Raj sharma stories बात एक रात की
01-01-2019, 12:28 PM,
#70
RE: Raj sharma stories बात एक रात की
बात एक रात की-- 65

गतान्क से आगे...........

पद्‍मिनी को बिके पर बैठा कर ऐसा लग रहा था जैसे जन्नत मिल गयी मुझे. कुछ ही दूर चले थे की दो गुंडे पीछे पड़ गये हमारे. वो दोनो बाइक्स पर थे. एक हमारे दाईं तरफ था ओर एक बाईं तरफ. गुंडे वैसे मैने ही बुलाए थे पद्‍मिनी को इंप्रेस करने के लिए

वो कामीने अपनी आदत से मजबूर छेड़ने लगे पद्‍मिनी को. जितना मैने कहा था उस से कुछ ज़्यादा ही बोल रहे थे. इस से पहले मैं कुछ कहता पद्‍मिनी बोली, “रोहित बिके रोको इन्हे अभी बताती हूँ मैं. हे मिस्टर रूको ज़रा.”

ये काम तो मुझे करना था पर पद्‍मिनी करने लगी. खेल बिगड़ता दीख रहा था. खैर पद्‍मिनी की बात कैसे टालता मैं. रोक दी बाइक मैने.उन दोनो गुणडो को तो रुकना ही था प्लान के मुताबिक.

पद्‍मिनी ने तो अपनी सैंडल निकाल ली और एक के सर पर दे मारी. मैं क्या कहता. वो गुंडा चिल्लाया गुस्से में और अनाप सनाप बकने लगा. लोग इक्कथा हो गये वहाँ. खूब मारा लोगो ने उन दोनो गुणडो को. मुझे तो कुछ भी करने का मोका नही मिला . सारा प्लान धारसाई हो गया.

छोड़ दिया चुपचाप पद्‍मिनी को घर. थॅंक्स तक नही किया उसने. चली गयी चुपचाप अंदर. कुछ भी वैसा नही हुआ जैसा मैने सोचा था. पद्‍मिनी को पटाना बहुत मुस्किल काम था.

बताया मैने ये वाक़या फ.ज.बडी, जावेद, मनीस और विवेक भाई को. खूब हँसे सब मिल कर पता नही क्यों बताया इन लोगो को मैने. शायद दोस्ती के कारण. पर उन्हे तो हँसने से मतलब था.

खैर अभी कुछ बिगड़ा नही था. रोज सुबह बाइक ले कर मैं गब्बर और पद्‍मिनी के साथ चलता था. अपनी बाइक मैं गब्बर की बाइक से थोड़ा पीछे रखता था जान-बुझ कर ताकि पद्‍मिनी पर लाइन मार सकूँ. पर वो ना लाइन देती थी ना लेती थी. यही उसकी सबसे बेकार बात थी. पता नही अपना हुसन किसके लिए बचा कर रखना चाहती थी. खैर इन बातों के कारण ही मन में इज़्ज़त भी थी मेरे उसके लिए. ऐसी लड़कियाँ कम ही होती हैं दुनिया में.

खैर एक और पासा फेंका मैने. इस बार मैने गुणडो से कहा कि गब्बर को रास्ते में रोक कर खूब पीटना शुरू कर देना. मैं बीच में पड़ कर उसे बचा लूँगा और पद्‍मिनी की आँखो में हीरो बन जाउन्गा.

पर रीमा इस बार भी पासा उल्टा ही पड़ा. वो गुंडे तो क्या पीट-ते गब्बर को. गब्बर ने इतनी रेल बनाई उनकी कि गुंडा पाना भूल गये वो दोनो. माफी माँग कर गये गब्बर से. जाते जाते गब्बर ने उन्हे कहा, “दुबारा मेरे सामने आए तो गोली मार दूँगा.”

