RE: Kamukta Story पड़ोसन का प्यार
नेहा ने जल्दी जल्दी प्राची के कपड़े निकाले और उसे नंगा करके उसे धकेलते हुए बिस्तर तक ले गयी. प्राची को उसने बिस्तर पर पटक दिया और उसपर चढ़ कर उसके स्तन दबाते हुए उंगलियों मे उसकी लंबी लंबी घून्डिया लेकर मसलने लगी. "क्या निपल है तुम्हारे प्राची मौसी! एकदम लाजवाब है, मैने कभी नही देखे ऐसे निपल. कितने प्यारे लगते है, मा सच कहती थी, ये तो बने ही है चूसने ले लिए" कहकर वह बारी बारी से प्राची के दोनो निपल चूसने लगी.
प्राची ने एक दो बार नेहा को बाजू मे करने की कोशिश की पर नेहा उसपर चढ़ि रही. प्राची को मज़ा आ रहा था और वा नेहा के चुंबन लेना चाहती थी पर नेहा उसके स्तनों से मूह हटाने को तैयार नही थी. बीच मे उत्तेजना से वह प्राची के निपलों को हल्के हल्के चबाने लगी. कराहकार प्राची ने उसका सिर हटाने की कोशिश की "अरी पगली, काटती क्यों है, दुखता है ना!"
तोनेहा ने नज़र ऊपर करके नज़रों से ही उसे धमकाया कि ज़्यादा चूं चपड की तो वह सच मे ज़ोर से काट खाएगी. प्राची चुप होकर पड़ी रही और नेहा को अपनी मनमानी करने दी. 'गरम जवान खून है, ये ऐसा करेगी ही' उसने सोचा. मन भरकर प्राची के स्तनों और निपलों का स्वाद लेकर नेहा ने अब प्राची की चूत पर निशाना साधा. उंगली से टटोलकर बोली "अच्छि गीली मखमली है मौसी तेरी यह पठ्ठि. उसे जी भर के देखने का मन करता है, वो बाद मे करूँगी, पहले ज़रा स्वाद चख लूँ." और वा प्राची की चूत पर टूट पड़ी.
उसे चाटने और चूसने लगी. बीच बीच मे उसकी लंबी नुकीली जीभ प्राची की चूत को किसी छोटे लंड जैसे चोदने लगती थी. प्राची कहाँ उसकी कला के आगे टिकने वाली थी, बस दो मिनिट मे ढेर हो गयी और नेहा के सिर को अपनी जांघों मे कसकर इधर उधर लुढ़काने लगी. नेहा ने उठाकर हान्फते हुए अपने कपड़े उतारे. गुलाबी छोटि ब्रा और पैंटी मे लिपट उसका जवान मादक रूप प्राची को घायल कर गया. उसका बहुत मन था की वैसी ही अर्धनग्न अवस्था मे नेहा को बाहों मे लेकर खूब प्यार करे, जैसा नेहा की मा ने प्राची से किया था. पर नेहा ऐसी मस्ती मे थी कि एक ना मानी. अपने पूरे कपड़े उतारकर वह प्राची की टांगे ज़बरदस्ती फैला कर वह फिर प्राची की चूत पर टूट पड़ी. प्राची ने हथियार डाल दिए.
नेहा के सिर को अपनी बुर पर दबाते हुए वह नेहा की इस उत्तेजना का मज़ा लूटने लगी 'जाने दो, अभी जवान बच्ची है, धीरे धीरे प्यार से नारी रूप को कैसे भोगा जाता है, इसकी उसे शायद समझ भी नही है और उतना धैर्य भी नही है.'
कुछ देर बर चुसवाने के बाद प्राची ने किसी तरह बड़ी मुश्किल से नेहा के शरीर को घूनाकर उसके पैर अपनी ओर किए. नेहा की पुष्ट चिकनी जवान जांघों को फैलाकर आख़िर उसने पहली बार उस युवती की रेशमी बालों से ढकि बुर देखी. उसकी जांघों और नरम नरम फूली बर का चुंबन लिया और फिर उंगली से नेहा की बुर के भगोष्ठ खोलकर उसके उस रूप को निहारने लगी. मन भर कर नेहा के लावण्य को देखकर प्राची ने भी अपनी जीभ की नोक से उसमे से निकल रहे अमृत को छुआ और धीरे धीरे चाटने लगी.
कितनी देर यह खेल चला इसका भान ही उन्हे नही रहा. दोनो एक दूसरे की चूत की पूजा करने मे लगी थी. आख़िर झाड़ कर दोनो ज़रा शांत हुई. नेहा ने प्राची की जांघों मे सिर छुपाकर कहा "प्राची मौसी, तुम तो एकदम छुपी रुस्तम निकली. वैसे मैं पहले ही पहचान गयी थी कि तुम क्या चीज़ हो. मैने कब का मम्मी को कहा था कि प्राची मौसी को फँसा लो, वह तो रस की ख़ान है. मम्मी ने भी कमाल कर दिया, देखो कितनी चतुराई से तुम्हे हमारे चंगुल मे फँसा लिया. पर मौसी, ये बताओ कि सिर्फ़ हमने ज़बरदस्ती फांसा है तुम्हे कि मैं सच मूच अच्छि लगती हूँ तुम्हें? या मेरा मन रखने को कह रही हो?"
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