RE: Raj sharma stories बात एक रात की
बात एक रात की--69
गतान्क से आगे.................
“क्या हुआ चलाओ गोली…रुक क्यों गये.”
“गोली तो तुम्हे मारूँगा ही मैं.” विजय करूरता से बोला.
मगर अगले ही पल बंदूक उसके हाथ से छ्छूट गयी. रोहित ने वार ही कुछ ऐसा किया था. विजय के हाथ पर ही मुक्का मारा था ज़ोर से रोहित ने.
अगला मुक्का विजय के मूह पे लगा. मुक्का इतनी ज़ोर का था कि विजय के 2 दाँत बाहर आ गये और उसका मूह खून से लथपथ हो गया.
उसके बाद तो वो पिता रोहित ने विजय को कि पूछो मत. बहुत ज़्यादा गुस्से में था रोहित. विजय ने हरकत ही कुछ ऐसी की थी. बहुत प्यार करता था रोहित अपनी बहन को और उसने उसके साथ इतनी गंदी हरकत की थी. रोहित रुका नही एक भी बार.
“मेरी बहन को छुआ तूने कामीने, ये हाथ काट डालूँगा मैं. साइको है तू हां, आज तेरा साइको पना निकालता हूँ.” रोहित ने घूँसो की बोचार शुरू कर दी विजय पर.
विजय को खूब पीट कर रोहित ने अपनी बंदूक उठा ली और विजय के सर पर रख दी.
“मुझे जैल में डाल दो. मैने ग़लती की है. मुझे माफ़ कर दो. क़ानून जो सज़ा देगा मुझे मंजूर होगी.”
“क़ानून नही, सज़ा मैं दूँगा तुझे. तेरे पाप का घड़ा भर चुका है अब. न्याय अभी और इसी वक्त होगा.”
“देखो मैं साइको किल्लर नही हूँ.”
“अच्छा फिर कौन हो तुम, उसके भाई हो या बेटे हो…कौन हो.”
“मैं सच कह रहा हूँ. मैं साइको नही हूँ. हां मैने ग़लत किया तुम्हारी बहन के साथ. मुझे ऐसा नही करना चाहिए था. मुझे जैल में डाल दो…मैं भुगत लूँगा चुपचाप अपनी सज़ा.”
“हर मुजरिम पकड़े जाने पर यही कहता है. तुम तो एस.आइ. हो ये बात तो तुम जानते ही होंगे.”
“हां पर मैं सच बोल रहा हूँ. मैं साइको नही हूँ.” विजय गिड़गिडया.
“मुझे आज कम सुन रहा है. और मेरा दिमाग़ भी खराब हो रखा है. मुझे कुछ समझ नही आ रहा कि तुम क्या कह रहे हो. एनीवे हॅव ए नाइस जर्नी टू दा हेल…गुड बाइ.” रोहित ने कहा और विजय का भेजा उड़ा दिया. उसके खून की छींटे उसके मूह पर भी पड़ी.
रोहित ने तुरंत अपनी जेब से फोन निकाला और एएसपी साहिबा को फोन किया, “मैने गोली मार दी है साइको को मेडम…मेरे घर पर लाश पड़ी है उसकी…नही रोक सका खुद को सॉरी.”
बस इतना कह कर फोन काट दिया रोहित ने.
शालिनी 20 मिनिट में पहुँच गयी रोहित के घर. रोहित गुमशुम चुपचाप बैठा था सोफे पर पिंकी के साथ.
दरवाजा खुला ही रख छोड़ा था रोहित ने. मोहित को भी होश आ गया था. रोहित ने शालिनी को फोन करने के बाद डॉक्टर को फोन करके बुला लिया था. डॉक्टर के इंजेक्षन के बाद मोहित को होश आ गया था.
“कौन था ये…रोहित.” शालिनी ने पूछा. शालिनी खून से लटपथ चेहरे को पहचान नही पाई.