गुंडे तो घबरा गये और सर पर पाँव रख कर भागे. मैने निक्कम्मे गुंडे चूस कर लिए थे

ये प्लान तो फैल हो गया अब कुछ नया सोचना था. दुबारा गुणडो का उसे नही कर सकता था. शक हो जाता मुझ पर. पद्‍मिनी बिल्कुल भी नही देखती थी मेरी तरफ. समझ में नही आता था कि क्या करू.

एक दिन मैने पद्‍मिनी को कॉलेज की लाइब्ररी में एक बुक पढ़ते देखा. बुक का टाइटल था ‘पवर ऑफ नाउ’ ईकार्ट टोल ने लिखी थी किताब ये. मैने 1-2 दिन नोट किया की पद्‍मिनी रोज ये किताब पढ़ रही है. फिर क्या था पद्‍मिनी को इंपरेससे करने के लिए एक कॉपी मैने भी इश्यू करवा ली. पूरी रात उल्लू की तरह जाग कर पढ़ता रहा किताब. सर के उपर से निकल गया सब कुछ. अगले दिन मैं कॉलेज नही गया. सारा दिन लगा कर पूरी किताब ख़तम कर दी मैने. कुछ कुछ समझ में आने लगा मेरे. अब मैं पद्‍मिनी से डिस्कशन के लिए तैयार था

अगले दिन गब्बर और पद्‍मिनी के साथ कॉलेज जाते वक्त मैं बोला, “यार क्या किताब लिखी है एकखर टोल ने. पवर ऑफ नाउ पढ़ी है क्या तुमने गब्बर भाई.”

गब्बर इरिटेट सा हो गया, “मैं वक्त बेकार नही करता अपना बेकार की बातों में.”

“नही भैया पवर ऑफ नाउ बहुत अच्छी किताब है. सभी को पढ़नी चाहिए.” पद्‍मिनी ने कहा.

बस ऐसा ही मोका तो चाहिए था मुझे, “मैं कल कॉलेज भी नही आया क्योंकि वो किताब पूरी पढ़नी थी मुझे. मैने पूरी पढ़ ली वो एक दिन में”

“बहुत बेकार रीडर हो तुम. एकखार्त टोल ने खुद कहा है की आराम से पढ़ो हर एक पॅरग्रॅफ और तुमने एक दिन में पूरी किताब पढ़ ली. तुम्हारे तो सर के उपर से निकल गयी होगी वो.”

मैं चारो खाने चित्त. समझ में नही आया कि क्या बोलूं. खैर किताब मैने पढ़ी बहुत ध्यान से थी. कुछ बाते याद थी उसकी मैं बोला, “आज में, इस पल में जीने के लिए बोला है लेखक ने. सिंपल सी बात है. पास्ट और फ्यूचर को भुला कर आज में जीना चाहिए इंसान को. किताब सर के उपर से ज़रूर निकल गयी मगर लेखक की बात दिल की गहराई से समझ गया मैं.”

पद्‍मिनी तो देखती ही रह गयी मुझे. पहली बार देखा उसने मुझे. उसके चेहरे पर आश्चर्या के भाव थे. मैं तो खो ही गया उन म्रिग्नय्नि सी आँखो में. मेरा ध्यान ही नही रहा सड़क पर. बस देखता रहा उसे. वैसे बस कुछ सेकेंड की ही बात थी ये. पर ध्यान भटकने से मैं एक कार से टकरा गया. बहुत बुरी तरह गिरा सड़क पर. हाथ पाँव चिल गये मेरे. सर से भी खून बहने लगा. पर मुझे कोई परवाह नही थी. मैं बस पद्‍मिनी को देखता रहा फिर भी. वो आई गब्बर के साथ मुझे उठाने. “कहाँ देख रहे थे. ध्यान सड़क पर रखा करो.” पद्‍मिनी ने कहा.

“आपको पता तो है कहा देख रहा था. कैसे ध्यान जाएगा सड़क पर.”

गब्बर तो सर खुजाने लगा अपना . उसे कुछ समझ नही आया. ये बात तो सिर्फ़ मैं और पद्‍मिनी जानते थे कि मैं कहा देख रहा था. उसकी म्रिग्नय्नि आँखो में ही तो डूब गया था.

