RE: Kamukta Story पड़ोसन का प्यार
"नेहा रानी, मैं क्या कहूँ, तू तो अप्सरा है है, लगता है कि फिर से रंभा या उर्वशी उतर आई है जमी पर पर इस बार किसी ऋषि को फँसाने को नही, बल्कि मुझे फँसाने को. तू बेजोड़ है बेटि, रूप के साथ साथ शोभा की कामुकता भी है तुझमे. मुझे नही लगा था कि मेरे जैसी अधेड़ा उमर हो चली औरत तुझे इतनी पसंद आएगी. तुम्हारा तो रूप ऐसा है कि कोई भी मर मिटेगा. तेरी जवान गर्ल फ्रेंड्स भी होंगी ना? और लड़के, वो तो मरते होंगे तुझपर, पीछे लगते होंगे?"
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नही मौसी, कॉलेज के लड़कों को अब मालूम हो गया है कि मेरे यहाँ उनकी दाल नही गलने वाली. बेचारे अब दूर ही रहते है. असल मे मेरा ज़रा भी इंटेरेस्ट नही है मर्दों मे. एक गर्ल फ्रेंड है मेरी, उसीके यहाँ तो गयी थी पिछले हफ्ते. बहुत प्यारी है. पर सच बताऊं मौसी, मुझे असल मे उमर मे बड़ी औरते ही अच्छि लगती है. तभी तो स्कूल मे थी तभी से मम्मी पर
नज़र थी मेरी. मैं कितना खुश हुई जब डॅडी ने शादी कर ली मम्मी से. मम्मी से चोरी छिपे ट्यूशन के बहाने मिलने की चिक चिक ही ख़तम हो गयी.
मम्मी के बाद तुम हो जो मुझे इतनी अच्छि लगी हो. मैने तो तभी मम्मी को कहा दिया था जब हम तुम्हारे पड़ोस वाले फ्लॅट मे रहने आए थे." कुछ देर के बाद नेहा उठ बैठी और प्राची को भी हाथ पकड़कर बिस्तर से उठा दिया. "चलो मौसी, आगे का खेल शुरू करना है. तुम यहाँ बैठो, इस कुर्सी मे"
प्राची को कुर्सी मे बिठा कर वह खुद उसके आगे जमी पर बैठ गयी. उसकी टांगे फैलाते हुए नेहा ने कहा "अब मौसी, तुम्हे सिर्फ़ इतना काम करना है कि यहाँ आराम से बैठो और मुझे अपना काम करने दो. मैं मन भर के अब तेरा रस चखना चाहती हूँ. तेरे इस खजाने को ठीक से देखा भी नही है मैने" और वह अपने काम मे जुट गयी. दस मिनिट मे ही वह उठ बैठी. प्राची इतनी गरम गयी थी कि नेहा का सर अपनी जांघों मे जकाड़कर उस युवती का मूह अपनी बुर पर दबा कर अपनी टांगे फेक रही थी. नेहा ने एक दो बार उसके हाथ अपने सिर से हटाए और उसकी जांघे फिर से खोली पर प्राची फिर से उसका सिर पकड़ लेती थी. नेहा को उठाते देख कर वह सिसक कर बोली "क्यों उठ गयी नेहा? मत उठ ना बेटि, प्लीज़, ऐसे बीच मे मत छोड़ मुझे, मुझसे रहा नही जाता मेरी रानी बिटिया"
नेहा अपनी और प्राची की उतारी हुई ब्रा लेकर वापस आई. प्राची की टांगे उठाकर उसने कुर्सी के हत्थे पर रखी और फिर उसके हाथ उसकी टाँगों के साथ बाँध दिए. प्राची घबराकर बोली "ये क्या कर रही है नेहा? छोड़ मुझे. तेरे बदन को मैं हाथ नही लगा पाऊँगी तो पागल हो जाऊंगी." वह अब पूरी असहाय हो गयी थी, उसकी चूत एकदम खुली थी.
नेहा ने प्राची का प्यार से चुंबन लिया और फिर उसकी टाँगों के बीच बैठ गयी. "घबराओ मत मौसी, मैं कोई तुझे टारचर वार्चर नही करने वाली. देखो अब मैं तुझे सुख की किस ऊँचाई तक ले जाती हूँ. असल मे जब मैं इस तरह किसी अपने की प्यारी चूत का भोग लगा रही होती हूँ तो मुझे रोक टोक ज़रा भी नही अच्छि लगती. इसलिए तुम्हारे हाथ बाँध दिए. मम्मी के साथ भी पहले ऐसा ही करना पड़ता था. अब वह सीख गयी है, चुपचाप बैठी रहती है और मुझे अपनी मनमानी करने देती है. मुझे जैसा मन मे आए वैसा करना चाहती हूँ तेरे साथ. इसलिए अब चुप बैठो और मज़ा लो" ........
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