“वही जिस पर हमें शक था मेडम, विजय.”
“तुम्हे ये नही करना चाहिए था. अब मुझे मजबूर हो कर तुम्हारे खिलाफ कुछ आक्षन लेना पड़ेगा.”
“ले लीजिए जो आक्षन लेना है…मगर मैं इसे किसी भी हालत में जिंदा नही छ्चोड़ सकता था…मेरे सामने इसने मेरी बहन के साथ…….” आंशु भर आए रोहित की आँखो में.
“बस भैया….बस.” पिंकी ने रोहित के सर पर हाथ रखा.
“ह्म्म…रोहित, ये गोली तुमने सेल्फ़ डिफेन्स में मारी है, ईज़ दट क्लियर.”
“जैसा आप कहें मेडम, मैने आपको सब सच बता दिया.” रोहित ने शालिनी की आँखो में देख कर कहा.
“ये बात हम दोनो के बीच रहेगी. धिंडोरा मत पीटना कि तुमने साइको को गोली मार दी. समझे.” शालिनी ने कहा.
“समझ गया मेडम, समझ गया.” रोहित ने कहा.
“चलो ये केस आख़िर कार क्लोज़ हो गया, कंग्रॅजुलेशन रोहित, गुड जॉब.”
रोहित ने शालिनी की आँखो में देखा और बोला, “थॅंक योउ मेडम…सब आपकी डाँट का नतीजा है.”
शालिनी हंस पड़ी इस बात पर, “वो तो है, और ये मत सोचना कि आगे डाँट नही पड़ेगी. अभी और भी बहुत केसस पड़े हैं जिन्हे तुम्हे हॅंडल करना है. ईज़ दट क्लियर.” हँसी के बाद शालिनी की बात में थोड़ी कठोरता आ गयी थी.
“बिल्कुल मेडम…सब क्लियर है.”
शालिनी की नज़र मोहित पर पड़ी तो वो बोली, "ये यहाँ क्या कर रहा है?"
"ये अगर वक्त पे ना आता तो मेरे सामने ही मेरी बहन का रेप हो जाता. हां मोहित पर तुम यहाँ आए कैसे " रोहित ने कहा.
"मैं आपको बताना चाहता था कि विजय ही साइको है. मैं विजय की बीवी से मिला था. उसने मुझे बताया कि विजय उस रात घायल अवस्था में घर लोटा था जिस रात मेरी साइको से झड़प हुई थी. विजय के पेट को उसकी बीवी ने घर पर ही शिया. इतना क्लू काफ़ी था मुझे समझने के लिए कि विजय ही साइको है. बस ये बात बताने मैं थाने पहुँचा आपसे मिलने. वहाँ पता चला कि आप घर चले गये हैं. आपके घर का अड्रेस ले कर यहाँ आ गया. जब मैं दरवाजे की बेल बजाने लगा तो मुझे अंदर से किसी के चीखने की आवाज़ आई. मैं समझ गया कि कुछ गड़बड़ है. मैने खिड़की से झाँक कर देखा तो मेरे होश उड़ गये. मैं आपके घर के पीछे गया और पीछे का दरवाजा तौड दिया. वही से अंदर आया मैं. बाकी तो आपको पता ही है."
"ह्म्म्म....आवाज़ तो हुई थी पीछे, पर ये नही सोचा था मैने कि तुम आए हो." रोहित ने कह कर मोहित को गले लगा लिया "तुम वक्त पर ना आते तो अनर्थ हो जाता. मैं खुद को कभी माफ़ नही कर पाता कि मेरे सामने......"
"अपना फ़र्ज़ निभाया मैने और कुछ नही. मैं चलता हूँ अब." मोहित ने कहा.
विजय की डेड बॉडी को वहाँ से हटा लिया गया. सबके जाने के बाद रोहित ने पिंकी से कहा, "कितना कुछ सहना पड़ा तुम्हे मेरे होते हुए. मुझे माफ़ कर दे."
