RE: Sex Hindi Kahani एक अनोखा बंधन
मैं सोफे पे बैठा था और आँखें बंद किये हुए उन शब्दों में छुपे दर्द को महसूस कर रहा था| अनदर ही अंदर ये चुभन मेरी जान ले रही थी और उस दिन का हर एक दृश्य मेरे सामने आने लगा| खून उबलने लगा... इस कदर गुस्सा बढ़ गया की मैं बड़े जोश से उठ खड़ा हुआ पर अगले ही पल मुझे एक जोरदार चक्कर आया और मैं जमीन पे गिर गया और उसके आगे मुझे होश नहीं की क्या हुआ|
जैसे ही ये गिरे मैं भागती हुई आई और इन्हें उठाया और माँ को पुकारा; "माँ..माँ..जल्दी आइए!!!" माँ उस समय अंदर के कमरे में थी| पिताजी बाहर किसी काम से गए थे| माँ ने जब इन्हें जमीन पे गिरा हुआ पाया तो वो भी घबरा गईं और मुझसे पूछने लगीं; "बहु...मानु को क्या हुआ बहु?" मैं खुद नहीं जानती थी की इन्हें क्या हुआ है? मैं बहुत ज्यादा घबरा रही थी और इनका गाल थप-थापा रही थी और माँ इनके हाथ घिसने लगी थी| इतने में नेहा भी आ गई; "नेहा जल्दी डॉक्टर सरिता को फ़ोन मिला और जल्दी यहाँ बुला, बोल पापा बेहोश हो गए हैं|" नेहा ने तुरंत फ़ोन मिलाया पर उसके चेहरे को देख के आगा की बात कुछ और है और ये देख मेरे दिल की धड़कनें बेकाबू हो गईं!
"माँ...डॉक्टर सरिता ने कहा की वो इस वक़्त क्लिनिक में नहीं हैं| उन्होंने कहा की हम पापा को हॉस्पिटल ले जाएं|"
मेरे कुछ कहने से पहले ही माँ बोल पड़ीं; " बेटा जल्दी से अपने दादा जी को फ़ोन मिला वो एम्बुलेंस ले के आ जायेंगे|"
नेहा ने ठीक वैसा ही किया और करीब पंद्रह मिनट में एम्बुलेंस आ गई, पिताजी नॉएडा में थे इसलिए अगर हम उनके आने का इन्तेजार करते तो काफी देर हो जाती, इसलिए उन्होंने फ़ोन कर के बताया की हम हॉस्पिटल पहुंचें और साथ ही साथ उन्होंने कुछ पड़ोसियों को भी फ़ोन मिलाया ताकि वो हमारी मदद करें| ..(दरअसल ये एक प्राइवेट एम्बुलेंस थी) सब ने मिलके इन्हें (मेरे पति) स्ट्रेचर पे लिटाया और चूँकि हमारा घर गली में पड़ता है तो हमें एम्बुलेंस तक इन्हें ले जाना पड़ा| मैं, माँ, आयुष और नेहा एम्बुलेंस में बैठ गए| सारे रास्ते मैं रोये जा रही थी और माँ मुझे ढांढस बंधा रही थी यह कह की; "बेटी कुछ नहीं होगा मानु को| तू चिंता मत कर ...सब ठीक हो जायेगा|" अगले बीस मिनट में हम हॉस्पिटल पहुँच गए| डॉक्टर सरिता ने हॉस्पिटल में अपने जानने वाले को पहले ही फ़ोन कर दिया और वो हमें गेट पर ही मिल गईं|सरिता जी ने इनकी केस हिस्ट्री डॉक्टर रूचि को पहले ही बता दी थी इसलिए तुरंत इन्हें admit कर के उपचार शुरू हो गया| करीब-करीब बीस मिनट बाद डॉक्टर सरिता भी आ गईं और वो सीधा प्राइवेट वार्ड में चली गईं जहाँ हम बैठे थे| अगले आधे घंटे में पिताजी भी आ गए और फिर सरिता जी ने माँ- और पिताजी को अपने साथ केबिन में बुलाया और मुझे वहीँ बैठे रहने को कहा| मैं स्टूल ले के इनके पास बैठ गई इस उम्मीद में की ये अब आँखें खोलेंगे ...अब आँखें खोलेंगे! दस मिनट बाद माँ अंदर आईं और मुझसे पूछने लगी; "बेटा...मानु ने दवाई खाई थी?" मेरे पास इस बात का कोई जवाब नहीं था, इसलिए मैं अवाक सी उन्हें देख रही थी और फिर मेरे मुँह से निकला; "पता नहीं माँ..." मेरा जवाब सुन के माँ को ये एहसास तो हो गया होगा की हमारे बीच में कुछ सही नहीं चल रहा था...पर उन्हें ये नहीं पता होगा की ये सब मेरी गलती थी! माँ पलट की जाने लगी तो अचानक से नेहा बोल पड़ी; दादीजी... पापा ने दवाई नहीं ली| मैंने कल रात को उन्हें याद दिलाया था पर उन्होंने कहा की मैं ठीक हूँ|" माँ ने उसके सर पे हाथ फेरा और वापस सरिता जी के केबिन में चली गईं| हैरानी की बात थी की नेहा को मुझसे ज्यादा उनकी फ़िक्र थी...शायद इलिये की ये उसे ज्यादा प्यार करते थे...मुझसे भी ज्यादा!
