Raj sharma stories बात एक रात की
01-01-2019, 12:22 PM,
#58
RE: Raj sharma stories बात एक रात की
बात एक रात की-- 53

गतान्क से आगे...........

रात के कोई 2 बजे आँख खुल गयी बेचारी पद्‍मिनी की. स्वीट ड्रीम्स की जगह वेट ड्रीम्स हो गया था. इस बार फिर कारण राज शर्मा ही था. सपने में पद्‍मिनी ने देखा कि राज शर्मा उसके उभारो को चूम रहा है और उसने राज शर्मा के सर को थाम रखा है. वो राज शर्मा को बार बार कह रही थी 'आइ लव यू....आइ लव यू'

"उफ्फ फिर से वही भयानक सपना. पर ये सच नही होगा. रात के 2 बजे हैं. सुबह के सपने ही सच होते हैं. पर पहले वाला सपना सुबह आया था. नही नही राज शर्मा के साथ ये सब च्ीी....कभी नही. पता नही ये राज शर्मा मेरे पीछे क्यों पड़ गया है. मैं उसके इरादे कभी कामयाब नही होने दूँगी.

राज शर्मा पद्‍मिनी को घर छोड़ कर सीधा घर पहुँचा था. घर पहुँचते ही उसे नगमा का फोन आया. "पोलीस वाला बनके तू तो भूल ही गया मुझे."

"नही नगमा तुझे कैसे भूल सकता हूँ. बताओ क्या बात है."

"बापू गये फिर से किसी काम से बाहर आ रही हूँ मैं तेरे पास."

"नही नगमा सुन." पर नगमा फोन काट चुकी थी.

राज शर्मा तो पद्‍मिनी जी के ख़यालो में खोया था. वो परेशान हो रहा था कि पता नही क्यों पद्‍मिनी जी उस से ऐसा बर्ताव करती हैं जबकि उसकी इंटेन्षन तो हमेशा उनकी मदद करने की रहती है. बार-बार पद्‍मिनी जी का चेहरा उसकी आँखो में घूम जाता है. वो कुछ हैरान सा है कि ऐसा क्यों हो रहा है. लेकिन पद्‍मिनी जी के रूप का जादू कुछ अजीब सा असर कर रहा था राज शर्मा के दिलो दीमाग पर. हालाँकि अपना राज शर्मा इन बातों से बिल्कुल बेख़बर था.

नगमा ने दरवाजा खड़काया तो राज शर्मा परेशान हो गया. दरअसल पता नही क्यों वो अकेला रहना चाहता था. खूबसूरत ख़यालो में जो खोया था.

"खोलता हूँ बाबा."

दरवाजा खुलते ही नगमा राज शर्मा से लिपट गयी.

"बहुत दिन हो गये तुमसे मिले राज शर्मा. तुमसे मिलने आई हूँ मैं आज."

"ग़लत वक्त पर आई है तू. थोड़ा परेशान सा था मैं."

"क्या हुआ मेरे राज शर्मा को?"

"कुछ नही बस यू ही."

"अभी इलाज़ करती हूँ मैं तेरा. चल बिस्तर पर."

"नही नगमा आज कुछ मूड नही है."

"बहुत दिन हो गये तू मुझसे एक बार भी नही मिला और आज मूड नही है तेरा. कोई बहाना नही चलेगा तेरा. और हां मुझे कुछ नही चाहिए तुझसे. कुछ देना ही चाहती हूँ तुझे."

"क्या देना चाहती हो नगमा?"

"चलो तो सही बिस्तर पे बताती हूँ."

नगमा राज शर्मा को पीछे धक्का देते हुए बिस्तर के नज़दीक ले आती है और फिर उसे धक्का दे कर बिस्तर पर गिरा देती है. वो राज शर्मा की टाँगो के बीच बैठ जाती है और उसकी ज़िप खोलने लगती है.

"क्या कर रही है. मेरा सच में मूड नही है."

"रुक तो सही देखता जा मैं क्या करती हूँ."

नगमा राज शर्मा का लंड निकाल लेती है बाहर. "ये तो शोया पड़ा है. पहले तो मेरा हाथ लगते ही उठ जाता था. चलो कोई बात नही अभी जाग जाएगा ये."

नगमा शोए हुए, मुरझाए हुए लंड को मूह में ले लेती है और चूसने लगती है.

"तू तो कभी नही लेती थी मूह में. आज क्या हो गया."

"वो कमीना भोलू काई बार चुस्वा चुका है मुझसे. जब उसका चूस लिया तो क्या मेरे राज शर्मा का नही चुसुन्गि क्या?"

"ग़लत टाइम पे आई तू ये करने आज थोड़ा व्यथित हूँ मैं."

