इन्हें चेक करे आईं थी तब उन्हें देख कर इनके मुख पर मुस्कान फ़ैल गई| दोनों ने बड़े अच्छे से "Hi" "Hello" की..... हाँ जब ये हंस कर उनसे बात करते तो मुझे बड़ा अजीब सा लगता था| अचानक मेरी नजर पिताजी (मेरे ससुर जी) पर पड़ी तो देखा वो इन्हें घूर के देख रहे थे| थोड़ा बहुत गुस्सा और जलन तो मुझे भी हो रही थी.... पर मैंने अपने भावों को किसी तरह छुपा लिया था| उस समय वहां केवल माँ (सासु माँ) और पिताजी (ससुर जी) थे, नर्स के जाने के बाद पिताजी ने इन्हें टोका| "तू बड़ा हँस-हँस के बात कर रहा था? बहु सामने है फिर भी?" उन्होंने गुस्सा नहीं किया था बस टोका भर था!
ये सुन कर इन्हें (मेरे पति को) हंसी आ गई! और तब माँ इनके बचाव में आ गेन और उन्होंने सारी confusion दूर की! माँ नर्स राजी को जानती थीं .... और मैंने कभी ध्यान नहं दिया पर जब भी नर्स माँ के सामने आती तो माँ उनसे बात करती| उस वक़्त मेरा ध्यान तो केवल इन पर था इसलिए मैंने कभी ध्यान नहीं दिया| दरअसल राजी इन्हीं की दोस्त थी! शादी से कुछ महीने पहले पिताजी को कुछ काम से शहर जाना पड़ा था| उन दिनों माँ की तबियत ठीक न होने के कारन नर्स राजी ने माँ की देखभाल की थी| पिताजी को ये बात पता नहीं थी क्योंकि लड़कियों के मामले में पिताजी ने इन पर (मेरे पति पर) हमेशा से लगाम राखी थी| उन्हें ये सब जरा भी पसंद नहीं था और वैसे में मेरे पति इतने सीधे थे की आजतक मेरे आलावा कभी किसी लड़की के चक्कर में पड़े ही नहीं| वैसे ये सब उस समय तो मैं हजम कर गई थी..... क्योंकि मेरी चिंता बस इन्हें घर ले जाने की थी! शाम तक अनिल भी आ गया था और आते ही उसने इनके पाँव छुए और फिर ये दोनों भी बातों में लग गए|
इधर इनकी आवाज सुनने के लिए मैं मरी जा रही थी| बस इनके मुंह से "जानू" ही तो सुन्ना चाहती थी! खेर discharge होने से पहले डॉक्टर इ सभी को हिदायत दी की इन्हें कोई भी mental shock नही दिया जाए| घर में ख़ुशी का माहोल हो और कोई भी टेंशन ना दी जाए| दवाइयों के बारे में मुझे और नेहा को सब कुछ समझा दिया गया था| शाम को सात बजे हम सब घर पहुंचे| घर पहुँच के माँ ने इनकी आरती उतारी और सब ने हाथ जोड़ कर प्रार्थना की| इनका शरीर अब भी कमजोर था तो मैं इन्हें अपने कमरे में ले आई और ये bedpost का सहारा ले कर बैठ गए| सब ने इन्हें घेर लिया और आस पड़ोस के लोग भी मिलने आये| मेरे पास टी चैन से बैठ कर इनके पास बातें करने का जरा भी मौका नहीं था| रात को खाना खाने के बाद सब अपने कमरे में चले गए| मेरे माँ-पिताजी आयुष और नेहा के कमरे में सोये थे और आयुष उन्ही के पास सोने वाला था| सोने में इन्हें कोई तकलीफ ना हो इसलिए नेहा आज माँ-पिताजी (सास-ससुर जी) के पास सोई थी| बड़की अम्मा और जय घर नहीं ठहरे थे वो हमारे किसी रिश्तेदार के यहाँ सोये थे| कारन ये था की दरअसल वो इसी बहाने से यहाँ आये थे की किसी रिश्तेदार से मिलने जा रहे हैं|
सब को अपने कमरे में जाते-जाते रात के दस बज गए थे| जब मैं कमरे में आई और मैंने लाइट जलाई तो देखा ये अभी भी जाग रहे थे| मेरे कुछ कहने से पहले ही ये बोल पड़े; "Sorry !!!" इनका Sorry सुन कर मन में जो सवाल था वो बाहर आ ही गया; "जब से आप को होश आया है तब से कई बार आप दबे होठों से मुझे Sorry बोल रहे हो? आखिर क्यों? गलती....." मेरे आगे कुछ बोलने से पहले ही ये बोल पड़े; "जान....Sorry इसलिए बोल रहा हूँ की उस दिन मैं उस कमीने बदजात की जान नहीं ले पाया! Sorry इसलिए बोल रहा हूँ की तुम्हारी वो दर्द भरी लेखनी पढ़ कर तुम्हारे दर्द को महसूस तो किया पर उस दर्द को कम करने के लिए कुछ नहीं कर पाया! Sorry इसलिए बोल रहा हूँ की इतने दिन तुमसे कोई बात नहीं की और तुम्हें तड़पाता रहा, वो भी ये जानते हुए की तुम माँ बनने वाली हो! Sorry इसलिए ............." उनके आगे बोलने से पहले मैंने उनकी बात काट दी! "पर आप की कोई गलती नहीं थी.... आप तो जी तोड़ कोशिश कर रहे थे की मैं हँसूँ-बोलूं पर एक मैं थी जो आपसे ....आपसे अपना दर्द छुपा रही थी| उनसे जो बिना किसी के बोले उसके दिल के दर्द को भांप जाते हैं..... आपने कुछ भी गलत नहीं किया| सब मेरी गलती है..... ना मैं आपको इस बच्चे के लिए force करती और ना..........” इतना सुन कर ही इन्हें बहुत गुस्सा आया और ये बड़े जोर से मुझ पर चिल्लाये; "For God sake stop blaming yourself for everything!” उनका गुस्सा देख कर तो मैं दहल गई और मुझे डर लगने लगा की कहीं इनकी तबियत फिर ख़राब न हो जाए! तभी नेहा जो की दरवाजे के पास कड़ी थी बोल पड़ी; "मम्मी....फिर से?" बस इतना कह कर वो अपने पापा के पास आई और उनसे लिपट गई और रोने लगी| इन्होने बहुत प्यार से उसे चुप कराया और फिर दोनों बाप-बेटी लेट गए| मैंने दरवाजा बंद किया, बत्ती बुझाई और मैं भी आ कर लेट गई| मैंने भी नेहा की कमर पर हाथ रखा पर कुछ देर बाद उसने मेरा हाथ हटा दिया....दुःख हुआ... पर चुप रही बस एक इत्मीनान था की कम से कम ये घर आ चुके हैं .... एक उम्मीद थी की ये अब जल्द से जल्द ठीक हो जायेंगे! इसी उम्मीद के साथ कब आँखें बंद हुई पता ही नहीं चला!
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