"भैया ऐसा मत बोलो. उसने हालात ही कुछ ऐसे पैदा कर दिए थे. चलो अब मेरा गिफ्ट दो."
रोहित ने गले लगा लिया पिंकी को और बोला, "दुनिया में सबसे ज़्यादा प्यार करता हूँ मैं तुम्हे."
"मुझे पता है भैया, पता है मुझे."
दोनो भाई बहन भावुक हो रहे थे. उनके रिस्ते में और ज़्यादा गहराई आ गयी थी इस वाकये के बाद.
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अगले दिन सुबह से ही हर न्यूज़ चॅनेल पर एक ही ब्रेकिंग न्यूज़ चल रही थी. विजय की तस्वीर दिखाई जा रही थी और बताया जा रहा था कि कैसे एक पोलीस वाला ही साइको निकला. विजय की बीवी का इंटरव्यू दिखाया जा रहा था जो कि मान-ने को तैयार नही थी कि उसका पति साइको था.
राज शर्मा को ये बात रात को ही पता चल गयी थी. मोहित ने फोन करके उसे सब कुछ बता दिया था. वो ये सुनते ही पद्मिनी के घर के दरवाजे की तरफ लपका. रात के 11 बज रहे थे तब. उसने बेल बजाई तो पद्मिनी के डेडी ने दरवाजा खोला.
"मुझे अभी अभी पता चला कि साइको मारा गया, क्या मैं पद्मिनी जी से मिल सकता हूँ."
"मारा गया वो.....बहुत अच्छा हुआ...अब मेरी बेटी शकुन से जी पाएगी."
"क्या मैं मिल सकता हूँ पद्मिनी जी से." राज शर्मा ने कहा.
"वो अभी सोई है गोली ले कर. उसे उठाना ठीक नही होगा."
"चलिए कोई बात नही मैं उनसे कल सुबह मिल लूँगा."
"हां बेटा कल सुबह मिल लेना...."
राज शर्मा तड़प रहा था ये न्यूज़ पद्मिनी को सुनने के लिए. मगर कोई चारा नही था उसके पास. जब वो वापिस जीप में आया तो उसे शालिनी का फोन आया, "राज शर्मा साइको विजय ही था आंड ही ईज़ डेड नाउ."
"हां पता चला मुझे मेडम."
"तुम्हारी वहाँ की ड्यूटी ख़तम होती है. तुम अब घर जा सकते हो. कल सुबह थाने आ जाना. और हां बाकी जो भी हैं तुम्हारे साथ उन सब की भी छुट्टी कर दो और कल सुबह थाने आने को बोल दो."
"जी मेडम."
राज शर्मा ने बाकी सभी को भेज दिया मगर खुद अपनी जीप में वही बैठा रहा. उसे पद्मिनी से एक बार बात जो करनी थी. बैठा रहा बेचैन दिल को लेकर चुपचाप जीप में. अचानक उसे पता नही क्या सूझी पद्मिनी के कमरे की खिड़की को देखते वक्त कि वो उठा और चल दिया उस खिड़की की तरफ.
"ह्म्म चढ़ा जा सकता है उपर." राज शर्मा ने सोचा.
पता नही उसे क्या हो गया था. बिना सोचे समझे चढ़ गया किसी तरह वो दीवार के सहारे और पहुँच गया उस खिड़की तक जिसमे से पद्मिनी झँकति थी. खिड़की के सीसे को खड़काया उसने. पद्मिनी वाकाई सोई हुई थी. मगर खिड़की के उपर हो रही ठप-ठप से उसकी आँख खुल गयी.
"कौन दरवाजा पीट रहा है इस वक्त" पद्मिनी ने आँखे खुलते ही कहा. मगर जल्दी ही वो समझ गयी कि आवाज़ दरवाजे से नही खिड़की से आ रही है. पद्मिनी हैरान रह गयी. वो उठी डरते-डरते और खिड़की का परदा हटाया, "राज शर्मा तुम ..........तुम यहाँ क्या कर रहे हो."