नगमा राज शर्मा के लंड को मूह से निकाल कर उसके उपर लेट जाती है और उसकी आँखो में झाँक कर पूछती है, "क्या हुआ मेरे राज शर्मा को. बताओ मुझे."

"कुछ नही तू नही समझेगी."

"समझूंगी क्यों नही तू बता तो."

"आज पद्‍मिनी जी से मिला था. पता नही क्यों. वो मुझसे सीधे मूह बात ही नही करती." राज शर्मा पूरी बात बताता है नगमा को.

"बस इतनी सी बात है. अरे वो डरती होगी कि कही तुम किसी दिन झुका कर उसे उसकी गान्ड ना मार लो. सब बता रखा है मैने उसे की कैसे झुका कर लेते हो तुम...हा...हा...हा...हे...हे."

"क्या! कैसी कैसी बाते बता रखी हैं तूने मेरे बारे में पद्‍मिनी जी को. तभी कहु वो इतना दूर क्यों भागती है मुझसे."

"छोड़ ना उसे तू. क्यों बेकार में परेशान हो रहा है उसके लिए. मैं तेरे लिए कुछ अलग करने आई थी और तू ये रोना लेकर बैठ गया. चल मुख मैथुन का आनंद ले." नगमा वापिस आ कर राज शर्मा के लंड पर झुक गयी और उसे मूह में लेकर चूसने लगी.

"और क्या बता रखा है मेरे बारे में तूने?"

नगमा राज शर्मा का लंड मूह से निकालती है और कहती है, "तेरे लंड का साइज़, तेरे प्यार करने का तरीका सब बता रखा है. ये भी बता रखा है कि कैसे गान्ड पकड़ कर तुम चूत में लंड घुसाते हो. और ये भी बता रखा है कि तुम चुचियों को बहुत अच्छे से चूस्ते हो. तुम्हारे बारे में बातो बातो में सब बता रखा है."

"मतलब कि बहुत अच्छे तरीके से मिट्टी पलीट कर रखी है तूने मेरी. तुझे शरम नही आई उनसे ये बाते करते हुए. वो तो ये बाते सुनती ही नही होंगी. तूने ज़बरदस्ती सुनाई होंगी."

"मुझे बोलने की आदत है. बोल दिया सब बातो बातो में. क्यों परेशान हो रहे हो."

"परेशान होने की बात ही है. मेरी छवि खराब हो रखी है उनकी नज़रो में.. सीधे मूह बात भी नही करती वो मुझसे. आज बहुत दुख हुआ मुझे तू नही समझेगी."

"मैं सब समझ गयी. तेरा मन मुझसे भर गया है और अब तू पद्‍मिनी जी की लेना चाहता है. हां मानती हूँ बहुत सुंदर है वो लेकिन जैसा मज़ा मैं देती हूँ तुझे वो सात जनम भी नही दे सकती."

"नगमा! चुप रहो." राज शर्मा चिल्लाता है. "कुछ भी बोल देती हो. मैं बहुत इज़्ज़त करता हूँ उनकी. ऐसा कुछ नही है जो तू समझ रही है."

"बस अब यही कमी रह गयी थी. अब पद्‍मिनी के लिए मुझे डाँट भी पड़ रही है. ऐसा क्या जादू कर दिया है उसने तुझ पर. सच सच बता तू कही प्यार तो नही करने लगा पद्‍मिनी जी को."

"प्यार नाम के शब्द से भी कोसो दूर रहता हूँ मैं तू ये अच्छे से जानती है. मैने पद्‍मिनी जैसी लड़की नही देखी दुनिया में कही. मैं उनकी बहुत इज़्ज़त करता हूँ बस."

"राज शर्मा मैने कभी प्यार नही पाया किसी का. कोई मिला ही नही जो मुझे प्यार करे. सब मेरे शरीर के पीछे थे. मैने भी कोशिस नही की प्यार पाने की. पर प्यार के अहसास को समझती हूँ मैं. हिन्दी फ़िल्मो में खूब देखा है प्यार का जलवा मैने. तुम्हारी बातो से यही लगता है कि तुम पद्‍मिनी को चाहने लगे हो. वरना तुम भला क्यों परवाह करोगे कि वो तुम्हारे बारे में क्या सोचती है. जिस तरह से तुम बाते कर रहे हो, कोई भी बता सकता है कि तुम पद्‍मिनी के प्रेम-जाल में फँस चुके हो. मेरा अब यहाँ कोई काम नही है. मैं चलती हूँ. अपना ख्याल रखना."

नगमा उठ कर चल देती है.

राज शर्मा अपने लिंग को वापिस पंत में डालता है और उठ कर नगमा का हाथ पकड़ लेता है.

"तू तो नाराज़ हो गयी. बहुत बड़ी बड़ी बाते कर रही है पगली कही की. चल आ बैठ तो सही."