मरहम पट्टी करवाई एक क्लिनिक जा कर. गब्बर और पद्‍मिनी भी साथ ही थे. पद्‍मिनी के चेहरे पर मेरे लिए चिंता नज़र आ रही थी. मैं मन ही मन खुस हो रहा था.

“तुम घर जाओ रोहित अब. छुट्टी ले लो 4-5 दिन की.” गब्बर ने कहा.

“नही-नही मैं छुट्टी नही लूँगा. बहुत नाज़ुक वक्त है ये.”

“नाज़ुक वक्त…कैसा नाज़ुक वक्त.” पद्‍मिनी ने हैरानी में पूछा.

“मैं पवर ऑफ नाउ पढ़ कर हटा हूँ. सभी को कॉलेज में उसके बारे में बताउन्गा.”

“मेरे से बात मत करना उसके बारे में. मैं सिर्फ़ गन की पवर पर विस्वास रखता हूँ.” गब्बर ने कहा.

कुछ अजीब नही लगा ये सुन के मुझे. गब्बर का दिमाग़ सच में सरका हुआ था. खैर गया मैं कॉलेज किसी तरह. कॉलेज पहुँच कर मैने पद्‍मिनी से कहा, “पद्‍मिनी पवर ऑफ नाउ के बारे में कुछ बात करें.”

“हां-हां बिल्कुल. मुझे वो किताब बहुत अच्छी लगी.” पद्‍मिनी ने कहा.

“तुम लोग पवर ऑफ नाउ की बाते करो…मेरे पास फालतू वक्त नही है. मैं गिल्ली डंडा खेलने जा रहा हूँ.” गब्बर ने कहा

“गिल्ली डंडा इस उमर में. कुछ और खेलो भाई.” मैं तो हैरान ही रह गया.

“ज़्यादा मत बोलो गोली मार दूँगा तुम्हे.” गब्बर चिल्लाया

मैं किसी बहस में नही पड़ना चाहता था. वैसे भी मेरे लिए तो ये अच्छा ही था. गब्बर गिल्ली डंडा खेले और मैं पद्‍मिनी पर लाइन मारु इस से अच्छा और क्या हो सकता था

गब्बर के जाने के बाद हम दोनो कॅंटीन में आ गये. मेरे दोस्त लोगो के शीने पर तो साँप लेट गया पद्‍मिनी को मेरे साथ देख कर . फ.ज.बडी, जावेद, मनीस और विवेक भाई दूर खड़े जल रहे थे मुझसे. खैर मुझे क्या था. मुझे बेट भी जीतनी थी और पद्‍मिनी का दिल भी जितना था

पवर ऑफ नाउ के बारे में खूब बाते की हमने.पद्‍मिनी इंप्रेस्ड नज़र आ रही थी.

“तुमने इतनी जल्दी पढ़ कर ये सब समझ भी लिया. इट्स अमेज़िंग.”

“मैं जब पढ़ता हूँ तो ऐसे ही पढ़ता हूँ. बिल्कुल रवि भाई की तरह.”

“ह्म्म, अच्छी बुक है. मैने आधी पढ़ी है अभी.” पद्‍मिनी ने कहा.

इस तरह बातो का शील्षिला शुरू हुआ. पद्‍मिनी और मैं अच्छे दोस्त बन गये. मैं पद्‍मिनी को इंप्रेस करने के लिए पहले से किताब के बारे में कोई अच्छी बात सोच कर रखता था. और वो बड़े प्यार से सुनती थी मेरी बातो को. अब उसकी नज़रे मुझे ढूँढ-ती रहती थी कॉलेज में पता नही क्यों . जब मैं उसके सामने आता था तो चेहरा खील उठ-ता था उसका. बड़े प्यार से देखती थी और बड़े प्यार से हल्का मुस्कुराती थी. बहुत प्यारा अहसास होता था वो मेरे लिए. प्यार हो गया था मुझे उस से. सच्चा प्यार. पर कहने की हिम्मत नही होती थी.