"पद्मिनी जी साइको मारा गया, अब आपको चिंता की कोई ज़रूरत नही है"
पद्मिनी को समझ नही आया कि वो कैसे रिक्ट करे.
"क्या हुआ ख़ुसी नही हुई आपको. मुझे तो बहुत ख़ुसी मिली ये जान कर की अब आपकी जान को कोई ख़तरा नही है."
"राज शर्मा तुम गिर गये तो, ऐसे यहाँ आने की क्या ज़रूरत थी."
"मैने आपके डेडी को बताई ये बात. आपसे मिलने की रिक्वेस्ट भी की मैने. पर उन्होने कहा कि आप गोली ले कर सो रही हैं. रहा नही गया मुझसे और मैं यहाँ आ गया."
"ठीक है, जाओ अब वरना गिर जाओगे."
"आपसे बात करना चाहता हूँ कुछ क्या आप रुक सकती हैं थोड़ी देर."
"पागल हो गये हो क्या, यहाँ खिड़की में टँगे हुए बात करोगे. जाओ अभी बाद में बात करेंगे."
"ठीक है जाता हूँ अभी मगर आप भूल मत जाना मुझे. मेरी यहाँ की ड्यूटी ख़तम होती है. मगर फिर भी मैं सुबह ही जाउन्गा यहाँ से. पूरी रात रोज की तरह आपके घर के बाहर ही गुज़ारुँगा."
"क्यों कर रहे हो ऐसा तुम?"
"फिर से कहूँगा तो आप थप्पड़ मार देंगी."
"नही मारूँगी बोलो तुम."
"प्यार करते हैं आपसे, कोई मज़ाक नही."
"एक बात करना चाहती थी तुमसे मगर अभी नही बाद में. तुम अभी जाओ किसी ने देख लिया तो मेरी बदनामी होगी. क्या तुम्हे अच्छा लगेगा ये."
"नही नही पद्मिनी जी मुझे ये बिल्कुल अच्छा नही लगेगा. मैं जा रहा हूँ. मगर मैं सुबह तक यही रहूँगा."
पद्मिनी हंस पड़ी राज शर्मा की बात पर और बोली, "जैसी तुम्हारी मर्ज़ी"
"बुरा ना माने तो एक बात कहूँ, थप्पड़ मत मारिएगा."
"हां-हां बोलो."
"आपके चेहरे पर हँसी बहुत प्यारी लगती है, आप हमेशा हँसती रहे यही दुवा करता हूँ."
तभी पद्मिनी के रूम का दरवाजा खड़का, "तुम जाओ अब, शायद मम्मी आई हैं. दुबारा मत आना."
"ठीक है, सुबह आपसे मिल कर ही जाउन्गा." राज शर्मा ने कहा.
"अब जाओ भी." पद्मिनी ने दाँत भींच कर कहा.
राज शर्मा झट से नीचे उतर गया. उसके चेहरे पर हल्की हल्की मुस्कान थी. "पद्मिनी जी कितने प्यार से मिली. थप्पड़ भी नही मारा. कितनी बदल गयी हैं वो."
पद्मिनी ने दरवाजा खोला. उसकी मम्मी ही थी. "कैसी तबीयत है"
"ठीक है मम्मी, सर में दर्द है हल्का सा अभी."
"तुम फोन पे बात कर रही थी क्या?"
पद्मिनी सोच में पड़ गयी. झूठ बोला पड़ा उसे, "ओह हां मैं फोन पर थी."
"सो जाओ बेटा, आराम करो... तभी तबीयत जल्दी ठीक होगी" पद्मिनी की मम्मी कह कर चली गयी.
"क्या ज़रूरत थी राज शर्मा को खिड़की में आने की. बेवजह झूठ बोलना पड़ा." पद्मिनी लेट गयी बिस्तर पर वापिस और सो गयी.
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क्रमशः..............................
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