"नही राज शर्मा, तुम्हारी आँखो में अब पद्‍मिनी का चेहरा दीख रहा है मुझे. तुम खुद सोच कर देखो. क्यों करते हो इतनी परवाह और चिंता पद्‍मिनी की तुम."

"शायद इंसानियत के नाते."

"आज क्यों गये थे पद्‍मिनी के ऑफीस तुम."

"मुझे उनकी चिंता हो रही थी. मुझे डर था की कही साइको उन्हे नुकसान ना पहुँचा दे."

"पूरे पोलीस महकमे में तुम्हे ही ये ख़याल आया. क्या कोई और नही है पोलीस में जिसे पद्‍मिनी की चिंता हो."

"कैसी बाते करती है. मुझे उनका ख़याल आया और मैं चला गया. हर कोई पद्‍मिनी जी की चिंता क्यों करेगा."

"वही तो मैं कहना चाहती हूँ. दिल में बस चुकी है पद्‍मिनी तुम्हारे. अपने आप को धोका मत दो."

राज शर्मा का सर घूमने लगता है और वो वापिस बिस्तर पर आकर सर पकड़ कर बैठ जाता है. नगमा राज शर्मा के पास आती है और उसके सर पर हाथ रखती है.

"क्या हुआ राज शर्मा?"

"सर घूम रहा है मेरा. कुछ समझ में नही आ रहा कि क्या कह रही हो तुम."

"मुझे जो लगा मैने बोल दिया. मैं ग़लत भी हो सकती हूँ. असली बात तो तुम ही जानते हो."

"मुझे कुछ नही पता नगमा, सच में कुछ नही पता."

"क्या मैं यही रुक जाऊ तेरे पास. मुझे तेरी चिंता हो रही है. परेशान नही कारूगी बिल्कुल भी. आओ तुम्हारे सर की मालिस किए देती हूँ. अभी ठीक हो जाएगा."

"नगमा बुरा मत मान-ना. तुम्हारी बातो ने मुझे झकझोर दिया है. मैं अकेला रहना चाहता हूँ."

"मुबारक हो. मैं बिल्कुल सही थी. तुम्हे सच में प्यार हो गया है. प्यार में डूबे आशिक अक्सर ऐसी बाते बोलते हैं. ठीक है अपना ख़याल रखना. कोई भी बात हो मुझे फोन कर देना मैं तुरंत आ जाउन्गि."

"मैं तुम्हे छोड़ आउ."

"नही मैं चली जवँगी. अभी तो 9 ही बजे हैं."

नगमा चली गयी और राज शर्मा किन्ही गहरे ख़यालो में खो गया. कब उसने बाहों में तकिया दबोच लिया उसे पता ही नही चला. "पद्‍मिनी जी ठीक से कुछ कह नही सकता. पर हां शायद आपसे प्यार हो गया है. भगवान भली करें अब मेरी. फिर से कही मैं बर्बाद ना हो जाऊ प्यार में."

राज शर्मा को तो नींद ही नही आई सारी रात. ताकिया बाहों में दबाए कभी इस करवे कभी उस करवट. "राज शर्मा सो जा आराम से कुछ मिलने वाला नही है प्यार में. पहले जब ये आया था जिंदगी में तो बहुत गहरी चोट दे गया था. अब क्या सितम ढाएगा पता नही. पद्‍मिनी जी तुझे पसंद नही करती हैं समझ ले. तू उनके लायक भी नही है. ऐसे में क्यों सर दर्द मोल लेते हो. जिंदगी जैसी चल रही है चलने दो. कोई ख़तरनाक एक्सपेरिमेंट करने की ज़रूरत नही है, जान पर बन सकती है. सो जाओ कल को ड्यूटी पर भी जाना है. रात के 2 बज गये हैं....उफ्फ."

राज शर्मा ये सब सोच रहा था और उसी वक्त पद्‍मिनी फिर से एक वेट ड्रीम के कारण उठ बैठी थी अपने बिस्तर पर. सपने में राज शर्मा उसके उभारो का रस पान कर रहा था और वो उसका सर पकड़ कर आइ लव यू कह रही थी.

पद्‍मिनी दिल पर हाथ रख कर बैठी थी. उसकी हालत देखने वाली थी. "क्या हो रहा है मेरे साथ ये. क्यों आ रहे हैं ये गंदे और भयानक सपने मुझे. राज शर्मा को तो मैं कभी माफ़ नही कारूगी. बदतमीज़ कही का. उसे कोई हक़ नही है मुझे छूने का चाहे वो हक़ीकत हो या सपना."" पद्‍मिनी ने कहा.