पहले मेरा प्लान उसे प्यार के झाँसे में फँसा कर किसी तरह बिस्तर तक ले जाने का था. मगर उसके चेहरे की मासूमियत और आँखो की सच्चाई देख कर कभी मन नही हुआ उसके बारे में ऐसा सोचने का. शायद प्यार नज़रिया बदल देता है इंसान का. ऐसा ही कुछ हुआ मेरे साथ भी. एक अनकहा सा प्यार हो गया था हमें. ना मैं कुछ बोलता था और ना ही पद्‍मिनी कुछ बोलती थी.

‘पवर ऑफ नाउ’ पढ़ ली थी पद्‍मिनी ने. पर हम रोज डिस्कशन करते रहते थे. उस से बाते करते करते मैं उस किताब की गहराई को समझ पाया. मैने दुबारा इश्यू करवाई किताब और इस बार सच्चे मन से पढ़ी. एक हफ़्ता लगाया इस बार मैने ‘पवर ऑफ नाउ’ पर.

और फिर जो बाते हुई हमारे बीच पूछो मत. घंटो बैठे रहते थे हम साथ और खो जाते थे. ऐसा लगता था मुझे कि प्यार करने लगी है पद्‍मिनी मुझे. बड़े प्यार से देखती थी वो मुझे बीच बीच में बाते करते हुए. यही लगता था मुझे जैसे की कह रही हो ‘आइ लव यू रोहित’.

मैं कहना चाहता था अब उसे अपने दिल की बात. पर कैसे कहु समझ नही पा रहा था. उसका रिक्षन क्या होगा यही सोच कर परेशान था. आँखो में दीखता था उसकी प्यार मुझे. लगता था प्यार करती है मुझे. पर ये मैं यकीन से नही कह सकता था.

एक दिन कॅंटीन में चाय पीते वक्त मैने कहा, “पद्‍मिनी कुछ कहना चाहता हूँ तुमसे. समझ नही आ रहा कि कैसे कहूँ.”

पद्‍मिनी के चेहरे पर मुस्कान बिखर गयी. ऐसा लगा मुझे जैसे की वो समझ गयी कि मैं क्या कहना चाहता हूँ. मेरी आँखो में झाँक कर बोली, “बोल दो जो बोलना है. मैं सुन रही हूँ.”

मैने देखा बहुत प्यार से उसकी तरफ पर कुछ बोल नही पाया. पता नही क्या हो गया मुझे.

“बोलो ना रोहित. क्या बात है. वैसे तो बहुत बोलते हो तुम.” पद्‍मिनी ने मुस्कुराते हुए कहा.

मैं अब बोलने ही वाला था कि गब्बर आ गया वहाँ, “चलो पद्‍मिनी चलते हैं.”

बहुत गुस्सा आया मुझे गब्बर पर, पर मैने कुछ नही कहा

शूकर है पद्‍मिनी नही उठी वहाँ से. उसने गब्बर से कहा, “भैया आ रही हूँ अभी, बस थोड़ी देर रूको.”

दिल को राहत मिली मेरे. पर गब्बर नही माना. आ गया वही और बैठ गया एक चेर ले कर हमारे पास. इतना गुस्सा आया की पूछो मत. पर क्या कर सकता था मैं. पद्‍मिनी के चेहरे पर भी गुस्सा दिखा मुझे गब्बर की इस हरकत पर. वो उठ खड़ी हुई और बोली, “चलो भैया. रोहित बाद में बताना ये बात ओके.”

“कौन सी बात बता रहा था ये. मुझे भी बता दो” गब्बर ने कहा.

“चलो भी अब. अभी तो तूफान मचा रहे थे. बाइ रोहित कल मिलते हैं.”

दुखी मन से बाइ की मैने पद्‍मिनी को. कामीने गब्बर ने सारा खेल बिगाड़ दिया. बड़ी मुस्किल से तो दिल की बात होंठो तक आई थी. कमीना कहीं का .

क्रमशः.............
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