कुछ देर बाद माँ, पिताजी और सरिता जी कमरे में आये पर अभी तक मुझे इनकी तबियत के बारे में कुछ नहीं बताया गया| सब मुझसे छुपा रहे थे ... आखिर मैंने ही डॉक्टर सरिता से पूछा; "सरिता जी आखिर इन्हें हुआ क्या है?" पर उनके कुछ कहने से पहले ही पिताजी बोल पड़े; "बेटा मानु को थोड़ी देर में होश आ जायेगा, तू चिंता मत कर|" वो मेरे पिता सामान थे इसलिए मैं कुछ नहीं बोली और ये सोच के खुद को संतुष्ट कर लिया की ये पूरी तरह ठीक हो जाएं ...बस यही काफी है मेरे लिए|
चूँकि हमें एक प्राइवेट रूम allot किया गया था तो पिताजी को बाकी formalities पूरी करने के लिए जाना पड़ा| पंद्रह मिनट बाद पिताजी वापस आये और बोले; "बेटा ...मेरा डेबिट कार्ड का बैलेंस खत्म हो गया है और पैसे अब भी कम पड़ रहे हैं| तेरे पास तेरा डेबिट कार्ड है?" जल्दी-जल्दी में मैं अपना पर्स नहीं लाइ थी; "पिताजी वो मेरे पर्स में है.." पिताजी कुछ सोचने लगे और फिर बोले; "ऐसा करते हैं की हम सब वापस चलते हैं और पैसे ले के मैं वापस आ जाऊँगा| तुम दोनों शाम को आ जाना?" पर मेरा मन वहां से हिलने को नहीं कर रहा था इसलिए मैंने कहा; "पिताजी मैं यहीं रूकती हूँ आप बच्चों को और माँ को ले जाइए|" पिताजी कुछ सोचने लगे और आखिर में उन्होंने बच्चों ओ साथ चलने को कहा पर बहोन ने भी जाने से मन कर दिए और हार कर पिताजी को और माँ को जाना पड़ा| माँ भी जाना नहीं चाहती थी पर चूँकि ज्यादा देर बैठने से उनके पाँव में सूजन बढ़ने लगती है तो मेरे कहने पे माँ चली गईं| उन दिनों घर में पैसों को लेके कुछ परेशानी चल रही थी| पिताजी ने हॉस्पिटल में पैसे जमा करा दिए थे पर उन्हें आगे के बारे में भी सोचना था| पैसे जमा कर के पिताजी वापस आये और मुझे बोले; "बेटा...मैंने पैसे जमा करा दिए हैं| तुम्हें तो पता ही है की हमारी पेमेंट अभी फंसीहुई है| मैं अभी कुछ लोगों से मिल के आता हूँ शायद कोई पेमेंट कर दे! तो तुम और बच्चे यहीं रहो..और अगर डॉक्टर कुछ कहे तो मुझे फोन कर देना| मैं शाम तक तुम्हारी माँ के साथ आ जाऊँगा और तब तक मानु को भी होश आ जायेगा|" मैंने हाँ में सर हिलाया और पिताजी बच्चों को कह गए की अपने मम्मी-पापा का ध्यान रखना|
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