पद्‍मिनी उठी और पानी पिया. पानी पी कर वो खिड़की पर आ गयी. उसने बाहर झाँक कर देखा. बहुत भयानक सन्नाटा था बाहर. एक ही कॉन्स्टेबल नज़र आ रहा था उसे अपने घर के बाहर. "एक ही खड़ा है ये तो. बाकी के तीन कही दिखाई नही दे रहे. पता नही कैसी शूरक्षा है ये."

पद्‍मिनी वापिस आ कर लेट गयी. लेकिन दुबारा उसे नींद नही आई.

..............................

..................................

रात बीत गयी और सुबह ने दस्तक दी. राज शर्मा तो एक पल भी नही शोया था. वो नहा धो कर वर्दी पहन कर मोहित के घर की तरफ निकल पड़ा. दिल जब बहुत बेचैन हो किसी बात को लेकर तो अक्सर एक अच्छे दोस्त की याद आती है जिसके साथ अपना गम बाँटने की इच्छा रहती है.

"राज शर्मा तू...सुबह सुबह आज कैसे याद आ गयी मेरी." मोहित ने पूछा.

"पहले ये बता कल क्या तमासा लगा रखा था जंगल में. शूकर मनाओ की मैं साथ था ए एस पी साहिबा के वरना तुम जैल मे पड़े होते अभी. कौन थी वो लड़की और उसे जंगल में क्यों ले गये थे तुम."

"पूछ मत यार. आ बैठ. वर्दी बहुत जच रही है तुझ पे."

राज शर्मा कुर्सी पर बैठ जाता है और मोहित अपने बिस्तर पर.

"हां बताओ अब गुरु क्या मामला था."

"कल पूजा के कॉलेज गया था. अब यार कुछ तो करना होगा ना पूजा को पटाने के लिए. पूजा के साथ दो लड़किया थी. उनमे से एक कविता थी. उसने सारा मामला बिगाड़ दिया मेरा." मोहित पूरी बात डीटेल में बताता है.

"बस मैं उस कविता को मज़ा चखाने के लिए उसकी गान्ड में डाल रहा था. बस फिर तुम लोग आ गये. बहुत अच्छी फ़ज़ीहत हुई मेरी. कही मूह दिखाने लायक नही रहा."

"शूकर मना उस कविता ने बोल दिया कि तुम रेप नही कर रहे थे वरना ए एस पी साहिबा जैल में डाल देती तुम्हे."

"ये तो है...बाल-बाल बचा हूँ मैं. शुक्रिया तेरा दोस्त. अच्छा ये बता कैसा चल रहा है. कल से मैं भी जा रहा हूँ जॉब पर."

"कौन सी जॉब?" राज शर्मा ने पूछा.

"एक प्राइवेट डीटेक्टिव एजेन्सी जाय्न कर ली है मैने. कल से मैं भी बिज़ी रहूँगा."

"बहुत अच्छी बात है ये तो गुरु. मैं पोलीस तुम डीटेक्टिव."

"और बताओ क्या चल रहा है." मोहित ने कहा

"पूछ मत गुरु, एक अजीब मुसीबत में पड़ गया हूँ मैं. कल सारी रात सो भी नही पाया."

"ऐसा क्या हो गया राज शर्मा." मोहित ने पूछा

"लगता है फिर से प्यार हो गया है मुझे."

"क्या बात कर रहा है, कौन है वो बदनसीब?"

"मज़ाक मत करो गुरु. ये मज़ाक की बात नही है." राज शर्मा के चेहरे पर गंभीर भाव थे.

"तूने भी तो मुझे यही कहा था जब मैं हॉस्पिटल में था. कुछ याद आया. अच्छा चल छोड़. बताओ कौन है वो हसीना जो तेरा दिल ले उड़ी."

"पद्‍मिनी जी...पर किसी को बताना मत." राज शर्मा ने कहा.

"क्या! तुझे पद्‍मिनी से प्यार हो गया...... क्यों अपनी जान जोखिम में डाल रहा है."

"मैं पहले ही परेशान हू गुरु अब और परेशान मत करो."

"तूने कुछ कहा अभी तक उसे?"

"पागल हो क्या, ज़ुबान खींच लेंगी वो मेरी. कुछ कहूँगा नही कभी. बस अपने दिल तक ही शिमित रखूँगा इस प्यार को मैं."

"फिर तो परेशानी की कोई बात ही नही है, क्यों परेशान हो फिर."

"कल रात नींद नही आई भाई इस चक्कर में. बताओ मैं क्या करू."

"ऐसा है तो बोल दो जाके अपने दिल का हाल पद्‍मिनी को. दिक्कत क्या है."

"नही गुरु उन्हे कुछ नही कह पाउन्गा. मैं तो बस तुम्हे बता रहा था. मेरा कोई इरादा नही है कि लव के पछदे में पडू फिर से."

क्रमशः.........................
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